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महाराष्ट्र: क्या सीएम की कुर्सी नहीं मिलने से नाराज हैं शिंदे; आखिर क्यों दिखा रहे तल्ख तेवर?

मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने न केवल एकनाथ शिंदे के कार्यकाल के दौरान लिए गए कई फैसलों को पलट दिया है, बल्कि उनमें से कुछ की जांच के आदेश भी दिए हैं

अहमियत को नजरअंदाज; इलस्ट्रेशन: सिद्धांत जुमडे
अपडेटेड 10 मार्च , 2025

महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने आगाह करते हुए टिप्पणी की कि ''उन्हें हल्के में लेने वाले'' लोगों को बाद में पछताना पड़ा है. वैसे, यह टिप्पणी 2022 की बगावत के संबंध में की गई थी, जब उन्होंने तत्कालीन संयुक्त शिवसेना प्रमुख और मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की नाक के नीचे से सत्ता छीन ली थी. मगर मौजूदा वक्त में भी इस बयान की अहमियत को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.

दरअसल, शिंदे दोबारा मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने का मौका नहीं दिए जाने से नाखुश हैं. वे नए मुख्यमंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता देवेंद्र फडणवीस की अध्यक्षता वाली बैठकों में नहीं पहुंचे. यही नहीं, वे विभिन्न विभागों के कामकाज की समीक्षा के लिए समानांतर बैठकें भी कर रहे हैं.

इस बीच, फडणवीस ने भी न केवल शिंदे के कार्यकाल के दौरान लिए कई फैसलों को पलट दिया है, बल्कि उनमें से कुछ की जांच के आदेश भी दिए हैं. इसमें फरवरी 2023 में जालना जिले में 900 करोड़ रुपए की खारपुड़ी आवासीय परियोजना को दी गई मंजूरी और कथित तौर पर उच्च दरों पर महाराष्ट्र राज्य सड़क परिवहन निगम (एमएसआरटीसी) के लिए 1,310 बसों को किराए पर लेने का फैसला भी शामिल है. शिंदे की पार्टी के नेता और पिछली शिंदे सरकार में स्कूल शिक्षा मंत्री रहे दीपक केसरकर के कार्यकाल में राज्य सरकार संचालित स्कूलों में छात्रों के लिए यूनिफॉर्म की खरीद केंद्रीय स्तर पर करने के फैसले को भी रद्द कर दिया गया है.

एक वरिष्ठ नौकरशाह के मुताबिक, दिसंबर 2024 में मुख्यमंत्री पद संभालने के बाद फडणवीस ने राज्य प्रशासन पर अपना नियंत्रण कायम करने के लिए तेजी से कदम उठाए और अहम पदों पर चुनिंदा अधिकारी नियुक्त किए. बताया जा रहा कि मुख्यमंत्री सचिवालय महायुति के सहयोगी दलों शिंदे नीत शिवसेना और अजित पवार नीत राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के मंत्रियों के नियंत्रण वाले विभागों के कामकाज पर भी कड़ी नजर रख रहा है.

इससे पहले, फरवरी में उद्योग मंत्री उदय सामंत (शिंदे की शिवसेना सदस्य) ने प्रमुख सचिव (उद्योग) और महाराष्ट्र उद्योग विकास निगम (एमआइडीसी) के सीईओ को पत्र लिखकर शिकायत की थी कि उन्हें सूचित किए बिना नीतिगत निर्णय लिए जा रहे हैं. सत्तारूढ़ महायुति के तीनों दलों के बीच 'प्रभारी मंत्रियों' (जिला प्रशासन को नियंत्रित करने वाले मंत्री) की नियुक्ति को लेकर भी खींचतान चल रही है. शिंदे की सेना की नाराजगी जताने के बाद फडणवीस को एनसीपी की अदिति तटकरे और भाजपा के गिरीश महाजन की क्रमश: रायगढ़ और नासिक का प्रभारी मंत्री बनाने का फैसला स्थगित करना पड़ा.

इस बीच, भाजपा नेता और वन मंत्री गणेश नाइक ने शिंदे को उनके गृह क्षेत्र ठाणे में सीधी चुनौती देते हुए वहां 'जनता दरबार' लगाना शुरू कर दिया है. नाइक ने संकेत दिया कि भाजपा ठाणे में नगर निगम चुनाव लड़ सकती है और शिवसेना से गठबंधन के बिना अपने दम पर जीत सकती है. बृह्नमुंबई महानगरपालिका चुनावों के लिए भी वरिष्ठ भाजपा नेता ऐसी ही भावनाएं जता रहे हैं.

