
बीस मार्च की दरम्यानी रात पंजाब पुलिस शंभू (पटियाला-अंबाला राजमार्ग पर) और खनौरी (संगरूर-जींद सीमा) बॉर्डर के किसान यूनियन के विरोध स्थलों पर टूट पड़ी, जहां फरवरी 2024 से प्रदर्शन चल रहे थे. पंजाब पुलिस ने सड़क पर बने किसानों के सभी अस्थायी ठिकानों को ढहा दिया. माना गया कि यह पिछले एक दशक में प्रदर्शनकारी किसानों के खिलाफ सबसे सख्त कार्रवाइयों में से एक थी.
उससे पहले चंडीगढ़ में केंद्रीय मंत्रियों शिवराज सिंह चौहान, प्रल्हाद जोशी और पीयूष गोयल से मिलने के बाद लौट रहे किसान मजदूर मोर्चा के नेता सरवन सिंह पंधेर और संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनैतिक) के नेता जगजीत सिंह दल्लेवाल को पुलिस ने हिरासत में ले लिया. विरोध स्थलों को जबरन खाली कराया गया और सैकड़ों किसानों को पकड़ लिया गया. (बाद में, 24 मार्च को करीब 800 लोगों को छोड़ दिया गया और आने वाले दिनों में 450 और को जाने देने का वादा किया गया).
यह कदम पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान के नजरिए में अहम बदलाव को दिखाता है. वे पहले कॉमेडियन और बतौर नेता करियर बनाने के दौर में प्रदर्शनकारी किसानों के हक में हुआ करते थे, लेकिन अब वे खुद को शासन पर मजबूत पकड़ रखने वाले नेता के रूप में स्थापित करने की कोशिश में हैं. उनकी सरकार ने हड़ताली राजस्व अधिकारियों पर भी कार्रवाई की है और ड्रग तस्करों के खिलाफ बुलडोजर मुहिम चलाई गई है. लगता है मान के ये कड़े कदम पंजाब में अपना इकबाल कायम करने और राज्य के मामलों में आम आदमी पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व के बढ़ते दबदबे पर संतुलन की रणनीति है.
पुलिसिया कार्रवाई से पहले मान के कृषि मंत्री गुरमीत सिंह खुडियां किसान नेताओं और केंद्रीय मंत्रियों की बैठक में शामिल थे, जहां दोनों पक्ष कथित तौर पर 4 मई को फिर से मिलने और देश भर में संबंधित पक्षों से बातचीत करने पर राजी हुए थे. लेकिन मान बेचैन थे. उन पर बार-बार प्रदर्शनकारियों के आगे झुकने के आरोप लग रहे थे, सरकार में कई लोगों का मानना था कि लगातार राजमार्ग की नाकेबंदी से राज्य की अर्थव्यवस्था का नुक्सान हो रहा है, जिससे खासकर व्यापारी और शहरी आबादी परेशान है.
माना जाता है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में इन मतदाताओं का एक बड़ा हिस्सा आप से दूर चला गया. 20 मार्च की कार्रवाई से एक पखवाड़े पहले, मान सरकार ने प्रमुख किसान नेताओं बलबीर सिंह राजेवाल, रुल्दू सिंह मानसा और जोगिंदर सिंह उगरहां को हिरासत में ले लिया था, जिससे चंडीगढ़ में मुख्यमंत्री के आवास के बाहर विरोध प्रदर्शन करने की उनकी योजना नाकाम हो गई थी. मान 3 मार्च को किसान नेताओं के साथ बैठक से भी बाहर निकल गए थे.
लगभग उसी वक्त उनकी सरकार लुधियाना में राजस्व अधिकारियों के खिलाफ टूट पड़ी, जो अपने कुछ सहयोगियों के खिलाफ सतर्कता कार्रवाई के विरोध में हड़ताल पर थे. 4 मार्च को बनूर, मोहाली और खरड़ के औचक दौरे के बाद मान ने पंजाब राजस्व अधिकारी संघ के प्रमुख लछमन सिंह रंधावा समेत 15 तहसीलदारों और नायब तहसीलदारों को ड्यूटी में लापरवाही के लिए निलंबित कर दिया. उनका काम जूनियर अधिकारियों को सौंप दिया गया. जानकारों के मुताबिक, यह प्रशासनिक सफाई और नौकरशाही के प्रतिरोध के खिलाफ अपनी ताकत का इजहार है.
इसी के साथ सरकार ने नशा तस्करों के खिलाफ मुहिम तेज कर दी है. राज्य पुलिस ने 17 मार्च को अवैध निर्माण का हवाला देकर फिरोजपुर में फरार ड्रग डीलर गुरचरण सिंह के घर को ध्वस्त कर दिया. यह फरवरी के अंत में शुरू की गई कार्रवाई का हिस्सा था, जिसमें पटियाला, रोपड़, अमृतसर और लुधियाना में कथित ड्रग तस्करों की संपत्तियां ढहा दी गई थीं.
