साक्षी तंवर बेशक समय पर पहुंची थीं, इससे ज्यादा की मैंने उम्मीद भी नहीं की थी. उन्हें विनम्र, सादगी भरी, व्यावहारिक पर बेहद कुशल और टैलेंट का खजाना माना जाता है. उनके चेहरे पर हमेशा बनी रहने वाली मुस्कान और बड़ी-बड़ी आंखें सबका ध्यान खींचती हैं. वे भारतीय टेलीविजन की दुनिया का सबसे जाना-पहचाना चेहरा हैं. उनके सफर की शुरुआत 13 साल पहले सबसे कामयाब धारावाहिक कहानी घर-घर की से हुई. वे देश के हर घर में आदर्श बहु पार्वती के रूप में पहचानी जाने लगीं. माताएं उनसे स्नेह करने लगीं और हर सास के लिए वे आदर्श बî का उदाहरण बन गईं. आज, फिर वे बड़े अच्छे लगते हैं की प्रिया के रूप में सर्वाधिक लोकप्रिय चेहरा हैं.
सबसे पहले परिवार
40 वर्षीया साक्षी राजस्थान के छोटे-से शहर अलवर की हैं, जहां वे संयुक्त परिवार में रहती थीं. लेकिन पिता की नौकरी की वजह से उन लोगों को उत्तर भारत के विभिन्न शहरों में जाना पड़ा है. वे कहती हैं, ‘‘हमारी छुट्टियां अलवर में ही संयुक्त परिवार में बीतती थीं.’’ लगभग एक दशक से साक्षी मुंबई में रह रही हैं और ज्यादातर समय मम्मी-पापा उनके साथ रहते हैं. उनका एक भाई और बहन है लेकिन उन्हें लगता है कि उन्हें सबसे ज्यादा लाड-प्यार मिला है. वे कहती हैं, ‘‘परिवार मेरे लिए बेहद अहम है. मैं छोटी-सी चीज से लेकर बड़े फैसलों तक अपने परिवार पर निर्भर हूं. मैं हर रोज उनकी सलाह लेती हूं. मुझे खाली चाहरदीवारी के मुकाबले भरा-पूरा घर अच्छा लगता है. उससे बड़ी मदद मिलती है.’’ साक्षी दिखने में भावुक नहीं लगतीं, लेकिन उनका इमोशनल पक्ष भी है. उनके बिस्तर के पीछे दीवार पर उनकी मम्मी की तस्वीर टंगी है. वे कहती हैं, ‘‘सुबह उठकर पहले मैं उस तस्वीर को देखती हूं और रात में सोने से पहले उनसे बातें करती हूं. वे मेरी बेस्ट फ्रेंड, गुरु और गाइड हैं. उनकी आवाज ही मुझे हर तरह के तनाव से मुक्त कर देती है. वे जब भी मेरे साथ होती हैं, तो मेरे लिए खाना बनाती हैं.’’
शादी की बात
क्या छोटे पर्दे की इस सुपरस्टार पर शादी करके ‘‘घर बसाने’’ का दबाव है? साक्षी तपाक से जवाब देती हैं, ‘‘मेरे मम्मी-पापा मेरी ही तरह तरक्की- पसंद हैं. उनका मानना है कि जब मुझे लगे कि अब सही वक्त है तो मैं शादी कर लूंगी.’’ साक्षी उस वक्त को याद करती हैं जब उनके पिता ने एक संभावित लड़के से मीटिंग तय की और उसने पूछा कि शादी के बाद वे कब काम करना छोड़ देंगी. इस पर एक पल भी गंवाए बिना वे फौरन बोलीं, ‘‘आप कब काम छोड़ देंगे!’’ और इस तरह किस्सा खत्म हो गया.
