अंग्रेजी में एक कहावत है : 'प्रिकॉशन इज बेटर देन क्योर', यानी पहले से ही सावधानी बरतना अच्छा होता है. और चीन के साथ भारत का जिस तरीके का संबंध रहा है (याद कीजिए 1962 का युद्ध और 2020 में गलवान घाटी में झड़प), उसमें यह कहावत तो और मुफीद बैठती है. तिब्बत को हड़पने के बाद भी चीन का पेट नहीं भरा, तो अब उसकी नजरें भारत के अभिन्न हिस्से अरुणाचल प्रदेश पर टिक गईं.
चीन की विस्तारवादी नीति का आलम यह है कि हाल ही में अरुणाचल के पास वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर उसके द्वारा 90 नए गांव बसाए जाने की खबरें सामने आईं. 2018 से 2022 के बीच पहले ही 600 से ज्यादा ऐसे गांव बस चुके हैं. जाहिर है भारत को सजग होना ही था. अब भारत LAC के समानांतर ही करीब 2000 किलोमीटर का हाईवे बना रहा है, जो किसी भी आपात स्थिति में सैनिकों के लिए काफी अहम साबित होगा.
यह ऐतिहासिक बुनियादी ढांचा परियोजना भारत के पूर्वोत्तर सीमांत क्षेत्र में आकार ले रही है, जो चीन के साथ विवादित LAC पर रणनीतिक समीकरणों को नए सिरे से परिभाषित कर सकती है. इसे अरुणाचल फ्रंटियर हाईवे नाम दिया गया है, जिसे आधिकारिक तौर पर राष्ट्रीय राजमार्ग 913 (एनएच-913) कहा जा रहा है.
हालांकि, एनएच-913 महज एक सड़क परियोजना नहीं है; यह चीन के साथ अपनी सीमाओं को मजबूत करने का भारत का सबसे महत्वाकांक्षी प्रयास है, साथ ही देश के सबसे दूरस्थ और बीहड़ इलाकों में से एक में लंबे समय से अपेक्षित विकास कामों को अंजाम देना भी है.
अरुणाचल पश्चिम से लोकसभा सांसद और केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू और राज्य के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने इस प्रोजेक्ट को काफी अहम बताया है. रिजिजू ने कहा कि हाईवे "एक रणनीतिक जरूरत है जिसे चीन की तरफ से किसी भी तरह का दबाव रोक नहीं सकता". जबकि खांडू ने इस बात पर जोर दिया कि हाईवे के निर्माण से कैसे "1962 सरीखे युद्ध को दोहराने से रोका जा सकता है".
सैन्य नजरिए से अरुणाचल फ्रंटियर हाईवे का मकसद इलाके में चीन की आक्रामकता को बेअसर करना और रिस्पांस टाइम, पहुंच और रसद के मामले में भारतीय सेना को मदद पहुंचाना है. इसके अलावा, यह हाईवे इलाके की सभी नदी घाटियों को जोड़ेगा और सेना की टुकड़ियों को एक घाटी से दूसरी घाटी में आसानी से जाने में सक्षम बनाएगा.
2014 के बाद से LAC और नॉर्थ-ईस्ट में मैकमोहन रेखा पर चीनी गतिविधियों के खिलाफ भारत की प्रतिक्रिया में तेजी देखने को मिली है, क्योंकि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकार ने सीमा पर बुनियादी ढांचे को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठाए हैं.
2020 के जून की गर्मियों में गलवान घाटी में चीन और भारत के बीच जबरदस्त झड़प हुई थी. इसके बाद 2022 में भी तवांग में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच झड़प हुई. हालांकि पिछले साल दोनों देशों ने पूर्वी लद्दाख में LAC पर गतिरोध को खत्म करने के लिए एक समझौता किया था, और उसके बाद से ही ये दोनों अपने संबंधों को सुधारने के लिए काम कर रहे हैं. पिछले हफ्ते, भारत में चीनी राजदूत जू फीहोंग ने भारत-चीन संबंधों को "रिकवरी फेज" में प्रवेश करने और वैश्विक स्तर पर "सबसे महत्वपूर्ण" द्विपक्षीय संबंधों में से एक बताया.
लेकिन इसी बीच अरुणाचल के पास LAC पर चीन द्वारा 90 नए गांव बसाए जाने की खबरें भी सामने आई हैं. 2018 से 2022 के बीच पहले ही 600 से ज्यादा ऐसे गांव बस चुके हैं. मई 2024 की सैटेलाइट इमेजरी (उपग्रहों से ली गईं तस्वीरें) में झुआंगनान और माजिदुनचुन जैसे इलाकों में ढांचागत विकास काम देखने को मिले हैं, जिनमें नागरिक बुनियादी ढांचे के साथ-साथ सैन्य सुविधाएं भी शामिल हैं. कई गांव LAC से 5 से 30 किलोमीटर के भीतर हैं, जैसे कि निंगची जो अरुणाचल के नजदीक है और तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र में लोखा प्रांत के पास के गांव भी काफी करीब हैं.
