
कार, घड़ी, कपड़े, बेल्ट, जूते—उन्हें किसी चीज का शौक नहीं है. "बच्चे बर्थडे पर कभी कुछ गिफ्ट लाकर दे देते हैं तो लौटा देता हूं या वे चीजें मुझसे खो जाती हैं", 650 करोड़ रुपए के टर्नओवर वाली कंपनी एमडीपीएच शुरू करने वाले प्रकाश अग्रवाल कहते हैं.
उनके बेटे अंशुल जोड़ते हैं, "पापा ने आज तक लैपटॉप भी नहीं चलाया. अपने पुराने तरीके से ही पूरा काम करते हैं." जो भी पाना वह कारोबार को लौटा देना, शायद यही उसूल है जो न सिर्फ अग्रवाल को जमीन से जोड़े रखता है, बल्कि उनके कारोबार को भी लगातार बढ़ने का ईंधन दे रहा है.

प्रकाश तीन भाइयों में सबसे बड़े हैं. उनका परिवार इंदौर के रानीपुरा में रहा करता था. यह इलाका इंदौर का सबसे पुराना और सबसे बड़ा होलसेल मार्केट है. यहां उनकी पुश्तैनी दुकान हुआ करती थी जिसके ऊपर पूरा परिवार रहता था. चूंकि उनके पिता लंबे समय से किराने की दुकान चला रहे थे, सो प्रकाश से भी यही उम्मीद की जाती थी कि वे इसी काम को आगे बढ़ाएंगे. प्रकाश काम को आगे बढ़ाना तो चाहते थे, लेकिन महज दुकान चलाकर नहीं, खुद का प्रोडक्ट बनाकर.
प्रकाश बताते हैं, "मुझे खुद का प्रोडक्ट बनाना था क्योंकि मेरे दिल में कुछ ऐसा बनाने की इच्छा थी जिसकी क्वालिटी पर मेरा पूरा नियंत्रण हो. लेकिन इतने पैसे भी नहीं थे कि किसी बड़े प्रोडक्ट की मैन्युफैक्चरिंग शुरू कर सकूं." अग्रवाल ने उस वक्त कई चीजों की मैन्युफैक्चरिंग का प्रयास किया—हेयरऑइल, शैंपू, साबुन, कपड़े धोने का साबुन, मगर कहीं भी उन्हें सफलता नहीं मिली.
’80 के दशक में प्रकाश कपड़े की एक दुकान में सेल्समैन का काम करते रहे. आर्थिक समस्याओं और लगातार विफल हो रहे प्रयासों से परेशान प्रकाश की मां ने उन्हें समझाया कि उन्हें बेंगलुरू जाना चाहिए. बेंगलुरू (उस समय बैंगलोर) अगरबत्ती उत्पादन का सबसे बड़ा केंद्र हुआ करता था. प्रकाश की मां चाहती थीं कि वे वहां के किसी बड़े अगरबत्ती ब्रांड की एजेंसी ले लें और उनके प्रोडक्ट इंदौर में बेचें.
लेकिन प्रकाश को अपने सपने से समझौता मंजूर नहीं था. वे एफएमसीजी (फास्ट मूविंग कंज्यूमर गुड्स) की दुनिया का यह मिथक तोड़ना चाहते थे कि अच्छी क्वालिटी की अगरबत्तियां केवल बेंगलुरू से आ सकती हैं. उन्होंने फैसला किया कि वे अगरबत्तियां ही बनाएंगे और इंडस्ट्री में यह साबित करेंगे कि इंदौर भी उत्पादन का केंद्र बन सकता है.
तीन-चार कारोबारों में विफल होने के बाद अंतत: 1992 में उन्होंने मैसूर दीप परफ्यूमरी हाउस यानी एमडीपीएच नाम से अगरबत्ती की मैन्युफैक्चरिंग अपने छोटे से गराज से शुरू की.
'पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण’ के नाम से उन्होंने मार्केट में अपनी सबसे पहली अगरबत्ती उतारी. वे बताते हैं, "दाम थोड़े ज्यादा होने के बावजूद अगरबत्ती हिट हो गई. उसे खरीदारों ने खूब पसंद किया. तब मुझे आत्मविश्वास हुआ कि आगे इसी कारोबार में जमना है." उन दिनों यह आम था कि देश के किसी भी कोने में अगरबत्ती बना रही कंपनियां अपने पैकेट पर बेंगलुरू का पता डालती थीं. कई कस्टमर भी ऐसा मानते थे कि बेंगलुरू की अगरबत्ती ही अच्छी होती है. साल 2000 तक एमडीपीएच भी अपने पैकेट्स पर बेंगलुरू का ही पता डाला करता था. पर साल 2000 में कुछ बदल गया.
इस साल एमडीपीएच ने 'जेड ब्लैक’ के नाम से अपनी प्रीमियम रेंज निकाली. अगरबत्ती की दुनिया में यह प्रयोग बिल्कुल नया था. इसकी पैकेजिंग काले रंग की थी और पैकेट पर न्यूनतम बातें लिखी गई थीं. मानो अगरबत्ती का पैकेट ही खुद को अन्य अगरबत्तियों से बेहतर बताता हो. लेकन इसमें एक डर इस बात का भी था कि पैकेट पर बिना देवी-देवता की तस्वीर, और अंग्रेजी में लिखे नाम को देख इसे कोई खरीदेगा भी या नहीं.
प्रकाश बताते हैं कि पैकेट पर देवी-देवता को रखना उन्हें शुरू से ही अच्छा नहीं लगता था क्योंकि इस्तेमाल के बाद अगरबत्ती के डिब्बे कचरे में चले जाते हैं और लोगों के पांव के नीचे भी पड़ सकते हैं. देवी-देवताओं की तस्वीर और चटख रंग न इस्तेमाल करने के अलावा अग्रवाल ने यह भी तय किया कि अब वे अगरबत्तियों के डिब्बों पर बेंगलूरू का नहीं, इंदौर का ही पता छापेंगे.
जेड ब्लैक ने आते ही धूम मचा दी. अग्रवाल को देश भर से इस अगरबत्ती की सप्लाइ के लिए फोन आने लगे. और यह ब्रांड इतना मशहूर हो गया कि एमडीपीएच ने जेड ब्लैक के लोगो को अपने अन्य प्रोडक्ट्स पर इस्तेमाल करना शुरू कर दिया. प्रकाश बताते हैं, "अब तक अगरबत्ती इंडस्ट्री में साउथ इंडिया का ही बोलबाला था. हमारा ऐसा पहला ब्रांड था जो नॉर्थ का होते हुए बड़ा बन गया था." अगरबत्ती का कारोबार खुशबुओं का कारोबार है. ऐसे में मार्केट में अपनी पहचान बनाए रखना और साथ ही कुछ नया करते जाना, दोनों ही आवश्यक हैं.
अग्रवाल जेड ब्लैक के मार्केट में आने से जुड़ा एक दिलचस्प किस्सा सुनाते हैं, "मुझे असल में जेड ब्लैक की फ्रेगरेंस शुरुआत में पसंद ही नहीं आई थी. मगर उन दिनों मेरा उसके सैंपल लेकर दिल्ली जाना हुआ. ट्रेन में मैं अगरबत्ती के पैकेट्स के साथ सफर कर रहा था. आस पास बैठे लोग मानो दीवाने हो गए. कई लोगों ने कहा, क्या जबरदस्त खुशबू है. मैं तब समझा कि खुद की राय से ज्यादा कंज्यूमर की राय महत्वपूर्ण है."
कंज्यूमर की राय का नतीजा यह रहा कि जेड ब्लैक आज भारत के शीर्ष तीन अगरबत्ती ब्रांड में शामिल है.
