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नया भारतः ज्योति के लिए

24 आइ सर्जन की मदद से चलने वाला 350 बिस्तरों वाला यह अस्पताल न केवल पूर्वी भारत में आंखों के सबसे बड़े अस्पतालों में है, बल्कि इसने लड़कियों के लिए रोजगार के मौके बनाने में भी अहम योगदान दिया है.

गोल पर नजर अखंड ज्योति की फुटबॉल ट्रेनी
गोल पर नजर अखंड ज्योति की फुटबॉल ट्रेनी

मृत्युंजय तिवारी,  47 वर्ष,

बिहार निवासी मृत्युंजय तिवारी कोलकाता में बस गए, जहां उनका परिवार लदाई और ढुलाई के बिजनेस (सीऐंडएफ) में है. बिहार के एक नेत्रहीन किसान के इलाज से जिला अस्पताल (छह महीने में वह तीसरी बार आया था) ने इसलिए असमर्थता जता दी क्योंकि वहां कोई नेत्ररोग विशेषज्ञ नहीं था. उस किसान की व्यथा सुनकर मृत्युंजय अंदर से हिल गए. घटना ने उन्हें इतना झकझोरा कि उन्होंने बिहार के मस्तीचक में अखंड ज्योति आइ हॉस्पिटल शुरू करने की ठान ली.

वे कहते हैं, ''मैं अपने बूते बिहार की सारी समस्याएं तो हल नहीं कर सकता, इसलिए मुझे एक चीज पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत थी, जिसमें मैं कुछ कर सकता था.'' बिहार से इलाज योग्य अंधेपन को खत्म करना अब उनका एकमात्र मिशन बन गया है.

अब उनका अस्पताल सिर्फ अंधेपन से निजात दिलाने वाला केंद्र भर नहीं रहा है. 24 आइ सर्जन की मदद से चलने वाला 350 बिस्तरों वाला यह अस्पताल न केवल पूर्वी भारत में आंखों के सबसे बड़े अस्पतालों में है, बल्कि इसने लड़कियों के लिए रोजगार के मौके बनाने में भी अहम योगदान दिया है. तिवारी ने 2009 में फुटबॉल टु आइबॉल कार्यक्रम शुरू किया जिसके तहत लड़कियों को फुटबॉल और ऑप्टोमीट्री (आंखों की जांच), दोनों का प्रशिक्षण दिया जाता है.

तिवारी का कहना है कि उन्हें परिवारों को इस बात के लिए राजी करने में बहुत मशक्कत करनी पड़ी कि लड़कियों की जल्द शादी की न सोचें बल्कि उन्हें मस्तीचक भेजें जहां उनके लिए छह साल तक मुफ्त रहने और प्रशिक्षण की व्यवस्था है.

एक दशक में 150 लड़कियों को प्रशिक्षण देकर ऑप्टीमीट्रिस्ट (आंखों की जांच करके, उचित लेंस का सुझाव देने वाला) बनाया गया है और सात लड़कियों ने राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में बिहार का प्रतिनिधित्व किया है. यह कार्यक्रम इतना सफल रहा है कि बिहारभर के गांवों से करीब 500 लड़कियां यहां दाखिले के लिए वेटिंग लिस्ट में हैं. बिहार में सीवान, पीरो, गोपालगंज और डुमरांव में चार प्राथमिक दृष्टि जांच केंद्र और एक उत्तर प्रदेश के बलिया में चल रहा है.

भोजपुर के कस्बे पीरो का जांच केंद्र तो पूरी तरह महिलाएं चला रही हैं. इसका नेतृत्व 22 वर्षीया दिलकुश शर्मा करती हैं, जिन्होंने अखंड ज्योति के विज्ञापन को पढ़कर उन्हें संपर्क किया था.

तिवारी कहते हैं, ''हमारी सोच है कि अगले चार साल में महिलाएं ही अस्पताल के कम से कम 50 प्रतिशत कार्यों का नेतृत्व करें.'' 

दूसरा पहलूः तिवारी अपने दादा प्रसिद्ध समाज सुधारक और आध्यात्मिक गुरु पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य की शिक्षाओं का अनुसरण कर रहे हैं.

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