
भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी ) को राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की सत्ता में वापस आने में 27 साल लग गए. ऐसे में उन्हें अपने मुख्यमंत्री के चेहरे को चुनने के लिए ज्यादा वक्त लेने की रियायत दी जा सकती है. दरअसल, उन्हें ऐसा करने में 11 दिन लग गए. पार्टी ने यहां भी अपनी हाल की उस परंपरा का पालन किया जिसमें तकरीबन अनजाने या पहली बार विधायक बनने वाले शख्स को राज्य सरकारों की अगुआई के लिए चुना जाता है. नई-नवेली विधायक रेखा गुप्ता दिल्ली में (दिवंगत सुषमा स्वराज के बाद) बीजेपी की पहली महिला मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने आम आदमी पार्टी (आप) के प्रमुख अरविंद केजरीवाल को हराने वाले प्रवेश वर्मा सरीखे बड़े नामों को पीछे छोड़ दिया.
पिछली सरकार के सामने आई बाधाओं के विपरीत, उन्हें केंद्र का पूरा समर्थन मिलेगा. धन की कमी नहीं होगी क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहले ही दिल्लीवासियों को ''पांच साल में एक विश्वस्तरीय राजधानी’’ का वादा किया है. मगर चुनौतियां भी बड़ी हैं. रेखा को एक मजबूत विपक्ष का सामना करना पड़ेगा. 70 सदस्यीय सदन में आप के 22 विधायक हैं, जिनमें पूर्व मुख्यमंत्री आतिशी भी शामिल हैं, और वे अपना दम दिखाने की कोशिश करेंगे. नई मुख्यमंत्री को तुरंत काम में जुट जाना होगा. उन बड़े मुद्दों की एक झलक जिन पर तुरंत ध्यान देने की जरूरत है:
कल्याण की चुनौतियां: चुनाव से पहले किए गए वादों में सबसे अहम कल्याण कार्यक्रम हैं. बीजेपी ने पात्र महिलाओं को प्रति माह 2,500 रुपए का भत्ता और गर्भवती महिलाओं को एक मुश्त 21,000 रुपए का भुगतान करने का वादा किया है. नई मुख्यमंत्री ने कहा है कि वे महिलाओं के लिए पहला भुगतान 8 मार्च तक जारी करेंगी, जिसमें केवल दो सप्ताह बाकी हैं. यह प्रशासन और वित्त दोनों का इम्तिहान होगा. दिल्ली सरीखे बड़े शहर में सही लाभार्थियों की पहचान करना बड़ी चुनौती है; इस रेवड़ी पर सालाना 11,500 करोड़ रुपए खर्च होंगे, और ऐसे में सावधानीपूर्वक प्रबंधन की जरूरत होगी.
बिगड़ती बुनियादी संरचना: दिल्ली की सड़कें खस्ताहाल हैं. यहां तक कि केजरीवाल ने चुनाव प्रचार के दौरान स्वीकार किया कि उनकी सरकार अपने वादे के अनुसार उन्हें दुरुस्त नहीं कर सकी. दिल्ली सरकार के आंकड़े बताते हैं कि 500 किलोमीटर से अधिक सड़कों को मरम्मत की जरूरत है. नई सरकार को एक विशेष राजनैतिक स्थिति का भी सामना करना पड़ रहा है. आप विधानसभा चुनाव भले हार गई है, मगर वर्तमान में वह दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) का संचालन कर रही है. शहर को साफ रखने की जिम्मेदारी एमसीडी की है. इसलिए बीजेपी सरकार को न केवल सदन में विपक्ष का सामना करना होगा, बल्कि बाहर प्रतिद्वंद्वी एमसीडी का भी सामना करना पड़ सकता है.
पानी और ऊर्जा के मुद्दे: दिल्ली को रोजाना 129 करोड़ गैलन पानी की जरूरत है, जबकि यहां केवल लगभग 100 करोड़ गैलन का उत्पादन होता है. शहर पड़ोसी राज्यों के पानी पर बहुत निर्भर है और इस आपूर्ति में 1994 से कोई बदलाव नहीं आया है. समाधान जटिल हैं: मौजूदा जल शोधन इकाई परियोजनाओं को पूरा करना, हर घर और व्यवसाय में जल संरक्षण और संचयन को बढ़ावा देना और, शायद सबसे चुनौतीपूर्ण काम है यमुना नदी की सफाई करना. बिजली के मामले में, बीजेपी ने 200 यूनिट तक मुफ्त बिजली और उसके बाद 50 फीसद सब्सिडी का वादा किया है. इन वादों के बीच संतुलन साधना एक बड़ी चुनौती होगी.
यमुना को पुनर्जीवित करना: बीजेपी ने तीन साल के भीतर इस अत्यधिक प्रदूषित नदी को साफ करने का वादा किया है. यमुना में प्रदूषक तत्व छोड़ने के लिए केजरीवाल ने हमेशा हरियाणा को दोषी ठहराया है. बीजेपी पड़ोसी राज्य में भी सत्ता में है, इसलिए नई मुख्यमंत्री अब उस कारण का हवाला नहीं दे सकतीं. बड़ी चुनौतियां भी हैं. अशोधित सीवेज को शोधन संयंत्रों से जोड़ना होगा ताकि नदी में साफ जल का प्रवाह सुनिश्चित हो सके. बीजेपी ने नदी के किनारे शानदार अनुभव दिलाने का भी वादा किया है.
