
बचपन बहुत मुश्किल में बिताने के बाद आसमान छूने में जिन लोगों को बहुत कम वक्त लगा है उनमें मेट्रो हॉस्पिटल समूह के संस्थापक और विख्यात हृदय रोग विशेषज्ञ पद्मविभूषण डॉ. पुरुषोत्तम लाल भी हैं. डॉ. लाल खुद बताते हैं, ''1972 में हमारे घर में बिजली नहीं थी. कुछ दिन बाद मैं जब मेडिकल कॉलेज गया तो उस दौरान हमारे गांव पत्तो (वर्तमान में पंजाब के मोगा जिले में) में बिजली आई. हमारे घर में बिजली फिटिंग का काम ठीक से नहीं हुआ था और मेरे पिता को करेंट लग गया. घर में सिर्फ मां थीं. वे कुछ समझ नहीं सकीं. उन्होंने पिता को अचेत पाया. वहां इलाज की कोई सुविधा नहीं थी और उनका निधन हो गया. तब मैं मेडिकल कॉलेज में था."

पद्मभूषण और पद्मविभूषण से सम्मानित डॉ. लाल के पिता साइकिल रिपेयरिंग का काम करते थे. डॉ. लाल पत्तो गांव में पैदा हुए और वहीं 5वीं कक्षा तक पढ़े और माता-पिता के साथ रहे. इसके बाद वे 12 मील दूर नाना के गांव गए और वहां नानाजी की सेवा करने लगे और वहीं रहने लगे. वहां उन्होंने भैंस दुहने से लेकर घास काटने तक का काम किया. पिता साइकिल रिपेयर करते थे. वे बताते हैं, "मुझे और मेरे सभी सातों भाइयों ने भी साइकिल रिपेयरिंग की थी."
उनके एक भाई का निधन हो गया है. डॉ. लाल अपने भाइयों में तीसरे नंबर के थे. उनके पिता का निधन चालीसेक साल में हो गया. वे बचपन में चिमनी की रोशनी में पढ़ते थे. डॉ. लाल और उनके सभी भाई पढ़ने में बहुत मेधावी थे, हमेशा फर्स्ट आए. स्कूल में उनके सबसे फेवरिट टीचर ही थे. वे कहते हैं, "टीचर हमें पढ़ने के लिए उत्साहित करते थे. हम जल्दी से टीचर बनना चाहते थे."
डीएवी जालंधर में उन्होंने शुरुआती पढ़ाई की. फिर अमृतसर मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस किया. उनके सबसे बड़े भाई इंजीनियर थे और लुधियाना में थे. उन दिनों फर्स्ट आने वाले बच्चों को डीएवी कॉलेज वाले ले जाते थे. वे बहुत मदद करते थे. सरकार हर महीने 75 रु. स्कॉलरशिप देती थी, 60 रु. कॉलेज देता था, साथ में रहना-खाना मुफ्त. इससे गुजारा चल जाता था. वे बताते हैं, "हम 135 रु. महीने घर भेजने लगे तो पिता की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. इसलिए क्योंकि मेरे पिता रोज औसतन 4 रुपए तक ही कमा पाते थे."
एमबीबीएस के दौरान ही डॉ. लाल को महसूस हो गया था कि भारत में पैसा कमाना बहुत मुश्किल है. उन्होंने अमृतसर में एमबीबीएस की इंटर्नशिप की लेकिन हाउस जॉब नहीं किया. उनके भाई ने कुछ डॉलरों और अमेरिका के लिए टिकट का इंतजाम किया. उन्हें एक परिचित का फोन नंबर दिया गया था, उनसे कर्ज और साथ रहने की बात हो गई थी. मिलने का जो समय तय हुआ उसमें विघ्न पड़ गया क्योंकि कनेक्टिंग फ्लाइट छूट गई. रात भर एम्स्टर्डम एयरपोर्ट पर रहना पड़ा. जब अगले दिन ह्यूस्टन पहुंचे. उन्होंने करीब 200 बार फोन किया लेकिन लगा जैसे किसी ने फोन उठाकर रख दिया था. टैक्सी से जाने की हिम्मत नहीं हो रही थी क्योंकि जेब में 8 डॉलर थे. उन्होंने 30 घंटे एयरपोर्ट पर बिताए फिर एक भारतीय परिवार के साथ उनके घर गए. वहां उन्हें एक रात का सहारा मिला और अगले दिन उस परिचित से मुलाकात हुई.
उनके घर गया तो उनकी बुजुर्ग सास की देखरेख और लॉन की घास काटने की जिम्मेदारी दी. वे बताते हैं, "मुझे भारत छोड़ने का बहुत दुख होता था. मैं रोता था. एक हफ्ते वहां रहने के बाद मैंने उनसे सौ डॉलर कर्ज लिया और शिकागो पहुंच गया. अब मेरे पास 108 डॉलर हो गए." शिकागो में जिसके पास जाना था वह आदमी उन्हें लेने नहीं आया तो एक दूसरे मित्र की बहन को फोन किया. वह आई और घर ले गई. उसके घर में सोने की जगह ही बहुत कम थी. अप्रैल, 1976 में वे शिकागो में थे और पांच-छह जगह नौकरी का आवेदन दिया था. इसी बीच उन्हें इंटरव्यू की कॉल मिल आई. पहली बार जब वे ऑपरेशन थिएटर पहुंचे तो हालत खराब हो गई. वे बताते हैं, ''मुझे तो ग्लव्ज तक पहनने नहीं आते थे. लेकिन मैंने बहुत तेजी से चीजें सीख लीं."
