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कैसा है नारायण और सुधा मूर्ति का सत्तर वाला रोमांस?

मेलजोल के उन शुरुआती दिनों में वे दर्शन नाम की फ्रूट जूस शॉप पर मिलते, जहां वे 'क्वीन-साइज्ड ऑरेंज जूस' ऑर्डर करतीं, और मूर्ति 'किंग-साइज्ड बनाना मिल्कशेक' मंगवाते

मूर्ति दंपती : एन.आर. नारायण मूर्ति और सुधा मूर्ति
मूर्ति दंपती : एन.आर. नारायण मूर्ति और सुधा मूर्ति
अपडेटेड 1 अप्रैल , 2024

एन.आर. नारायण मूर्ति, संस्थापक और मानद चेयरमैन, इन्फोसिस

सुधा मूर्ति, लेखिका, परोपकारी, मूर्ति ट्रस्ट की अध्यक्ष और राज्यसभा सदस्य

मूर्ति दंपती के लिए जिंदगी हमेशा कुछ न कुछ सीखने और सुधारते रहने का नाम है. राज्यसभा की मनोनीत सदस्य के तौर पर अपनी जिंदगी के नए अध्याय में प्रवेश कर रहीं सुधा मूर्ति इस बात को इस तरह कहती हैं, "सीखने की कोई उम्र नहीं होती." फिर हैरत क्या कि पहले-पहल किताबों का प्रेम उन्हें साथ लाया. चित्रा बैनर्जी दिवाकरुनी की 2023 में छपी किताब ऐन अनकॉमन लव: द अर्ली लाइफ ऑफ सुधा ऐंड नारायण मूर्ति लिखने के लिए प्रेरित करने वाले इस दंपती को 1970 के दशक के मध्य में पुणे में एक साझा दोस्त ने मिलवाया. नारायण मूर्ति याद करते हैं, "मुझे पता था कि उन्हें प्रभावित करने की मेरी अकेली उम्मीद किताबों का मेरा प्रभावी संग्रह था." उनके संग्रह के विशिष्ट लेखकों में हंगेरियन-ब्रिटिश हास्य लेखक जॉर्ज माइक्स भी थे. वे मुस्कराते हुए जोड़ते हैं, "वे जॉर्ज माइक्स से बहुत ज्यादा प्रभावित थीं, मुझसे उतनी नहीं. मेरे लिए इतना ही काफी था."

मेलजोल के उन शुरुआती दिनों में वे दर्शन नाम की फ्रूट जूस शॉप पर मिलते, जहां वे 'क्वीन-साइज्ड ऑरेंज जूस' ऑर्डर करतीं, और मूर्ति 'किंग-साइज्ड बनाना मिल्कशेक' मंगवाते.

मगर 1981 में जब मूर्ति ने इन्फोसिस शुरू की, जिंदगी पूरी तरह बदलनी ही थी. सुधा कहती हैं, "कंपनी बनाना मजाक नहीं. बहुत त्याग करने पड़ते हैं, परिवार का सहारा चाहिए होता है." उस दौर के इन्फोसिस का मशहूर किस्सा यह था कि किस तरह उन्होंने अपनी बचत से अपने शौहर को फर्म शुरू करने के लिए 10,000 रुपए दिए. उन्हीं के शब्दों में, "जिंदगी में जो अकेला निवेश मैंने किया, वह ये 10,000 रुपए ही हैं."

पर मूर्ति ने ठान ली थी कि वे नई फर्म को परिवार के संगठन की तरह नहीं चलाएंगे. सो उन्होंने सुधा को स्टार्ट-अप की टीम में शामिल नहीं किया, "हालांकि उनमें सारे संस्थापकों से ज्यादा योग्यता थी." सुधा को इससे ठेस लगी, जिसका असर दो-एक साल रहा. पर बकौल सुधा, "अब जब मुड़कर देखती हूं तो लगता है, अच्छा हुआ कि इन्फोसिस का हिस्सा नहीं बनी. इन्फोसिस फाउंडेशन के जरिए मैंने कई जिंदगियों को छुआ. इसे मैं किसी भी दूसरे पद से ज्यादा अहमियत देती हूं." मूर्ति इसे इस तरह कहते हैं, "उन्हें हमेशा फर्स्ट रैंक मिली, इंजीनियरिंग के दस सेमेस्टर में, और आईआईएससी बेंगलूरू में भी... टेल्को में जाने वाली वे पहली महिला थीं. इसलिए मेरे मन में कोई संदेह न था कि वे वाकई बेटर हाफ (अर्धांगिनी) हैं."

युवा दंपती जरा ध्यान से सुनें

विवाहित हैं तो लड़ाई होगी ही. पहली बात, इसे स्वीकार कीजिए. दूसरी बात, जब एक व्यक्ति नाराज हो तो दूसरे को मगज ठंडा रखना चाहिए...दोनों के तेवर एक साथ नहीं चढ़ने चाहिए क्योंकि यह दरअसल लड़ाई बढ़ते रहने का नुस्खा है. तीसरी बात यह कि जिंदगी का मतलब है गिव ऐंड टेक. कोई लाइफ परफेक्ट नहीं होती, न कोई परफेक्ट कपल होता है...नंबर चार, इस पीढ़ी के सभी मर्दों को किचन में अपनी पत्नियों की मदद करनी चाहिए.

सबसे बड़ा पछतावा

मुझे नहीं पता, मुझे कोई अफसोस है भी या नहीं क्योंकि पहले दिन से ही हमने इन्फोसिस को मंझे हुए लोकतंत्र की तरह चलाया. कुछ बड़े ही साहस वाली चीजें थीं जो कि हमने नहीं कीं. हम उन्हें तभी कर सकते थे जब सच्चे लोकतंत्र की तरह काम नहीं कर रहे होते. इसलिए हो सकता है, कुछ हद तक हमारी ग्रोथ उससे कुछ कम रही हो जो हम हासिल कर सकते थे. पर यह पछतावे की बात नहीं

सर्वाधिक गर्व का पल

जब मैं नैस्डैक में उन चौंधिया देने वाली रोशनियों के सामने हाई स्टूल पर बैठा. जब हम नैस्डैक में लिस्टेड होने वाली पहली भारतीय कंपनी बने तो कई मायनों में हम कुछ ऐसा कर रहे थे, जो किसी भारतीय कंपनी ने पहले कभी नहीं किया था.

सबसे बड़ा पछतावा

मैं कभी तैरना नहीं सीख पाई. इस बारे में सोचकर खराब-सा लगता है क्योंकि मैं उस इलाके (उत्तर कर्नाटक) से आती हूं जहां तैरने को तो छोड़िए, पीने का पानी भी बड़ी मुश्किल से मिल पाता था.

सर्वाधिक गर्व का पल

जब मैंने सेक्स वर्कर बन चुकी 3,000 देवदासियों को सामान्य जिंदगी में वापस लाने में मदद की. वह मेरे सबसे ज्यादा गर्व का पल था. उस दिन मेरी इच्छाओं की झोली खाली हो गई, उस दिन मैंने कहा 'अब मैं ईश्वर से बात कर सकती हूं और कह सकती हूं कि मैंने तुम्हारे बच्चों की सेवा की'.

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