फरवरी की 17 तारीख को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने ज्ञानेश कुमार को देश का अगला मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) नियुक्त किया. राजीव कुमार के मौजूदा CEC पद से रिटायर होने के बाद ज्ञानेश 19 फरवरी से कार्यभार संभालेंगे. ज्ञानेश को जहां CEC बनाया गया है वहीं हरियाणा के मुख्य सचिव विवेक जोशी को चुनाव आयुक्त यानी EC की जिम्मेदारी सौंपी गई है.
केंद्रीय चुनाव आयोग (ECI) में राजीव का कार्यकाल साढ़े चार सालों का रहा. इसमें भी उन्होंने करीब तीन साल तक मुख्य चुनाव आयुक्त के रूप में काम किया. इस दौरान उन्होंने बतौर CEC, 31 विधानसभा चुनाव और 2024 के लोकसभा चुनाव को अंजाम दिया. लेकिन तमाम विवाद भी उनके इस कार्यकाल के समांतर चले.
बिहार-झारखंड कैडर के 1984 बैच के रिटायर्ड आईएएस ऑफिसर राजीव कुमार 1 सितंबर, 2020 को EC के रूप में केंद्रीय चुनाव आयोग में शामिल हुए थे. उन्हें तब के EC अशोक लवासा के अप्रत्याशित इस्तीफे के बाद उनकी जगह पर चुना गया था. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के तत्कालीन अध्यक्ष अमित शाह को आदर्श आचार संहिता (एमसीसी) के कथित उल्लंघन के लिए क्लीन चिट देने पर लवासा ने तब के CEC सुनील अरोड़ा से मतभेद जताए थे.
अरोड़ा के बाद लवासा CEC बनने की कतार में अग्रणी नाम थे, लेकिन इसी बीच उनके परिवार के लोगों पर आयकर विभाग के छापे पड़े. उन्होंने अगस्त 2020 में EC पद से इस्तीफा दे दिया. इसके बाद वे एशियाई विकास बैंक (एडीबी) में उपाध्यक्ष के तौर पर चयनित हो गए.
इन्हीं परिस्थितियों में, जब चुनाव आयोग की भूमिका पर सवाल उठ रहे थे और उसकी आलोचना हो रही थी, राजीव कुमार ECI में बतौर चुनाव आयुक्त शामिल हुए. तब पोल पैनल में सुनील अरोड़ा CEC और सुशील चंद्रा उनके साथी चुनाव आयुक्त थे. राजीव के शामिल होने के कुछ ही दिनों के भीतर ECI ने उस साल अक्टूबर-नवंबर में बिहार विधानसभा चुनाव कराने की घोषणा की.
बिहार चुनाव कोविड-19 महामारी के दौरान होने वाले पहले चुनाव थे. चुनाव आयोग ने तब फिजिकल प्रचार पर कुछ प्रतिबंध लगाए और वर्चुअल प्रचार के लिए उम्मीदवारों की खर्च सीमा में बढ़ोत्तरी को मंजूरी दी. इस तरह ECI ने बिहार चुनाव संपन्न कराए. बहरहाल, 2021 में सुनील अरोड़ा जब रिटायर हुए तो CEC पद के लिए सुशील चंद्रा को चुना गया.
चंद्रा के रिटायर होने के बाद राजीव कुमार ने 15 मई, 2022 को CEC का पदभार संभाला. राजीव के मुख्य निर्वाचन आयुक्त बनने के तुरंत बाद ECI ने 2022 में राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के लिए चुनाव कराए और फिर 2024 के लोकसभा चुनावों की तैयारी शुरू कर दी. इस बीच कुमार ने असम के संसदीय और विधानसभा क्षेत्रों के परिसीमन की भी अध्यक्षता की.
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, CEC के पद पर रहते हुए राजीव ने राजनीतिक दलों के फाइनेंस से जुड़े मामलों में पारदर्शिता को बेहतर बनाने पर फोकस किया. अपने रिटायरमेंट तक फाइनेंशियल सर्विस सेक्रेटरी रहे राजीव ने पाया कि कई रजिस्टर्ड गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों का संभावित रूप से मनी लॉन्ड्रिंग और धोखाधड़ी के लिए इस्तेमाल किया जा रहा था. ये दल असल में निष्क्रिय थे लेकिन पार्टियों को दी जाने वाली टैक्स छूट का दावा कर रहे थे.
