हमारे जीवन का डिजिटल स्पेस जिन्हें कभी हम 'फ्री स्पीच' का गलियारा मान बैठे थे, अब नए इनकम टैक्स बिल के पारित होने के बाद हमारी ही निजता की सुरक्षा करने में असमर्थ नजर आने लगा है. इस बिल में सरकार ने टैक्स अधिकारियों को वित्तीय अनियमितता के संदेह मात्र पर वर्चुअल वॉल्ट, ईमेल इनबॉक्स, सोशल मीडिया अकाउंट और क्लाउड स्टोरेज में घुसपैठ करने की असाधारण ताकत दे दी है.
हमारे डिजिटल स्पेस, जो मजबूत एन्क्रिप्शन और डेटा सुरक्षा कानूनों के संरक्षण में थे, अब सरकारी जांच के दायरे में आ गए हैं. जहां पहले बाहरी दुनिया में टैक्स गड़बड़ियों के लिए घरों और दफ्तरों पर बड़े पैमाने पर छापे मारे जाते थे, तो डिजिटल दुनिया में अब एक ऐसा युग आने वाला है, जहां टैक्स एजेंसियां साइबर निगरानीकर्ताओं के रूप में काम करेंगी और किसी व्यक्ति के ऑनलाइन फुटप्रिंट्स की छानबीन करेंगी.
इस बदलाव के नतीजे बड़े गंभीर हैं, जो एक ऐसे युग की शुरुआत का संकेत देते हैं जहां कोई भी ईमेल, कोई भी प्राइवेट मैसेज और कोई भी एन्क्रिप्टेड अकाउंट सरकार के दायरे से बाहर नहीं है. जो कभी गोपनीय था, वह अब जांच के लिए खुला है. इससे सुरक्षा और निजी जीवन में सरकारी हस्तक्षेप के बीच की लकीरें धुंधली हो गई हैं.
कैसे नया इनकम टैक्स बिल निजता पर खतरे का संकेत है?
अगर यह बिल पास हो जाता है तो टैक्स के नियमों में बदलाव 1 अप्रैल, 2026 से लागू होगा. 13 फरवरी, 2025 को केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने संसद में इनकम टैक्स बिल, 2025 पेश किया. पारित होने के बाद यह कानून इनकम टैक्स एक्ट, 1961 की जगह लेगा. सरकार का दावा है कि यह नया कानून टैक्स देने वालों और वसूलने वालों दोनों के लिए सिस्टम बेहतर करने में मदद करेगा. यहां तक तो सब ठीक दिखता है मगर इसी बिल में एक क्लॉज़ 247 है, जो न केवल टैक्स अधिकारियों की शक्तियों को बेतहाशा बढ़ा देता है, बल्कि ऐसा करने से पहले कोर्ट की निगरानी या किसी अन्य तरह के सुरक्षा उपायों का भी कोई जिक्र नहीं करता. सीधे-सीधे समझें तो अगर बिना कोई गलती किए सरकार आपके वॉट्सऐप में घुसती है तो उसके खिलाफ आप क्या कदम उठा सकते हैं, उठा भी सकते हैं या नहीं, इस बात का कोई जिक्र नहीं है.
औसत करदाता के लिए इसका क्या मतलब है? क्या यह केवल तेजी से बढ़ रहे डिजिटल टैक्स चोरी से निपटने के लिए एक व्यवस्था है या यह एक ऐसा अतिक्रमण है जो भारत को 'सर्विलांस स्टेट' की ओर खतरनाक रास्ते पर ले जा रहा है?
कानूनी विशेषज्ञों और गोपनीयता के पक्षधरों की तरफ से चेतावनी दिए जाने के बाद इस बात पर बहस तेज़ हो गई है कि क्या यह प्रावधान टैक्स चोरी के लिए एक वैध साधन है या मौलिक अधिकारों पर धीरे-धीरे अतिक्रमण है. टैक्स पारदर्शिता की जरूरत और व्यक्तिगत निजता के अधिकार के बीच टकराव पहले कभी इतना स्पष्ट नहीं रहा. इसमें प्रत्येक पक्ष अपने रुख का जमकर बचाव कर रहा है और यह टकराव डिजिटल युग की सबसे जरूरी कानूनी और नैतिक लड़ाइयों में से एक बन रहा है.
