कांग्रेस ने अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले फंड जुटाने के लिए 'डोनेट फॉर देश' अभियान शुरू किया है. यह एक ऑनलाइन क्राउड फंडिंग है, जिसे 18 दिसंबर को पार्टी मुख्यालय में कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल और कोषाध्यक्ष अजय माकन ने शुरू किया. इस अभियान के तहत पार्टी 18 साल से ज्यादा उम्र के भारतीय नागरिकों से कम से कम 138 रुपये और इसके गुणज में, जैसे- 1380,13800...रुपये चंदा मांग रही है.
वेणुगोपाल ने इस पूरे अभियान को महात्मा गांधी के 'तिलक स्वराज' फंड से प्रेरित बताते हुए कहा है कि यह फंड ऐसा भारत बनाने में मदद करेगा जिसमें संसाधनों का समान बंटवारा होगा और सबको बराबर मौका मिलेगा. कांग्रेस 28 दिसंबर को अपना 138वां स्थापना दिवस मनाएगी, यही कारण है कि वो 138 या इसके गुणज में चंदा मांग रही है. वर्तमान में ऑनलाइन चल रहा यह क्राउड फंडिंग अभियान 28 दिसंबर तक ऐसे ही चलेगा.
इसके बाद पार्टी के कार्यकर्ता घर-घर जाकर लोगों से कम से कम 138 रुपये चंदा मांगेंगे. पार्टी ने हर बूथ से कम से कम 10 घरों से चंदा लेने का लक्ष्य रखा है. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने 138,000 हजार चंदा दिया है. वहीं, पार्टी ने अपने पदाधिकारियों और सदस्यों से कम से कम 1380 रुपये बतौर चंदा देने की अपील की है.
वहीं भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने इस अभियान का मजाक उड़ाते हुए एक ट्वीट किया. इस ट्वीट में फिल्म 'इंकलाब" का एक दृश्य है जिसमें कादर खान, अमिताभ बच्चन को चुनावी चंदे से मिले पैसे को काले धन में मिलाकर उसे सफेद बनाने की तरकीब बता रहे हैं. बीजेपी आईटी सेल के मुखिया अमित मालवीय ने कांग्रेस के इस ऐलान को लोगों को धोखा देने की तरकीब बताते हुए कहा कि ये लोग गांधी और तिलक की छवि को धूमिल करने निकले हैं. बहरहाल, दोनों दलों के तमाम आरोप-प्रत्यारोप के बीच आइए जानते हैं कि 'तिलक स्वराज' फंड क्या था, इसे किस उद्देश्य से शुरू किया गया था?
क्या था 'तिलक स्वराज' फंड?
दरअसल, 'तिलक स्वराज' फंड एक क्राउड फंडिंग अभियान था, जिसे महात्मा गांधी ने दिसंबर 1920 में कांग्रेस के नागपुर सेशन में शुरू किया था. इसे स्वतंत्रता सेनानी बाल गंगाधर तिलक की याद में शुरू किया गया था, जिनका निधन उसी साल अगस्त महीने में हो गया था. इस फंड का मकसद असहयोग आंदोलन के लिए पैसा जुटाना था ताकि 'स्वराज' की स्थापना हो सके. इसके लिए 1 करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य रखा गया था. मुंबई (तब बॉम्बे) से शुरू हुआ यह अभियान 1921 में अप्रैल से जून तक चला.
इस 1 करोड़ रुपए में केवल मुंबई से 60 लाख रुपए जुटाने का लक्ष्य था, जबकि बाकी पैसे देश के दूसरे हिस्सों से जुटाए जाने थे. जून के आखिर तक करोड़ रुपये से अधिक जमा हो चुके थे. इस मुहिम का एक शानदार किस्सा है. उस समय गांधी के कहने पर सारा देश एक पैर पर खड़ा होने के लिए तैयार था. फंड में योगदान देने के लिए महिलाओं ने अपने गहने बेच डाले, तो पुरुषों ने एक वक्त का खाना छोड़ दिया. इसी फंड के सिलसिले में गांधी जब सांताक्रुज से लौट रहे थे, तो बॉम्बे सेंट्रल की दो टांकी के पास उन्हें जूता पॉलिश करने वालों ने रोक लिया.
उन लोगों ने गांधी से अनुरोध किया कि वे उनकी भेंट स्वीकार करें. उस समय एक जोड़ी जूता पॉलिश करने पर मात्र दो पैसे मिलते थे. बॉम्बे सेंट्रल पर जूता पॉलिश करने वालों ने गांधी जी को कुल मिलाकर दो हजार रुपये दिए. कहते हैं कि यह देखकर गांधी जी की आंखों में आंसू आ गए. उन्होंने तब कहा था, "जिस देश का जर्रा-जर्रा आजादी के लिए इस कदर दीवाना है, उस देश को अंग्रेज तो क्या, कोई भी गुलाम नहीं बना सकता."
बहरहाल, बीते सालों में देखें तो कांग्रेस का चंदा काफी घटा है. हाल के विधानसभा चुनावों में हारने के बाद पार्टी के पास केवल कर्नाटक, तेलंगाना, हिमाचल प्रदेश बचा है. इन चुनावी हारों ने कांग्रेस की पैसा इकट्ठा करने की ताकत को और कमजोर किया है. यही वजह है कि कांग्रेस ने लोगों से पैसा जुटाने के लिए यह अभियान शुरू किया है. एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स के मुताबिक, कांग्रेस के पास 806 करोड़ रुपए हैं, वहीं बीजेपी की बात की जाए तो उसके आस-पास भी कोई नहीं है. बीजेपी के पास 6047 करोड़ की संपत्ति है.