अपने इस सफाई अभियान में राजीव की अगुआई में ECI ने 284 ऐसी पार्टियों को सूची से हटा दिया और 253 अन्य को निष्क्रिय घोषित कर दिया. इसके बाद दिसंबर 2022 में राजीव कुमार की अध्यक्षता में ECI ने रिमोट वोटिंग का कांसेप्ट पेश किया और राजनीतिक दलों को रिमोट वोटिंग मशीन के प्रोटोटाइप का प्रदर्शन देखने के लिए आमंत्रित किया.
इस पहल के पीछे ECI का विचार यह था कि चुनाव वाले राज्य के बाहर के स्थानों में एक ही मतदान केंद्र में आरवीएम का इस्तेमाल किया जाए ताकि उस राज्य के वोटर अपने मताधिकार का प्रयोग कर सकें. इस कदम का उद्देश्य प्रवासी श्रमिकों के लिए अपने गृह निर्वाचन क्षेत्रों में वोटिंग करना आसान बनाना था. हालांकि, यह विचार कभी आगे नहीं बढ़ पाया क्योंकि राजनीतिक दलों ने रिमोट वोटिंग की व्यावहारिकता और सुरक्षा के बारे में चिंता जाहिर की.
बतौर CEC राजीव कुमार के साथ जुड़े प्रमुख विवाद
असम परिसीमन को लेकर विवाद :
साल 2023 की शुरुआत में ये मामला सामने आया, जब केंद्रीय निर्वाचन आयोग ने असम में विधानसभा और संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन की प्रक्रिया शुरू की. साल 1976 के बाद यानी करीब 46 सालों के बाद असम में यह पहली परिसीमन प्रक्रिया थी. लेकिन विवाद की वजह ये थी कि परिसीमन प्रक्रिया 2011 की जनगणना के बजाय 2001 की जनगणना के आंकड़ों के आधार पर की जा रही थी.
2001 की जनगणना में असम की आबादी लगभग दो करोड़ 66 लाख थी, जिनमें हिंदुओं की संख्या एक करोड़ 72 लाख और मुसलमानों की संख्या 82 लाख थी. उस दौरान राज्य के 27 जिलों में से छह में मुसलमानों की अच्छी खासी आबादी थी. इसकी तुलना में, 2011 की जनगणना में असम की जनसंख्या तीन करोड़ 12 लाख हो गई जिनमें हिंदुओं की जनसंख्या एक करोड़ 92 लाख और मुसलमानों की जनसंख्या करीब एक करोड़ सात लाख बताई गई.
बीबीसी से बातचीत में तब वरिष्ठ पत्रकार बैकुंठनाथ गोस्वामी ने कहा था, "2011 की जनगणना के आधार पर परिसीमन करने से मुसलिम बहुल सीटों की संख्या में इजाफा हो सकता था." उन्होंने ऐसा नहीं करने के पीछे मुसलमानों की बढ़ी हुई जनसंख्या की ओर इशारा किया. तब कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी पार्टियों ने केंद्रीय चुनाव आयोग पर बीजेपी के इशारों पर काम करने का आरोप लगाया था. वहीं बीजेपी का कहना था कि 2001 की जनगणना को आधार बनाने के काम को चुनाव आयोग जैसी स्वतंत्र संस्था कर रही और वो सभी पक्षों की सहमति से ही यह काम कर रही है.
EC अरुण गोयल के इस्तीफे से जुड़ा विवाद
मार्च 2024 की बात है. उस साल होने वाले लोकसभा चुनाव की घोषणा से महज एक सप्ताह पहले चुनाव आयुक्त (EC) अरुण गोयल ने अपने पद से अचानक इस्तीफा दे दिया था. उनका इस तरह इस्तीफा देना कई लोगों के लिए आश्चर्य की बात थी.
द हिन्दू की एक रिपोर्ट के मुताबिक, तब ECI के अंदरूनी सूत्रों ने बताया कि संसदीय चुनावों की तैयारियों की निगरानी के लिए पश्चिम बंगाल के दौरे के दौरान CEC राजीव कुमार और गोयल के बीच मतभेद साफ तौर पर उभर कर सामने आए थे. गोयल ने तब 42 संसदीय सीटों वाले पश्चिम बंगाल में तैयारियों के बारे में मीडिया को जानकारी देने के लिए कोलकाता में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में भाग लेने से इनकार कर दिया था.
