हालिया लोकसभा चुनावों में शानदार प्रदर्शन करने वाले विपक्षी गठबंधन महाविकास अघाड़ी (एमवीए) के लिए महाराष्ट्र विधान परिषद चुनाव के नतीजे एक बड़ा झटका साबित हुए. एमवीए में कांग्रेस, शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद चंद्र पवार) शामिल हैं. दरअसल भाजपा, शिवसेना और अजित पवार की अगुआई वाली एनसीपी की तीन दलीय सत्तारूढ़ महायुति ने 11 सीटों में से नौ पर जीत दर्ज की.
वहीं, एमवीए समर्थित पीजंट ऐंड वर्कर्स पार्टी (पीडब्ल्यूपी) के जयंत पाटील को खासकर कांग्रेस विधायकों की ओर से भारी क्रॉस-वोटिंग के कारण हार का मुंह देखना पड़ा. माना जा रहा है कि अक्टूबर-नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव में ये विधायक महायुति में शामिल हो सकते हैं. इस हार ने एमवीए में सबकुछ ठीक न होने का स्पष्ट संकेत भी दे दिया.
विधान परिषद चुनावों के लिए निर्वाचक मंडल में विधायक शामिल होते हैं. मतदान पूरी तरह गोपनीय होता है. हालांकि, विधायक अपनी वरीयता मतपत्र पर एक खास तरीके से अंकित करते हैं, जिससे क्रॉस-वोटर का पता चलता है. 288 सदस्यीय महाराष्ट्र विधानसभा में सदस्यों की मौजूदा संख्या अभी घटकर 274 रह गई है. ऐसे में जीतने के लिए हर उम्मीदवार को प्रथम वरीयता के लगभग 23 वोटों की जरूरत थी. 78 सदस्यों वाली विधान परिषद में 27 रिक्तियां हैं, जिनमें राज्यपाल कोटे से नामित 12 सीटें शामिल हैं.
भाजपा से जो एमएलसी चुने गए उनमें पार्टी के दिग्गज नेता रहे गोपीनाथ मुंडे की बेटी और पूर्व मंत्री तथा ओबीसी नेता पंकजा मुंडे; पुणे के पूर्व विधायक योगेश तिलेकर; उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस के करीबी सहयोगी पूर्व मंत्री परिणय फुके; रय्यत क्रांति संगठन के प्रमुख और पूर्व मंत्री सदाभाऊ खोत और दलित नेता अमित गोरखे शामिल हैं. एकनाथ शिंदे की शिवसेना के दोनों उम्मीदवार पूर्व लोकसभा सांसद भावना गवली पाटील और कृपाल तुमाने ने जीत दर्ज की. वहीं, अजित पवार की एनसीपी के राजेश विटेकर और शिवाजीराव गर्जे भी निर्वाचित घोषित किए गए. भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि महायुति ने अपने वरीयता वोटों को जिस तरह निर्धारित किया वह भाजपा के लिए फायदेमंद साबित हुआ.
एमवीए की तरफ से प्रज्ञा सातव (कांग्रेस) और उद्धव के निजी सहायक मिलिंद नार्वेकर (शिवसेना) दूसरा कार्यकाल हासिल करने में सफल रहे. उद्धव कथित तौर पर एमवीए के सहयोगी दल पीडब्ल्यूपी के पाटील की उम्मीदवारी से नाराज थे क्योंकि उन्होंने सेना उम्मीदवारों संजोग वाघेरे और अनंत गीते के लिए काम नहीं किया. पाटील को शरद पवार की एनसीपी का समर्थन हासिल था. इसलिए ठाकरे ने नार्वेकर को उम्मीदवार बनाया क्योंकि उनकी अन्य दलों के नेताओं के साथ भी घनिष्ठता है. उनकी उपस्थिति ने पाटील की एमएलसी बनने की उम्मीदों पर पानी फेर दिया.
मतदान से एक दिन पूर्व ही वरिष्ठ कांग्रेस विधायक कैलाश गोरंटयाल ने ऐसे संकेत दिए थे कि पार्टी के तीन से चार वोट दूसरी तरफ जा सकते हैं. गोरंटयाल ने किसी का नाम नहीं लिया लेकिन इशारों-इशारों में बता दिया कि बागी विधायकों में जीशान सिद्दीकी (वांद्रे पूर्व), जिनके पिता और पूर्व मंत्री बाबा सिद्दीकी कांग्रेस छोड़कर अजित पवार की एनसीपी में शामिल हो गए थे; सुलभा खोडके (अमरावती), जिनके पति संजय खोडके एनसीपी के रणनीतिकार हैं; हीरामन खोसकर (इगतपुरी) और कांग्रेस छोड़ भाजपा में चले गए पूर्व सीएम अशोक चव्हाण के करीबी जितेश अंतापुरकर (देग्लूर) हो सकते हैं. एक कांग्रेस विधायक ने कहा कि क्रॉस वोटिंग करने वाले तीन अन्य विधायकों में 'अप्रत्याशित' नाम शामिल हैं. उन्होंने दावा किया कि विधायकों को पाला बदलने के लिए मजबूर किया गया.
बताया जा रहा है कि नार्वेकर के लिए वोटों के आवंटन पर शिवसेना (यूबीटी) और कांग्रेस के बीच मतभेद था. बाद में इसको लेकर पाटील के भतीजे और शिवसेना के एक वरिष्ठ नेता के बीच कथित तौर पर तीखी बहस भी हुई. नाराज ठाकरे ने तो कांग्रेस के एक नेता से यह तक कह दिया कि यदि उनके उम्मीदवार को गठबंधन में ही विरोध झेलना पड़ता है, तो साथ रहने का कोई मतलब नहीं. एमवीए में सबसे ज्यादा खींचतान पाटील की हार को लेकर हुई. पाटील ने आरोप लगाया कि एनसीपी (एससीपी) का एक वोट कहीं और चला गया, तथा माकपा के एकमात्र विधायक ने भी किसी और को वोट दिया. वैसे दोनों ने इस आरोप को निराधार बताया है. पाटील ने इन अटकलों को भी हवा दी कि विधायकों को रिश्वत दी गई. भाजपा के आशीष शेलार ने दावा किया कि शिवसेना (यूबीटी) के दो विधायकों ने क्रॉस वोटिंग की.
महाराष्ट्र कांग्रेस प्रमुख नाना पटोले ने पार्टी अनुशासन तोड़ने वालों पर कार्रवाई का वादा किया है. वहीं एनसीपी (एसपी) के जितेंद्र अव्हाड ने वोटरों से दलबदलुओं को सबक सिखाने की अपील की है. दरअसल सातव को मैदान में उतारे जाने से कांग्रेस के कुछ नेता नाराज थे. उनका मानना था कि किसी मुस्लिम चेहरे को उम्मीदवार बनाया जाना चाहिए क्योंकि लोकसभा चुनाव में इस समुदाय ने बड़े पैमाने पर पार्टी के पक्ष में मतदान किया है.
जून 2022 में विधान परिषद चुनावों के दौरान एक के बाद एक बदलता घटनाक्रम ही एमवीए सरकार गिरने की वजह बना था. बड़े पैमाने पर खरीद-फरोख्त के कारण कांग्रेस के दलित नेता चंद्रकांत हंडोरे को हार का सामना करना पड़ा था.