अटकलें और राम कपूर
बड़े अच्छे लगते हैं में साक्षी तंवर और राम कपूर पर्दे का सबसे पसंद किया जाने वाला जोड़ा हैं लेकिन मीडिया में उनके बीच अनबन की खबरें हावी रही हैं. इनका खंडन करते हुए वे कहती हैं, ‘‘मेरी कभी कोई शिकायत नहीं रही है. हम दोनों प्रोफेशनल हैं और पर्दे पर हमारी कमाल की ट्यूनिंग है. पर्दे के बाहर भी हम एक-दूसरे का सम्मान करते हैं. हमारे बीच अनबन की अटकलें निराधार हैं.’’ साक्षी मानती हैं कि राम के संग काम करना बढिय़ा अनुभव है. उनके ज्यादातर सीन स्वाभाविक हैं, पटकथा पीछे छूट जाती है और हम आगे बढ़ते जाते हैं. फिर अचानक डायरेक्टर से पूछते हैं, ‘‘आप कट कब कहोगे!’’ वे इतना खो जाते हैं कि सीन कब का खत्म हो जाता है उन्हें पता ही नहीं चलता!
तेरह साल से कायम जादू
साक्षी ने अपने करियर की शुरुआत एकता कपूर (बालाजी टेलीफिल्म लिमिटेड) के धारावाहिक कहानी घर-घर की से की. तब से 13 साल गुजर गए पर आज भी उनके संबंध मजबूत बने हुए हैं. हाल में बड़े अच्छे लगते हैं की धांसू कामयाबी से प्रोडक्शन हाउसेज में उनका रुतबा फिर से कायम हो गया है. इंडस्ट्री में कहा जाता है कि एकता के साथ काम करना आसान नहीं है. तो, साक्षी का उनके साथ कैसा तालमेल है? ‘‘बालाजी अब मेरे परिवार की तरह हो गया है. वह अब ऐसी जगह नहीं है जहां आप जाओ, काम करो और लौट आओ. एकता प्रोफेशनल हैं और उनका फोकस अपने काम पर होता है. हां, वे काम के मामले में कोई रियायत नहीं देतीं, हार्ड टास्कमास्टर हैं! हों भी क्यों नहीं? उनकी तरह कठिन मेहनत और लगन के साथ काम करने वाला कोई भी चाहेगा....अगर मैं भी उनकी जगह होती तो मैं भी वही करती. अगर आप किसी प्रोजेक्ट या शो के प्रति समर्पित हो तो आप कुछ घंटे लगन और पूरे पेशेवर तरीके से उसे कामयाब बनाने में जुट जाओगे. अगर आप वैसा नहीं करते हो और कोई इस पर कुछ कहता है तो उसका कहना जायज है.’’ लेकिन वे वैसी नहीं हैं जैसी मीडिया में साक्षी के एल्बम से ली गई तस्वीरों से जाहिर होता है. वे कहती हैं, ‘‘लोग कहते हैं कि मैं बहुत-सी पार्टियों और कार्यक्रमों में नहीं जाती. मैं घरेलू किस्म की हूं, कुछ आलसी भी, जब मुझे लगता है कि मामला महत्व का है, तभी जाती हूं.’’
