खेलों की दुनिया में वय 30 के पार शायद एक ऐसा संसार है जो हर बढ़ते साल के साथ खिलाड़ियों को रिटायरमेंट की याद दिलाता है. क्रिकेट में भी खिलाड़ी आम तौर पर 35 से 40 की उम्र के बीच अपने खेल को अलविदा कह देते हैं. लेकिन जब कुछ सामान्य घटना की तरह घटता प्रतीत नहीं होता, तो सवाल जरूर उठते हैं. भारतीय पुरुष क्रिकेट टीम के दिग्गज स्पिनर रविचंद्रन अश्विन ने 18 दिसंबर को जब संन्यास की घोषणा की, तो कई लोगों को यह सामान्य घटना की तरह महसूस नहीं हुआ.
अश्विन के जहां करीबी दोस्तों को उनके संन्यास की टाइमिंग पर विश्वास नहीं हो रहा था, वहीं भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान रोहित शर्मा और मुख्य कोच गौतम गंभीर को छोड़कर बाकी सभी के लिए भी यह एक चौंकाने वाला फैसला था. यहां तक कि विराट कोहली को भी ब्रिस्बेन टेस्ट के अंत में ही अश्विन के फैसले के बारे में पता चला. अश्विन के संन्यास के बाद टेस्ट क्रिकेटर चेतेश्वर पुजारा और पूर्व भारतीय स्पिनर हरभजन सिंह ने भी हैरानी जताते हुए कहा कि उन्होंने सीरीज के बीच में ऐसा क्यों किया.
पुजारा ने स्टार स्पोर्ट्स पर कॉमेंट्री के दौरान कहा, "अश्विन का सीरीज के बीच में संन्यास लेना मेरे समझ से परे है. मुझे नहीं पता कि उनकी भारतीय टीम प्रबंधन से क्या बात हुई है. जिस तरह से उन्होंने अचानक संन्यास लिया, मुझे नहीं लगता कि यह आसान रहा होगा." पुजारा के साथ कॉमेंट्री कर रहे हरभजन ने भी कहा कि वे भी आर अश्विन के इस फैसले से हैरान हैं.
18 दिसंबर को ब्रिस्बेन टेस्ट जैसे ही ड्रॉ पर समाप्त हुआ, अश्विन ने अपने रिटायरमेंट का एलान किया. वे कप्तान रोहित शर्मा के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस में पहुंचे और कहा, "यह मेरा बतौर भारतीय खिलाड़ी इंटरनेशल लेवल पर आखिरी मैच है, मेरे अंदर अभी क्रिकेट के कुछ पंच बचे हैं, जिसे मैं क्लब लेवल के क्रिकेट में दिखाऊंगा." इसके बाद अश्विन उठ कर चले गए और उन्होंने पत्रकारों का कोई सवाल भी नहीं लिया.
प्रेस कॉन्फ्रेंस में रोहित शर्मा ने कहा, "मैंने यह (अश्विन के संन्यास लेने के बारे में) तब सुना जब मैं पर्थ आया था. मैं टेस्ट मैच के पहले तीन या चार दिनों के लिए यहां नहीं था, लेकिन तब से यह उसके दिमाग में था. जाहिर है कि इसके पीछे कई चीजें हैं. मुझे पूरा यकीन है कि जब ऐश (अश्विन) सही स्थिति में होगा, तो वह इसका जवाब दे पाएगा."
शर्मा ने आगे बताया, "जब मैं पर्थ पहुंचा, तो हमने बातचीत की और किसी तरह उन्हें गुलाबी गेंद के टेस्ट मैच के लिए रुकने के लिए मना लिया. अश्विन ने मुझसे कहा कि अगर उनकी टीम को जरूरत नहीं है तो वह इस गेम (क्रिकेट) को गुडबाय कह देते हैं." कप्तान ने अंत में कहा कि हम उनके इस चीज की रिस्पेक्ट करते हैं.
38 साल के इस दिग्गज स्पिनर के संन्यास के फैसले के बाद सवाल यह है कि क्या अश्विन ने वाकई ठीक समय पर संन्यास लिया? या इसे दूसरी तरह से कहें तो उन्होंने बीच सीरीज में ही संन्यास की घोषणा क्यों की? या एक अहम सवाल ये भी कि क्या उनकी टीम में अब जगह नहीं बन रही थी?
