अपने दो साल के तुलनात्मक रूप से लंबे कार्यकाल और करीब 500 फैसले सुनाने के बाद 8 नवंबर, 2024 को सुप्रीम कोर्ट के 50वें मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ का कार्यकाल ख़त्म हो गया. 11 नवंबर को जस्टिस संजीव खन्ना ने अगले सीजेआई के तौर पर पदभार ग्रहण किया.
इंदिरा गांधी से टकराने वाले सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज हंस राज खन्ना के भतीजे और दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश होने के अलावा सीजेआई संजीव खन्ना के हिस्से और भी किस्से आए हैं. इन सभी को जानते हुए समझते हैं कि सीजेआई के तौर पर अगले छह महीने का उनका कार्यकाल कितना अहम साबित हो सकता है.
1960 की पैदाइश वाले जस्टिस खन्ना 1983 में दिल्ली बार कॉउन्सिल में शामिल हुए. दिल्ली की जिला अदालतों से वकालत की शुरुआत करने वाले जस्टिस खन्ना जब दिल्ली हाई कोर्ट वकालत करने पहुंचे तो उन्होंने संवैधानिक, टैक्सेशन, मध्यस्थता, वाणिज्यिक, कंपनी, जमीन और पर्यावरण कानूनों सहित अन्य मामलों में वकालत की. वे आयकर विभाग के वरिष्ठ स्थायी वकील भी रहे.
जस्टिस संजीव खन्ना को 2005 में दिल्ली हाई कोर्ट के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में प्रमोट किया गया और 2006 में वे परमानेंट जज बन गए. जब 2019 में जस्टिस खन्ना को सुप्रीम कोर्ट में जज के रूप में नियुक्त किया गया, उस समय देश के अलग-अलग हाई कोर्ट के कुल 32 जज सीनियॉरिटी में इनसे आगे थे. फिर भी तत्कालीन सीजेआई रंजन गोगोई ने योग्यता और ईमानदारी के आधार पर उनकी सिफारिश की थी.
गोगोई के नेतृत्व वाले कॉलेजियम ने कहा था कि उन्होंने जस्टिस संजीव खन्ना को सभी मामलों में अन्य मुख्य न्यायाधीशों और हाई कोर्ट के वरिष्ठ जजों की तुलना में अधिक योग्य और उपयुक्त पाया है.
जब चाचा ने ले लिया था इंदिरा गांधी से पंगा
कितनी दिलचस्प बात है कि जिन संजीव खन्ना को 32 जजों से जूनियर होने के बावजूद वरीयता दी गई, उनके ही चाचा और सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश हंस राज खन्ना को 1977 में दरकिनार कर उनके जूनियर मिर्जा हमीदुल्लाह बेग को देश का 15वां सीजेआई बनाया गया था.
जस्टिस हंस राज खन्ना ने इमरजेंसी के दौर में व्यक्तिगत स्वतंत्रता और कानून के शासन के मौलिक अधिकार को बनाए रखने के लिए 1977 में भारत के मुख्य न्यायाधीश का पद छोड़ दिया था. जस्टिस हंस राज खन्ना ने बहुचर्चित एडीएम जबलपुर मामले (या हैबियस कॉर्पस मामले) में ना केवल तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार को चुनौती दी थी बल्कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के भी खिलाफ चले गए थे.
एडीएम जबलपुर केस इमरजेंसी की घोषणा के बाद सुप्रीम कोर्ट के सामने आया था. इस दौरान कई विपक्षी नेता जेल में थे और मीडिया पर शिकंजा कस दिया गया था. एडीएम जबलपुर केस के 4:1 बहुमत से पारित फैसले में कहा गया था कि किसी व्यक्ति को गैरकानूनी तरीके से हिरासत में ना लिए जाने के अधिकार को राज्य (स्टेट) के हित में निलंबित किया जा सकता है.
