देश-दुनिया की छोडि़ए, हर रोज मोहल्ले और घरों में ऐसी घटनाएं होती हैं, जो मोहल्ले और खानदान वालों के लिए बड़ी खबर होती है. किसी भी समाचार माध्यम में उनका जिक्र तक नहीं होता, लेकिन घरवालों के लिए उससे बड़ी खबर दूसरी हो ही नहीं सकती. एक रिश्तेदार के साथ हुई घटना ऐसी ही खबरों में शुमार है.
आज सुबह-सुबह ज़ोया ने अब्बा को फोन किया और सलाम-कलाम के बाद हस्बे मामूल खैरो-आफियत पूछी गई. ज़ोया ने कहा, ''सब ठीक है, लेकिन अफसर बुड्ढों की तरह ढांय-ढांय खांस रहे हैं. और अतिया को भी खांसी-जुकाम है. कल रात हम लोग रुखसाना बाजी के यहां गए थे. बहुत परेशान थीं, ज़ारो कतार रोए जा रही थीं. उनका सिम्बा तीन दिन से लापता है. ''
कुछ देर तक अब्बा के फोन का सिग्नल कमजोर पड़ा और एक-दो बार हेलो-हेलो कहने के बाद फोन रख दिया. कुछ वक्फे बाद फोन फिर बजा.
ज़ोया ने बताया कि रुखसाना बाजी दो दिन से फोन करके गुजारिश कर रही थीं कि तुम सब आ जाओ. सब मिलकर उसे ढूंढो, उसके घर लौट आने की दुआ करो.
अब्बा ने पूछा, ''सिम्बा की उम्र कितनी है? '' जवाब आया, ''कोई दो साल का होगा. पिछले साल कश्मीर से आया था. ''
एक साल की उम्र में कौन मां-बाप अपने लख्ते जिगर को खुद से अलग करेगा? शायद कश्मीर में खून-खराबे के दौर में कोई बच्चा यतीम हो गया होगा. मामला दिलचस्प लगा, सो अब्बा ने पूछा, ''यह तो बड़े अफसोस की बात है. उसके वालदैन को गुमशुदगी की खबर दे दी गई है? '' जवाब मिला, ''नहीं. उनको नहीं बताया जा सकता. गजब हो जाएगा. मामला गड़बड़ हो जाएगा.''
उनकी दिलचस्पी और बढ़ गई. अब्बा ने कहा, ''इत्तिला तो कर ही देना चाहिए. ''
''नहीं, रुखसाना बाजी ऐसा हरगिज नहीं करेंगी. ''
''कम से कम अखबार में तो इश्तिहार दिलवा दें कि सिम्बा की खबर देने वालों को इनाम दिया जाएगा. ''
ज़ोया बोलीं, ''इससे तो सबीह के ससुरवालों को खबर लग जाएगी और सारा मामला बिगड़ जाएगा. ''
''सबीह के ससुरालवालों का इससे क्या वास्ता? ''
''उसे उन्हीं की होने वाली सास ने भेजा था. ''
पिछले साल जाड़े के दिनों में दिल्ली में सबीह और उज्मा की मंगनी बड़े धूमधाम से हुई थी. यूपी के जमींदारों के खानदान से ताल्लुक रखने वाली रुखसाना बाजी की तरफ से उसमें कई शुर्फा शामिल हुए, जिनका सियासत और समाज में खास रुतबा है. मेहमानों की खातिर लखनऊ से किदवई खानदान के पुराने खानसामे बुलाए गए और तरह-तरह के लजीज डिश परोसे गए थे. दावती अब भी उनके गिलावटी कबाब, शीरमाल, ताफ्तान, बाकरखानी (हर रोटी में परत दर परत करके आधा किलो देशी डाली गई थी), बिरयानी, बटेर कोरमा, मटन स्ट्यू, यखनी पुलाव और बिरयानी की तारीफ करते नहीं थकते.
खैर, कश्मीर की उज्मा दिल्ली में पढ़ती हैं. कॉलेज में सबीह से मुलाकात हुई. दोनों एक-दूसरे को अच्छे लगे और बात शादी तक पहुंच गई.
सबीह ने अपनी अम्मा और अब्बा को अपनी ख्वाहिश बता दी. रौशन ख्याल मां-बाप ने अपनी इकलौती औलाद की बात मान ली. उधर, कश्मीर में उज्मा के घर वाले भी मान गए कि लड़का खूबसूरत और खानदानी है.
मंगनी के दिन उज्मा के घरवालों ने लड़के के घरवालों को कई तरह के तोहफे-तहाएफ दिए, जिसमें एक साल का सिम्बा भी शामिल था.