इसके साथ ही पंजाब योगी आदित्यनाथ स्टाइल के 'बुलडोजर न्याय' की ओर बढ़ने वाला पहला गैर-भाजपा शासित राज्य बन गया है. बुलडोजर भेजने से पहले मान ने पुलिस के शीर्ष अधिकारियों से मुलाकात की थी और उन्हें ड्रग तस्करी पर लगाम लगाने के लिए तीन महीने का समय दिया था. सरकार ने 78 तस्करों पर एक डोजियर तैयार किया है, जिनकी संपत्तियों को वे आगे निशाना बनाने की योजना बना रहे हैं लेकिन कानूनी अड़चनें आड़े आ रही हैं. मानवाधिकार समूहों ने नवंबर 2024 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देकर हाइकोर्ट का रुख किया है, जो इस तरह की कार्रवाई पर रोक लगाता है.
ये आक्रामक कदम ऐसे समय में उठाए जा रहे हैं जब मान अपनी सरकार के खिलाफ बढ़ती सत्ता विरोधी लहर से निबटने के साथ-साथ पार्टी विधायकों का दिल जीतने की कोशिश कर रहे हैं. पंजाब में लोकसभा चुनाव में आप को कुल 13 में से तीन सीटें ही मिलीं. इस निराशाजनक प्रदर्शन के बाद पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने पहले ही राज्य इकाई पर बनी अपनी पकड़ और मजबूत कर ली है.
दिल्ली के मुख्यमंत्री पद से हटे अरविंद केजरीवाल ने अब अपना पूरा ध्यान पंजाब पर केंद्रित कर लिया है, वे बैठकें कर रहे हैं, नीतिगत घोषणाएं भी कर रहे हैं और ड्रग्स तथा भ्रष्टाचार के खिलाफ पार्टी की कार्रवाई को और तेज कर रहे हैं. 21 मार्च को उन्होंने दिल्ली के पूर्व मंत्रियों मनीष सिसोदिया और सत्येंद्र जैन को क्रमश: आप का पंजाब प्रभारी और सह-प्रभारी नियुक्त किया. माना जाता है कि इन दोनों नेताओं के अपने पूर्ववर्तियों, राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा और संदीप पाठक की तुलना में भगवंत मान के साथ बेहतर कामकाजी संबंध हैं.
इस बीच मान के दो मंत्रियों लाल चंद कटारूचक और हरभजन सिंह ईटीओ को दिल्ली बुलाए जाने और उनके विभागों में फंड के उपयोग पर रिपोर्ट पेश करने के बाद मंत्रिमंडल में फेरबदल की अटकलें लगाई जा रही हैं. यह पिछले साल के अंत में बड़े पैमाने पर फेरबदल से पहले हुए घटनाक्रमों के समान है, जब मान को राज्य इकाई की बागडोर अपने धुर विरोधी अमन अरोड़ा को सौंपनी पड़ी थी.
पंजाब में आप के केंद्रीय नेतृत्व के बढ़ते दखल ने मान की राजनैतिक स्थिति को जटिल बना दिया है, खासकर ऐसे राज्य में जहां क्षेत्रीय भावनाएं प्रबल हैं. उनके विरोधियों ने केजरीवाल के बढ़ते प्रभाव को उजागर करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. उन्होंने राज्य के प्रमुख पदों पर वफादारों की नियुक्ति का हवाला दिया है, जबकि पार्टी प्रमुख ने मान की जगह लेने की अटकलों को कमतर आंका है. लुधियाना पश्चिम विधानसभा सीट के लिए आप के उम्मीदवार के रूप में राज्यसभा सांसद संजीव अरोड़ा की हाल ही में घोषणा ने पंजाब के माध्यम से संसद में प्रवेश करने की अरविंद केजरीवाल की कोशिशों को और हवा दे दी है.
भले ही मुख्यमंत्री भगवंत मान सख्त, अधिक बिंदास छवि पेश कर रहे हैं लेकिन उनके आलोचक उनके हालिया कार्यों को 'सुर्खियां बटोरने वाला' बताकर खारिज कर देते हैं. विपक्ष के नेता प्रताप सिंह बाजवा ने विधानसभा में सवाल किया, ''ड्रग तस्करों और गैंगस्टरों से संबंधों के कारण जिन पुलिसवालों को बर्खास्त किया गया है...उनके घरों पर बुलडोजर क्यों नहीं चला?'' मान की पार्टी के भीतर और बाहर सियासी लड़ाई अभी खत्म होने से बहुत दूर लगती है. पंजाब की राजनीति में आने वाले दिनों में कुछ दिलचस्प दांव-पेच देखने को मिल सकते हैं.
असली बॉस कौन?
> पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने प्रदर्शनकारी किसानों, आंदोलनकारी राजस्व अधिकारियों और नशा तस्करों से सख्ती बरतकर अपना नियंत्रण स्थापित किया लेकिन उनकी स्वायत्तता की परीक्षा अभी चल रही.
> अरविंद केजरीवाल की अगुआई में आप का केंद्रीय नेतृत्व पंजाब पर पकड़ मजबूत कर रहा है. उनके खास सहयोगी राज्य के मामले देख रहे हैं और उनकी राजनैतिक महत्वाकांक्षाओं को लेकर भी अटकलों का बाजार गर्म है.