इसके बाद राजीव कुमार को अकेले ही मीडिया को संबोधित करना पड़ा था. प्रेस ब्रीफिंग में राजीव ने बताया कि गोयल "स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं" के कारण दिल्ली लौट गए हैं. हालांकि, द हिन्दू की रिपोर्ट बताती है कि गोयल के करीबी सूत्रों ने इसे खारिज करते हुए कहा था कि "उनका स्वास्थ्य बिलकुल ठीक है." सूत्रों ने बताया, "कुछ गंभीर मतभेदों के कारण वह पश्चिम बंगाल का अपना दौरा बीच में ही छोड़कर दिल्ली लौट आए."
हालांकि सूत्रों ने भी इस बारे में विस्तार से नहीं बताया कि दोनों अधिकारियों के बीच क्या बातचीत हुई और उनके बीच किस मुद्दे पर मतभेद थे. गोयल का कार्यकाल नवंबर 2027 तक था और वे अगले साल CEC बनने वाले थे. अक्टूबर 2024 में, सरकार ने गोयल को क्रोएशिया में भारतीय राजदूत नियुक्त किया.
नेताओं के बयानों पर पार्टी अध्यक्षों को समन भेजना
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2024 के लोकसभा चुनावों की शुरुआत में राजीव कुमार ने राजनीतिक दलों से निजी हमले नहीं करने और प्रचार के दौरान उद्दंड बयानों से बचने की अपील की थी. चुनाव प्रचार के दौरान, पीएम मोदी ने अपनी रैलियों में कहा कि कांग्रेस अगर जीतती है तो वो महिलाओं की संपत्ति (सोना और मंगलसूत्र) उन लोगों को सौंप देगी जिनके अधिक बच्चे हैं. परोक्ष रूप से इसमें मुसलमानों का संदर्भ था.
पीएम मोदी ने यह भी कहा कि अगर कांग्रेस जीत गई तो उनकी भैंसें छीन लेगी. जब अप्रैल 2024 में इन भाषणों को लेकर कई शिकायतें केंद्रीय चुनाव आयोग के दरवाजे पर पहुंचीं, तो ECI ने बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा को नोटिस भेजने का फैसला किया. उसी दिन, आयोग ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी के एक भाषण के लिए कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को भी नोटिस भेजा.
इस तरह, यह पहली बार था जब ECI ने नेताओं द्वारा दिए गए बयानों के लिए संबंधित पार्टी अध्यक्षों को नोटिस जारी किया. विपक्ष ने इसके लिए ECI और राजीव कुमार की व्यापक आलोचना की. जून में जब लोकसभा चुनाव खत्म हुए, तब तक चुनाव आयोग ने एमसीसी उल्लंघन, छह निंदा और प्रचार पर तीन अस्थायी प्रतिबंधों के लिए कुल 13 नोटिस जारी किए थे. इनमें से पांच नोटिस बीजेपी को और चार कांग्रेस को जारी किए गए.
इसके अलावा, आम चुनाव 2024 के दौरान ECI पर अंतिम प्रामाणिक आंकड़ों को देरी से जारी करने के लिए भी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था. यहां तक इसके लिए एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स जैसी संस्थाएं सुप्रीम कोर्ट भी पहुंची थी.
महाराष्ट्र चुनावों में वोटरलिस्ट में हेराफेरी का आरोप
इसी साल फरवरी की 7 तारीख को कांग्रेस नेता और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने दावा किया कि पिछले साल नवंबर में हुए महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के दौरान कई अनियमितताएं हुईं. गांधी ने एनसीपी (शरद पवार) नेता सुप्रिया सुले और शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) सांसद संजय राउत के साथ कॉन्स्टिट्यूशन क्लब में एक संयुक्त संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए आरोप लगाया कि 2024 के लोकसभा और विधानसभा चुनावों के बीच पांच महीनों में पिछले पांच सालों की तुलना में अधिक वोटर जुड़े हैं.
