भारत की प्रौद्योगिकी राजधानी के बीचोबीच ट्यूडर शैली में बना ऐतिहासिक बेंगलूरू पैलेस 1996 से एक लंबी कानूनी जंग का विषय बना रहा है. दरअसल, इस पूरी संपत्ति को मैसूर के महाराजा के वारिसों से अपने कब्जे में लेने के लिए कर्नाटक सरकार ने उस वक्त एक कानून बनाया था. पेड़-पौधों से हरा-भरा यह महल 472 एकड़ में फैला हुआ है. बेंगलूरू पैलेस अधिग्रहण और हस्तांतरण (बीपीएटी) अधिनियम, 1996 को पूर्व राजपरिवार ने चुनौती दी थी मगर वे नाकाम रहे और साल 1997 में कर्नाटक हाइकोर्ट ने उस अधिनियम को बरकरार रखा. उनकी अपील सुप्रीम कोर्ट में अभी भी लंबित है. हालांकि यह लंबी जंग अभी जारी है, मगर सिद्धरामैया की अगुआई वाली कांग्रेस सरकार अब एक मुश्किल में फंस गई है और वह भी काफी महंगी.
साल 2009 में बेंगलूरू के नगर निकाय ने महल के मैदान के 15.97 एकड़ का उपयोग करने का प्रस्ताव रखा था ताकि उससे सटी हुई दो सड़कों—बेल्लारी रोड और जयमहल रोड—के दो किलोमीटर के गलियारे को चौड़ा किया जा सके. वह रास्ता उस वक्त हाल ही में खोले गए केम्पेगौड़ा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे की ओर जाता था. उसको लेकर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई नवंबर 2014 में पूरी हुई और अदालत ने सड़क चौड़ीकरण परियोजना को इस शर्त पर मंजूरी दी कि अपीलकर्ताओं को अधिग्रहीत भूमि के लिए हस्तांतरण करने योग्य विकास अधिकार (टीडीआर) दिए जाएं.
टीडीआर योजना एक ऐसी व्यवस्था है जिसके तहत प्राधिकरण उन भूमि मालिकों को मुआवजा देते हैं जिनकी संपत्ति सार्वजनिक मकसद के लिए अधिग्रहीत की जा रही है. उन भूमि मालिकों को नकद भुगतान के बजाय विकास अधिकार प्रमाणपत्र (डीआरसी) के जरिए अतिरिक्त फ्लोर एरिया दिया जाता है. अगर किसी संपत्ति का केवल एक भाग समर्पित किया गया है तो वह प्रमाणपत्र धारक उस पर अतिरिक्त निर्मित क्षेत्र का इस्तेमाल कर सकता है, या फिर उस प्रमाणपत्र को बिल्डरों को हस्तांतरित करके उसे भुना सकता है और बिल्डर इसका कहीं और इस्तेमाल कर सकते हैं.
मगर, इस मामले में कर्नाटक की अलग-अलग हुकूमतें सुप्रीम कोर्ट के 2014 के आदेश का पालन करने को लेकर ढुलमुल रवैया अपनाए रहीं और उसमें संशोधन के अनुरोध किए. ऐसे में उस फैसले के बाद दस वर्षों में डीआरसी कभी जारी नहीं किए गए. सरकार ने वित्तीय मुश्किल और इस चिंता के आधार पर संशोधन का अनुरोध किया कि बीपीएटी मुकदमेबाजी आखिरकार पूर्व शाही वारिसों के खिलाफ जाने के बाद भी टीडीआर के मूल्य को वापस हासिल करना संभव नहीं होगा. राज्य सरकार की दलील यह थी कि मुआवजे की गणना बीपीएटी अधिनियम के मुताबिक की जानी चाहिए. वर्ष 1996 के उस अधिनियम ने महल की 472 एकड़ की पूरी संपत्ति का मूल्य 11 करोड़ रुपए आंका था और राज्य सरकार ने तर्क दिया कि इस तरह 15.97 एकड़ के लिए मुआवजा 37.28 लाख रुपए होगा.
