scorecardresearch

हजार तानों का सबब बन गई वैदिक और हाफिज सईद की एक मुलाकात

वैदिक और हाफिज सईद की मुलाकात को प्रचार पाने की ललक या पत्रकार का पेशेवर काम कुछ भी कहा जा सकता है, लेकिन इसका असल मकसद कुछ और भी हो सकता है.

अपडेटेड 28 जुलाई , 2014
पहली जुलाई को सूर्यास्त के आसपास हाफिज मोहम्मद सईद के मोबाइल की घंटी बजी. लाइन पर उसके दोस्त और दुनिया मीडिया ग्रुप के अरबपति मालिक मियां अमीर महमूद थे. महमूद ने कहा कि भारत के एक वरिष्ठ पत्रकार लश्करे तय्यबा के संस्थापक से मिलना चाहते हैं. भारत में मोस्टवांटेड आतंकवादी ने अगले दिन सुबह वेदप्रताप वैदिक से मुलाकात की हामी भर दी.

लाहौर से सटे जोहर टाउन में भारी सुरक्षा बंदोबस्त से घिरे सईद के मकान में आधे घंटे की इस मुलाकात के दौरान हाफिज की चार बीवियों का हालचाल पूछने के अलावा 26 नवंबर, 2008 के मुंबई हमले पर बातचीत हुई. इस मुलाकात पर किसी का ध्यान नहीं जाता अगर 69 साल के वैदिक ने 14 जुलाई को ट्विटर पर वह तस्वीर न डाली होती जिसमें तोंद वाले, लश्कर के सरगना सईद को चुपचाप उनकी बात सुनते देखा जा सकता है.

वैदिक ने फोटो को शीर्षक दिया ''हाफिज ने कहा पाकिस्तान मोदी का स्वागत करेगा.” इसके पीछे उनका मकसद शायद परदे के पीछे विदेश नीति की चाल उजागर करना रहा होगा, लेकिन इसने भारत में राजनैतिक दावानल को दहका दिया. 26 नवंबर, 2008 के मुंबई हमले में 166 लोगों की मौत हुई थी और इसकी साजिश रचने वाला हाफिज मोहम्मद सईद भारत के 50 सबसे ज्यादा वांछित भगोड़ों की उस सूची में पहले नंबर पर है जिसे भारत 2011 से बार-बार पाकिस्तान को सौंपता रहा है.

इतना ही नहीं, आरएसएस के साथ वैदिक के कथित रिश्ते, बाबा रामदेव से निकटता और सत्तारूढ़ एनडीए से संबंधों ने कांग्रेस को शक की गंध दे दी. कांग्रेस ने अभूतपूर्व एका दिखाते हुए मोदी सरकार को निशाना बनाया. कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी का सीधा सवाल था, ''सवाल यह है कि भारतीय उच्चायोग ने वैदिक की मदद की या नहीं?”

कांग्रेस के दो नेताओं ने वैदिक के गृहनगर इंदौर में उन पर देशद्रोह का मुकदमा ठोक दिया. बीजेपी की सहयोगी शिवसेना भी उनके खून की प्यासी हो गई. शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने पार्टी के मुखपत्र सामना  में लिखा, ''वैदिक देशद्रोही हैं और उन्हें कसाब की तरह सजा दी जाए.”

सरकार ने फौरन वैदिक से किनारा कर लिया. वित्त मंत्री अरुण जेटली ने उनकी इस यात्रा को 'एक गैर-सरकारी व्यक्ति का कूटनीतिक दुस्साहस’ कहकर खारिज कर दिया. वैदिक ने मेल टुडे को बताया कि सईद से उनकी मुलाकात 'दोनों पक्षों की इच्छा’ से हुई. वैदिक ने कहा, ''मुलाकात शुरू में कुछ तल्ख थी लेकिन मुझसे बात करते-करते सईद धीरे-धीरे खुल गया. उसने समझने की कोशिश की कि वह आतंकवादी नहीं था. मैंने कहा कि अगर वह जेहादी वारदात में शामिल है तो गलत है और उसे अल्लाह से माफी मांगनी चाहिए.”

 एक वरिष्ठ गुप्तचर अधिकारी का कहना है कि इस मुलाकात से असली फायदा सईद को हुआ होगा, ''आरएसएस के करीबी समझे जाने वाले एक वरिष्ठ भारतीय पत्रकार से मुलाकात से सईद को कुछ प्रामाणिकता तो मिलती ही है.” सईद के जमात-उद-दावा को अमेरिका ने जून में विदेशी आतंकवादी संगठन घोषित कर दिया था. यह असल में लश्कर का दिखावटी सामाजिक संगठन है.

