महाराष्ट्र के नासिक जिले में त्र्यंबकेश्वर शिव मंदिर के बाहर करीब एक सदी पुराने राजकमल प्रसाद भंडार पर प्रमुखता से प्रदर्शित चीजें मिठाई, सिंदूर, रुद्राक्ष की माला और मूर्तियां नहीं, बल्कि अनजान-सा 'सर्टिफिकेट' है, जिस पर हिंदी, मराठी और अंग्रेजी में 'ओम' और 'हिंदू से हिंदू को' मोहर लगी है. यह 'ओम मानक प्रमाणपत्र' 'नॉट फॉर प्रॉफिट कंपनी' ओम प्रतिष्ठान की तरफ से जारी किया गया है, जिसके प्रमुख वी.डी. सावरकर के चचेरे पड़पोते रंजीत सावरकर हैं.
इस पर दुकान और दुकानदार के ब्योरे बताने वाला क्यूआर कोड भी है. यह प्रतिष्ठान जून से त्र्यंबकेश्वर में, जहां रोज 12,000 और पर्व-त्योहारों पर लाखों श्रद्धालु आते हैं, पूजा और कर्मकांड सामग्री बेचने वाले करीब 150 दुकानदारों को ऐसे प्रमाणपत्र नि:शुल्क जारी कर चुका है. यही नहीं, करीब 30 किमी दूर नासिक शहर की 150 साल पुरानी पांडे मिठाई की दुकान और मुंबई के करीब 25 रेस्तरांओं सरीखे दूसरी जगहों के प्रतिष्ठानों को भी ओम प्रमाणपत्र हासिल हुए हैं.
प्रतिष्ठान के मुताबिक, ओम प्रमाणपत्र उस 'हलाल प्रमाणपत्र' का जवाब है जो यह प्रमाणित करने के लिए जारी किया जाता है कि खाद्य उत्पाद इस्लामी विश्वासों के अनुरूप है. ओम प्रमाणपत्र के पीछे कुछ कट्टरपंथी हिंदू गुटों के बीच लंबे वक्त से चला आ रहा यह जाहिरा शक—बल्कि यकीन—है कि लोकप्रिय हिंदू मंदिरों और तीर्थस्थलों पर मुसलमानों के हाथों बेची जा रही धार्मिक सामग्री 'अशुद्ध' है और यहां तक कि जान-बूझकर दूषित की जाती है.
इस मुहिम के हिमायतियों के मुताबिक, यह 'थूक जिहाद' है. सोशल मीडिया पर आए पोस्ट और वीडियो की तरफ इशारा करते हुए वे अपमानजनक शब्दों में आक्षेप लगाते हैं कि गैर-मुसलमानों को बेची जाने वाली खाने-पीने की चीजों और सामान को मुसलमान अपने थूक से 'दूषित' करते हैं. सावरकर आरोप लगाते हैं, "नैवेद्य (भगवान की भोग सामग्री) आस्था का मामला है... फूलों को थूक से गंदा करके बेचा जाता है." वे यह भी सनसनीखेज आरोप लगाते हैं कि अमरावती में खोये में जानवर की चर्बी मिलाई जा रही थी और जानवर की चर्बी मिले घी का इस्तेमाल हवन के लिए किया जा रहा था.
इसे रोकने के लिए ओम संघ यानी कार्यकर्ताओं और दुकानदारों के प्रतिनिधियों की स्थानीय समितियां बनाई जाएंगी, जो यह सत्यापित करेंगी कि प्रसाद बनाने में 'अशुद्ध' चीजों का प्रयोग नहीं किया जा रहा है और फिर प्रमाणपत्र देंगी. थोक विक्रेताओं के स्तर तक पिछले रिकॉर्ड और आपूर्ति शृंखला की जांच की जाएगी. नियमों का उल्लंघन करने वालों के प्रमाणपत्र रद्द कर दिए जाएंगे.
सावरकर का कहना है कि त्र्यंबकेश्वर से शुरू हुआ यह अभियान आखिरकार पूरे राज्य और देश में चलाया जाएगा. प्रतिष्ठान के धार्मिक सलाहकार नासिक-निवासी अनिकेतशास्त्री देशपांडे कहते हैं, "पहले हम धार्मिक गतिविधियों से जुड़े उत्पादों को प्रमाणित करेंगे, फिर इसे दूसरे क्षेत्रों में ले जाएंग और हर क्षेत्र में शुद्धता और पवित्रता अपनाने पर जोर देंगे." उनकी योजना अंतत: मैन्युफैक्चर करने वाली इकाइयों, देवी-देवताओं के कपड़े/आभूषण बेचने वाली दुकानों, प्रमाणपत्र वाली सामग्री का इस्तेमाल करने वाले पंडे-पुजारियों, धार्मिक टूर आयोजित करने वाली एजेंसियों और यहां तक कि 'झटका'—न कि हलाल—मांस बेचने वाली दुकानों को भी इसमें शामिल करने की है.
