
सौराष्ट्र के जामनगर में समंदर के किनारे बसा है जोड़ियाबंदर गांव. इस गांव से लोग आजादी के पहले कराची और मुंबई मजदूरी करने जाते थे. राम सवानी के दादा भी कराची में राजमिस्तरी का काम करने गए थे. देश के बंटवारे के बाद उनके दादा वापस आ गए. सवानी के पिता ने भी यही काम किया और चाचा ने भी. उनकी जिंदगी में जैसे तय था कि सबको यही काम करना है.
सवानी कहते हैं, "बचपन से ही जब कभी मैं किसी ऐतिहासिक स्मारक को देखने जाता था तो उसकी स्थिति देखकर मुझे बेचैनी होती थी. लगता था कि राजमिस्तरी का ही काम करना है तो कुछ ऐसा क्यों न किया जाए जिससे ऐतिहासिक स्मारक वापस अपने गौरवशाली रूप में आ सकें. स्कूल जाने के बाद जो समय मिलता था, वह परिवार के लोगों के साथ काम करने में गुजरता था. काफी कुछ सीखा लेकिन एक बेचैनी रही. यही वजह थी कि मैंने यह तय किया कि स्कूल के बाद सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करनी है."

भारत की 250 से अधिक ऐतिहासिक इमारतों के रिस्टोरेशन का काम करने वाली कंपनी सवानी हेरिटेज कंजर्वेशन प्राइवेट लिमिटेड के संस्थापक राम सवानी बताते हैं कि जब वे पढ़ रहे थे तो उनके चाचा शांतिलाल सवानी मुंबई में काम कर रहे थे. शांतिलाल सवानी ने राजमिस्तरी के अलावा पत्थर तराशने और लकड़ी का काम भी सीखा था.
चाचा से राम को यह पता चला कि एसोसिएट सीमेंट कंपनी (एसीसी) ने ठाणे में एक रिसर्च सेंटर शुरू किया है. इसमें चूना पत्थर को लेकर रिसर्च हो रही है. इसी रिसर्च के आधार पर एसीसी कुछ ऐतिहासिक विरासतों को रिस्टोर करने का काम कर रही थी. इनमें से कुछ प्रोजेक्ट पर राम सवानी के चाचा काम करते थे. राम अपने चाचा से इस काम की बारीकियों के बारे में खूब बातें करते थे.
राम सवानी के चाचा जो छिटपुट काम कर रहे थे, उसे संस्थागत रूप देते हुए राम सवानी ने 2005 में सवानी हेरिटेज कंजर्वेशन प्राइवेट लिमिटेड का गठन किया. इसमें राम के अलावा उनके चाचा और भाई शामिल थे. काफी प्रयास के बाद राम की कंपनी को बॉम्बे यूनिवर्सिटी के रिस्टोरेशन का काम मिला. इसी यूनिवर्सिटी से राम ने ग्रेजुएशन की पढ़ाई पार्ट टाइम में की थी.
कंपनी के शुरुआती दिनों के काम के बारे में राम सवानी बताते हैं, "हमने जी-जान लगा दिया इस काम में. काम पूरा होने के बाद इसे यूनेस्को का अवॉर्ड मिला. यह हमारे लिए एक बेहतरीन शुरुआत थी. इसके बाद हमें अलग—अलग प्रोजेक्ट मिलने लगे. 2005 में हमने 43 लाख रुपए का काम किया. 2006 में हम मल्टी सिटी प्रोजेक्ट करने लगे. 2010 तक हमारा टर्नओवर बढ़कर छह करोड़ रुपए का हो गया. हमने 25 प्रोजेक्ट पूरे कर लिए थे."
राम को लग रहा था कि अब काम ने रफ्तार पकड़ ली है. लेकिन 2010 में ही उनके बड़े भाई का निधन हो गया. यह राम के लिए निजी आघात तो था ही, कंपनी के लिए भी बड़ा झटका था. चुनौती इसलिए भी बड़ी थी क्योंकि 2010 में कंपनी ने मल्टी स्टेट प्रोजेक्ट की शुरुआत की थी. राम सवानी कहते हैं, "भगवद्गीता कहती है कि योग—कर्मसु कौशलम्. यानी योग से कर्मों में कुशलता आती है.
हमारी सबसे बड़ी प्रेरणा यही रही है. हम चुनौतियों में डिगे नहीं बल्कि पूरी प्रतिबद्धता के साथ काम करते रहे." 107 करोड़ रुपए से अधिक के टर्नओवर वाली कंपनी चलाने वाले राम सवानी के बारे में एक रोचक तथ्य यह है कि उन्हें भगवद्गीता के तकरीबन 70 प्रतिशत श्लोक कंठस्थ हैं. इसकी वजह बताते हुए वे कहते हैं, "मेरे जीवन पर पांडुरंग शास्त्री आठवले का बहुत प्रभाव रहा है. ठाणे में उनका तत्वज्ञान विद्यापीठ है. यहां मैंने दर्शन और प्राचीन ग्रंथों का अध्ययन किया. मुझे जो ज्ञान मिला, उससे देश की ऐतिहासिक धरोहरों के संरक्षण के मेरे काम में मुझे काफी मदद मिलती है."
