अगस्त की 27 तारीख, साल 2014. इसी दिन उन्हें आखिरी बार देश ने मुस्कराते हुए देखा था. लाल और सुनहरे रंग की शेरवानी और कानों में दमकते हीरे पहने हुए जाने-माने नेता के इकलौते बेटे ने उस लड़की को मिठाई और फूल थमाए जिससे अभी कुछ दिन पहले ही उसकी सगाई हुई थी. अगले ही दिन देश ने अखबारों में इन खुशनुमा तस्वीरों के साथ इस प्रकरण का कड़वा क्लाइमेक्स भी देखा. एक अनाम-सी कन्नड़ अभिनेत्री मिथ्रिया ने हाल ही में सगाई के बंधन में बंधे उस लड़के पर बलात्कार का आरोप लगाया. उसका दावा था कि लड़के ने उसके गले में मंगलसूत्र पहनाया था और उनका पहले ही विवाह हो चुका है. लड़के ने वादा किया था कि वह सबके सामने उससे शादी करेगा, और इसके बाद दोनों के बीच संबंध बन गए.
क्या इसे बलात्कार की संज्ञा दी जा सकती है? अगस्त से ही केंद्रीय कानून और न्याय मंत्री तथा कनार्टक के पूर्व मुख्यमंत्री सदानंद गौड़ा का 28 वर्षीय बेटा कार्तिक गौड़ा इस सवाल से जूझ रहा है. कार्तिक पर भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (बलात्कार का आरोप) और 420 (धोखाधड़ी) के तहत मुकदमा दायर किया गया है. गहन पूछताछ के अलावा उसके कई तरह के मेडिकल टेस्ट किए गए हैं, साथ ही कई कानूनी चुनौतियां भी सामने खड़ी हैं.
गौड़ा परिवार को नवंबर में जरूर राहत मिली जब बंगलुरू की फैमिली कोर्ट ने उस तथाकथित शादी को मान्यता देने से इनकार कर दिया. लेकिन 29 जनवरी को इस परिवार को फिर झटका लगा जब कर्नाटक हाइकोर्ट ने 'आरोपों की गंभीरता' को देखते हुए कार्तिक की आरोप रद्द करने की याचिका ठुकरा दी. जस्टिस आर.बी. बुदिहाल ने कार्तिक के खिलाफ जांच बंद करने से भी इनकार कर दिया.
वादा और यौन संबंध
अब एक के बाद एक देश भर से इस तरह के ढेर सारे मामले सामने आ सकते हैं. हालांकि दो लोगों के बीच अंतरंगता के नियमन में निश्चित रूप से कोर्ट की दिलचस्पी नहीं है. बलात्कारियों पर शिकंजा कसने के लिए फरवरी, 2013 में राष्ट्रपति ने आपराधिक कानून (संशोधन) अध्यादेश 2013 पर हस्ताक्षर किए थे लेकिन फिर भी कुछ दुष्परिणाम सामने आ सकते हैं.
दिल्ली की वरिष्ठ वकील रेबेका जॉन कहती हैं, ''नए संशोधन से बलात्कार की व्याख्या और अधिक व्यापक हो गई है.'' रजामंदी नहीं होने का मतलब बलात्कार है. वे कहती हैं, ''अब आरोपी को यह साबित करना होता है कि यौन संबंध रजामंदी से बनाए गए थे.'' कानून के मुताबिक यदि किसी महिला ने शादी के वादे के बाद शारीरिक संबंध बनाए हैं और बाद में पुरुष ने शादी से इनकार कर दिया तो यह 'सहमति से बनाए यौन संबंधों' के दायरे में नहीं आएगा.
न्यायाधीश ऐसे मामलों में असमंजस में रहते हैं, जिसमें लड़के-लड़की के बीच रोमांस का मामला रहा हो. 27 जून, 2014 को सुप्रीम कोर्ट के दो न्यायाधीशों, न्यायमूर्ति विक्रमजीत सेन और एस.के. सिंह ने कहा था, ''इट इज नॉट क्यूपिड बट स्टुपिड'' यानी यह प्रेम नहीं बेवकूफी है. अदालत मानव भावनाओं के अतिरेक को देखती है, यानी अच्छी भावनाएं लेकिन खराब इरादे. और इसी दिन न्यायाधीश ऐसे केस की सुनवाई कर रहे थे जिसमें एक पूर्व एअर होस्टेस और एक बैंकर तीन साल तक प्रेम और लिव इन रिलेशन में रहने के बाद अदालत में बलात्कारी और बलात्कार पीडि़त के रूप में आमने-सामने थे. लड़की का कहना था कि शादी के वादे के बिना वह यौन संबंध कभी नहीं बनाती. बैंकर का जवाब: वह अच्छी तरह से जानती थी कि मैं पहले से शादीशुदा हूं. न्यायाधीशों ने उन दोनों को एक-दूसरे की अश्लील तस्वीरें खींचकर अदालत में दिखाने के लिए फटकार लगाई. उनकी टिप्प्णी थी कि ऐसे और मामले सामने आ सकते हैं.
