स्वतंत्रता दिवस-पथप्रवर्तक / कला, संगीत और नृत्य
एम.एस. सुब्बुलक्ष्मी (1916-2004)
बेगम परवीन सुल्ताना
एम. एस. सुब्बुलक्ष्मी से पहली बार मैं कोई 30 साल पहले मिली. मद्रास में खचाखच भरे एक हॉल में मैं गा रही थी और मुझे अंदाज तक नहीं था कि अगली कतार में वे बैठी हैं. वे करीब 80 बरस की थीं और उनके लिए चलना तक मुहाल था, फिर भी मुझे याद है वे अपने पति के साथ मेरे ग्रीन रूम में आईं.
देखते ही उन्होंने मुझे बांहों में भर लिया. सुब्बुलक्ष्मी जी ज्यादा अंग्रेजी नहीं बोलती थीं, पर मेरी गायकी के बारे में बोलते हुए वे 'वंडर’ और 'वंडरफुल’ लफ्जों का इस्तेमाल करती रहीं. मेरी आंखों में आंसू थे. मुझे लगा मानो मैं साक्षात अपनी मां से मिल रही थी.
सुब्बुलक्ष्मी जी और मैं कभी-कभार पुट्टपार्थी में मिलते. हम दोनों सत्य साईं बाबा के भक्त थे. एक बार मैंने कह क्या दिया कि उनके लड्डू और बर्फी मुझे अच्छे लगे, हम जब भी मिलते, हर बार वे टिफिन भरकर दोनों ले आतीं.
बाबा ने एक बार मेरे शौहर उस्ताद दिलशाद खान से उनके लिए मीरा के चार भजनों का संगीत तैयार करने को कहा. उन्हें अपने हिंदी उच्चारणों पर बहुत भरोसा नहीं था, पर उन्होंने इतना अच्छा गाया कि पूरा हिंदुस्तान लट्टू हो गया.
जब किसी की तस्वीरें अच्छी आती हैं तो हम उसे कैमरा-फ्रेंड्ली कहते हैं. इसी तरह माइक्रोफोन सुब्बुलक्ष्मी जी पर जान छिड़कते थे. उन्हें इतनी सुरीली आवाज का वरदान मिला कि लगता था, उसे सुनकर बेजान मशीनों में भी जान आ जाती थी.
उनका स्वभाव भी उनकी गायकी की तरह निहत्था कर देने वाला था. वे मेरी या लता मंगेशकर की तारीफ करते कभी दोबारा नहीं सोचती थीं. उनकी तुलना केवल मां सरस्वती से ही की जा सकती है.
बेगम परवीन सुल्ताना हिंदुस्तानी शास्त्रीय गायिका और पद्मभूषण हैं.