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सविता पूनिया, स्मृति मंधाना, अदिति अशोक: खेलों में डिफेंस, अटैक और कमबैक के 3 नाम

2023 में एशियाई खेलों में भारत को ऐतिहासिक कांस्य पदक दिलाने और हाल ही रांची में महिला एशियाई चैंपियंस ट्रॉफी जीतने के बाद सविता को एक बार फिर FIH गोलकीपर ऑफ द ईयर घोषित किया गया है.

सविता पूनिया
सविता पूनिया
अपडेटेड 12 जनवरी , 2024

सविता पूनिया

उनके नाम की अंग्रेजी स्पेलिंग को तोड़कर लोग उन्हें सेव-इटा (गोल बचाने वाली) और 'द ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया' भी कहते हैं. विरोधी टीमों के सामने सविता पूनिया अंतिम बाधा हैं, उनका दृढ़ संकल्प विरोधी टीम के प्रयासों को ध्वस्त कर देता है. उन्होंने टोक्यो 2020 ओलंपिक खेलों में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ नौ गोल बचाकर ये तय कर ‌दिया कि भारतीय महिला हॉकी टीम ओलंपिक में अपने पहले सेमीफाइनल में पहुंच जाए. 2021 के अंत से टीम की कप्तानी कर रहीं सविता के लिए ऐसी 'वीरता' अब सामान्य बात हो चली है. वे हंसते हुए कहती हैं, ''मेरी टीम को खुश होना चाहिए कि मैं उनकी गोलकीपर हूं.'' 2023 में एशियाई खेलों में भारत को ऐतिहासिक कांस्य पदक दिलाने और हाल ही रांची में महिला एशियाई चैंपियंस ट्रॉफी जीतने के बाद सविता को एक बार फिर FIH गोलकीपर ऑफ द ईयर घोषित किया गया है.

उस लड़की के लिए ये उपलब्धियां कम नहीं, जिसने 13 साल की उम्र तक हॉकी स्टिक नहीं उठाई थी. किसान दादा रणजीत सिंह पूनिया के प्रोत्साहन पर खेलना शुरू किया था. हरियाणा की रहने वाली सविता ऐसे घर में पली-बढ़ीं, जहां लड़कियों को ''लड़कों से कम'' नहीं समझा जाता. उन्हें इस बात से खुशी मिलती है कि अब वे अपने सेवानिवृत्त माता-पिता को ''सुकूनभरी, अच्छी ‌जिंदगी'' दे सकती हैं.

सविता पूनिया

टोक्यो 2020 में शानदार प्रदर्शन के बाद से महिला हॉकी में लोगों की दिलचस्पी बढ़ गई है. वे कहती हैं, ''सोशल मीडिया लोगों को हमारे बारे में बताता रहता है और उन्हें हमसे अच्छा प्रदर्शन करने की उम्मीद रहती है.'' सविता हॉकी इंडिया की आधिकारिक प्रायोजक ओडिशा सरकार और भारतीय खेल प्राधिकरण को समर्थन का श्रेय देती हैं. एक भारतीय-कनाडाई व्यवसायी से हाल ही में ब्याह करने वाली सविता को ''जब तक वे चाहें'' करियर जारी रखने को ससुराल वालों का समर्थन है.

स्मृति मंधाना

उनके सिल्की टच वाले शॉट्स देखते ही बनते हैं. स्मृति मंधाना ने 17 साल की उम्र से पहले ही अपने आदर्श सचिन तेंदुलकर की तरह देश के लिए खेलना शुरू किया. महाराष्ट्र में हल्दी के लिए मशहूर शहर सांगली की इस लड़की की सहेलियां जब 2013 की गर्मियों में पढ़ाई के नतीजों को लेकर चिंतित थीं तब स्मृति एक दूसरे ही इम्तहान का सामना कर रही थीं. महज 16 साल की उम्र में भारतीय टीम के लिए खेलते हुए उनके पास चूक की गुंजाइश नहीं थी. 2017 में जब यह बाएं हाथ की बल्लेबाज इंग्लैंड में वनडे विश्व कप में भारत के लिए ओपनिंग कर रही थी तो उस वक्त कई लोगों को पुरुष टीम के पूर्व कप्तान सौरव गांगुली की याद आई. उन्होंने उसी टूर्नामेंट में टॉन्टन में अपना पहला वनडे शतक जमाया. इत्तेफाक से यह वही जगह थी जहां गांगुली ने 1999 के विश्व कप में सबसे मशहूर शतक बनाया था. 2017 के विश्व कप ने भारतीय क्रिकेट को अगली पोस्टर गर्ल दी और देश में महिला क्रिकेट के परिदृश्य को पूरी तरह से बदल दिया.