उस समय जस्टिस ए.एन. रे सीजेआई थे और पूर्व सीजेआई चंद्रचूड़ के पिता, जस्टिस वाईवी चंद्रचूड़ उन चार न्यायाधीशों में से थे जिन्होंने बहुमत के फैसले का समर्थन किया था. इस मामले में असहमति जताने वाले एकमात्र जज हंस राज खन्ना थे. खन्ना ने तब तर्क दिया था कि अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार को इमरजेंसी के दौरान भी निलंबित नहीं किया जा सकता. उन्होंने जोर देकर कहा कि कोई भी कानून या आदेश जो इस मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है वह असंवैधानिक है. बस इसी फैसले की वजह से वे सीजेआई नहीं बन सके.
जस्टिस हंस राज खन्ना की एक बड़ी सी तस्वीर अब सुप्रीम कोर्ट के कोर्ट रूम 2 में लगी हुई है. यह वही कोर्ट रूम है जहां सीजेआई संजीव खन्ना ने सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में अपना कार्यकाल शुरू किया था.
क्या करेंगे सुप्रीम कोर्ट के अगले सीजेआई?
जस्टिस संजीव खन्ना को 18 जनवरी, 2019 को सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त किया गया था. बेंच पर अपने पांच सालों के कार्यकाल के दौरान उन्होंने कई अहम मामलों में भाग लिया, जिसमें 2019 में सीजेआई रंजन गोगोई के खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोपों की सुनवाई, अनुच्छेद 370 को निरस्त करने और इलेक्टोरल बॉन्ड को रद्द करने जैसे प्रमुख संवैधानिक केस शामिल थे.
हाल ही में, वे अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय मामले में सात जजों की बेंच का हिस्सा थे, जिसने विश्वविद्यालय की अल्पसंख्यक स्थिति को बरकरार रखा. जस्टिस खन्ना ही सुप्रीम कोर्ट की उस बेंच का नेतृत्व कर रहे थे जिसने अरविंद केजरीवाल को लोकसभा चुनाव से पहले अंतरिम जमानत दी थी.
11 नवंबर, 2024 को जस्टिस संजीव खन्ना छह महीने के कार्यकाल के लिए भारत के 51वें मुख्य न्यायाधीश बने हैं. उन्होंने तुरंत अपनी प्राथमिकताओं को रेखांकित करते हुए अपने भाषण में सुलभता यानी न्याय पाने में आसानी, निष्पक्षता और केस बैकलॉग को कम करने पर ध्यान देने के साथ नागरिक-केंद्रित न्यायपालिका पर जोर दिया. उन्होंने मध्यस्थता को बढ़ावा देने की बात तो की ही मगर साथ ही साथ ऐसे जजमेंट की वकालत भी की जो ज्यादा से ज्यादा लोग समझ सकें.
सीजेआई संजीव खन्ना अपने कार्यकाल के दौरान कुछ महत्वपूर्ण मामलों की सुनवाई करेंगे, जिसमें चुनाव आयोग नियुक्ति अधिनियम की संवैधानिकता, बिहार की जाति जनगणना की वैधता और भारतीय कानून में मैरिटल रेप (वैवाहिक बलात्कार) का अपवाद शामिल हैं. मैरिटल रेप के मामले से महिलाओं के अधिकारों पर बड़ी बड़ी बहस छिड़ सकती है. इनके अलावा वे कोलकाता के आरजी कर मामले को लेकर बने स्वास्थ्य सेवा कर्मी सुरक्षा पर एक टास्क फोर्स का नेतृत्व करने तथा मुस्लिम महिला (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम की चुनौतियों की जांच भी करेंगे.
मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना का न्यायिक दर्शन संवैधानिक मूल्यों, निष्पक्षता तथा न्याय तक जनता की पहुंच में सुधार पर आधारित है. उनका नेतृत्व उनके चाचा हंस राज खन्ना की ईमानदार विरासत को जारी रखने का वादा करता है जिसकी धमक आज भी भारतीय न्यायपालिका पर महसूस की जा सकती है.