भाग-दौड़ से दूर
ज्यादातर अभिनेता-अभिनेत्रियां बालाजी के प्रोजेक्ट में दोबारा मिले मौके को फौरन लपक लेती हैं लेकिन साक्षी को बड़े अच्छे लगते हैं में प्रिया की भूमिका के लिए राजी करने में एकता को कुछ वक्त लगा. साक्षी कहती हैं, ‘‘आठ साल तक दिन-रात काम करने के बाद मैं कुछ समय बिना किसी काम के चैन से बिताना चाहती थी. जैसे सुबह उठूं तो लगे कि आज दिन का कोई कार्यक्रम या एजेंडा नहीं है. आठ साल तक कहानी... के दौरान मैंने इतना काम किया जो दूसरे लोग 16 साल में करते क्योंकि हम रोज काम करते और एक भी एपिसोड मेरे बिना नहीं था. यह कहना तो ठीक नहीं है कि मुझे छुट्टियां नहीं मिलीं लेकिन उसमें भी काम का दबाव बना रहता था. मैं चाहती थी कि चौन से घूमूं, छुट्टियां बिताने जाऊं, मैं ‘‘अपना वक्त’’ बिताऊं, मैं अपने परिवार, दोस्तों के साथ रहना चाहती थी, फिल्में देखना चाहती थी, पैर फैलाकर आराम करना चाहती थी. और मैंने ढाई साल तक यही किया.’’ उसे वे अपने जीवन का सबसे बढिय़ा फैसला मानती हैं. हर रोज जब कई अच्छे मौके मिल रहे हों तो उन्हें क्या यह चिंता नहीं सताती थी कि नए ऐक्टरों को मौका मिल जाएगा और स्टारडम खत्म हो जाएगा? साक्षी स्वीकार करती हैं, ‘‘कुछ न करने के लिए हिम्मत तो चाहिए. हां, मेरे मन में संदेह उठ रहे थे...लेकिन मैं वैसा कुछ शर्तिया तौर पर नहीं करना चाहती थी जैसा कर चुकी थी...मैं बतौर ऐक्टर आगे नहीं बढ़ रही थी.’’
अच्छी लड़की, बुरा रोल
उन्हें बालिका वधू में खलनायिका जैसी टीपरी का रोल करने को कहा गया तो वह उनके लिए बड़ी ‘‘चुनौती’’ थी. उस अनोखे अनुभव के बारे में साक्षी बताती हैं, ‘‘मैंने सोचा, ऐक्टर के रूप में मेरे लिए यह महत्वपूर्ण काम होगा. यह मेरे पहले रोल से 180 डिग्री उलट था. इससे मुझे अच्छा मौका मिला पर मुझे यह एहसास भी हुआ कि मुझे अपनी ऐक्टिंग में सुधार करने की जरूरत है.’’ हालांकि साक्षी का इसके पहले रोल (कहानी घर घर की में) इतना सकारात्मक और प्रेरणादायक-बिल्कुल गऊ समान-था कि उनका नया अवतार दर्शकों को पसंद नहीं आया. अपनी पसंदीदा ‘‘बहू’’ को खलनायिका के रूप में देखना उन्हें नहीं भाया. लेकिन अभिनेत्री साक्षी का कहना है कि इससे वे भविष्य में ऐसी भूमिकाएं करने से परहेज नहीं करेंगी.
पर्दे पर और असली जिंदगी में साक्षी
टेलीविजन के दो बेहद लोकप्रिय सीरियलों में पार्वती और प्रिया के रूप में छोटे पर्दे की सबसे चर्चित कलाकार साक्षी तंवर असली जिंदगी में खुद को किस पात्र के आसपास पाती हैं? फौरन जवाब आता है, ‘‘बेशक, बड़े अच्छे लगते हैं की प्रिया के! हमारे देश में लोग किसी को उसके रिश्तों से जोड़कर देखने के आदी हैं. जब मैं पार्वती थी तो मैं आदर्श पत्नी, बहू, भाभी हुआ करती थी, सबसे अंत में यह सवाल आता था कि मैं कोई व्यक्ति भी हूं. प्रिया के पात्र में अच्छी बात यह है कि वह सबसे पहले एक औरत की तरह बोलती है और फिर वह पत्नी, मां, भाभी, बहु वगैरह है. एक एपिसोड में प्रिया की ननद नताशा उसके (प्रिया के) भाई से तलाक लेना चाहती है और प्रिया उसका समर्थन करती है.’’ वे कहती हैं, ‘‘कोई औरत ऐसे पुरुष के साथ क्यों रहे जिसके साथ वह खुश नहीं है? यह आज की औरत की आवाज है. प्रिया (बड़े अच्छे लगते हैं में साक्षी का पात्र) कामकाजी, स्वतंत्र, देर से शादी करने वाली, एक बच्चे की मां है, इस पात्र में आज की शहरी औरतों की भावनाओं की अभिव्यक्ति है और इसके जरिए मैं अकेली और शादीशुदा दोनों तरह की महिलाओं से जुड़ पाती हूं.’’ साक्षी वह दौर याद करती हैं जब स्त्रियां उनसे कहा करती थीं कि उनकी सास उनसे ‘‘पार्वती’’ जैसा बनने को कहती हैं. वे कहती हैं, ‘‘लेकिन आज ‘‘मैं पार्वती जैसा बनना चाहती हूं’’ के बदले यह कहने लगी हैं कि ‘‘मैं उसके (प्रिया) जैसी हूं!’’ यह बड़ा बदलाव है और एकदम असली जिंदगी की ताजगी है, यह बस हेयरस्टाइल, मेकअप वगैरह का ही मामला नहीं है.’’ ज्यादातर शहरी औरतें उनके इस पात्र (प्रिया) में अपना अक्स देखती हैं.
