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बिहार : जीविका दीदियों की लाइब्रेरी से कैसे अपना भविष्य संवार रहे ग्रामीण युवा?

जहां देश-दुनिया में पुस्तकालय बंद होने के कगार पर पहुंच रहे वहीं बिहार में स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी जीविका दीदियों ने ग्रामीण युवाओं के लिए खड़ा किया लाइब्रेरी का सफल मॉडल. वहां सीट लेने के लिए छात्रों में लग रही होड़. अब बिहार सरकार का हर पंचायत में ऐसी लाइब्रेरी खोलने का ऐलान

बिहार में नवादा जिले के पकरी बरांवा गांव की दीदी लाइब्रेरी में पढ़ाई करते युवा
बिहार में नवादा जिले के पकरी बरांवा गांव की दीदी लाइब्रेरी में पढ़ाई करते युवा
अपडेटेड 5 मार्च , 2025

बिहार के नवादा में इंडिया टुडे से मिले धीरेंद्र सरकारी अधिकारी बनना चाहते थे. मगर उनके पिता के पास इतने पैसे नहीं थे कि वे उन्हें किसी बड़े शहर में पढ़ा सकें. परिवार में चार बहनें और दो और भाई भी हैं. फिर उन्हें पता चला कि उनके गांव महता से आठ किमी दूर पकरी बरांवा कस्बे में जीविका दीदियों ने एक लाइब्रेरी खोली है. वहां रीडिंग रूम के साथ नि:शुल्क वाई-फाई की सुविधा है. मगर वहां पहुंचकर उन्हें समझ आया कि रोज आने-जाने में ही 20 रुपए का खर्च है.

खाने-पीने में भी पैसे खर्च होंगे. उन्होंने रास्ता तलाशना शुरू किया. कस्बे के एक पेट्रोल पंप को हिसाब-किताब दुरुस्त रखने के लिए एक पढ़े-लिखे आदमी की जरूरत थी. उन्होंने वहां नौकरी कर ली. अब वे सुबह साढ़े नौ बजे से शाम साढ़े चार बजे तक इस लाइब्रेरी में रह कर ऑनलाइन पढ़ाई करते हैं और शाम पांच बजे से रात के 11-12 बजे तक पेट्रोल पंप का अकाउंट सुलझाते हैं. सोने की जगह और खाना भी पंप पर मिल जाता है. साथ में हर महीने आठ हजार रुपए पगार भी मिलती है. पकरी बरांवा प्रखंड कार्यालय में मार्च, 2023 में खुली दीदी की लाइब्रेरी में पढ़ने वाले कई बच्चों की कहानी धीरेंद्र जैसी है.

काजल, जो शिक्षिका बनना चाहती हैं, पांच किमी दूर से रोज लाइब्रेरी में आती हैं, ताकि घर के शोर-शराबे से मुक्त यहां पढ़ाई कर सकें. फ्री वाई-फाई भी उनके लिए मददगार है. नीतू, जो बिहार पुलिस की नौकरी पाने की कोशिश कर रही हैं, की शादी हो चुकी है. ससुराल में रहते हुए वे पढ़ाई कर नहीं पा रही थीं. उन्हें इस लाइब्रेरी का पता चला तो वे तैयारी के लिए अपने मायके पकरी बरांवा आ गईं.

आर्यन राज के घर में कुल मिलाकर डेढ़ कमरे हैं. मन था बड़े शहर में कमरा लेकर पढ़ते. मगर पिता की कमाई इतनी नहीं थी. ऐसे में यह लाइब्रेरी उनके लिए वरदान साबित हुई. अब उनका पूरा दिन यहीं गुजरता है. उनकी छोटी बहन रवीना भी बिहार पुलिस की तैयारी के लिए यहां आती रही हैं. उनका लिखित परीक्षा का रिजल्ट आ गया है, अब वे फिजिकल की तैयारी कर रही हैं.