भारत के कानून आयोग के पूर्व सदस्य बी.वी. आचार्य कहते हैं, ''ये मामले जटिल होते हैं और कोई नहीं जानता कि इन्हें कैसे सुलझाया जाए.'' सुप्रीम कोर्ट भी कई बार कह चुका है कि सब पर लागू होने वाले फॉर्मूले के अभाव में हर मामले को मौजूद साक्ष्यों के आधार पर ही सुलझाया जाना चाहिए. वर्ष 2003 में शीर्ष अदालत ने एक शख्स को इसलिए बरी कर दिया था क्योंकि अदालत का मानना था कि 'जब दो लोग प्रेम और रोमांस में डूबे हों तो शादी का वादा बहुत मायने नहीं रखता.' लेकिन 2006 में एक व्यक्ति को इसलिए सजा मिली क्योंकि ''शुरू से ही उसका इरादा लड़की से शादी करने का नहीं था.'' फिर वर्ष 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने 'शादी करने का वादा तोड़ने' और 'झूठा वादा करने' के बीच अंतर स्पष्ट किया. हालांकि अदालत में झूठ बोलने वालों पर मुकदमा चलाने का प्रावधान है लेकिन झूठे वादों के मामले में अदालतें सामान्यत: इस विशेषाधिकार का प्रयोग नहीं करतीं. आचार्य कहते हैं, ''अदालत नहीं चाहती कि इससे डर कर पीडि़त न्याय के लिए अदालत आने से हिचकिचाए.'' भ्रमित करते मामले
नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, दिल्ली के प्रोफेसर मृणाल सतीश कहते हैं, ''काफी मामले पुलिस के केस दायर करने की वजह से ही अदालत तक आते हैं. '' हालांकि देश की पुलिस आपराधिक मामलों, खासकर बलात्कार के मामलों में एफआइआर दायर करने में आनाकानी के लिए कुख्यात है. वे कहते हैं, ''लेकिन नए बलात्कार कानूनों के तहत पुलिस की जवाबदेही बढ़ा दी गई है.'' किसी महिला की एफआइआर दर्ज नहीं करने वाले पुलिसकर्मी पर ड्यूटी में लापरवाही बरतने का आरोप लगता है और कम-से-कम छह महीने की सजा का प्रावधान है. सतीश कहते हैं, ''इसी का परिणाम है कि जैसे ही कोई महिला सहमति से संबंधों के मामले में प्राथमिकी दर्ज करवाने आती है, पुलिस इसे बलात्कार की शिकायत के रूप में दर्ज करती है. आखिर हम क्यों जोखिम उठाएं. हम क्यों फंसें. अदालत को तय करने दीजिए. पुलिस वाले यही सोचते हैं.''
कुछ वकील ऐसे मामलों को और उलझा देते हैं. लीगल वेबसाइट ऐसे हताश लोगों से भरी पड़ी हैं जो इस तरह के मामलों में सलाह चाहते हैं. वकील इन मामलों को गहराई से देखते हैं. कानून.कॉम के फैमिली लॉ सेक्शन में मुंबई की एक अनाम लड़की का मामला लें. वह लिखती है, ''मैं एक लड़के के साथ रिलेशन में थी जो मुझसे शारीरिक संबंध बनाना चाहता था, लेकिन मैं इसके लिए तैयार नहीं थी. इस पर उसका जवाब था, ''ठीक है, मैं तुमसे शादी करूंगा.'' लेकिन छह साल बाद उनका यह संबंध नाकाम रहा. अब लड़की उसके खिलाफ केस करना चाहती है. उसका कहना है, ''मुझे महसूस होता है कि वह मेरा बलात्कार करता रहा.'' उसे जवाब देने वाले सात वकीलों में से दो की राय थी, ''आप केस करो.'' एक ने पूछा कि क्या आपके पास शादी के वादे का लिखित प्रमाण है? चार अन्य ने उसे पुलिस के पास जाकर आइपीसी की धारा 376 के तहत मामला दर्ज कराने और फैसला अदालत पर छोड़ने की सलाह दी.
अच्छी बात
इस बीच कार्तिक और मिथ्रिया सार्वजनिक जबानी लड़ाई में उलझ चुके हैं. कार्तिक का तर्क है, ''मेरा उससे कोई संबंध नहीं है. मैंने उससे कभी शादी नहीं की. '' मिथ्रिया का जवाब, ''कार्तिक को किसी और से शादी करने से रोकिए. मैं उसके माता-पिता की बहुत अच्छी बेटी बनकर दिखाऊंगी.''
लेकिन क्या मिथ्रिया जानती है कि सुप्रीम कोर्ट शादी करने वाले बलात्कारी को भी बहुत अच्छी नजर से नहीं देखता: 2013 में तीन जजों की खंडपीठ ने फैसला दिया था, ''बलात्कार ऐसा मामला नहीं है, जिसे दो पक्षों को आपस में ही सुलझाने के लिए छोड़ दिया जाए.'' अब यह शीर्ष अदालत पर है कि दोनों पक्षों की निजी लड़ाई को सार्वजनिक न करें. जितनी जल्दी यह हो सके, उतना ही अच्छा.
सशर्त प्यार या बलात्कार
क्या बीते कल के यौन संबंधों को आने वाले कल में बलात्कार का नाम दिया जा सकता है? कार्तिक गौड़ा मामले में हाइकोर्ट के फैसले से बलात्कार के एकदम नई तरह के मामले सामने आ सकते हैं, जिन्हें सुलझाना बड़ी चुनौती होगा.

अपडेटेड 10 फ़रवरी , 2015
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