साक्षी को बड़े अच्छे लगते हैं की प्रिया में दूसरी अच्छी बात यह लगती है कि वह एकदम उनकी ही तरह अपने मन की बात कहती है. वे कहती हैं, ‘‘सास, पति, अपने परिवार या किसी दूसरे से बात करते हुए वह यह नहीं सोचती कि ‘यह कहने से रिश्ते टूट जाएंगे’, यह एकदम आज के जैसा, मेरे जैसा है.’’
जिंदगी को राह तय करने दो
उन्होंने भविष्य के लिए कोई योजना नहीं बनाई है. उनका मानना है कि जिंदगी एक सफर है और वह जैसी है उसे उसी रूप में स्वीकार करना चाहिए. वे कहती हैं, ‘‘मैं तो यह भी नहीं जानती थी कि मैं यहां होऊंगी. कहानी घर घर की के दौर में भी सोचा करती थी कि एकाध साल करूंगी और फिर निकल जाऊंगी. मैं बहुत महत्वाकांक्षी नहीं हूं. मैं जिसमें मन नहीं लग रहा हो, वह कर पाने को खुद को तैयार नहीं कर पाती.’’ एक वक्त वह था जब साक्षी के लिए अभिनय ही सब कुछ था. वह एकदम सुबह शूटिंग के लिए जाया करतीं और घंटों वहीं बिताया करतीं और फिर अगले दिन की शूटिंग के बारे में सोचा करती थीं. लेकिन उनका मानना है कि चीजों को व्यवस्थित करने के लिए ब्रेक जरूरी है. ‘‘उस वक्त हर कोई मुझसे कहता था कि मैं अच्छे ऑफर ठुकराकर अपने को ‘‘बर्बाद’’ कर रही हूं. लेकिन मैं जानती थी कि मुझे कुछ नहीं मिलेगा तब भी मैं चैन से रहूंगी. मैं जहां से आई हूं और जो मेरी आकांक्षा है, उसमें मैंने इतनी लोकप्रियता और कामयाबी की उम्मीद नहीं की थी.’’ कई लोगों को नहीं मालूम कि 2009 में साक्षी ने आशुतोष राणा के साथ फिल्म कॉफी हाउस की थी जो हिट नहीं हुई.
बेहद विनम्र स्टार
बेहद विनम्र और लो-प्रोफाइल साक्षी को अपने ऊपर काफी भरोसा है. वे बहुत व्यावहारिक भी हैं. उनके पास विज्ञापनों की भरमार है और कई बॉलीवुड सितारों से भी ज्यादा उनकी मांग है. साक्षी पिछले दो साल में 15 विज्ञापनों की शूटिंग कर चुकी हैं. हाल में एक कंज्यूमर सर्वे में साक्षी सबसे भरोसेमंद स्टार में माधुरी दीक्षित और कैटरिना कैफ के साथ टॉप 5 स्थान पर हैं. हालांकि उन्हें अपने काम के अस्थायी होने का भी एहसास है. वे कहती हैं, ‘‘कहानी घर घर की में मैं लीड रोल कर रही थी तो बालाजी में मेरी काफी पूछ थी. और जब दूसरे प्रोडक्शन हाउस में दूसरे स्तर की भूमिका करने लगी तो वहां व्यवहार बदल गया. बालाजी में मेरी पूछ इतनी क्यों है? इसलिए कि मैं लीड रोल कर रही हूं, इसलिए नहीं कि मैं साक्षी तंवर हूं. मैं इसे खूब समझती हूं.’’
