गौर गोपाल दास प्रेरक वक्ताओं की फेहरिस्त में वह नाम है जो सोशल मीडिया से लेकर आइटी और कॉर्पोरेट के बीच, बोलने की अनूठी शैली की वजह से चर्चा में है. गौर गोपाल दास उनका दीक्षा का नाम है. उनकी ''सबसे बड़ी उपलब्धि'' जिंदगियों को बदलना है. उनका दावा है कि वे ऐसे पांच लोगों को निजी तौर पर जानते हैं जिन्होंने उनका प्रेरक वीडियो देखने के बाद मरने का इरादा छोड़ दिया. वे एक वाकया सुनाते हैं, ''अमेरिका में ओहायो के सिनसिनाटी में एक आदमी गले में फंदा डाल चुका था, इसी बीच मोबाइल पर वाट्सऐप संदेश आने की घंटी बजी. इत्तेफाक था कि उसने फंदा हटाकर संदेश देखा. उसमें मेरा वीडियो था. इसके बाद उसने 15 घंटे तक यूट्यूब पर मेरे वीडियो देखे और मरने का इरादा छोड़ा.''
मारवाड़ी जैन परिवार से ताल्लुक रखने वाले गोपाल दास का जन्म महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में हुआ. पुणे के पास देहू रोड में पढ़ाई की. पिता विलासराय सोनी और मां आशा ने उन्हें बड़े स्नेह और नजाकत से पाला. वे बताते हैं, ''इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में आखिरी सेमेस्टर में पहली रैंक हासिल नहीं कर पाया तो रोने लगा. पिता ने कहा, रैंक और नंबर वक्त के साथ कोई याद नहीं रखता. अच्छा काम करते रहो, लोग इसी बात को याद रखते हैं.'' उन्होंने पढ़ाई पूरी करने के बाद चार-पांच महीने ह्यूलेट पैकार्ड (एचपी) में नौकरी की लेकिन मन अध्यात्म में रमा हुआ था, सो नौकरी छोड़ी और इस्कॉन ज्वाइन कर लिया.
उनके भीतर आध्यात्मिक चेतना बचपन से थी. वे कहते हैं, मैं मशीन के सामने बैठकर बदलाव नहीं लाना चाहता था, इसलिए मैंने उस मशीन और सिस्टम को चलाने वाले इंसानों को बदलने का रास्ता चुना. बदलाव लाने के लिए क्रांति की जरूरत नहीं होती. इंसान नेकी से अपना काम करे तो लंबे समय में वह बदलाव ही कर रहा होता है. मैं बहुत साधारण इंसान हूं. इस्कॉन का मेरा सफर बेहद निजी और आध्यात्मिक है. कृष्ण के मनोहारी, विवेकपूर्ण और व्यावहारिक व्यक्तित्व का बचपन से मुझ पर असर था. इसलिए इस्कॉन को चुना. कृष्ण की पूजा मेरे लिए व्यक्तिगत निधि है. मेरे वक्तव्य धर्मनरिपेक्ष जीवन पर आधारित हैं.''
वे बताते हैं, मेरा इस्कॉन जाना माता-पिता के लिए वज्रपात जैसा था. शुरुआत में उन्हें काफी संघर्ष करना पड़ा. माता-पिता पहले साल वापस लाने का प्रयास करते रहे लेकिन उन्होंने कभी उन पर दबाव नहीं डाला. कुछ साल बाद उनका काम देखकर सबने इसे स्वीकार किया. मां को उन पर बहुत गर्व है. 2009 में उनके पिता का देहांत हुआ. उन्हें पार्किंसंस की बीमारी थी. गौर की मां, दादी और बहन ने मिलकर अस्पताल में पिता का इलाज कराया और देखरेख की. उनके शब्दों में, ''उन दोनों को उस दौरान जो वेदना हुई उसके लिए मैं माफी मांगता हूं क्योंकि उन्हें यह कष्ट मेरे इस मार्ग को अपनाने से हुआ. मैं इसके लिए कोई दलील भी नहीं देना चाहता.'' उनकी मां भी उनकी फॉलोअर हैं.
अपनी स्पीच के बारे में वे कहते हैं, ''मैं इसे समसामायिक रखता हूं. मिसालें, कहानियां और भाषा मॉडर्न समाज के साथ कनेक्ट करने वाली इस्तेमाल करता हूं. इसे प्रासंगिक बनाता हूं. स्पीच में हास्य होना चाहिए. सच कड़वा होता है. सच बताना सर्जरी करने जैसा होता है और हास्य एनेस्थेसिया का काम करता है. एनेस्थेसिया से दर्द कम होता है.'' भाषा के मामले में वे काफी सचेत रहते हैं और ऐसा बोलते हैं जो बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक सबको समझ में आए. उनके शब्दों में, ''मैं एंटरलाइटेनमेंट (एंटरटेनमेंट+एनलाइटमेंट) करता हूं. पहले तैयारी में बहुत ज्यादा वक्त लगता था पर अब आधे घंटे में मेरा काम हो जाता है.''
उनके अनुभव काफी गहरे रहे हैं. जब वे पांच साल के थे तो केजी की टीचर मिसेज राघवन का उन पर गहरा असर पड़ा. वे बहुत सौम्य और दयालु थीं. वे सोचते थे कि इंसान इतना अच्छा कैसे होता है. यहां से उनकी आध्यात्मिक चेतना जागी. जब वे तीसरी कक्षा में थे तो ससुराल वालों के अत्याचार से तंग अपनी बुआ को जलकर आत्महत्या करते उन्होंने देखा. उनकी चीखें सुन और उनका जलता शरीर देखकर गोपाल दास अंदर तक हिल गए. बुआ से उनका गहरा लगाव था. यह घटना बेरहम दुनिया से उनका पहला परिचय थी.
लोगों से उनकी अपील होती है कि खूब धन-संपत्ति अर्जित करें और फिर उसको अच्छे कामों में, दुआएं लेने में खर्च करें. 2006 में अपनी पहली विदेश यात्रा में वे लंदन जा रहे थे. मुंबई एयरपोर्ट पर एक मित्र पराठे और मैंगो मिल्क शेक स्टील की बोतल में ले आए. सुरक्षा जांच में पता चला कि सौ मिलीलीटर से ज्यादा तरल पदार्थ फ्लाइट में नहीं ले जाया जा सकता. वे बाहर आए और पानी की बोतल खरीदी. उसे खाली कर मैंगो शेक भरा और किसी को दे दिया. अनुभव यह मिला कि जब भी आप फ्लाइट से जाएं तो पता होना चाहिए कि क्या साथ में जा सकता है और क्या नहीं. इसी तरह जिंदगी में आगे क्या हमारे साथ जाएगा और क्या नहीं जाएगा, ये हमें पता होना चाहिए.
संघर्ष:
उनकी राय में, संत, गृहस्थ, बैचलर, प्रोफेशनल सभी का संघर्ष अलग-अलग होता है
टर्निंग प्वाइंट:
ह्यूलेट पैकार्ड की नौकरी छोड़कर इस्कॉन ज्वाइन करना
उपलब्धि:
स्पीच सुनने के बाद पांच लोगों ने आत्महत्या का विचार छोड़ा
सफलता का मंत्र:
नेकी से अपने काम में लगे रहो तो बदलाव होगा
लोकप्रियता के कारक:
अध्यात्म में हास्य का पुट, नए दौर के वक्ता
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