28 मार्च, 1982 में शिकागो में शादी हुई. उनकी पत्नी पूनम लाल का परिवार वहीं था और आनन-फानन शादी हो गई. इसके बाद 1987 में एक बार डॉक्टर साहब पत्नी के साथ भारत आए. उन्हें किसी ने बताया कि साउथ इंडिया देखने लायक है तो पत्नी समेत वे बेंगलूरू चले गए. पंजाबी के साथ अमेरिकी लहजे वाली अंग्रेजी का प्रयोग करते हुए डॉ. लाल बताते हैं, ''वहां से हम तिरुपति दर्शन के लिए गए. होटल के नजदीक ही अपोलो अस्पताल था. मैं दिलचस्पी की वजह से अस्पताल तक चला गया. हमारा इंप्रेशन यह था कि इंडिया में अभी कैथ लैब आना बाकी है. वहां रिसेप्शनिस्ट से मैंने पूछा कि यहां कैथ लैब है क्या. उसने बताया यहां एंजियोग्राफी होती है और मेरा परिचय पूछा. इसके बाद मैं होटल चला गया. अगले दिन सुबह अपोलो के वरिष्ठ लोग मेरे कमरे में आ गए और गर्मजोशी से बातें कीं और मैं उस अस्पताल से जुड़ गया."
दरअसल, जिस होटल में वे रुके थे, वह अपोलो वालों का ही था और रिसेप्शनिस्ट से यह सूचना शीर्ष प्रबंधन तक पहुंची थी. बाद में उन्हें दिल्ली अपोलो के कार्डियोलॉजी विभाग का हेड भी बनाया गया, जिसे छोड़ने के बाद उन्होंने मेट्रो अस्पताल, नोएडा सेक्टर-12 से चिकित्सा की दुनिया का अपना नया सफर शुरू किया.
बकौल डॉ. लाल, ''अभी मेट्रो के 10 अस्पताल हैं. 11वां मोगा में बन रहा है. लेकिन उसका काम फंड के कारण अटका हुआ है. मेट्रो ग्रुप ऑफ हॉस्पिटल्स में 10,000 कर्मचारी हैं जिनमें करीब 300 कर्मचारी 1997 से अभी तक हमारे साथ जुड़े हुए हैं, इनमें कार्डियोलॉजिस्ट भी शामिल हैं."
पेशे के बारे में उनका कहना है, ''जिंदगी एक बार मिलती है. हमें ताकत मिलती है सिर्फ एक जगह से और वह है पेशेंट को ठीक करने से. आप पेशेंट-डॉक्टर रिलेशंस खराब होते जा रहे हैं. डॉक्टर पेशेंट को अपना रिश्तेदार समझे तो उसे हमेशा तारीफ मिलेगी."
डॉ. लाल ने ओपन हार्ट सर्जरी के विकल्प के तौर पर 20 प्रोसीजर विकसित किए. इनमें नवंबर, 1989 में अपोलो चेन्नै में किया गया स्लो रोटेशनल एंजियोप्लास्टी प्रोसीजर भारत में पहला था. इसे 33 साल के शख्स, जो कि खुद एक जनरल सर्जन थे, पर किया गया. उनकी आर्टरी 100 प्रतिशत ब्लॉक थी और बाइपास सर्जरी कराने की सलाह दी गई थी. डॉ. लाल का कहना है कि इस मरीज को 29 साल बाद भी दिल की कोई दिक्कत नहीं हुई. डॉ. लाल की तरफ से विकसित बगैर सर्जरी वाले प्रोसीजरों में डायमंड ड्रिलिंग, स्टेंटिंग, वॉल्व खोलना, दिल का छेद बंद करना और वॉल्व रिप्लेसमेंट प्रमुख हैं.
उनका नाम कई बार लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दर्ज हो चुका है. डॉ. लाल ने अपने दम पर सबसे ज्यादा एंजियोप्लास्टी और स्टेंटिंग प्रक्रियाओं को अंजाम दिया और इसके लिए नेशनल फोरम ऑफ इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने उन्हें 'डिस्टिंग्विस्ड एचीवमेंट अवॉर्ड ऑफ हाइएस्ट ऑर्डर’ से सम्मानित किया. इंटरवेंशनल कॉर्डियोलॉजी के 20 से ज्यादा प्रोसीजर तैयार किए और भारत लाए.
जर्मनी के विख्यात इंटरवेंशनल कॉर्डियोलॉजिस्ट प्रोफेसर अदनान कस्त्राती ने डॉ. लाल को "फादर ऑफ इंटरवेंशनल कॉर्डियोलॉजी इन इंडिया’ करार दिया, जिसे डॉ. लाल जीवन की बड़ी उपलब्धि मानते हैं. उनकी पत्नी अस्पताल का प्रशासनिक कामकाज देखती हैं. डॉ. लाल कहते हैं, ''मेरे सिग्नेचर बदलते हैं, इसलिए बड़ी दिक्तक होती है."
काम के प्रति उनकी दीवानगी के बारे में मेट्रो अस्पताल की डायरेक्टर और उनकी पत्नी पूनम बताती हैं, "शिकागो में शादी के बाद 29 मार्च, 1982 में हम घर आए तो डॉक्टर साहब घर से गायब हो गए. पता चला कि वे अस्पताल गए हैं. उनकी तीन पत्नियां हैं- पहली कैथ लैब, दूसरी मोबाइल और तीसरी मैं."
आपकी अरेंज मैरिज हुई? यह पूछने पर डॉ. लाल ने कहा, "सेमी अरेंज." पूनम बताती हैं कि डॉक्टर साहब अभी दीवाली के दिन ही सुबह-सुबह अस्पताल चले गए और दोपहर बाद लौटे. जाहिर है, दिल का यह डॉक्टर बहुत दिल लगाकर मरीजों के दिल का इलाज करता है.