सुप्रीम कोर्ट ने मई 2022 में यह कहते हुए उस याचिका को खारिज कर दिया कि 2014 के आदेश में संशोधन की कोई जरूरत नहीं दिखती. तब तक, आदेश का पालन नहीं करने पर अवमानना याचिकाएं दायर की जा चुकी थीं. आखिरकार, 10 दिसंबर, 2024 को अवमानना मामले पर फैसला सुनाते हुए अदालत ने कर्नाटक सरकार को अपने आदेश का पालन करने के लिए आखिरी मौका दिया है. कर्नाटक स्टॉम्प अधिनियम 1957 के तहत निर्धारित भूमि का न्यूनतम मूल्य प्रति एकड़ तकरीबन 200 करोड़ रुपए बैठता था. इसका मतलब है कि राज्य को 15.97 एकड़ की भूमि का इतस्तेमाल करने के लिए 3,014 करोड़ रुपए का भारी खर्च उठाना होगा.
वित्तीय प्रभावों से चिंतित सिद्धरामैया सरकार ने इस साल 29 जनवरी को एक अध्यादेश तत्काल लागू किया जो सरकार को भूमि उपयोग योजना रद्द करने का अधिकार देता है. मंत्रिमंडल की ओर से उस अध्यादेश को मंजूरी मिलने के बाद कानून मंत्री एच.के. पाटील ने 24 जनवरी को पत्रकारों से बातचीत में कहा, "यह फैसला हमने कर्नाटक के हित में लिया है."
उन्होंने यह भी कहा कि मुआवजे की भारी राशि को देखते हुए राज्य ''राज्य विकास के मामले में खतरे में आ जाएगा.'' मगर 27 फरवरी को अदालत ने उससे इतर सख्त रुख अपनाते हुए कर्नाटक सरकार से 10 दिनों के भीतर टीडीआर प्रमाणपत्र जमा करने को कहा है और अगली सुनवाई की तारीख 20 मार्च तय की है. अब सबकी निगाहें सिद्धरामैया सरकार पर टिकी हैं जो इस राजसी कानूनी उलझन को सुलझाने की कोशिश में जुटी है.
वर्ष 2009 में सड़क चौड़ी करने के लिए बेंगलूरू पैलेस ग्राउंड की 15.97 एकड़ जमीन अधिग्रहीत करने की सरकार की पहल की कीमत अब 3,014 करोड़ रुपए पड़ सकती है.
शाही कानूनी खींचतान
1996: बंगलोर पैलेस (अधिग्रहण और हस्तांतरण) ऐक्ट लागू किया गया ताकि मैसूर के पूर्व राजपरिवार से 472 एकड़ की पैलेस की संपत्ति पर सरकार का अधिपत्य हो सके.
1997: कर्नाटक हाइकोर्ट ने ऐक्ट को बरकरार रखा; सिविल अपील सुप्रीम कोर्ट के समक्ष लंबित है.
2014: शीर्ष अदालत ने राज्य को 15.97 एकड़ जमीन सड़क चौड़ी करने की खातिर अपीलकर्ता के पक्ष में ट्रांसफरेबल डेवलपमेंट राइट्स (टीडीआर) के जरिए इस्तेमाल करने की अनुमति दे दी.
2024: कोर्ट ने कर्नाटक को टीडीआर के बाजार भाव पर भुगतान का निर्देश दिया जो रकम 15.97 एकड़ के लिए 3,014 करोड़ रुपए जितनी भारी-भरकम बैठती है. इसकी तुलना में 1996 के कानून के अनुसार मुआवजा महज 37.28 लाख रुपए होता है.
2021: सुप्रीम कोर्ट के 2014 के आदेश का पालन न करने पर कर्नाटक सरकार के खिलाफ अवमानना याचिकाएं दाखिल हुईं.
2025
29 जनवरी: सिद्धरामैया सरकार ने एक अध्यादेश पारित कर राज्य सरकार को भूमि उपयोग योजना रद्द करने का अधिकार दे दिया.
27 फरवरी: सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए सरकार को 10- दिन के भीतर टीडीआर सर्टिफिकेट जमा करने का आदेश दिया.
- अजय सुकुमारन