राहुल गांधी ने दावा किया, "2019 के विधानसभा चुनाव और 2024 के लोकसभा चुनाव के बीच पांच साल में महाराष्ट्र की मतदाता सूची में 32 लाख मतदाता जोड़े गए. हालांकि, 2024 के लोकसभा चुनाव और 2024 के विधानसभा चुनाव के बीच सिर्फ पांच महीने में 39 लाख नए मतदाता जोड़े गए." उन्होंने पूछा, "लोकसभा चुनाव के बाद ज्यादा वोटर क्यों जोड़े गए? ये 39 लाख लोग कौन हैं? चुनाव आयोग ने महाराष्ट्र में पांच महीनों में इतने मतदाता क्यों जोड़े जितने वह पांच साल में नहीं जोड़ पाया?"
उन्होंने ECI को कठघरे में खड़ा करते हुए कहा, "इसे कहने का अच्छा तरीका यह है कि केंद्रीय चुनाव आयोग ने सूची पर नियंत्रण खो दिया है. इसे कहने का बुरा तरीका यह है कि चुनाव आयोग ने सूची में हेरफेर किया है...अब, यह चुनाव आयोग की जिम्मेदारी है कि वह इस बारे में सफाई दे कि क्या हुआ है."
राहुल के इन आरोपों पर प्रतिक्रिया देते हुए ECI ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा, "ECI राजनीतिक दलों को प्राथमिक हितधारक के रूप में मानता है, बेशक, वोटर सबसे प्रमुख हैं और आयोग राजनीतिक दलों से आने वाले विचारों, सुझावों, सवालों को बहुत महत्व देता है. आयोग पूरे तथ्यात्मक और प्रक्रियात्मक मैट्रिक्स के साथ लिखित रूप में जवाब देगा जो देश भर में समान रूप से अपनाया जाता है."
दिल्ली चुनावों में भी मतदाता सूची में हेरफेर के लगे आरोप
इस साल फरवरी में हुए दिल्ली विधानसभा चुनावों से पहले आम आदमी पार्टी (आप) और बीजेपी दोनों ने मतदाता सूची में हेराफेरी करने के आरोप लगाए थे. 'आप' ने जहां बीजेपी पर दलितों, झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वालों और पूर्वांचली समुदायों को दिल्ली की मतदाता सूची से हटाने का प्रयास करने का आरोप लगाया, वहीं बीजेपी का आरोप था कि 'आप' एक खास समुदाय के फर्जी मतदाताओं को जोड़ने का प्रयास कर रही है.
इसके अलावा ईवीएम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) में भी छेड़छाड़ के आरोप लगाए गए. ECI ने तब इन तमाम आरोपों को सिरे से खारिज किया था. ECI ने सात जनवरी को दिल्ली विधानसभा चुनावों की घोषणा करते हुए कहा था कि मतदाता सूची में हेरफेर, इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों से छेड़छाड़ नहीं की जा सकती. आयोग ने इस बात पर जोर दिया कि इस तरह की हेरफेर की कोई गुंजाइश नहीं है, क्योंकि चुनाव प्रक्रिया का हर चरण पूरी पारदर्शिता के साथ संचालित होता है.
तब मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने कहा था, "महाराष्ट्र चुनावों के बाद से मतदाता सूची में गलत तरीके से नाम जोड़ने और हटाने के आरोप लगाए गए हैं. आरोप लगाया गया कि कुछ समूह या इलाके प्रभावित हुए हैं. इन चिंताओं को दूर करना और उनका जवाब देना हमारा कर्तव्य है."
दिल्ली चुनाव में ECI पर वोटर टर्नआउट को प्रभावित करने के भी आरोप लगे. इस पर राजीव ने कहा था कि कुछ मतदान केन्द्रों से रिपोर्ट देरी से मिलने के कारण शाम पांच बजे मतदान समाप्त होने के बाद मतदान प्रतिशत में बदलाव होता है. उन्होंने यह भी बताया कि अंतिम गणना से पहले मतों की दोबारा जांच की जाती है.
राजीव ने कहा, "वोटर टर्नआउट में बदलाव करना असंभव है. कुछ पोलिंग पार्टी आधी रात या अगले दिन रिपोर्ट देते हैं. मतगणना से पहले फॉर्म 17सी का मिलान किया जाता है. मतदाता मतदान रिपोर्ट (वीटीआर) में ऐसी कोई बात नहीं है, जिसका स्पष्टीकरण न हो. इसमें पूरी जानकारी दी गई है."