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मेक इन इंडियाः कैसे काम करेगा

मेक इन इंडिया वीक के संकेत तो काफी उत्साहजनक रहे हैं, लेकिन इस अभियान की सफलता हकीकत में धरातल पर होने वाले कामों और उनके नतीजों पर निर्भर करेगी.

अपडेटेड 23 फ़रवरी , 2016

नरेंद्र मोदी सरकार की ओर से महत्वाकांक्षी 'मेक इन इंडिया' अभियान शुरू करने के साल भर बाद अक्तूबर, 2015 में विश्व बैंक की ओर से कुछ अच्छी खबर आई. कारोबार करने के मामले में आसान देशों की श्रेणी में भारत साल भर पहले के 142वें पायदान से उठकर 130वें पायदान पर आ गया. इस तरह देश ने 12 पायदानों की छलांग लगाई. इसका श्रेय केंद्र और कुछ राज्यों की ओर से उठाए गए कदमों को जाता है.

इन कदमों में कोई नया कारोबार शुरू करने के लिए जरूरी मंजूरियों की संख्या कम करना भी शामिल है. औद्योगिक नीति और प्रोत्साहन महकमे के सचिव अमिताभ कांत कहते हैं, ''अगले साल से कुछ बड़े सुधार होने वाले हैं, जिसके बाद हमारी स्थिति और भी बेहतर हो जाएगी. प्रधानमंत्री के लक्ष्य के मुताबिक हमें पूरा विश्वास है कि हम चोटी के 50 देशों में अपनी जगह बना लेंगे.''

इस साल फरवरी में मोदी सरकार ने मुंबई में मेक इन इंडिया वीक (एमआइआइडब्ल्यू) मनाया. उसमें नए निवेश—खासकर निर्माण सेक्टर में—को आकर्षित करने के लिए विश्व बैंक की इस रैंकिंग, 7 फीसदी से ज्यादा की जीडीपी वृद्धि और दिसंबर, 2015 तक नौ महीनों में एफडीआइ में 48 फीसदी की वृद्धि को पेश किया गया.

लेकिन इसके साथ ही अर्थव्यवस्था को कई झटके भी लगे हैं. लगातार 14 महीनों से निर्यात घटा है, कॉर्पोरेट सेक्टर का प्रदर्शन भी निराशाजनक रहा है, क्योंकि बहुत-सी कंपनियां बिक्री और मुनाफे में कमी दिखा रही हैं. दुनिया में तेल की गिरती कीमतों के कारण बाजार में घबराहट थी और सरकारी बैंकों को भारी नुक्सान उठाना पड़ा है.

कुछ निर्माण कंपनियां भी उत्पादों की गिरती कीमतों और दोबारा मांग बढ़ने की अनिश्चितता के कारण बंद हो गईं. पिछले साल अगस्त में वेदांता ग्रुप की कंपनी बाल्को ने एल्युमिनियम की गिरती कीमतों के कारण अपने रोल्ड उत्पादों के कारोबार को बंद कर दिया. नवंबर, 2014 में फिनलैंड की हैंडसेट बनाने वाली कंपनी नोकिया ने माइक्रोसॉफ्ट के हाथों खरीदे जाने के बाद चेन्नै का अपना संयंत्र बंद कर दिया, जबकि अमेरिका की दिग्गज दवा कंपनी फाइजर और सैंडोज ने भी अपना काम घटाने के बाद अपने-अपने संयंत्र बंद कर दिए. दूसरी तरफ विभिन्न मुद्दों जैसे महिला सुरक्षा, प्रदूषण, भ्रष्टाचार और असहिष्णुता पर मीडिया की ओर से सरकार की आलोचना के चलते भी नुक्सान हुआ है.

लेकिन सरकार ने मेक इन इंडिया मिशन की घोषणा के बाद से अपनी उपलब्धियां दिखाने के लिए इन नकारात्मक बातों को दरकिनार करने की कोशिश की. कारोबार को आसान बनाने की कोशिशों के अलावा सरकार ने एफडीआइ के दरवाजे खोल दिए हैं और निर्माण पर विशेष ध्यान केंद्रित किया है. कांत कहते हैं कि मेक इन इंडिया अभियान शुरू करने के समय जो निर्माण वृद्धि 1.7 प्रतिशत पर थी, वह अब बढ़कर 12.6 प्रतिशत पर आ गई है. करीब 50 मोबाइल फोन निर्माताओं ने भारत को अपना ठिकाना बना लिया है. इसी तरह फॉक्सकॉन, बोइंग, डैमलर और आइकेईए जैसी दूसरी दिग्गज कंपनियों ने भी यहां अपना कारोबार शुरू कर दिया है.

रक्षा के क्षेत्र में सरकार ने 60 फीसदी सामान को लाइसेंस से मुक्त कर दिया है. एफडीआइ की नई व्यवस्था में किसी निवेशक को 49 फीसदी की हिस्सेदारी रखने की छूट दे दी गई है. सरकार का दावा है कि वह 137 रक्षा लाइसेंसों को मंजूरी दे चुकी है और रक्षा ऑफसेट (संतुलन) नीति को पुनर्गठित कर दिया है.