-साथ में गीतिका गंजु धर
सबसे पहले परिवार
40 वर्षीया साक्षी राजस्थान के छोटे-से शहर अलवर की हैं, जहां वे संयुक्त परिवार में रहती थीं. लेकिन पिता की नौकरी की वजह से उन लोगों को उत्तर भारत के विभिन्न शहरों में जाना पड़ा है. वे कहती हैं, ‘‘हमारी छुट्टियां अलवर में ही संयुक्त परिवार में बीतती थीं.’’ लगभग एक दशक से साक्षी मुंबई में रह रही हैं और ज्यादातर समय मम्मी-पापा उनके साथ रहते हैं. उनका एक भाई और बहन है लेकिन उन्हें लगता है कि उन्हें सबसे ज्यादा लाड-प्यार मिला है. वे कहती हैं, ‘‘परिवार मेरे लिए बेहद अहम है. मैं छोटी-सी चीज से लेकर बड़े फैसलों तक अपने परिवार पर निर्भर हूं. मैं हर रोज उनकी सलाह लेती हूं. मुझे खाली चाहरदीवारी के मुकाबले भरा-पूरा घर अच्छा लगता है. उससे बड़ी मदद मिलती है.’’ साक्षी दिखने में भावुक नहीं लगतीं, लेकिन उनका इमोशनल पक्ष भी है. उनके बिस्तर के पीछे दीवार पर उनकी मम्मी की तस्वीर टंगी है. वे कहती हैं, ‘‘सुबह उठकर पहले मैं उस तस्वीर को देखती हूं और रात में सोने से पहले उनसे बातें करती हूं. वे मेरी बेस्ट फ्रेंड, गुरु और गाइड हैं. उनकी आवाज ही मुझे हर तरह के तनाव से मुक्त कर देती है. वे जब भी मेरे साथ होती हैं, तो मेरे लिए खाना बनाती हैं.’’

क्या छोटे पर्दे की इस सुपरस्टार पर शादी करके ‘‘घर बसाने’’ का दबाव है? साक्षी तपाक से जवाब देती हैं, ‘‘मेरे मम्मी-पापा मेरी ही तरह तरक्की- पसंद हैं. उनका मानना है कि जब मुझे लगे कि अब सही वक्त है तो मैं शादी कर लूंगी.’’ साक्षी उस वक्त को याद करती हैं जब उनके पिता ने एक संभावित लड़के से मीटिंग तय की और उसने पूछा कि शादी के बाद वे कब काम करना छोड़ देंगी. इस पर एक पल भी गंवाए बिना वे फौरन बोलीं, ‘‘आप कब काम छोड़ देंगे!’’ और इस तरह किस्सा खत्म हो गया.
अटकलें और राम कपूर
बड़े अच्छे लगते हैं में साक्षी तंवर और राम कपूर पर्दे का सबसे पसंद किया जाने वाला जोड़ा हैं लेकिन मीडिया में उनके बीच अनबन की खबरें हावी रही हैं. इनका खंडन करते हुए वे कहती हैं, ‘‘मेरी कभी कोई शिकायत नहीं रही है. हम दोनों प्रोफेशनल हैं और पर्दे पर हमारी कमाल की ट्यूनिंग है. पर्दे के बाहर भी हम एक-दूसरे का सम्मान करते हैं. हमारे बीच अनबन की अटकलें निराधार हैं.’’ साक्षी मानती हैं कि राम के संग काम करना बढिय़ा अनुभव है. उनके ज्यादातर सीन स्वाभाविक हैं, पटकथा पीछे छूट जाती है और हम आगे बढ़ते जाते हैं. फिर अचानक डायरेक्टर से पूछते हैं, ‘‘आप कट कब कहोगे!’’ वे इतना खो जाते हैं कि सीन कब का खत्म हो जाता है उन्हें पता ही नहीं चलता!