क्लॉज़ 247 में क्या लिखा है?
इनकम टैक्स बिल, 2025 का क्लॉज़ 247 सालों से चले आ रहे टैक्स कानूनों से मौलिक रूप से अलग है. इसके तहत तलाशी और जब्ती शक्तियों को अभूतपूर्व रूप से बढ़ाया गया है. इस प्रावधान के मुताबिक, टैक्स प्रवर्तन के लिए किसी भी दरवाजे, बक्से, लॉकर, तिजोरी, अलमारी या अन्य कंटेनर का ताला तोड़ना... या किसी भी कंप्यूटर सिस्टम या वर्चुअल डिजिटल स्पेस के एक्सेस कोड को ओवरराइड करके उस सिस्टम में घुसना, जहां उसका एक्सेस कोड उपलब्ध नहीं है, टैक्स ऑफिसर्स के अधिकार क्षेत्र में आएगा.
यह भाषा भले ही प्रशासनिक लगती है, लेकिन अगर आप यह देखें कि वित्तीय जांच कैसे की जाएगी, तो आपको पारंपरिक कानूनों के बनिस्बत बड़ा बदलाव नजर आएगा. टैक्स अधिकारियों के पास टैक्स चोरी की जांच करते समय भौतिक परिसर में घुसने और तलाशी लेने का अधिकार लंबे समय से है, लेकिन क्लॉज़ 247 इस शक्ति को डिजिटल क्षेत्र तक बढ़ा देता है.
इस कानून में औपचारिक रूप से "वर्चुअल डिजिटल स्पेस" शब्द की बात की गई है, जिसे अच्छे से परिभाषित भी किया गया है. इस परिभाषा के मुताबिक, इस वर्चुअल डिजिटल स्पेस में व्यक्तिगत और पेशेवर ईमेल, फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर और व्हाट्सएप जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म, ट्रेडिंग अकाउंट और क्रिप्टोकरेंसी वॉलेट सहित ऑनलाइन वित्तीय प्लेटफॉर्म, क्लाउड स्टोरेज सेवाएं, जहां व्यक्ति टैक्स रिकॉर्ड या संवेदनशील दस्तावेज रख सकते हैं, और बैंक खाते और निवेश पोर्टल शामिल हैं, जो अघोषित संपत्ति का सबूत दे सकते हैं, शामिल हैं.
इसका सीधा मतलब यह है कि अगर टैक्स अधिकारियों को अघोषित आय या छिपी हुई संपत्ति का शक भी होता है, तो वे निजी डेटा की जांच करने के लिए पासवर्ड और एन्क्रिप्शन सुरक्षा को दरकिनार कर सकते हैं. यह कानून उन्हें वर्चुअल स्पेस तक सीधी पहुंच प्रदान करता है जो पहले कुछ तकनीकी और कानूनी बाधाओं की मदद से संरक्षित थे.
गोपनीय संचार के लिए एन्क्रिप्टेड मैसेजिंग सेवाओं (जैसे वॉट्सऐप) पर निर्भर रहने वाले लोगों के लिए, यह प्रावधान उनकी निजी बातचीत की सुरक्षा के बारे में गंभीर चिंताएं पैदा करता है. सवाल यह है कि क्या अब हर वित्तीय लेन-देन, चाहे वह कितना भी वैध क्यों न हो, जांच के अधीन होगा? और सबसे जरूरी बात यह है कि क्या इन व्यापक शक्तियों के तहत गलत तरीके से निशाना बनाए गए लोगों के लिए भी कोई कानूनी रूप से मदद मुहैया कराई जाएगी.
सरकार क्या कह रही है?