स्मृति मंधाना

स्मृति के पिता की तरह उनके भाई भी क्रिकेटर थे. इस खब्बू बल्लेबाज का कहना है, ''मैंने अपने भाई के साथ क्रिकेट खेलना शुरू किया. मेरे पिता भी मेरे लिए ताकत के स्तंभ रहे हैं.'' स्मृति को महिला प्रीमियर लीग (WPL) के उद्घाटन सत्र की नीलामी में 3.4 करोड़ रुपए की सबसे बड़ी रकम मिली. नीलामी में उन्हें हासिल करने के लिए गजब की प्रतियोगिता हुई. वे रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर का नेतृत्व करती हैं. उनकी सफलता किसी एक फॉर्मेट तक सीमित नहीं है. उन्होंने केवल 67 पारियों में पांच एकदिवसीय शतक बनाए और इस फॉर्मेंट में 3,000 रन तक पहुंचने वाली वे सबसे तेज भारतीय (महिला) हैं. अगले साल टी20 विश्व कप के साथ महिलाओं के लिए एक और बड़ी परीक्षा होगी. यह स्मृति और टीम के लिए एक कदम आगे बढ़कर देश के लिए कप जीतने का मौका होगा.

अदिति अशोक

अदिति अशोक के लिए गोल्फ और कुछ भी हो, उबाऊ नहीं है. दो दशकों के अपने जुनून के बारे में वे बेहद संजीदगी से बात करती हैं, ''आपको धैर्य रखना होता है. आप कभी दिमाग को उस तरफ नहीं जाने दे सकते कि क्या होने वाला है. ऐन वक्त पर जब आपको लगता है कि आपने ठीक किया है, खेल कई बार आपको नीचे पहुंचा देता है.''

हो सकता है वे हाल के हांगझोउ एशियाई खेलों में अपने प्रदर्शन का विश्लेषण कर रही हों, जहां तीसरे दिन करियर के सबसे कम 61 अंक के दौर के बाद वे गोल्ड जीतने की सबसे प्रबल दावेदार थीं- और निर्णायक दिन आखिरी कुछ होल में हार गईं. फिर भी वे गोल्फ में पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला बनीं. टोक्यो ओलंपिक में प्रेरक प्रदर्शन के बाद अदिति ने खेल में काफी सुधार किया. इस साल उन्होंने दो LET (लेडीज यूरोपियन टुअर) खिताब-अंडालूसिया ओपन और केन्या लेडीज ओपन जीते और एलपीजीए टूर में पांच बार टॉप 10 में आईं.

अशोक के घर में गोल्फ पारिवारिक मामला है. रीयल एस्टेट में काम कर रहे उनके पिता ज्यादातर टूर्नामेंट में उनके कैडी (गोल्फर का साजो-सामान लेकर चलने वाला शख्स) होते हैं. उनकी मां, जो पूर्व HR प्रोफेशनल और रेडियो जॉकी हैं, उनकी मैनेजर हैं. अदिति कहती हैं, ''खेलते वक्त ऐसे लोगों का साथ होना मददगार होता है जिन्हें आप अच्छी तरह जानते हैं.''

अदिति अशोक

महज ढाई साल की उम्र में अदिति ने बेंगलूरू के कर्नाटक गोल्फ एसोसिएशन में पहली बार पुटर पकड़ा. टीवी पर देर रात पीजीए टूर्नामेंट देखते हुए वे बड़ी हुईं. वे कहती हैं, ''महिला गोल्फरों के बारे में जानती थी पर उन्हें कभी खेलते नहीं देखा था... ताकि समझ पाती कि महिलाओं का खेल पुरुषों के खेल से कैसे अलग होता है.'' वे 14 की उम्र में वूमेंस इंडिया ओपन में शीर्ष 10 में आईं. ''तभी मुझे लगा कि मेरा खेल अच्छा है और इसमें मेरी अच्छी संभावना है.'' 2016 में हीरो वूमेंस इंडियन ओपन जीतकर वे एलईटी टूर्नामेंट जीतने वाली पहली भारतीय महिला गोल्फर बनीं.

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