तेरह साल से कायम जादू
साक्षी ने अपने करियर की शुरुआत एकता कपूर (बालाजी टेलीफिल्म लिमिटेड) के धारावाहिक कहानी घर-घर की से की. तब से 13 साल गुजर गए पर आज भी उनके संबंध मजबूत बने हुए हैं. हाल में बड़े अच्छे लगते हैं की धांसू कामयाबी से प्रोडक्शन हाउसेज में उनका रुतबा फिर से कायम हो गया है. इंडस्ट्री में कहा जाता है कि एकता के साथ काम करना आसान नहीं है. तो, साक्षी का उनके साथ कैसा तालमेल है? ‘‘बालाजी अब मेरे परिवार की तरह हो गया है. वह अब ऐसी जगह नहीं है जहां आप जाओ, काम करो और लौट आओ. एकता प्रोफेशनल हैं और उनका फोकस अपने काम पर होता है. हां, वे काम के मामले में कोई रियायत नहीं देतीं, हार्ड टास्कमास्टर हैं! हों भी क्यों नहीं? उनकी तरह कठिन मेहनत और लगन के साथ काम करने वाला कोई भी चाहेगा....अगर मैं भी उनकी जगह होती तो मैं भी वही करती. अगर आप किसी प्रोजेक्ट या शो के प्रति समर्पित हो तो आप कुछ घंटे लगन और पूरे पेशेवर तरीके से उसे कामयाब बनाने में जुट जाओगे. अगर आप वैसा नहीं करते हो और कोई इस पर कुछ कहता है तो उसका कहना जायज है.’’ लेकिन वे वैसी नहीं हैं जैसी मीडिया में साक्षी के एल्बम से ली गई तस्वीरों से जाहिर होता है. वे कहती हैं, ‘‘लोग कहते हैं कि मैं बहुत-सी पार्टियों और कार्यक्रमों में नहीं जाती. मैं घरेलू किस्म की हूं, कुछ आलसी भी, जब मुझे लगता है कि मामला महत्व का है, तभी जाती हूं.’’
भाग-दौड़ से दूर
ज्यादातर अभिनेता-अभिनेत्रियां बालाजी के प्रोजेक्ट में दोबारा मिले मौके को फौरन लपक लेती हैं लेकिन साक्षी को बड़े अच्छे लगते हैं में प्रिया की भूमिका के लिए राजी करने में एकता को कुछ वक्त लगा. साक्षी कहती हैं, ‘‘आठ साल तक दिन-रात काम करने के बाद मैं कुछ समय बिना किसी काम के चैन से बिताना चाहती थी. जैसे सुबह उठूं तो लगे कि आज दिन का कोई कार्यक्रम या एजेंडा नहीं है. आठ साल तक कहानी... के दौरान मैंने इतना काम किया जो दूसरे लोग 16 साल में करते क्योंकि हम रोज काम करते और एक भी एपिसोड मेरे बिना नहीं था. यह कहना तो ठीक नहीं है कि मुझे छुट्टियां नहीं मिलीं लेकिन उसमें भी काम का दबाव बना रहता था. मैं चाहती थी कि चौन से घूमूं, छुट्टियां बिताने जाऊं, मैं ‘‘अपना वक्त’’ बिताऊं, मैं अपने परिवार, दोस्तों के साथ रहना चाहती थी, फिल्में देखना चाहती थी, पैर फैलाकर आराम करना चाहती थी. और मैंने ढाई साल तक यही किया.’’ उसे वे अपने जीवन का सबसे बढिय़ा फैसला मानती हैं. हर रोज जब कई अच्छे मौके मिल रहे हों तो उन्हें क्या यह चिंता नहीं सताती थी कि नए ऐक्टरों को मौका मिल जाएगा और स्टारडम खत्म हो जाएगा? साक्षी स्वीकार करती हैं, ‘‘कुछ न करने के लिए हिम्मत तो चाहिए. हां, मेरे मन में संदेह उठ रहे थे...लेकिन मैं वैसा कुछ शर्तिया तौर पर नहीं करना चाहती थी जैसा कर चुकी थी...मैं बतौर ऐक्टर आगे नहीं बढ़ रही थी.’’