कांग्रेस प्रवक्ता शकील अहमद का आरोप था कि वैदिक के तार प्रधानमंत्री कार्यालय से सीधे जुड़े हुए हैं. उन्होंने आरोप लगाया कि वैदिक का संबंध आरएसएस से जुड़े विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन से है. प्रधानमंत्री कार्यालय के तीन प्रमुख अधिकारी—प्रमुख सचिव नृपेंद्र मिश्र, अतिरिक्त प्रमुख सचिव पी.के. मिश्र और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल इसी फाउंडेशन से आए हैं. लेकिन फाउंडेशन ने अपने बयान में साफ कर दिया कि वैदिक से ''उसका किसी तरह का संबंध नहीं है.”

उसके एक सदस्य का कहना है कि वैदिक एक बार अप्रैल, 2011 में  रामदेव के 40 सदस्यों के दल के साथ भ्रष्टाचार विरोधी गोष्ठी में हिस्सा लेने फाउंडेशन आए थे. बीजेपी ने कांग्रेस पर जवाबी हमला करते हुए उसके दो पूर्व मंत्रियों के नाम लिए जिनके साथ वैदिक पाकिस्तान गए थे. बीजेपी के राम माधव का कहना था, ''जो नेता मणिशंकर अय्यर और सलमान खुर्शीद के साथ घूमता हो, वह आरएसएस का नहीं हो सकता.”

वैदिक पर चौतरफा हमलाप्रचार की भूख
दो दिन तक टेलीविजन चैनलों के प्राइम टाइम के गुस्से के निशाने पर रहने के बाद वैदिक ने मौन साध लिया. उनके परिवार ने गुडग़ांव में एक मंजिला घर में मीडिया का प्रवेश वर्जित कर दिया. उनकी बेटी ने कहा, ''हमें उनकी सेहत की चिंता है.” वैदिक के राजनैतिक सहयोगी बाबा रामदेव जरूर समर्थन में बोले, ''मुझे विश्वास है कि वेदप्रताप वैदिक ने हाफिज सईद का हृदय परिवर्तन करने की कोशिश की होगी.

वैदिक पत्रकार हैं और किसी से भी मिल सकते हैं.” कुछ स्वतंत्र प्रेक्षकों का भी मानना है कि इस मुलाकात पर राजनैतिक उबाल कुछ ज्यादा ही हो रहा है. फौजदारी के वकील अनिल अग्रवाल का कहना है, ''हाफिज सईद के साथ वैदिक की मुलाकात में ऐसा कुछ नहीं है जिसे देशद्रोह कहा जाए. उन्होंने न तो भारत सरकार के प्रति दुश्मनी की वकालत की और न ही उसका तख्ता पलटने को कहा.”

दरअसल वैदिक का जन्म इंदौर में एक छोटे व्यापारी परिवार में हुआ. उनके पिता आर्य समाज से जुड़ गए जो जात-पांत से मुक्त समाज की वकालत करता है. परिवार का संबंध दक्षिणपंथी हिंदू महासभा और जनसंघ से भी था. वैदिक जब इंदौर में अग्रवाल समाज की मासिक पत्रिका अग्रवाही के संपादक थे, उस समय उनके साथ काम कर चुके वरिष्ठ पत्रकार श्रवण गर्ग ने बताया कि वैदिक राम मनोहर लोहिया जैसे समाजवादियों और आरएसएस के पूर्व सर संघ चालक दिवंगत के.एस. सुदर्शन के भी करीबी थे.

वैदिक 1960 के दशक के शुरू में एमए करने के बाद इंदौर से निकल कर दिल्ली आ गए. दिल्ली में कुछ समय उन्होंने मोतीलाल नेहरू कॉलेज में राजनीति विज्ञान पढ़ाया. जाने-माने हिंदी पत्रकार के रूप में उनकी साख कभी संदिग्ध नहीं रही. वे 1986 से 1995 तक न्यूज एजेंसी पीटीआइ की हिंदी न्यूज एजेंसी भाषा के संपादक रहे. 1970 के दशक के अंतिम वर्षों में उन्होंने अंग्रेजी हटाओ आंदोलन की अगुआई की.

धीरे-धीरे वैदिक समाजवादी पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव से लेकर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तक कई नेताओं के चहेते हो गए. हालांकि ये ढेर सारी उपलब्धियां आत्मप्रचार की उनकी भूख के सामने हमेशा बौनी हो गईं. कुछ साल पहले उन्होंने भोपाल में एक धार्मिक आयोजन में डींग हांक दी कि वे अपना फोन हमेशा बाथरूम के करीब रखते हैं क्योंकि भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश की सरकारों के प्रमुख सलाह लेने के लिए बार-बार फोन करते हैं.

वैदिक आज भी भारतीय भाषा सम्मेलन के अध्यक्ष हैं जो अंग्रेजी के मुकाबले भारतीय भाषाओं की प्रधानता पर जोर देता है. प्रभात प्रकाशन के प्रभात कुमार का कहना है, ''वैदिक जी प्रखर और मजाकिया व्यक्ति हैं, जिनके सभी दलों के नेताओं से घनिष्ठ संबंध हैं.”