राम सवानी की कंपनी को ऐतिहासिक विरासत के संरक्षण में उत्कृष्ट काम करने के लिए कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिले हैं. इनमें 10 पुरस्कार तो यूनेस्को से मिले हैं. राम सवानी की कंपनी ने देश की कई बेहद महत्वपूर्ण ऐतिहासिक विरासतों का रिस्टोरेशन किया है. सिर्फ मुंबई में बॉम्बे यूनिवर्सिटी के अलावा बॉम्बे हाइकोर्ट, आइसीपी फोर्ट हेरिटेज, राजाबाई क्लॉक टावर और ताज महल पैलेस के अलावा कई ऐतिहासिक विरासत के रिस्टोरेशन का काम सवानी हेरिटेज ने किया है.
मुंबई के अलावा कोणार्क सूर्य मंदिर, अंडमान की सेलुलर जेल, दीव के पानी कोठा किला, जूनागढ़ का नवाब महाबत खानजी मकबरा, जूनागढ़ में ही ताज महल की तरह दिखने वाला बहाउद्दीनभाई मकबरा के अलावा देश की कई प्रमुख ऐतिहासिक विरासत का जीर्णोद्धार राम सवानी की कंपनी ने किया है.
राम सवानी बताते हैं, "आज हमारे पास 500 करोड़ रुपए से अधिक के प्रोजेक्ट्स हैं. हमारे लिए यह सिर्फ कारोबार नहीं बल्कि भारत की धरोहरों का संरक्षण एक पैशन बन गया है. इस वजह से कुछ प्रोजेक्ट में हमें नुक्सान भी होता है. हम मानते हैं कि नुक्सान की रिकवरी तो आगे के किसी प्रोजेक्ट में हो सकती है लेकिन डिफेक्टिव वर्क की रिकवरी नहीं हो सकती."
फिलहाल सवानी की कंपनी पूरे देश में सात ऐतिहासिक शिव मंदिरों को रिस्टोर करने का काम कर रही है. इस बारे में वे बताते हैं, "यह बेहद चुनौतीपूर्ण है क्योंकि कई मंदिर 800 से 900 साल पुराने हैं. मुंबई के पास अंबरनाथ का शिव मंदिर 700 साल से अधिक पुराना है.
यहां न सिर्फ हम मंदिर को रिस्टोर कर रहे हैं बल्कि वाराणसी के काशी विश्वनाथ की तरह कॉरिडोर भी बना रहे हैं. सबसे चुनौतीपूर्ण काम महाराष्ट्र के परभनी में गुप्तेश्वर महादेव मंदिर का है. यह 11वीं सदी का मंदिर है. इसका पूरा फाउंडेशन जमीन के अंदर से दरक गया है. शिखर झुक गया है. हम पूरे मंदिर को खोल रहे हैं और फिर इसे नए सिरे से ओरिजनल मटीरियल के साथ रिस्टोर करेंगे."
राम सवानी के काम की सबसे बड़ी चुनौती यह है कि ऐतिहासिक धरोहरों को रिस्टोर करते समय उसे अपने मूल रूप में बनाए रखना. इसके लिए कंपनी ने एक लैब बनाया है. इसमें कई इंजीनियर और वैज्ञानिक काम करते हैं. साथ ही पुरातत्व का ज्ञान रखने वाले विशेषज्ञ भी इसमें काम करते हैं. इस बारे में राम सवानी कहते हैं, "सबसे बड़ी चुनौती होती है बिल्कुल उसी तरह का मटीरियल तैयार करना.
इसके लिए हमारा अपना लैब है. हम जिस ऐतिहासिक बिल्डिंग का काम लेते हैं, पहले उसका विस्तृत अध्ययन करते हैं. फिर बिल्कुल ओरिजनल मटीरियल की तरह नया मटीरियल तैयार हो जाता है. उदाहरण के तौर पर ओडिशा के स्मारकों को चूने के साथ बेल के फल को मिलाकर बनाया गया है. वहीं दक्षिण भारत और गुजरात-महाराष्ट्र में बेल के फल की जगह गुड़ मिलाया गया है. जूनागढ़ के 2,000 साल पुराने उपरकोट महल को रिस्टोर करने में हमने 90 टन गुड़ का इस्तेमाल किया."
2010 से अब तक उनकी कंपनी ने 250 से अधिक ऐतिहासिक धरोहरों को रिस्टोर करने का काम किया है. अब उनका लक्ष्य 2030 तक इस संख्या को 1,000 के पार ले जाने का है. यानी अगले सात साल में 750 ऐतिहासिक धरोहरों को उनका पुराना गौरव वापस दिलाने का लक्ष्य!