उन्हें बालिका वधू में खलनायिका जैसी टीपरी का रोल करने को कहा गया तो वह उनके लिए बड़ी ‘‘चुनौती’’ थी. उस अनोखे अनुभव के बारे में साक्षी बताती हैं, ‘‘मैंने सोचा, ऐक्टर के रूप में मेरे लिए यह महत्वपूर्ण काम होगा. यह मेरे पहले रोल से 180 डिग्री उलट था. इससे मुझे अच्छा मौका मिला पर मुझे यह एहसास भी हुआ कि मुझे अपनी ऐक्टिंग में सुधार करने की जरूरत है.’’ हालांकि साक्षी का इसके पहले रोल (कहानी घर घर की में) इतना सकारात्मक और प्रेरणादायक-बिल्कुल गऊ समान-था कि उनका नया अवतार दर्शकों को पसंद नहीं आया. अपनी पसंदीदा ‘‘बहू’’ को खलनायिका के रूप में देखना उन्हें नहीं भाया. लेकिन अभिनेत्री साक्षी का कहना है कि इससे वे भविष्य में ऐसी भूमिकाएं करने से परहेज नहीं करेंगी.

टेलीविजन के दो बेहद लोकप्रिय सीरियलों में पार्वती और प्रिया के रूप में छोटे पर्दे की सबसे चर्चित कलाकार साक्षी तंवर असली जिंदगी में खुद को किस पात्र के आसपास पाती हैं? फौरन जवाब आता है, ‘‘बेशक, बड़े अच्छे लगते हैं की प्रिया के! हमारे देश में लोग किसी को उसके रिश्तों से जोड़कर देखने के आदी हैं. जब मैं पार्वती थी तो मैं आदर्श पत्नी, बहू, भाभी हुआ करती थी, सबसे अंत में यह सवाल आता था कि मैं कोई व्यक्ति भी हूं. प्रिया के पात्र में अच्छी बात यह है कि वह सबसे पहले एक औरत की तरह बोलती है और फिर वह पत्नी, मां, भाभी, बहु वगैरह है. एक एपिसोड में प्रिया की ननद नताशा उसके (प्रिया के) भाई से तलाक लेना चाहती है और प्रिया उसका समर्थन करती है.’’ वे कहती हैं, ‘‘कोई औरत ऐसे पुरुष के साथ क्यों रहे जिसके साथ वह खुश नहीं है? यह आज की औरत की आवाज है. प्रिया (बड़े अच्छे लगते हैं में साक्षी का पात्र) कामकाजी, स्वतंत्र, देर से शादी करने वाली, एक बच्चे की मां है, इस पात्र में आज की शहरी औरतों की भावनाओं की अभिव्यक्ति है और इसके जरिए मैं अकेली और शादीशुदा दोनों तरह की महिलाओं से जुड़ पाती हूं.’’ साक्षी वह दौर याद करती हैं जब स्त्रियां उनसे कहा करती थीं कि उनकी सास उनसे ‘‘पार्वती’’ जैसा बनने को कहती हैं. वे कहती हैं, ‘‘लेकिन आज ‘‘मैं पार्वती जैसा बनना चाहती हूं’’ के बदले यह कहने लगी हैं कि ‘‘मैं उसके (प्रिया) जैसी हूं!’’ यह बड़ा बदलाव है और एकदम असली जिंदगी की ताजगी है, यह बस हेयरस्टाइल, मेकअप वगैरह का ही मामला नहीं है.’’ ज्यादातर शहरी औरतें उनके इस पात्र (प्रिया) में अपना अक्स देखती हैं.