वैदिक ने छवि निखारने के लिए बड़ा लंबा-चौड़ा परिचय पत्र भी बना रखा है. उनकी वेबसाइट पर लिखा है, ''डॉक्टर वैदिक संघर्षरत पक्षों को शांति वार्ता में मदद देकर अफगानिस्तान के मामले में बड़ी भूमिका निभा रहे हैं. दूसरे महायुद्ध के बाद से अफगानिस्तान के लगभग सभी राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री तथा मुजाहिद नेता डॉक्टर वैदिक से व्यक्तिगत रूप से परिचित रहे हैं.”

वे दक्षिण एशिया के ज्यादातर नेताओं से मिलने में कामयाब रहे हैं. उन्होंने इस्लामाबाद में राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के साथ दोपहर का भोजन किया और नवाज शरीफ तथा शाहबाज शरीफ के साथ शाम की चाय पी. इन तमाम मुलाकातों में कैमरा हमेशा साथ रहा.

क्या कोई मिशन था?
'कूटनीतिक दुस्साहस पर उतारू गैर-सरकारी व्यक्ति कहलाने वाले वैदिक की पिछले महीने पाकिस्तान में कई नामी-गरामी लोगों से मुलाकात हैरान करती है. 20 दिन के प्रवास में वैदिक ने प्रधानमंत्री नवाज शरीफ, विदेश सचिव जलील अब्बास जिलानी, राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेश नीति सलाहकार सरताज अजीज और पीएम के विशेष सलाहकार तारिक फातमी जैसी हस्तियों से मुलाकात की. 25 जून को इस्लामाबाद में भारतीय उच्चायोग में प्रथम सचिव जनार्दन सिंह के घर पर आयोजित रात्रि भोज में वैदिक ने स्थानीय पत्रकारों से पूछ लिया कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने पर पाक में कैसी प्रतिक्रिया हुई.

सईद से उनकी मुलाकात अप्रत्याशित ढंग से बवाल खड़ा करने वाले प्रचार का हथकंडा भर हो सकती थी, लेकिन असल में उसके जरिए पाकिस्तान में सत्ता के असली केंद्र पाकिस्तानी सेना ने एक महत्वपूर्ण संदेश भेजा है. भारत के एक गुप्तचर अधिकारी ने बताया, ''लश्करे तय्यबा की लगाम थामने वाली सेना ने संदेश दिया है कि वह चाहती है कि प्रधानमंत्री मोदी पाकिस्तान आएं.” मनमोहन सिंह 10 साल प्रधानमंत्री रहते हुए कभी पाकिस्तान नहीं गए.

मनमोहन के दूसरे कार्यकाल में पाकिस्तान की सरकारी यात्रा न हो पाने की एक वजह यह आशंका भी थी कि सईद उनकी यात्रा के दौरान विरोध प्रदर्शन करा सकता है. पाकिस्तान में 26 नवंबर, 2008 के मुंबई हमलों के मुकदमों में खास प्रगति न होना भी भारतीय प्रधानमंत्री की यात्रा में बाधक रही है. 27 मई को नरेंद्र मोदी ने भले ही इस्लामाबाद यात्रा का नवाज शरीफ का न्यौता कबूल कर लिया हो पर सुरक्षा प्रतिष्ठान के मन में आज भी यह चिंता है.

जहां तक सईद का सवाल है, उसने एक भारतीय के साथ विवादित मुलाकात के बारे में अपनी स्थिति 14 जुलाई के ट्वीट में स्पष्ट करने की कोशिश की, ''डॉ. वैदिक ने पूछा कि क्या मोदी की पाकिस्तान यात्रा के दौरान हम विरोध प्रदर्शन करेंगे तो मैंने कहा—हम ऐसी राजनीति और प्रदर्शनों में हिस्सा नहीं लेते.”

पाकिस्तानी मीडिया में उत्तरी वजीरिस्तान में उग्रवादियों पर सेना के कहर की खबरें छाए रहने के कारण वैदिक-सईद विवाद को कोई खास जगह नहीं मिली. सिर्फ दो अखबारों द न्यूज और डॉन ने मुलाकात की खबरें दीं. लेकिन पाकिस्तान में प्रमुख राजनैतिक समीक्षक और एआरवाइ न्यूज के एंकर अमीर गौरी इस मुलाकात से कुछ उलझन में हैं, ''भला अमीर महमूद जैसी नामी हस्ती ऐसी मुलाकात में मदद क्यों करेगी?”

वह भी तब जब अमीर महमूद वैदिक से पहले कभी नहीं मिले थे. महमूद तो दावा कर चुके हैं कि उन्होंने लाहौर ब्यूरो प्रमुख के अनुरोध पर सईद से भारतीय पत्रकार से मिलने को कहा था. क्या इस मुलाकात के बारे में जितना सच बताया जा रहा है, उससे ज्यादा परदे के पीछे छिपा हुआ है? 
Advertisement
Advertisement