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दिल्ली चुनाव : क्या पूर्वांचली तय करेंगे हार-जीत? 2020 में AAP को मिले थे BJP से 15 फीसद ज्यादा वोट!

दिल्ली में रह रहे यूपी, बिहार और झारखंड के वोटरों को रिझाने के लिए आम आदमी पार्टी और बीजेपी दोनों ने टास्क फोर्स टीम बनाई है

दिल्ली में आउटसाइडर किसको जिताएंगे?
दिल्ली में आउटसाइडर किसको जिताएंगे?
अपडेटेड 4 फ़रवरी , 2025

फरवरी की 8 तारीख को दिल्ली विधानसभा चुनाव का नतीजा आना है. चुनाव परिणाम के बाद जीत चाहे जिस भी दल की हो, लेकिन पूर्वांचली वोटर निर्णायक भूमिका निभाने जा रहे हैं.

इसी वजह से दिल्ली के पूर्व सीएम अरविंद केजरीवाल ने पूर्वांचली वोटरों को रिझाने के लिए सांसद संजय सिंह के नेतृत्व में एक टास्क फोर्स बनाई है. इस टास्क फोर्स के तहत 7 टीमें बनाई गई हैं.

ये दिल्ली के अलग-अलग हिस्से में जाकर पूर्वांचली वोटर्स को केजरीवाल के पक्ष में इंफ्लूएंस करने की कोशिश कर रहे हैं. वहीं, बीजेपी ने भी पूर्वांचली वोटरों को रिझाने के लिए बस्ती के सांसद हरीश द्विवेदी के नेतृत्व में 100 नेताओं की एक टीम बनाई है. इस टीम के सभी नेताओं को 17 फीसद से ज्यादा पूर्वांचली वोटर वाले विधानसभा क्षेत्रों का जिम्मा सौंपा गया है. पिछली बार आप को दिल्ली में बीजेपी से 15.53 फीसद ज्यादा पूर्वांचली वोट मिले थे. बीजेपी इस बार इसी वोट में सेंध लगाना चाह रही है.

ये उस क्षेत्र में बड़े पूर्वांचली बीजेपी नेताओं के प्रोग्राम कराने से लेकर डोर-टू-डोर कैंपेन की प्लानिंग कर रहे हैं. लेकिन, दिल्ली चुनाव में पूर्वांचली वोटर इतने अहम क्यों हो गए हैं, क्या इस बार पूर्वांचली वोटर ही दिल्ली में सीएम बनाने वाले हैं? अब एक-एक कर इन सभी सवालों के जवाब जानते हैं…

दिल्ली चुनाव ग्राफिक्स
दिल्ली चुनाव ग्राफिक्स
दिल्ली चुनाव
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दिल्ली चुनाव 2025

बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश और झारखंड से बड़ी संख्या में लोग आर्थिक अवसरों की तलाश में दिल्ली की ओर पलायन करते हैं. यहां आने वाले ज्यादातर लोग इस शहर में बस जाते हैं और यहां के मतदाता बन जाते हैं. 

यही वजह है कि आज के समय में दिल्ली शहर की कुल आबादी में पूर्वांचली वोटर्स करीब 25 फीसद या इससे ज्यादा हैं. इनकी ज्यादातर आबादी देश की राजधानी में नौकरशाह, प्राइवेट कंपनियों के कर्मचारी, मजदूर, असंगठित क्षेत्र में कमाने वाले और स्टूडेंट के रूप में मौजूद हैं. 

CSDS के प्रोफेसर संजय कुमार के मुताबिक दिल्ली में पूर्वांचली वोटर्स की संख्या कितनी है, इस बात का आकलन लगाना मुश्किल है. ऐसा इसलिए क्योंकि कभी इसकी गणना नहीं हुई है, लेकिन अनुमान अलग-अलग हैं.’

दिल्ली में 16-20 सीटें ऐसी हैं, जहां इनकी संख्या बहुत अच्छी है. इन सीटों पर चुनाव परिणाम को ये प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं. यही कारण है कि सभी पार्टियों में पूर्वांचली वोटर्स को रिझाने की होड़ मची हुई है. 

तीन दशक से दिल्ली में सरकार बनाने में मुख्य भूमिका निभाते हैं पूर्वांचली वोटर

90 के दशक के बाद ये ट्रेंड रहा है कि दिल्ली में पूर्वांचली वोटर जिनके साथ रहे हैं, राज्य में उनकी सरकार बनी है. ऐसा माना जाता है कि 1998 के बाद पूर्वांचली वोटरों ने शीला के नेतृत्व वाली कांग्रेस पार्टी का साथ दिया था. इनके बूते कांग्रेस 15 साल तक दिल्ली की सत्ता में रही थी.