इस कदम के पीछे सरकार का यह दावा है कि आधुनिक टैक्स चोरी की रणनीतियां इतनी जटिल हो गई हैं कि उन्हें पारंपरिक तरीकों से साबित नहीं किया जा सकता. जैसे-जैसे वित्तीय लेन-देन ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म पर तेज़ी से बढ़ रहे हैं, टैक्स अधिकारियों का कहना है कि एक डिजिटल रेगुलेशन सिस्टम की अनुपस्थिति ने अपराधियों को जांच से बचने का मौक़ा दिया है.
क्रिप्टोकरेंसी, ऑफशोर डिजिटल अकाउंट और डिजिटल प्लेटफॉर्म के जरिए मनी लॉन्ड्रिंग, टैक्स चोरी के नए मोर्चे बनकर उभरे हैं. इसके लिए एक कानूनी ढांचे की जरूरत है जो अधिकारियों को छिपी हुई वित्तीय गड़बड़ियों को ट्रैक करने और उजागर करने में सक्षम बनाता है. वित्तीय तकनीक के तेजी से विकास को देखते हुए, कानून निर्माता इस बात पर जोर देते हैं कि टैक्स चोरी करने वालों को प्रवर्तन एजेंसियों से एक कदम आगे रहने से रोकने के लिए नियामक तंत्र को उसी गति से विकसित किया जाना चाहिए.
हालांकि, गोपनीयता के पक्षधर और कानूनी विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि क्लॉज़ 247 एक दोधारी तलवार है. भले ही इसका घोषित उद्देश्य टैक्स नियम लागू करना हो सकता है, लेकिन इसका असल दुनिया में असर कहीं अधिक खतरनाक हो सकता है. इस प्रावधान का सबसे खतरनाक पहलू न्यायिक निगरानी का पूर्ण अभाव है.
भारत का नया कानून टैक्स अधिकारियों को एकतरफा निर्णय लेने का अधिकार देता है कि कब डिजिटल स्पेस का उल्लंघन करना है. यह उन देशों के नियमों से ठीक उलट है जहां टैक्स अधिकारियों को निजी डिजिटल डेटा तक पहुंचने से पहले कोर्ट का आदेश प्राप्त करना होता है. प्रक्रियात्मक जांच की यह कमी चिंता पैदा करती है कि प्रावधान का दुरुपयोग किया जा सकता है. इससे टैक्स जांच की आड़ में मनमानी और अत्यधिक निगरानी हो सकती है. अगर एक बार यह बात स्थापित हो जाती है कि टैक्स अधिकारी बाहरी सत्यापन की जरूरत के बिना निजी खातों तक पहुंच सकते हैं, तो अन्य एजेंसियां भी ऐसी ही शक्तियों की मांग कर सकती हैं.
दूसरे देशों में क्या हैं नियम?
लोकतांत्रिक देशों में, निजता के कानून सरकारी हस्तक्षेप के खिलाफ़ एक सुरक्षा कवच के रूप में काम करते हैं. अमेरिका का चौथा संशोधन टैक्स अधिकारियों को डिजिटल डेटा हासिल करने से पहले कोर्ट वारंट को अनिवार्य बनाता है. वहीं यूरोपीय संघ, अपने सामान्य डेटा संरक्षण विनियमन (GDPR) की मदद से, सख्त निजता प्रतिबंध लगाता है और यह सुनिश्चित करता है कि सरकारी एजेंसियां मनमाने ढंग से निजी जानकारी तक न पहुंच सकें. यहां तक कि कनाडा भी टैक्स अधिकारियों को कानूनी फोरम पर उचित कारण दिखाने के बाद ही डिजिटल रिकॉर्ड तक पहुंचने की इजाजत देता है.
इसके उलट, भारत का क्लॉज़ 247 बिना किसी स्वतंत्र न्यायिक जांच के निजी डिजिटल खातों तक व्यापक पहुंच मुहैया कराता है, जो अनियंत्रित सरकारी निगरानी के लिए एक खतरनाक मिसाल कायम करता है. उचित सुरक्षा उपायों के बिना बहुत संभव है कि यह कानून टैक्स प्रवर्तन के बजाय डराने-धमकाने का साधन बनकर रह जाए.
