
हिंदू दक्षिणपंथी कार्यकर्ताओं का एक धड़ा 17 मार्च को नागपुर के पुराने महाल मोहल्ले में इकट्ठा हुआ. वे महाराष्ट्र में स्थित मुगल बादशाह औरंगजेब के मकबरे को ध्वस्त किए जाने की मांग कर रहे थे. राज्य भर में दूसरी जगहों पर भी ऐसे विरोध प्रदर्शन हो रहे थे. मगर प्रदर्शनकारियों के हाथों मजहबी आयतें लिखी पाक चादर को जलाए जाने की अफवाहों के चलते देखते ही देखते नागपुर के विभिन्न इलाकों में हिंसा भड़क उठी, जिसमें 33 लोग घायल हुए. एक हिंदी फिल्म और उस पर राजनैतिक प्रतिक्रियाओं ने मुगल बादशाह और उसके मजहबी अतिवाद से जुड़े विवाद को फिर सुलगा दिया. विरोध प्रदर्शनों और उसके बाद हुई घटनाओं के साथ इसने महाराष्ट्र के सामाजिक-राजनैतिक भूदृश्य में फैली गहरी दरारों को उघाड़कर रख दिया.
औरंगजेब पर बखेड़ा कैसे शुरू हुआ?
मराठा साम्राज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी महाराज के बड़े बेटे छत्रपति संभाजी महाराज पर बनी बायोपिक छावा 14 फरवरी को रिलीज हुई. इसमें ब्योरेवार दिखाया गया कि 1689 में औरंगजेब के फरमान पर 31 वर्षीय मराठा महापुरुष को किस तरह बर्बरता से तड़पा-तड़पाकर मारा गया. ऐसे समय जब बेहद धिक्कारा गया यह मुगल बादशाह चर्चा में था, मुंबई से समाजवादी पार्टी के विधायक अबू आजमी ने उसे 'अच्छा प्रशासक' कह दिया. न केवल आजमी को 5 मार्च को पूरे बाकी बजट सत्र के लिए राज्य विधानसभा से निलंबित कर दिया गया, बल्कि इस पूरी घटना से उकसकर विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) और बजरंग दल छत्रपति संभाजीनगर के नजदीक खुल्दाबाद में बने औरंगजेब के मकबरे को गिराने की मांग करने लगे.
जल्द ही महाराष्ट्र के बंदरगाह और मत्स्यपालन मंत्री भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नीतीश राणे और ठाणे से शिवसेना के सांसद नरेश म्हस्के भी कब्र को ढहाने की मांग में शरीक हो गए, तो शिवाजी महाराज के वंशज और भाजपा के सांसद उदयनराजे भोसले ने भी यही किया. मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने भी इस विचार का समर्थन किया, पर एक शर्त के साथ. उन्होंने कहा, "कुछ चीजें कानूनी तरीके से करनी पड़ती हैं, क्योंकि यह संरक्षित (स्मारक) है."
नागपुर में क्या हुआ?
नागपुर पुलिस ने 17 मार्च की हिंसा के लिए तीन पुलिस थानों में 1,200 लोगों के खिलाफ छह एफआईआर दर्ज की हैं. गिरफ्तार लोगों में माइनॉरिटीज डेमोक्रेटिक पार्टी के अध्यक्ष फहीम शमीम खान भी हैं, जिन्हें घटना का कथित मास्टरमाइंड बताया गया है. वे कथित तौर पर वीएचपी और बजरंग दल के कार्यकर्ताओं के खिलाफ कार्रवाई की मांग कर रही एक भीड़ की अगुआई करते हुए उसे गणेशपेठ पुलिस स्टेशन ले गए.