2013 के बाद स्थिति बदली और अन्ना आंदोलन के बाद बनी आम आदमी पार्टी के सपोर्ट में पूर्वांचली वोटर आए. इसकी दो बड़ी वजह थी…

1. महंगाई और भ्रष्टाचार से परेशान जनता को AAP में उम्मीद दिखी: 15 साल से सत्ता में बैठी कांग्रेस के खिलाफ आम लोगों में गुस्सा था. बढ़ती महंगाई और भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर अन्ना हजारे ने आंदोलन शुरू किया. दिल्ली की मिडिल क्लास और गरीब जनता को इस आंदोलन से उम्मीद दिखाई दी. ज्यादातर पूर्वांचली लोग जो दिल्ली में आकर रह रहे हैं, उनकी आमदनी बेहद कम है. ऐसे में वो इस समुदाय ने आगे बढ़कर आंदोलन में हिस्सा लिया. परिणाम ये हुआ कि पूर्वांचली वोट आंदोलन के बाद बनी AAP के सपोर्ट में आसानी से मूव कर गई. 

2. AAP ने पूर्वांचली नेताओं को आगे किया: पूर्वांचली वोटरों को साधने के लिए AAP ने 2013 के विधानसभा चुनाव के दौरान 10फीसद से ज्यादा टिकट पूर्वांचली लोगों को दिए. 2015 में भी AAP ने 13 पूर्वांचलियों को टिकट दिया, जिनमें से सभी ने अपने विधानसभा क्षेत्रों में जीत हासिल की. 

अरविंद केजरीवाल ने इनकी ताकत को समझते हुए पूर्वांचली समुदाय से आने वाले गोपाल राय, सोमनाथ भारती जैसे नेताओं को मंत्री बनाया. संजय सिंह को राज्यसभा भेजा.

वहीं, ​​इसके विपरीत, भाजपा ने 2015 में पूर्वांचली समुदाय के केवल तीन लोगों को टिकट दिए थे. हालांकि, बाद में पूर्वांचली वोटरों को साधने के लिए बीजेपी ने 2016 में मनोज तिवारी को अपना दिल्ली प्रमुख जरूर बनाया. यह 1990 के बाद पहला मौका था, जब बीजेपी ने बनिया और पंजाबी समुदायों के बजाय पूर्वांचली को प्रदेश के पार्टी प्रमुख की जिम्मेदारी सौंपी थी. 

दिल्ली में पूर्वांचली वोटरों के मुद्दे क्या हैं?

दिल्ली में ज्यादातर पूर्वांचली वोटर स्लम और अवैध कॉलोनियों में बसे हुए हैं. इन वोटर्स के लिए 200 यूनिट मुफ्त बिजली और महिलाओं की मुफ्त बस यात्रा जैसे फायदे प्रभावी हैं. यही वजह है कि दिल्ली की लड़ाई में ये पूर्वांचली वोट पिछले दो विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के साथ डटकर खड़ा रहा है. 

पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स का कहना है कि बाकी माइग्रेंट पॉपुलेशन की तरह पूर्वांचली लोगों के लिए भी शिक्षा, रोजगार, सुरक्षा, साफ-सफाई, किराया, महंगाई और पानी-बिजली मुख्य मुद्दा है. ये इसी आधार पर इस विधानसभा चुनाव में भी वोट करेंगे.

पूर्वांचली वोटों को रिझाने के लिए कांग्रेस ने भी अपना दांव चल दिया है. कांग्रेस ने कहा है कि दिल्ली में उसकी सरकार बनने पर पूर्वांचल के लोगों के लिए अलग मंत्रालय बनाया जाएगा. इतना ही नहीं बजट का प्रावधान किया जाएगा ताकि हेल्थ, एजुकेशन समेत उनकी तमाम समस्याओं का समाधान हो सके.

AAP के लिए इस बार के विधानसभा चुनाव में पूर्वांचली वोटर क्यों खास है?

दिल्ली चुनाव को मुख्य रूप से तीन तरह के आउटसाइडर प्रभावित करते हैं. इनमें सबसे प्रमुख पूर्वांचली, फिर पंजाबी सिख और तीसरे उत्तराखंडी लोग हैं. अब समझते हैं कि ये चुनाव पर क्या असर डालते हैं :

पूर्वांचली वोट: पॉलिटिकल एक्सपर्ट रशीद किदवई के मुताबिक पिछले चुनाव के आंकड़ों के आधार पर देखें तो ये वोटर्स या तो AAP या BJP को वोट करते हैं. पिछले तीन चुनावों में कांग्रेस को इनका वोट ना के बराबर मिला है. इस बार भी इन लोगों में कांग्रेस की तरफ कुछ खास रूझान देखने को नहीं मिल रहा. 