हालांकि ऐसे बदलाव सिर्फ पकरी बरांवा में नहीं हो रहे. जीविका दीदियों ने बिहार के 32 जिलों में ऐसे 100 पुस्तकालय खोले हैं. इन दिनों जब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार प्रगति यात्रा पर हैं, तब उन्होंने ऐसे कई पुस्तकालयों का उद्घाटन किया है और आने वाले दिनों में भी करने वाले हैं. 6 फरवरी को शेखपुरा में ऐसे ही एक पुस्तकालय का उद्घाटन करते हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा, ''यह पुस्तकालय अच्छा बना है. यहां ग्रामीण बच्चे और युवा शैक्षणिक, उद्यमिता, कौशल और करियर के विकास के लिए अध्ययन करेंगे."

जब 6 जनवरी को वे बेलसर में पुस्तकालय का उद्घाटन कर रहे थे तो वहां की जीविका दीदियों ने उनसे मांग कर दी कि ऐसे पुस्तकालय हर पंचायत में होने चाहिए. जीविका दीदियों की मांग को हमेशा मानने वाले नीतीश कुमार ने उनकी इस मांग को भी मान लिया है. अब जीविका परियोजना का स्टाफ 7,953 नए पुस्तकालय खोलने की तैयारी में जुट गया है. 'जीविका' ग्रामीण महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों का संगठन है. 2007 में स्थापित इस परियोजना से 1.35 करोड़ से अधिक महिलाएं जुड़ी हैं. बिहार सरकार और खास कर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस परियोजना को खूब बढ़ावा देते हैं और अपनी यात्राओं में इन महिलाओं से जरूर मिलते हैं.

'दीदी की लाइब्रेरी' योजना से शुरुआत से जुड़े जीविका के यंग प्रोफेशनल राकेश कुमार कहते हैं, "वह शायद 2022 का दिसंबर महीना था, जब जीविका के तत्कालीन सीईओ राहुल कुमार मुजफ्फरपुर में दीदियों के एक समूह संगम सीएलएफ का काम देखने गए थे. राहुल कुमार जब पूर्णिया के डीएम थे, तो वहां उन्होंने हर पंचायत में लाइब्रेरी खुलवाई थी और इसकी चर्चा हर जगह थी. जीविका दीदियों ने उनसे कहा, जैसे आपने पूर्णिया में लाइब्रेरी खुलवाई है, वैसे ही हमारे बच्चों के लिए भी लाइब्रेरी खुलवा दीजिए. वहीं से दीदी की लाइब्रेरी का विचार जन्मा."

फिर राहुल कुमार ने वर्ल्ड बैंक की एक परियोजना के बचे पैसों से (जो पांच करोड़ रुपए से कुछ अधिक थे), राज्य के 32 जिलों के 100 प्रखंडों में दीदी की लाइब्रेरी खुलवाई. 2023 के फरवरी महीने से लाइब्रेरी खुलनी शुरू हो गई. पहली लाइब्रेरी मधेपुरा जिले के सिंहेश्वर में 10 फरवरी को खुली, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपनी समाधान यात्रा के दौरान इसका उद्घााटन किया.

दिलचस्प है कि राहुल कुमार ने पूर्णिया जिले में जो हर पंचायत में लाइब्रेरी खुलवाई थी, वह योजना सफल नहीं रही. मगर दीदी की लाइब्रेरी सफल है. वजह बताते हुए राकेश कहते हैं, "दरअसल, यह योजना पूरी तरह मांग पर आधारित थी. जीविका दीदियों की मांग पर खुली और फिर परियोजना की तरफ से हम लोगों ने इन दीदियों से मिलकर समझा कि उनके बच्चों की जरूरत क्या है?"

दरअसल, जीविका दीदियां और उनके बच्चे ऐसी परंपरागत लाइब्रेरी नहीं चाहते थे, जहां साहित्य, समाज और दूसरे विषयों की किताबें रहती हैं, उन्हें आप वहां बैठकर पढ़ते और इशू कराकर घर ले जाते हैं. उनकी निगाह में बड़े शहरों में लाइब्रेरी के नाम पर खुले रीडिंग रूम थे, जहां प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने वाले बच्चे किराया देकर अपने लिए अलॉट क्यूबिकल में घंटों बैठकर पढ़ते हैं. वहां वाई-फाई की सुविधा भी होती है, जिससे वे अपने मोबाइल या लैपटॉप के जरिए ऑनलाइन ट्यूटोरियल को देखते और उनका अभ्यास करते हैं.

कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण जीविका से जुड़ी महिलाओं और गांव के दूसरे परिवार अपने बच्चों को ऐसी लाइब्रेरी की सुविधा नहीं दिला पाते थे. जीविका ने इसी मॉडल को अपनाया. पढ़ने के लिए क्यूबिकल बनवाए. फ्री वाई-फाई की व्यवस्था की और प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए जरूरी किताबों को प्राथमिकता दी.

यह बेसिक संरचना थी, मगर जीविका ने इसे रीडिंग रूम के साथ-साथ करियर काउंसिलिंग सेंटर के रूप में भी विकसित किया. करियर से जुड़े विषयों पर गाइड करने वाले ऑनलाइन और ऑफलाइन सेमिनार करवाए. अच्छे कॉलेज और नौकरियों के लिए आवेदन करने के तरीके बताए और ऑनलाइन फॉर्म भरने की सुविधा उपलब्ध कराई. और इन तमाम कार्यों को संपादित करने के लिए गांव की ही एक पढ़ी-लिखी महिला को इसकी पूर्णकालिक जिम्मेदारी दी गई और उसे विद्या दीदी का नाम दिया गया.

इन पुस्तकालयों का जिम्मा भी जीविका दीदियों के प्रखंड स्तरीय संगठनों का है. वे ही इसकी देखरेख करती हैं. अमूमन ऐसे पुस्तकालयों के संचालन में हर महीने दस हजार के करीब खर्च होता है, इस खर्चे को उनका संगठन ही अपनी बचत से पूरा करता है. 

राकेश बताते हैं, ''हम बच्चों को यह बताना चाहते थे, इंजीनियरिंग-मेडिकल, रेलवे-पुलिस, शिक्षक और फौज की नौकरियों से आगे भी बड़ी दुनिया है. रोजगार के सैकड़ों रास्ते हैं और इंटर पास करते ही नौकरी तलाशने में जुट जाना कोई अच्छी बात नहीं. देश के अच्छे कॉलेजों में ऊंची पढ़ाई कर लें, फिर करियर तलाशें. इसके लिए हमने सबसे पहले दसवीं और बारहवीं के बाद करियर से जुड़े तमाम विकल्पों का एक बड़ा चार्ट बनवाया और उसे लाइब्रेरी में लगवाया. करियर गाइडेंस के सेमिनार भी चलते रहे."

नतीजा यह निकला कि इन पुस्तकालयों से अत्यंत सामान्य परिवार के 28 बच्चे स्नातक की पढ़ाई के लिए देश के बेहतरीन कॉलेजों में गए. गोपालगंज की तीन छात्राएं दिल्ली यूनिवर्सिटी के मिरांडा हाउस और दौलतराम कॉलेज में पढ़ने के लिए गईं. इनमें एक, मनीषा पहले यह मानकर चल रही थीं कि वे हथुआ कॉलेज से ही ग्रेजुएशन करेंगी. मगर आज वे मिरांडा हाउस में पोलिटिकल साइंस से बीए कर रही हैं. एक छात्र अरशद का एडमिशन दिल्ली के भगत सिंह कॉलेज में हुआ.

अरशद रोजाना 15 किमी का सफर तय करके अपने गांव से अररिया जिले के पलासी आते थे और वहां की लाइब्रेरी में पढ़ते थे. पांच छात्रों का एडमिशन पटना के डेवलपमेंट मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट के पीजीडीएम कोर्स में हुआ और उनमें से तीन अभी प्लेसमेंट की तैयारी में हैं. एक बिहटा के पवन को जीविका परियोजना ने ही यंग प्रोफेशनल के तौर पर रख लिया है.