साक्षी को बड़े अच्छे लगते हैं की प्रिया में दूसरी अच्छी बात यह लगती है कि वह एकदम उनकी ही तरह अपने मन की बात कहती है. वे कहती हैं, ‘‘सास, पति, अपने परिवार या किसी दूसरे से बात करते हुए वह यह नहीं सोचती कि ‘यह कहने से रिश्ते टूट जाएंगे’, यह एकदम आज के जैसा, मेरे जैसा है.’’
जिंदगी को राह तय करने दो
उन्होंने भविष्य के लिए कोई योजना नहीं बनाई है. उनका मानना है कि जिंदगी एक सफर है और वह जैसी है उसे उसी रूप में स्वीकार करना चाहिए. वे कहती हैं, ‘‘मैं तो यह भी नहीं जानती थी कि मैं यहां होऊंगी. कहानी घर घर की के दौर में भी सोचा करती थी कि एकाध साल करूंगी और फिर निकल जाऊंगी. मैं बहुत महत्वाकांक्षी नहीं हूं. मैं जिसमें मन नहीं लग रहा हो, वह कर पाने को खुद को तैयार नहीं कर पाती.’’ एक वक्त वह था जब साक्षी के लिए अभिनय ही सब कुछ था. वह एकदम सुबह शूटिंग के लिए जाया करतीं और घंटों वहीं बिताया करतीं और फिर अगले दिन की शूटिंग के बारे में सोचा करती थीं. लेकिन उनका मानना है कि चीजों को व्यवस्थित करने के लिए ब्रेक जरूरी है. ‘‘उस वक्त हर कोई मुझसे कहता था कि मैं अच्छे ऑफर ठुकराकर अपने को ‘‘बर्बाद’’ कर रही हूं. लेकिन मैं जानती थी कि मुझे कुछ नहीं मिलेगा तब भी मैं चैन से रहूंगी. मैं जहां से आई हूं और जो मेरी आकांक्षा है, उसमें मैंने इतनी लोकप्रियता और कामयाबी की उम्मीद नहीं की थी.’’ कई लोगों को नहीं मालूम कि 2009 में साक्षी ने आशुतोष राणा के साथ फिल्म कॉफी हाउस की थी जो हिट नहीं हुई.
बेहद विनम्र स्टार
बेहद विनम्र और लो-प्रोफाइल साक्षी को अपने ऊपर काफी भरोसा है. वे बहुत व्यावहारिक भी हैं. उनके पास विज्ञापनों की भरमार है और कई बॉलीवुड सितारों से भी ज्यादा उनकी मांग है. साक्षी पिछले दो साल में 15 विज्ञापनों की शूटिंग कर चुकी हैं. हाल में एक कंज्यूमर सर्वे में साक्षी सबसे भरोसेमंद स्टार में माधुरी दीक्षित और कैटरिना कैफ के साथ टॉप 5 स्थान पर हैं. हालांकि उन्हें अपने काम के अस्थायी होने का भी एहसास है. वे कहती हैं, ‘‘कहानी घर घर की में मैं लीड रोल कर रही थी तो बालाजी में मेरी काफी पूछ थी. और जब दूसरे प्रोडक्शन हाउस में दूसरे स्तर की भूमिका करने लगी तो वहां व्यवहार बदल गया. बालाजी में मेरी पूछ इतनी क्यों है? इसलिए कि मैं लीड रोल कर रही हूं, इसलिए नहीं कि मैं साक्षी तंवर हूं. मैं इसे खूब समझती हूं.’’
-साथ में गीतिका गंजु धर