ऐसे में AAP को कांग्रेस से अपने कोर वोट कटने का डर यहां ना के बराबर है. लेकिन, इसका एक दूसरा पक्ष ये भी है कि इसी समुदाय को सबसे ज्यादा बीजेपी टारगेट कर रही है. पार्टी को उम्मीद है कि पिछली बार जिन पूर्वांचली लोगों ने आप को वोट किया था, वो इस बार बीजेपी को वोट कर सकती है. इसकी वजह ये है कि बीजेपी ने 12 लाख तक की आमदनी वाले लोगों के इनकम को टैक्स फ्री कर दिया है. 

दिल्ली में रहने वाले पूर्वांचली लोगों की बड़ी आबादी नौकरी-पेशे में है और इन्हें केंद्र के फैसले से बड़ी राहत मिली है. इसके अलावा, राजनाथ सिंह से लेकर नीतीश कुमार, चिराग पासवान, योगी आदित्यनाथ जैसे पूर्वांचली नेता गली-गली जाकर चुनावी सभाएं कर रहे हैं. 

अब सारा खेल इस बात पर निर्भर करता है कि AAP अपने कोर पूर्वांचली वोटरों को बीजेपी की ओर जाने से रोक पाती है या नहीं.

पंजाबी सिख: दिल्ली की कुल आबादी में पंजाब से आए लोगों की संख्या करीब 17फीसद से 18फीसद है, लेकिन इनमें पंजाबी उच्च जाति के हिंदू, वैश्य, दलित और सिख सभी शामिल हैं. अगर दिल्ली में रहने वाले सिर्फ पंजाबी सिख की बात करें तो इनकी आबादी करीब 4 फीसद है. 

सबसे ज्यादा पंजाबी सिख की आबादी पंजाबी बाग, तिलक नगर, जनक पुरी, विकास पुरी, करोल बाग, पटेल नगर, ओल्ड राजिंदर नगर, न्यू राजिंदर नगर, मोती नगर, राजौरी गार्डन, नारायण, माया पुरी, हरि नगर , सुभाष नगर, महारानी बाग, लाजपत नगर, मालवीय नगर, कालकाजी और शाहदरा जैसे इलाके में रहते हैं. 

इनमें से राजौरी गार्डन, हरि नगर, कालकाजी, पटेल नगर, ओल्ड राजिंदर नगर, पंजाबी बाग और शाहदरा विधानसभा सीटों पर पंजाबी सिख निर्णायक भूमिका निभाते हैं. आमतौर पर ये देखा जाता है कि पंजाब में जिसकी सरकार होती है, सिख वोटर उसी को दिल्ली में भी वोट करते हैं. इसकी वजह ये है कि पंजाबी सिख दिल्ली की राजनीति में भी अपने राज्य की राजनीति के हिसाब से वोट करते हैं. पंजाबी किसान लंबे समय से अपनी मांगों को लेकर मांग कर रहे हैं,  इसकी वजह से भी पंजाबी सिख नाराज हैं. ऐसे में इनके वोट AAP के खाते में जाने की ज्यादा संभावना है.

उत्तराखंडी वोटर्स: दिल्ली में पूर्वांचली और पंजाबी सिख के अलावा दिल्ली में सबसे ज्यादा वोट उत्तराखंड के पहाड़ी लोगों के हैं. दिल्ली के कुल वोटर्स में ये करीब 6 फीसद हैं. सीनियर जर्नलिस्ट और पॉलिटिकल एक्सपर्ट सुनील कश्यप ने एक मीडिया संस्थान को दिए इंटरव्यू में कहा है कि इस बार उत्तराखंडी मतदाता बीजेपी की ओर झुके नजर आ रहे हैं. इसकी एक वजह ये भी है कि AAP ने जहां पूर्वांचली उम्मीदवारों पर ज्यादा दांव खेला है. वहीं, वोटर्स के हिसाब से उत्तराखंडी लोगों को सबसे ज्यादा टिकट बीजेपी ने ही दिया है. 

मालवीय नगर, आर.के. पुरम और पटपड़गंज में उत्तराखंडी वोटर हैं. यहां उत्तराखंडी वोटर के बीच BJP सतीश उपाध्याय को बड़ा चेहरा बता रही है. वहीं, पटपड़गंज में रविंद्र नेगी को टिकट दिया है. ऐसे में ज्यादातर उत्तराखंडी वोट BJP की तरफ जा सकते हैं.

हालांकि, रशीद किदवई सुनील कश्यप की बात से पूरी तरह सहमत नहीं हैं. रशीद का कहना है कि दिल्ली के हर वर्ग की महिलाओं में कुछ ना कुछ वोट आम आदमी पार्टी के हैं. ऐसे में पूर्वांचली हो या उत्तराखंडी बाहर से आए हर समुदाय का वोट बंटना तय है. 

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