इन पुस्तकालयों से बच्चे पटना के पोलिटेक्निक में भी पढ़ने आए. लोगों को सरकारी नौकरियां भी मिलीं. नर्सिंग कॉलेज में एडमिशन लिया. सीटेट पास किया. अभी दो साल पूरे नहीं हुए हैं. मगर कई लोगों के सपने साकार होने लगे हैं.

दिलचस्प है कि जीविका परियोजना ने इन बच्चों को मीडिया लिट्रेसी जैसे अनूठे विषय की ट्रेनिंग भी दिलवाई. स्पेन की यूनिवर्सिटी ऑफ मैड्रिड की मदद से 14 हजार से अधिक बच्चों को मीडिया लिट्रेसी और स्पोकन इंग्लिश की ट्रेनिंग दी गई. इन्हें फैक्ट चेकिंग सिखाई गई ताकि वे खुद और अपने समाज को फेक न्यूज से बचा सकें. इन्हें साइबर सिक्योरिटी की भी ट्रेनिंग दी गई. इस आयु वर्ग के इतने बड़े समूह के साथ पहली बार ऐसी ट्रेनिंग हुई है.

इन गतिविधियों की वजह से ये पुस्तकालय अपने इलाके में काफी चर्चित हैं और यहां हमेशा छात्रों की भीड़ रहती है. सारण जिले के नया गांव में खुले ऐसे ही पुस्तकालय को संभालने वालीं विद्या दीदी ग्रेसी सिंह कहती हैं, "मेरे यहां 45 बच्चों के बैठने की जगह है. उन्हें मैं दो शिफ्ट में बिठाती हूं. अभी सौ से अधिक बच्चे वेटिंग में हैं."

ऐसा नहीं है कि इन पुस्तकालयों में सिर्फ गरीब तबके और प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने वाले बच्चे ही आ रहे हैं. जहां पकरी बरांवा के पुस्तकालय में एक डॉक्टर की बेटी पढ़ती नजर आई, वहीं नया गांव की लाइब्रेरी में एक छात्र ऐन फ्रैंक की डायरी पढ़ रहा था.

कई जीविका दीदियां जिनकी पढ़ाई शादी या किसी और वजह से काफी पहले छूट गई थी, वे अब पढ़ने में जुट गई हैं. डिस्टेंस कोर्स की मदद से ऐसी 421 महिलाओं को दसवीं की परीक्षा दिलाने की तैयारी चल रही है. उनकी पढ़ाई में भी ये लाइब्रेरी मददगार साबित हो रही हैं.

दीदी की लाइब्रेरी

●दिसंबर, 2022 में मुजक्रफरपुर के संगम क्लस्टर लेवल फेडरेशन की जीविका की महिलाओं ने जीविका के तत्कालीन सीईओ राहुल कुमार से लाइब्रेरी खोलने का अनुरोध किया.

●10 फरवरी, 2023 को मधेपुरा के सिंहेश्वर में जीविका की पहली लाइब्रेरी खुली. फिर बिहार के 32 जिलों के 100 प्रखंडों में ऐसी लाइब्रेरी खुलीं.

● 6 जनवरी, 2025 को वैशाली में जीविका दीदियों के अनुरोध पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने हर पंचायत में ऐसी लाइब्रेरी खोलने का वादा किया.

कैसी है यह लाइब्रेरी

●यह पुस्तकालय से अधिक रीडिंग रूम और करियर डेवलपमेंट सेंटर जैसी है. इसलिए इसका नाम सामुदायिक पुस्तकालय सह करियर विकास केंद्र रखा गया है.

●अमूमन इसमें दो कमरे होते हैं. पहले में क्यूबल वाले रीडिंग रूम होते हैं, दूसरा क्लासरूम जैसा होता है. क्लासरूम का इस्तेमाल वर्कशॉप, सेमिनार और वेबिनार के लिए होता है.

●यहां फ्री वाई-फाई की सुविधा, लगभग सभी प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी के लिए किताबें, कंप्यूटर, टेबलेट और प्रिंटर होते हैं. पेयजल, शौचालय आदि की सुविधाएं भी होती हैं.

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