प्रसाद की शुद्धता के मानदंड धर्म-गुरु और शास्त्रों के पंडित तय करेंगे. देशपांडे का कहना है कि उनकी योजना "करीब 100 से 150 मानकों" पर विचार करने की है, जिनमें विक्रेता का अनिवार्य रूप से धर्मपरायण हिंदू होना, उत्पाद का मिलावट मुक्त होना, और उनका राहुकाल तथा अमावस्या सरीखे 'अशुभ’ मौकों पर नहीं बना होना शामिल है.
सेक्यूलर या पंथनिरपेक्ष कार्यकर्ता पूरे मामले को मुसलमानों के खिलाफ आर्थिक छुआछूत फैलाने और उन्हें अलग-थलग करने के रूप में देखते हैं. इनमें कट्टरपंथियों के हाथों मारे गए तर्कवादी डॉ. नरेंद्र दाभोलकर के हाथों शुरू हुआ अंधविश्वास विरोधी संगठन महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति (एमएएनएस) के कार्यकर्ता भी हैं. सावरकर अपने इरादों को लेकर अडिग और बेधड़क हैं.
वे बताते हैं कि मस्जिदों के बाहर हिंदुओं की मिल्कियत वाली कोई दुकानें नहीं होती हैं और कहते हैं, "उनके मजहब में इसे (पूजा सामग्री बेचने को) कुफ्र (नास्तिकता) माना जाता है." महाराष्ट्र मंदिर महासंघ के समन्वयक सुनील घनवट इस नजरिये का अनुमोदन करते हैं. वे कहते हैं, "यह प्रसाद शुद्धि चलवल (प्रसाद की शुद्धता का आंदोलन) है, जो यह पक्का करने के लिए हैं कि विधर्मी मंदिरों के नजदीक मिलावटी प्रसाद न बेचें." बेशक, इसका दायरा अभी सीमित है, मगर आगे चलकर यह बड़ा रूप ले सकता है.
त्र्यंबकेश्वर मुस्लिम समाज के अध्यक्ष सदरुद्दीन कोकनी कहते हैं, "ओम प्रमाणपत्र सामाजिक दरार को और चौड़ा करने के लिए जारी किया जा रहा है." वे बताते हैं कि "अत्तार और मनियार सरीखे मुस्लिम समुदाय पुराने समय से ही परंपरागत तौर पर हिंदू श्रद्धालुओं को पूजा और कर्मकांड सामग्री बेचते आ रहे हैं."
दूसरे लोग सवाल करते हैं कि प्रतिष्ठान ने प्रसाद की जांच का काम कैसे संभाल लिया, क्योंकि यह राज्य के खाद्य और औषधि प्रशासन (एफडीए) की जिम्मेदारी है. एफडीए मंत्री धर्मरावबाबा आत्राम ने कहा कि जांच के लिए खाने-पीने की चीजों के नमूने लेने का अधिकार केवल उनके महकमे का है. मंदिर के न्यासी और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरदचंद्र पवार) की युवा शाखा के कार्यकारी अध्यक्ष पुरुषोत्तम कडलग कहते हैं, "धार्मिक शुद्धता की दलील को और आगे ले जाएं तो इसके हिमायतियों को यह जांच भी करनी चाहिए कि प्रसाद में इस्तेमाल दालें और किशमिश किनके खेतों में उगाई गई थीं." जाहिर है, इसका कोई ओर-छोर नहीं है.
अलबत्ता सावरकर कहते हैं कि वे कोई नमूनों की जांच नहीं कर रहे हैं. वे कहते हैं, "मानकों की जांच एफडीए करेगा, जबकि हम चढ़ावे के रूप में इस्तेमाल मिठाइयों को बनाने और बेचने वालों की जांच करके धार्मिक शुद्धता का सत्यापन करेंगे." इसमें तो कोई शक ही नहीं कि धार्मिक शुद्धता की इस जांच कौन फेल होगा. और असली मकसद क्या हो सकता है. बेशक, यह मुहिम कट्टरवाद को ही बढ़ावा देगी.
क्या है ओम सर्टिफिकेट?
- 'ओम मानक प्रमाणपत्र’ यह प्रमाणित करने का प्रयास करता है कि तीर्थस्थलों पर बेचा जाने वाला प्रसाद/पूजा सामग्री 'शुद्ध’ है.
- हलाल प्रमाणपत्र की नकल में यह प्रमाणपत्र इस विश्वास से उपजा है कि हिंदू तीर्थस्थलों पर पूजा सामग्री बेचने वाले मुसलमान उन्हें जान-बूझकर अपवित्र करते हैं.
- यह नॉट-फॉर-प्रॉफिट कंपनी के रूप में पंजीकृत हिंदू संगठन ओम प्रतिष्ठान की तरफ से त्र्यंबकेश्वर में 150 दुकानों/भोजनालयों को जारी किया गया है.
- ये नासिक के प्रतिष्ठानों और मुंबई के 25 रेस्तरांओं को भी दिए गए हैं.