ये घटनाक्रम बीजिंग की मंशा पर सवाल उठाते हैं. यही वजह है कि अरुणाचल फ्रंटियर हाईवे का निर्माण काफी अहम माना जा रहा है. 1,637 से 2,000 किलोमीटर की लंबाई में बनने वाला यह हाईवे LAC के लगभग समानांतर चलेगा, कुछ जगहों पर यह सीमा से सिर्फ 20 किलोमीटर की दूरी पर होगा.
इस परियोजना की अनुमानित लागत 42,000 करोड़ रुपये है, और इस तरह यह भारत की सबसे बड़ी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में से एक है. एक तरह से यह हाईवे तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र में चीन के आक्रामक विस्तारवाद और बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए एक रणनीतिक जवाबी उपाय है. इस प्रोजेक्ट की उच्च लागत इसलिए भी है कि जिन इलाकों में इसे बनाया जाना है उनमें काफी बीहड़ इलाके भी शामिल हैं.
जैसे इनमें बर्फ से ढके पहाड़ हैं, तो कहीं घने जंगलों के बीच से रास्ता बनाया जाना है. यहां तक कि 4500 मीटर तक की ऊंचाई पर भी सड़क बनानी पड़ सकती है. जाहिर है कि इस तरह की सुरंगों, पुलों को बनाने के लिए उन्नत इंजीनियरिंग की जरूरत पड़ेगी.
दशकों तक, चीन LAC पर बुनियादी ढांचे के विकास में भारत से आगे रहा है. बीजिंग के हाईवे, हाई-स्पीड रेल लाइनों और सीमावर्ती गांवों के व्यापक नेटवर्क ने तेजी से सैन्य लामबंदी को सक्षम किया है, जिससे संकट के समय पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) को बढ़त मिलती रही है.
2020 से लद्दाख गतिरोध और 2022 में तवांग में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच झड़प ने भारत के लिए अरुणाचल प्रदेश में अपनी सैन्य रसद और रिस्पांस क्षमता को मजबूत करने की तत्काल जरूरत को और मजबूत किया है. अरुणाचल प्रदेश पर अपने दावे के तौर पर चीन इसे 'दक्षिण तिब्बत' कहता रहा है.
अरुणाचल फ्रंटियर हाईवे, चीन की इस चुनौती का नई दिल्ली की सीधी प्रतिक्रिया है. यह सैन्य मोबिलिटी और निगरानी को बढ़ाएगा और भारत की संप्रभुता को मजबूत करेगा. रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि यह संभावित सीमा संघर्ष में भारत के सैन्य नुकसान को काफी हद तक कम कर देगा. एक प्रमुख रक्षा अधिकारी ने कहा, "यह हाईवे एक रणनीतिक जरूरत है और इससे भारतीय सेना को सैनिकों और भारी तोपखाने को अग्रिम इलाकों में तेजी से ले जाने में मदद मिलेगी, जिससे चीन के बेहतर इलाके और मौजूदा बुनियादी ढांचे की बढ़त का मुकाबला किया जा सकेगा."
यह हाईवे नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा सीमावर्ती बुनियादी ढांचे को बढ़ावा देने के लिए किए जा रहे व्यापक प्रयासों का हिस्सा है, जिसने पिछली सरकारों द्वारा सीमावर्ती विकास की उपेक्षा करने की भारत की पिछली नीति को उलट दिया है. ट्रांस-अरुणाचल हाईवे और ईस्ट-वेस्ट इंडस्ट्रियल कॉरिडोर जैसी परियोजनाओं के साथ-साथ NH-913 का उद्देश्य पूर्वोत्तर में भारत की सैन्य और आर्थिक मौजूदगी को बदलना है.
यह हाईवे पश्चिम में तवांग जिले (भूटान के पास) में मागो-थिंगबू से पूर्व में चांगलांग जिले (म्यांमार के पास) में विजयनगर तक फैला है, जो भारत-चीन सीमा पर 12 जिलों से होकर गुजरता है, जिनमें वेस्ट कामेंग, ईस्ट कामेंग, अपर सुबनसिरी, वेस्ट सियांग, अपर सियांग, दिबांग घाटी, लोअर दिबांग घाटी और अंजॉ शामिल हैं. यह मैकमोहन रेखा, जो एक विवादास्पद बॉर्डर सीमांकन का अनुसरण करता है, और नफरा, मेचुका, टूटिंग, किबिथु और डोंग जैसे दूरदराज के सीमावर्ती इलाकों को जोड़ता है.