मुस्लिम धड़ों का आरोप है कि हिंदू दक्षिणपंथी कार्यकर्ताओं ने औरंगजेब के मकबरे का पुतला जलाया जो पाक चादर से ढका था. इसके बाद हुए दंगों में भीड़ उत्पात मचाते हुए सड़कों पर निकल पड़ी, पुलिसकर्मियों और नागरिकों पर हमले किए और वाहनों और सार्वजनिक संपत्तियों को नुक्सान पहुंचाया. इसमें तीन डिप्टी पुलिस कमिशनर (डीसीपी) सहित 33 लोग घायल हुए. कर्फ्यू लगा दिया गया. फडणवीस ने 18 मार्च को विधानसभा में कहा, "(दंगे) कुछ लोगों की तरफ से पूर्व-नियोजित जान पड़ते हैं. उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी." उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने इतना और जोड़ा, "देशभक्त मुसलमान कभी औरंगजेब का समर्थन नहीं करेगा."

विवाद में क्या कुछ और भी है?
यह विवाद ऐसे समय हुआ जब महाराष्ट्र में हिंदुत्व का बोलबाला बढ़ रहा है. 2023 में औरंगाबाद का नाम बदलकर संभाजीनगर कर दिया गया, साथ ही उस्मानाबाद का भी, जो अब धाराशिव है. बाद में अहमदनगर का भी नया नामकरण अहिल्यानगर कर दिया गया. इस सबको राज्य के मुस्लिम अतीत की निशानियों को मिटाने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है. मुस्लिम नेता मध्ययुगीन हुक्मरानों की करतूतों के लिए उन्हें निशाना बनाने की कोशिशों की निंदा करते हैं. सुलझे और समझदार लोगों का कहना है कि कब्र को ढहाने की मांग गलत है और इस स्मारक को मराठाओं की वीरता के प्रतीक के रूप में देखना चाहिए, जिन्होंने औरंगजेब को दक्कन में रोके रखा और अंतत: मुगलों के पतन का सूत्रपात किया.
मगर वे मानते हैं कि उसके प्रति श्रद्धा और सम्मान खासकर राज्य की पेचीदा सामाजिक हकीकतों को देखते हुए निश्चित रूप से दुखती रग को छेड़ देता है. छावा ने भी मराठा-ब्राह्मण दरारों को उघाड़कर रख दिया. मराठा धड़ों का आरोप है कि संभाजी के साले ने नहीं बल्कि उनके ब्राह्मण पेशकारों ने मुगलों की खातिर उन्हें धोखा दिया, जिसकी वजह से अंतत: उन्हें पकड़कर मार डाला गया.
महायुति में बेचैनी क्यों है?
भाजपा और शिवसेना के बीच अपनी हिंदुत्व की साख पर जोर देने की होड़ के चलते महायुति के तीसरे सहयोगी दल अजित पवार की अगुआई वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) में बेचैनी बढ़ गई है. एनसीपी के बड़े नेता ने इंडिया टुडे से कहा कि ऐसी हिंसा और सांप्रदायिक तनाव महाराष्ट्र के लिए शुभ संकेत नहीं है. उन्होंने कहा, "उद्योगों को आकर्षित करने की एक पूर्वशर्त कानून का शासन है. इन टकरावों से संभावित निवेशकों के लिए राज्य का आकर्षण कम हो सकता है. इनमें नागपुर की महत्वाकांक्षी अंतरराष्ट्रीय कार्गो हब और हवाई अड्डा परियोजना में कारोबार स्थापित करने को उत्सुक निवेशक भी शामिल हैं."
शिवसेना के एक पदाधिकारी ने माना कि कब्र को नेस्तोनाबूद करने की मांग करना "चीजों को बहुत आगे ले जाना" था. वहीं महायुति के एक और नेता को लगता है कि हिंदू एकजुटता ने हालांकि 288 में से अभूतपूर्व 237 सीटों के साथ सत्ता में आने में उनकी मदद की, लेकिन लंबे वक्त में ऐसे भावनात्मक मुद्दों के वांछित प्रतिफल नहीं भी मिल सकते हैं.