रुखसाना बाजी के कजिन जमाल ने मजाकन कहा, ''बाजी, अगर आपने सिम्बा को उसके नाज-नखरे के साथ पाल-पोस लिया तो साल भर बाद उज्मा के घर वाले निकाह के बाद उसे आपके घर भेज देंगे. अगर उसकी परवरिश में कोई कमी हुई तो उज्मा की अम्मा शायद अपने फैसले पर दोबारा सोचें क्योंकि अगर एक 'बिल्ले' का ख्याल नहीं रख सकतीं तो उनकी बेटी के नाज-नखरे कैसे उठाएंगी. ''
हंसी-खुशी के माहौल में तब रुखसाना बाजी ने जमाल भाई की बात को हंसी में उड़ा दिया था. लेकिन जब से सिम्बा गायब हुआ है तब से उनकी बात उनको बार-बार याद आ रही है. उन्हें सिम्बा से ज्यादा उज्मा के वालदैन का डर सता रहा है.
ज़ोया के अब्बा ने कहा, ''तो क्या सिम्बा बिल्ली का बच्चा है? ''
''हां, अब तक आप क्या समझ रहे थे? ''
अब्बा ने कहा, ''इसके लिए इतना परेशान होने की क्या बात है? बिल्ला घर में कब रहता है, बड़ा होते ही बाहर निकल जाता है और आवारागर्दी करता है. कहीं आसपास के पार्क में, जंगल में घूम रहा होगा. ''
''नहीं. सब जगह देख लिया है. ''
कल रुखसाना बाजी ने खानदान के सारे बच्चों को घर बुलाया था खुसूसी दुआ के लिए. बच्चों की दुआ अल्लाह जल्दी सुनता है. लिहाजा, सारे बच्चों ने सिम्बा की घर वापसी के लिए दुआ की.
अफसर को किसी मौलाना से खास दुआ कराने के लिए कहा गया. साथ ही, आज मेहरौली में दरगाह पर जाने की योजना बनाई गई ताकि पीर बाबा की दरगाह पर जाकर उसके घर लौटने की मन्नत मांगी जाए.
रुखसाना बाजी ने सिम्बा की देखभाल में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. उसके आने के बाद घर में एक किलो ज्यादा दूध आता था. उसके खाने के लिए मुर्गे की हड्डियों को जमा कर दिया जाता था. सबीह के बुजुर्ग दादा खास तौर पर हड्डियों में गोश्त छोड़ देते थे.
रुखसाना बाजी बड़े से फ्लैट में रहती हैं, जहां मिट्टी सिर्फ गमलों में है. सिम्बा को हाजत के लिए बाहर न जाना पड़े इसलिए बालकनी में सिम्बा का संडास बनवाया गया था, जहां हर महीने 1,200 रु. की मिट्टी डाली जाती थी.
उसके नाखूनों को पैना बनाए रखने के लिए एक खंभे पर मोटी चट्टी लगाई गई थी, जिसे वह अपने पंजों से नोचता था. उसके आरामो आशाइश में कोई कसर बाकी नहीं रखी गई थी. फिर भी वह पता नहीं कहां चला गया?
अब्बा ने यह सुनकर कहा, ''देखिए, वह बागड़ बिल्ला है. देर-सबेर घर लौट आएगा. ''
फिर उन्हें पता नहीं क्या लगा कि पूछा, ''आसपास कहीं नट या बंजारों का बसेरा तो नहीं है? ''
ज़ोया ने दिमाग दौड़ाया, ''उनके घर के पास मथुरा रोड के पार रेलवे लाइन है. वहां कुछ लोग टेंट में रहते हैं, उनके बच्चे दिन भर तिराहे पर भीख मांगते हैं. ''
अब्बा ने कहा, ''कई साल पहले की बात है. गांव में ईदगाह के पास कुछ नट-बंजारों ने डेरा डाला था. कुछ दिनों बाद गांव की बिल्लियां कम होने लगीं. एक दिन एक नट बिल्ली को मारते हुए पकड़ा गया. ''
उन्होंने बताया, ''तबारक चचा ने एक नट से पूछा, 'आप लोग बिलाई (बिल्ली) क्यों खाते हैं? ' जवाब मिला, 'तबारक भाई, आप नहीं जानते, बिलाई तो बिल्कुल मलाई होती है'. ''
तभी अब्बा को फोन पर अफसर की खांसी की 'ढांय-ढांय' आवाज आई. ज़ोया बोलीं, ''यह बात अफसर को नहीं बताइएगा. ''
खैर, थोड़ी देर बाद फोन पर बात खत्म हुई तो अब्बा मुझसे मुखातिब हुए. सारा माजरा सुनाया और बोले, ''इस बिल्ले ने सबको बागड़ बना रखा है. ''
(इस खबर में सारे पात्रों के नाम बदल दिए गए हैं सिवाए 'सिम्बा' के, हालांकि इससे रुखसाना बाजी को कोई मदद नहीं मिलने वाली क्योंकि समधियाने के बिल्ले की गर्दन में पट्टा डालकर वे उनकी तौहीन नहीं करना चाहती थीं. अगर पट्टा डालकर उसमें उसका नाम लिख दिया होता तो शायद पाठक कुछ मदद कर सकते थे.)