इस हाईवे के कुछ हिस्से 4,500 मीटर से अधिक ऊंचाई पर स्थित हैं, इसलिए यह हाईवे भारतीय इंजीनियरिंग का भी एक तरह से परीक्षा लेगा. सुरंगें, ऊंचाई पर बने पुल और हिमस्खलन के लिहाज से जोखिमभरे इलाके हाईवे के निर्माण को एक मुश्किल चुनौती बनाते हैं. सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) और राष्ट्रीय राजमार्ग और बुनियादी विकास निगम लिमिटेड (एनएचआईडीसीएल) इस प्रयास की अगुआई कर रहे हैं, जो तिब्बत में चीनी बुनियादी परियोजनाओं में इस्तेमाल की जाने वाली मॉडर्न सुरंग टेक्नोलॉजी और भारी मशीनरी का उपयोग कर रहे हैं.
इस प्रोजेक्ट के निर्माण में राष्ट्रीय सुरक्षा प्रमुख कारक है, लेकिन इस हाईवे के आर्थिक और सामाजिक लाभ भी कम अहम नहीं हैं. राज्य के कई सीमावर्ती गांवों में अभी भी सभी मौसमों के लिए सड़क की सुविधा नहीं है, जिसके कारण पलायन और जनसंख्या में कमी आ रही है. वहीं, दूसरी तरफ चीन ने अपने 'बॉर्डर डिफेंस गांवों' के साथ इन मुद्दों का फायदा उठाया है. यह हाईवे दूरदराज के इलाकों में कनेक्टिविटी, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और रोजगार के अवसर लाएगा, पलायन को कम करेगा और अपने सीमावर्ती इलाकों में भारत की मौजूदगी को मजबूत करेगा. यह तवांग और मेचुका जैसे रमणीय स्थानों में पर्यटन को भी बढ़ावा देगा, जिससे अरुणाचल प्रदेश भारत की आर्थिक मुख्यधारा के साथ और अधिक जुड़ेगा.
पेमा खांडू कहते हैं, "एक बार जब यह हाईवे चालू हो जाएगा, तो यह एक बड़ा बदलाव साबित होगा. इससे हमारे सीमावर्ती इलाके खुल जाएंगे, आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलेगा और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह हमारे क्षेत्र को बाहरी खतरों से सुरक्षित रखेगा."
इससे भारत की 'लुक ईस्ट' नीति को भी लाभ होगा, क्योंकि एनएच-913 पूर्वोत्तर भारत को म्यांमार और उससे आगे जोड़ने वाले व्यापार गलियारों के साथ एकीकृत हो जाएगा, जिससे अरुणाचल प्रदेश अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लिए प्रवेश द्वार बन सकता है.
लेकिन शायद सबसे बड़ी चुनौती बीजिंग का विरोध है. चीन ने अरुणाचल में बुनियादी ढांचे की परियोजनाओं पर बार-बार आपत्ति जताई है, जिसमें अपने क्षेत्रीय दावों को पुख्ता करने के लिए राज्य में स्थानों का नाम बदलना भी शामिल है. चीनी सरकारी मीडिया ने हाईवे को उकसावे वाला कदम बताया है. इसके अलावा इस बात की भी चिंता बनी हुई है कि बीजिंग LAC पर सैन्य रुख अपनाकर जवाब दे सकता है.
हालांकि, भारत ने यह साफ कर दिया है कि वह इस प्रोजेक्ट से पीछे नहीं हटेगा. इसलिए, निर्माण चरणबद्ध तरीके से आगे बढ़ रहा है, जिसमें पहले 192 किलोमीटर दूरी के सड़क पर काम चल रहा है. परियोजना के मार्च 2027 तक पूरा होने का लक्ष्य है. हालांकि कुछ हिस्से उससे पहले चालू हो जाएंगे. शुरुआती चरण के लिए 6,000 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं और सरकार फास्ट-ट्रैक मंजूरी के लिए जोर दे रही है.
अगर यह प्रोजेक्ट तय समय पर पूरा हो जाता है, तो अरुणाचल फ्रंटियर हाईवे हिमालय में भारत के सबसे मजबूत बुनियादी ढांचे के रूप में खड़ा हो सकता है. यह महज एक सड़क नहीं होगी, बल्कि यह भारत की अपनी सीमाओं की रक्षा करने, अपने सीमावर्ती समुदायों को मजबूत बनाने और चीन की विस्तारवादी महत्वाकांक्षाओं का मुकाबला करने के मजबूत संकल्प का प्रतीक होगा. अरुणाचल फ्रंटियर हाईवे के साथ भारत अब सिर्फ चीन की हरकतों पर प्रतिक्रिया नहीं कर रहा है, बल्कि अपनी चालें भी चल रहा है.