कानून और व्यवस्था: महिलाओं के लिए दिल्ली को सुरक्षित बनाना प्राथमिकता है. दिल्ली पुलिस चाहती है कि निकट भविष्य में उसकी बल का 25 फीसद महिलाएं हों. नई सरकार को एक पुराने तंत्र पर काम करना होगा, सामुदायिक पुलिसिंग पर जोर देना होगा, आपातकालीन कार्रवाई को तेज करना होगा और शहर को सुरक्षित रखने के लिए प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करना होगा. आप की बार-बार यही शिकायत थी कि दिल्ली में कानून और व्यवस्था केंद्र के अधिकार क्षेत्र में है. वह बहाना अब नहीं चलेगा. बीजेपी केंद्र और राष्ट्रीय राजधानी दोनों जगह शासन कर रही है, ऐसे में दिल्ली पुलिस के पास अब एक 'एकीकृत कमान’ है. दिल्ली सरकार के लिए अधिकार क्षेत्र में कमी का एक और पुराना बहाना भी अब काम नहीं आएगा.
वित्तीय चुनौतियां: दिल्ली की वित्तीय स्थिति चिंताएं पैदा करती हैं. राजस्व अधिशेष (व्यय के बाद बचे फंड) 2022-23 में 14,457 करोड़ रुपए से घटकर अब 2024-25 में अनुमानित 3,231 करोड़ रुपए हो गया है. महंगी कल्याण योजनाओं से एक और राजस्व की कमी का जोखिम पैदा होता है. सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) के हिस्से के रूप में, कर संग्रह हाल के वर्षों में घट गया है. नई सरकार को पैटर्न बदलना होगा, लागत में कटौती करनी होगी और नए आय स्रोतों की तलाश करनी होगी.
वायु गुणवत्ता संकट: दिल्ली की बेहद खराब वायु गुणवत्ता एक स्थायी समस्या रही है. जनवरी में, शहर का एक्यूआइ 450 के स्तर पर पहुंच गया था, जिसकी वजह से ग्रेडेड रिस्पॉन्स ऐक्शन प्लान का स्टेज-III लागू करना पड़ा. दिल्ली की नई सरकार को सालभर की एक कार्य योजना तैयार करनी चाहिए ताकि सर्दियों के महीनों में प्रदूषण को कम किया जा सके. इसके लिए अनियंत्रित निर्माण पर रोक लगाना, प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों पर कार्रवाई करना और शहर के हरित आवरण को बढ़ाना सरीखे कठोर उपायों की दरकार है. 2020 की दिल्ली इलेक्ट्रिक वाहन नीति में साल 2024 तक नए वाहनों में से 25 फीसद को इलेक्ट्रिक किए जाने की बात कही गई थी. उस चूके हुए लक्ष्य को हासिल करने के लिए एक चिंगारी की दरकार है.
बीजेपी सत्ता में है, इसलिए यह बहाना अब नहीं चलेगा कि दिल्ली में कानून-व्यवस्था केंद्र के अधिकार क्षेत्र में है. बीजेपी केंद्र और राष्ट्रीय राजधानी दोनों जगह शासन कर रही है, ऐसे में दिल्ली पुलिस के पास अब एक 'एकीकृत कमान’ है

मुख्यमंत्री पद के लिए रेखा गुप्ता ही क्यों
वह भले ही पहली बार विधायक बनी हों, मगर नई मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने दिल्ली विश्वविद्यालय की हलचल भरी सियासत में खुद को मांजा और 90 के दशक के मध्य में एबीवीपी की ओर से डूसू की अध्यक्ष बनीं.
मोदी राज में (गुजरात में आनंदीबेन पटेल के सेवानिवृत्त होने के बाद) चुनी गईं वह पहली महिला मुख्यमंत्री हैं और इस कुर्सी की दौड़ में उनका मुकाबला कद्दावर प्रवेश वर्मा से था. आरएसएस ने उनके पक्ष में अपना जोर लगाया और बाजी उनकी ओर झुक गई. वह लंबे वक्त तक संघ कार्यकर्ता और सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले की भरोसेमंद रह चुकी हैं.
इंडिया टुडे के पत्रकार अनिलेश महाजन कहते हैं, "बीजेपी को एक ऐसे शख्स की दरकार थी जो दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) से अच्छी तरह वाकिफ हो ताकि इसे वह आप से छीन सके. पंजाबी-भाषी बनिया समुदाय से आने वाली और तीन बार पार्षद रहीं रेखा इस काम के लिए सबसे मुफीद थीं. इससे यह भी पता चलता है कि मतदाताओं तक पहुंच बढ़ाना बीजेपी के लिए सबसे अधिक अहम है और वे आप के खिलाफ आक्रामक बने रहेंगे. नई मुख्यमंत्री अपनी संगठनात्मक कौशल और ''आक्रामक रुख’’ के लिए जानी जाती हैं. इसकी मिसाल वह वीडियो है जो उनके एमसीडी पार्षद रहते वायरल हुआ था. पंजाब और बंगाल सरीखे देश के उन हिस्सों में जहां बीजेपी की राह में अड़चने हैं और विपक्ष कायम है, रेखा राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी के अभियान की अहम शख्सियत साबित हो सकती हैं."
- अभिषेक जी. दस्तीदार