पहले इस नीति में विदेशी कंपनियों को स्थानीय डिफेंस या एयरोस्पेस उद्योगों में ठेका हासिल करने के लिए अनुबंध की कीमत का कम से कम 30 फीसदी निवेश करना पड़ता था. इससे बहुत सारी कठिनाइयां पैदा होती थीं. इसलिए घरेलू पार्टनरों का चुनाव करने में ज्यादा लचीलापन लाया गया, जिससे 3.5 अरब डॉलर के विदेशी निवेश का रास्ता खुल गया है. व्यापक स्तर पर देखें तो इसने निवेशकों को इस बात के लिए आश्वस्त कर दिया है कि पूर्व प्रभावी टैक्स नहीं लगाया जाएगा. इस तरह के टैक्स के कारण देश में निवेश का रास्ता बाधित हो गया था.

रेलवे के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं. उच्च गति की रेलों में तकनीकी स्थानांतरण, बुनियादी ढांचे के आधुनिकीकरण और रखरखाव के लिए चीन, फ्रांस, चेक गणराज्य और कोरिया के साथ एमओयू पर दस्तखत किए जा चुके हैं. रेलवे ने डीजल और विद्युत इंजनों के कारखानों के लिए जीई और एल्सटोम को 10 साल का ठेका दिया है. बिहार में इन कारखानों में 10 साल के भीतर 6.2 अरब डॉलर की लागत से 1,000 डीजल इंजन और 800 बिजली इंजन बनाए जाएंगे.

सरकार का यह भी कहना है कि कोयले के अभाव में बिजली के किसी संयंत्र को बंद नहीं किया गया है. केंद्रीय ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल के मुताबिक, 2013-14 में कोयले का उत्पादन 56.6 करोड़ टन से बढ़कर 2014-15 में 61.2 करोड़ टन हो गया. इस तरह इसकी वृद्धि दर 1.7 प्रतिशत से बढ़कर 8.25 प्रतिशत हो गई. 2020 तक इलेक्ट्रॉनिक हार्डवेयर की मांग के बढ़कर 400 अरब डॉलर तक हो जाने की उम्मीद है. इसे देखते हुए सरकार ने इलेक्ट्रॉनिक्स, नैनोइलेक्ट्रॉनिक्स और आइटी में नए प्रयोगों, रिसर्च और उत्पाद के विकास को बढ़ावा देने के लिए 10,000 करोड़ रु. की रकम तय कर दी है.

सफर अभी लंबा है
लेकिन बावजूद इसके अभी काफी कुछ करना बाकी है. भूमि अधिग्रहण बिल और गुड्स ऐंड सर्विस टैक्स (जीएसटी) बिल अभी तक पारित नहीं हो पाए हैं. बहुत-से राज्यों को अभी केंद्र से संकेत लेकर श्रम कानूनों में सुधार करना है. दिवालिया कानून अभी संसद में पारित होना है, जो व्यापार छोडऩे के विकल्प को आसान बनाएगा. भारतीय कंपनियों को नए प्रयोग करने की जरूरत है ताकि वे विदेशों से ऊंची कीमत वाले काम हासिल कर सकें. महिंद्रा समूह के चेयरमैन आनंद महिंद्रा कहते हैं, ''निम्न स्तर वाले कुछ निर्माण कार्य भारत में आ सकते हैं. लेकिन अगर आप ब्रांड इंडिया बनाना चाहते हैं तो पहले अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय ब्रांड बनाने होंगे.'' बंदरगाह सेक्टर को भी अपनी क्षमता बढ़ाने के लिए आधुनिकीकरण की जरूरत है.

भारत में निर्माण क्षेत्र वर्षों से खराब हालत में रहा है. कृषि के बाद सबसे ज्यादा रोजगार मुहैया कराने वाला यह क्षेत्र जीडीपी में सिर्फ 16 फीसदी का ही योगदान देता है और इसमें वैश्विक हिस्सा मात्र 2 फीसदी है, जबकि चीन में यह 22 फीसदी है. मोदी सरकार का लक्ष्य है कि 2022 तक जीडीपी में इसका योगदान 25 फीसदी तक हो जाए, जिससे 10 करोड़ लोगों को रोजगार मिल सकेगा. हालांकि बहुतों का मानना है कि लक्ष्य कठिन है, जिसे हासिल करना आसान नहीं होगा.

उत्साहजनक संकेत

बहरहाल, व्यापार जगत के दिग्गजों ने इन प्रयासों की तारीफ की है. आइटी कंपनी सिस्को के कार्यकारी अध्यक्ष जॉन चैंबर्स कहते हैं, ''भारत में निवेश करने का यही अच्छा मौका है, वरना यह मौका हाथ से निकल जाएगा.'' सिस्को पुणे में अपना पहला उत्पादन संयंत्र स्थापित कर रहा है. आदित्य बिरला ग्रुप के अध्यक्ष कुमार मंगलम बिरला कहते हैं कि निर्माण के क्षेत्र में भारत का रिकॉर्ड पहले ही अच्छा रहा है और वह अगले चरण में प्रवेश कर रहा है. वे कहते हैं, ''भारत अब अच्छी स्थिति में है...दुनिया में यह सबसे तेजी से बढऩे वाली अर्थव्यवस्था है.''

भारत को अगर निर्माण का केंद्र बनना है तो इसे भारी निवेश की जरूरत होगी, खासकर विदेशों से. उस मायने में एमआइआइडब्लू का आयोजन, जिसमें 22 देशों के 11 औद्योगिक सेक्टरों से करीब 8,000 व्यापारिक प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया था, काफी उत्साहजनक रहा.

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