भारत का वारंट रहित डिजिटल निगरानी की ओर कदम उसे लोकतांत्रिक देशों की तुलना में सत्तावादी टैक्स व्यवस्थाओं के समक्ष ला खड़ा करता है. जैसे कि चीन की गोल्डन टैक्स प्रणाली वास्तविक समय में वित्तीय लेनदेन की निगरानी करती है, जिससे अधिकारियों को बिना उचित प्रक्रिया के लोगों को ट्रैक करने की इजाजत मिलती है. इसी तरह रूस के टैक्स प्रवर्तन कानून सरकारी एजेंसियों को बिना किसी रोक-टोक के डिजिटल संचार तक पहुंच प्रदान करते हैं. भारत का क्लॉज़ 247 इसे इन मॉडलों के बहुत करीब रखता है, जिससे यह चिंता बढ़ जाती है कि टैक्स प्रवर्तन राजस्व संग्रह के तंत्र के बजाय सरकारी निगरानी का एक उपकरण बन रहा है.
ऐसे दौर में जब डिजिटल अधिकार और निजी आजादी लगातार खतरे में हैं, भारत की ओर से टैक्स अधिकारियों को न्यायिक निगरानी के बिना इतनी व्यापक पहुंच की इजाजत देने के फैसले को कई लोग गलत दिशा में उठाया गया कदम मानते हैं. यह कदम पारदर्शी, जवाबदेह प्रणाली से हटकर ऐसी प्रणाली की ओर जाने का संकेत देता है जहां बिना किसी स्पष्ट जरूरत के लोगों के खिलाफ अनियंत्रित शक्तियों का इस्तेमाल किया जा सकता है.
2026 में टैक्स अधिकारियों को अभूतपूर्व शक्तियां मिलने वाली हैं. जब तक न्यायिक निगरानी का कोई सिस्टम नहीं बनाया जाता, तब तक क्लॉज़ 247 सरकारी निगरानी के लिए दरवाजे खोल सकता है. इससे निजता के अधिकार और नागरिक स्वतंत्रता दोनों ही खतरे में पड़ सकते हैं. लीगल एक्सपर्ट्स का तर्क है कि उचित सीमाओं के बिना, दूसरी सरकारी एजेंसियां अपनी छापेमारी में इस कानून का फायदा उठाने की कोशिश कर सकती हैं.
कानूनी विशेषज्ञों का अनुमान है कि आने वाले महीनों में संवैधानिक चुनौतियां और सुरक्षा उपायों की मांगें नीतिगत चर्चा में हावी रहेंगी. सुप्रीम कोर्ट ने पहले जस्टिस केएस पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ (2017) में फैसला सुनाया था कि निजता का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत एक मौलिक अधिकार है.
इस जजमेंट में यह स्थापित किया गया कि किसी भी सरकारी हस्तक्षेप को वैधता, जरूरत और अनुपात के सिद्धांतों के तहत सही ठहराया जाना चाहिए. आलोचकों का तर्क है कि क्लॉज़ 247 इन सिद्धांतों का उल्लंघन करता है क्योंकि यह टैक्स अधिकारियों की शक्तियों पर निगरानी की बात नहीं करता. सख्त कानूनी निगरानी के बिना, उत्पीड़न और अधिकार का आशंकित दुरुपयोग हो सकता है.
सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक रूप से निजता के अधिकार का बचाव किया है. अगर नागरिक इस क्लॉज़ 247 के खिलाफ कानूनी याचिकाएं दायर करना शुरू कर देते हैं, तो शीर्ष अदालत भी हस्तक्षेप करने के लिए बाध्य हो सकती है. तब तक लाखों लोगों के डिजिटल फूटप्रिंट्स टैक्स अधिकारियों की छाया में रहेंगे, जो शासन और निजी आजादी के बीच नाजुक संतुलन में एक नया अध्याय शुरू करेगा.
चूंकि टैक्स प्रवर्तन एजेंसियां निजी डेटा की गहन जांच की ओर बढ़ रही हैं, इसलिए सही सवाल यह है कि क्या भारत का लोकतंत्र अपनी विस्तारित निगरानी मशीनरी के दबाव का सामना कर सकता है?