लेकिन सफलता का यह सफर बिना कठिनाइयों के नहीं आया. साल 2000 में जेड ब्लैक को मिली ख्याति के बाद कंपनी बढ़ने लगी तो अग्रवाल ने एक दूसरी फैक्ट्री की शुरुआत की. मगर 2003 में इस नई फैक्ट्री में भीषण आग लग गई. ज्वलनशील अगरबत्तियों से बढ़ती हुई लपटों ने बेकाबू होकर पूरी फैक्ट्री को चपेट में ले लिया. यह कंपनी के लिए एक बड़ा वित्तीय झटका था.
इस दुर्घटना के बाद एमडीपीएच को एक बार फिर किराए की जगह लेकर नए सिरे से निर्माण शुरू करना पड़ा. कारोबार में एक वक्त ऐसा भी आया कि परिवार में फूट पड़ने लगी और भाइयों में अलगाव हो गया. मुश्किलों से अग्रवाल इतनी बार दो-चार हो चुके थे कि कोविड का दौर काटने में उन्हें कोई खास मुश्किल नहीं हुई. बल्कि कोविड के दौर ने उन्हें अपने प्रतिद्वंद्वियों पर बढ़त बनाने का मौका दिया.
31 साल के अपने इस सफर में प्रकाश उन सभी प्रोडक्ट्स की मैन्युफैक्चरिंग की ओर फिर से लौटे, जिनसे उन्हें शुरुआत में निराशा हाथ लगी थी. कंपनी के पास अपने ब्रांड्स में फिलहाल अगरबत्ती के अलावा धूपबत्ती, हैंड सैनिटाइजर, हैंड वॉश, खाने वाला तेल, एसेंशियल ऑइल, पैकेज्ड चाय, मॉस्किटो कॉइल्स, प्राकृतिक हेयर कलर, हीना, सोया चंक्स और कन्फेक्शनरी आइटम शामिल हैं. एमडीपीएच इंदौर में अपने 9,40,000 वर्गफुट के मैन्युफैक्चरिंग स्पेस में प्रति दिन 3.5 करोड़ से अधिक अगरबत्तियों का उत्पादन करता है. वे हर रोज अगरबत्तियों के 15 लाख पैकेट बेचते हैं.
हाल ही में एमडीपीएच ने न्यूयॉर्क में अपना ओवरसीज कार्यालय खोला है, जो कंपनी की वैश्विक आकांक्षाओं और अपने घरेलू बाजार से परे विस्तार करने की ओर एक मजबूत कदम है. कंपनी ने जेड ब्लैक के ब्रांड एम्बेसडर के तौर पर महेंद्र सिंह धोनी को छह साल पहले और ह्रितिक रौशन को तीन साल पहले साइन किया.
अग्रवाल मानते हैं कि बड़े ब्रांड एम्बेसडर के चलते उन्हें बेहतर पहुंच मिली है. मगर यह घर-घर में उनकी पहुंच की इकलौती वजह नहीं है. वे मानते हैं कि खुलकर मुफ्त सैंपल बांटना, कम दामों वाली छोटी पैकेजिंग बनाना, निरंतर डिस्ट्रीब्यूटर से जुड़े रहना और समय-समय पर आकर्षक स्कीमें लाते रहना भी उतना ही महत्वपूर्ण है.
आज भारत भर में कंपनी के स्वामित्व वाले 36 डिपो हैं, जिनका मुख्यालय इंदौर में है. एमडीपीएच की आज देवास नाका, सांवेर रोड, रामपिपलिया, देवास और क्षिप्रा, इंदौर में पांच फैक्ट्रियां हैं. इसके अलावा 35 रीजनल सेल्स ऑफिस हैं. प्रकाश अग्रवाल की इस कंपनी में आज 4,000 से अधिक लोग काम करते हैं जिनमें 80 फीसद महिलाएं शामिल हैं.
खाली वक्त में क्या करना पसंद करते हैं, यह पूछने पर 63 वर्षीय प्रकाश अग्रवाल मुस्कराते हुए कहते हैं, "मार्निंग वॉक पर जाता हूं, हल्का खाना खाता हूं और हर शाम को घर लौटकर पोते-पोतियों के साथ खेलता हूं. इससे बड़ा कोई सुकून नहीं.