देखा जाए तो सीरिज के बीच में संन्यास लेने का चलन कोई नया नहीं है. साल 2014 में भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने ऑस्ट्रेलिया में ही टेस्ट सीरीज के दौरान ऐसा किया. उनसे पहले 'जंबो' के नाम से विख्यात अनिल कुंबले ने 2008 में इसी तरह से रिटायरमेंट घरेलू टेस्ट सीरीज के बीच में लिया था. अब अश्विन का नाम भी इस सूची में जुड़ चुका है. इन तीनों खिलाड़ियों में एक समान बात ये नोटिस की जा सकती है कि इन्होंने अपना रिटायरमेंट ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 'बीच सीरीज' में लिया.
हालांकि अश्विन अपने रिटायरमेंट के बारे में काफी पहले से सोच रहे थे. मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो साल 2023 में भारत में हुए बीजीटी सीरीज के समय भी उन्होंने संन्यास का इरादा किया था. तब घुटने की तकलीफ के कारण उन्होंने संन्यास लेने के बारे में सोचा था. हालांकि उस सीरिज में अश्विन ने कमाल का प्रदर्शन करते हुए कुल 25 विकेट झटके थे और भारत को सीरिज जीत के साथ-साथ वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप (डब्ल्यूटीसी) के फाइनल में भी पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई थी.
लेकिन जब डब्ल्यूटीसी का फाइनल हुआ तो इस चैंपियनशिप में 100 विकेट झटकने वाले पहले खिलाड़ी अश्विन को अंतिम एकादश से बाहर बैठना पड़ा. इंग्लैंड के ओवल मैदान पर हुए उस मैच में भारत को ऑस्ट्रेलिया से हार का सामना करना पड़ा था. बाद में अश्विन ने टीम में वापसी की, और 2024 के घरेलू सीरिज में इंग्लैंड के खिलाफ 26 विकेट लेकर सबसे ज्यादा विकेट हासिल करने वाले गेंदबाज रहे. इसके कुछ ही महीनों बाद बांग्लादेश के खिलाफ सीरिज में अश्विन रिकॉर्ड 11 वीं बार 'मैन ऑफ द सीरीज' बने.
इस शृंखला में उन्होंने गेंद के साथ-साथ बल्ले से भी कमाल का प्रदर्शन किया और चेपॉक में खेले गए मैच में आठवें नंबर पर बल्लेबाजी करते हुए तब शतक जड़ा, जब भारत 144 रनों पर 6 विकेट गंवाकर संघर्ष कर रहा था. लेकिन न्यूजीलैंड के खिलाफ अगली घरेलू सीरीज में अश्विन उतना कमाल नहीं कर पाए, जहां दूसरे और तीसरे टेस्ट में ऑफ स्पिनर वॉशिंगटन सुंदर ने बेहद शानदार प्रदर्शन किया.
भारत के लिए टेस्ट में कुल 537 विकेट झटक चुके अश्विन अनिल कुंबले (619) के बाद सर्वाधिक टेस्ट शिकार करने वाले गेंदबाज हैं. हालांकि घरेलू मैदान में एसजी गेंदों के साथ कमाल दिखाने वाले अश्विन को विदेशों में कूकाबूरा गेंदों के साथ चुनौतियों का सामना करना पड़ा है.
अश्विन ने जहां सभी 537 विकेटों में से 383 विकेट घरेलू जमीन पर हासिल किए हैं, वहीं SENA (दक्षिण अफ्रीका, इंग्लैंड, न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया) में वे कुल 26 टेस्ट खेलकर सिर्फ 72 विकेट ही ले पाए. यही वजह रही कि कई बार जब भारत विदेशों में खेला, तो अश्विन को अंतिम एकादश से बाहर बैठना पड़ा.
मौजूदा बीजीटी सीरीज को ही लीजिए, ऑस्ट्रेलिया की जिस तरह की परिस्थिति हैं, उस लिहाज से टीम में एक स्पिनर से ज्यादा खेलने का विकल्प बन भी नहीं रहा था. इस टेस्ट सीरीज में भारत ने हर टेस्ट में अपने स्पिनर को बदला. पहले टेस्ट में अश्विन के बजाय वॉशिंगटन सुंदर को तरजीह दी गई, जहां उन्होंने कुल 17 ओवर किए और दोनों पारियों में दो विकेट झटके और कुल 33 रन भी बनाए.
इसके बाद एडिलेड टेस्ट में अश्विन खेलने उतरे, जहां भारतीय टीम को 10 विकेट से हार मिली. अश्विन ने इस मैच में पहली पारी में 18 ओवर किए 53 रन देकर मिचेल मार्श को आउट किया. फिर ब्रिस्बेन (गाबा) टेस्ट में एक बार टीम इंडिया ने बदलाव किया और रवींद्र जडेजा को खेलने उतार दिया, अश्विन बाहर रहे. जडेजा ने 23 ओवर किए और 95 रन दिए, उन्हें कोई विकेट नहीं मिला, जडेजा बल्ले से जरूर सफल रहे और उन्होंने 77 रन बना दिए.