एनसीपी के एक वरिष्ठ नेता का मानना है कि मुख्यमंत्री पद पर भाजपा की दावेदारी का समर्थन करने में शिंदे की शुरुआती अनिच्छा ने कहीं न कहीं महायुति में उनकी स्थिति को प्रभावित किया है. वहीं, अजित पवार ने तुरंत ही फडणवीस का समर्थन कर दिया था और उन्हें गठबंधन में काफी आरामदायक स्थिति में देखा जा सकता है. एनसीपी नेता के मुताबिक, वित्तीय कमी से जूझती राज्य सरकार ने महत्वाकांक्षी 'लाडकी बहिन योजना' लाभार्थियों के बारे में जांच करने का कदम उठाया है, जिसके तहत शिंदे शासनकाल में 2.3 करोड़ से अधिक गरीब महिलाओं को 1,500 रुपए की मासिक सहायता दी गई.

सरकार वरिष्ठ नागरिकों के लिए मुफ्त तीर्थयात्रा जैसी योजनाओं पर भी पुनर्विचार कर रही है. इन कदमों ने शिंदे की सियासी जमापूंजी में ही सेंध लगा दी है. शिवसेना के एक नेता ने माना, ''हमारे और भाजपा के बीच शक्ति संतुलन बदल गया है. हमारी समस्या यह है कि हमारे पास पुख्ता ढंग से आवाज उठाने वाला कोई पार्टी तंत्र नहीं है. हम विधायकों के एक ऐसे समूह में तब्दील हो गए हैं जो शिंदे और उनकी शक्तियों के इर्द-गिर्द केंद्रित है.''

इन बीच, विपक्षी एनसीपी (एसपी) गुट के प्रमुख शरद पवार के हाथों से एक पुरस्कार लेने के शिंदे के कदम ने महायुति और महा विकास अघाड़ी (एमवीए) दोनों में हलचल बढ़ा दी है. पवार सीनियर को एमवीए को एकजुट रखने वाली प्रमुख ताकत माना जाता है, जिसमें सियासी तौर पर अलग-थलग पड़ी कांग्रेस और शिवसेना (यूबीटी) शामिल हैं. वैसे, एनसीपी (एसपी) के प्रवक्ता अनीश गावंडे ने इस घटनाक्रम को कोई तवज्जो न देते हुए कहा कि पवार ''हमेशा कहते रहे हैं कि सियासी विरोधियों को दुश्मन नहीं बल्कि वैचारिक विरोधियों के तौर पर देखना ही महाराष्ट्र की संस्कृति है.'' 

इस सबके बीच, शिंदे सेना 'प्रोजेक्ट टाइगर' के तहत अपने खेमे को मजबूत करने में जुटी है, जिसमें एमवीए दलों, खासकर प्रतिद्वंद्वी शिवसेना (यूबीटी) के नेताओं को अपने पाले में लाने की कोशिश जारी है. तीन बार के शिवसेना (यूबीटी) विधायक राजन साल्वी का शिंदे खेमे में आना इस अभियान की बड़ी सफलता है. शिंदे सेना में शामिल होने का उनका कदम उद्योग मंत्री उदय सामंत और उनके भाई किरण उर्फ भैया (जिन्होंने रत्नागिरि जिले के राजापुर से विधानसभा चुनाव में साल्वी को हराया था) के प्रभाव को नियंत्रित करने वाला साबित हो सकता है.

राजनैतिक विश्लेषक अभय देशपांडे शिंदे के तल्खी भरे तेवरों को गठबंधन में अपनी पार्टी की प्रासंगिकता और भाजपा से इतर उसकी पहचान बनाए रखने की कोशिश के तौर पर देखते हैं. कुल मिलाकर, सभी भागीदारों के लिए स्थितियां अस्थिर ही नजर आ रही हैं. मगर, शिंदे सेना की प्रवक्ता और एमएलसी मनीषा कायंडे महायुति में किसी भी तरह की दरार से इनकार करती हैं. उनके मुताबिक, ''हर पार्टी को अपना जनाधार बढ़ाने का अधिकार है. वे (शिंदे) परेशान नहीं हैं और राज्य के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं.''

बहरहाल, अभी तो यही लग रहा है कि जनादेश को देखते हुए शिंदे को यह सब सहना ही पड़ेगा. राज्य की 288 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा के पास 132 सीटें हैं, जो बहुमत से सिर्फ 13 कम हैं. ऐसे में सहयोगियों के लिए अपनी ताकत दिखाने की ज्यादा गुंजाइश नहीं बचती. फिर भी, जैसा अजित पवार ने 23 फरवरी को अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन में टिप्पणी की, ये अभी भी एक 'रहस्य' ही बना हुआ है कि शिंदे ने हल्के में न लिए जाने की बात क्यों कही. शायद पूर्व मुख्यमंत्री को लग रहा होगा कि अगर उन्हें और उनकी शिंदे सेना को महायुति के अंदर अपने अस्तित्व को बचाए रखना है तो समय-समय पर ऐसे कदम उठाते रहना होंगे, जिसे लेकर अटकलों का दौर चलता रहे.

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