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ऑस्ट्रेलिया रवाना होने से पहले ही अश्विन के मन में दो विचार थे, लेकिन वे एक आखिरी कोशिश करना चाहते थे क्योंकि ऑस्ट्रेलिया दौरे के बाद कोई टेस्ट सीरीज नहीं है. संन्यास के बारे में उनके परिवार को अगर थोड़ा बहुत पता था भी, तो इतना ही कि अश्विन बीजीटी सीरिज के बाद खेल को अलविदा कह देंगे. अश्विन के पिता ने तो बॉक्सिंग डे और नए साल के टेस्ट मैच देखने के लिए फ्लाइट टिकट भी बुक कर लिए थे. लेकिन 17 दिसंबर की रात को इस दिग्गज स्पिनर ने फोन करके बताया कि 18 दिसंबर अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटर के तौर पर उनका आखिरी दिन होगा.
घुटने की तकलीफ के अलावा पिछले कुछ महीनों में हुई घटनाओं ने भी अश्विन के संन्यास के फैसले में भूमिका निभाई है. बांग्लादेश सीरीज के बाद कहा जा रहा था कि अश्विन के पास कम से कम दो साल और क्रिकेट खेलने के लिए बचे थे. न्यूजीलैंड के खिलाफ उनका प्रदर्शन फीका रहा, लेकिन ऑस्ट्रेलिया दौरे के लिए चुने जाने के बाद माना जा रहा था कि वे वापसी करेंगे.
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अश्विन के ऑस्ट्रेलिया पहुंचने के बाद टीम प्रबंधन ने संकेत दिया कि भले ही अंतिम एकादश में दो स्पिनरों की जगह बनती हो, लेकिन इसमें अश्विन की जगह बननी मुश्किल है क्योंकि शीर्ष क्रम के पर्याप्त रन नहीं बनाने के कारण भारतीय टीम को रवींद्र जडेजा और वाशिंगटन सुंदर जैसे खिलाड़ियों की जरूरत है. एडिलेड में पिंक बॉल टेस्ट में जहां तेज गेंदबाजों को काफी मदद मिली, अश्विन ने अच्छी गेंदबाजी की, लेकिन अगले टेस्ट में उन्हें बाहर बिठा दिया गया.
आज तक की एक रिपोर्ट के मुताबिक, बार-बार गेंदबाजी में बदलाव से यह बात साफ थी कि टीम इंडिया में ऑस्ट्रेलियाई दौरे पर किसी भी स्पिनर को लेकर आत्मविश्वास नहीं था. यही कारण था कि हर मैच में बदलाव किया गया. वहीं अश्विन के पिंक बॉल से आंकड़े शानदार थे, इसी कारण उनको एडिलेड में चुना गया था. एक और वजह है कि अगर अश्विन गाबा टेस्ट के बाद संन्यास नहीं लेते तो इस बात की कोई गारंटी नहीं थी कि मेलबर्न और सिडनी में उनको जगह मिलती.
इधर, अश्विन के पिता रविचंद्रन ने कहा कि उनका बेटा प्लेइंग-11 में नहीं चुने जाने से नाराज था. उसे विदेश में युवा ऑफ स्पिनर से रिप्लेस होना अपमान की तरह लग रहा था. इसी अपमान के चलते शायद अश्विन ने इंटरनेशनल क्रिकेट से रिटायर होने का फैसला किया. रविचंद्रन ने न्यूज-18 को बताया, "मुझे भी संन्यास के बारे में बुधवार को ही पता चला. रिटायर होना उसका निजी फैसला है, मैं उसे रोकना नहीं चाहता, लेकिन जिस तरीके से वह रिटायर हुआ, इसके कई कारण हो सकते हैं. यह सिर्फ अश्विन जानता है."
चेन्नई पहुंचने पर अश्विन ने कहा, "मैं चेन्नई सुपर किंग्स (सीएसके) के लिए खेलने जा रहा हूं और अगर मैं जितना हो सके उतना लंबे समय तक खेलने की कोशिश करता हूं तो हैरान मत होइए. मुझे नहीं लगता कि अश्विन क्रिकेटर के तौर पर खत्म हो गए हैं, मुझे लगता है कि अश्विन का भारतीय क्रिकेटर के तौर पर शायद अब समय आ गया है. बस इतना ही.