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बीजेपी को क्यों नहीं मिल पा रहा जेपी नड्डा का उत्तराधिकारी?

इस बार बीजेपी नेतृत्व सतर्कता से आगे बढ़ रहा है और पार्टी अध्यक्ष चुनने के मुद्दे पर 'सभी संबंधित पक्षों' के साथ विचार-विमर्श कर रहा है

अध्यक्ष नड्डा और शाह दिल्ली में पार्टी के एक कार्यक्रम के दौरान
जेपी नड्डा और अमित शाह दिल्ली में पार्टी के एक कार्यक्रम के दौरान
अपडेटेड 1 अप्रैल , 2025

तीन राज्यों में चुनावी जीत से उत्साहित भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी ) ने पार्टी के नए अध्यक्ष की तलाश फिर तेज कर दी है, जो जगत प्रकाश नड्डा की जगह लेगा. बीजेपी अध्यक्ष का कार्यकाल वैसे तो तीन वर्ष का ही होता है लेकिन 2019 में यह पद संभालने के बाद से नड्डा को एक के बाद एक विस्तार मिलते रहे.

पिछला विस्तार उन्हें 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारियों में 'निरंतरता' बनाए रखने के उद्देश्य से दिया गया था. बीजेपी के संविधान के मुताबिक, निर्वाचक मंडल बनाने के लिए कम से कम 50 फीसद राज्य इकाइयों को अपने-अपने अध्यक्षों का चुनाव करना होता है. मगर यह प्रक्रिया काफी लंबी खिंच गई है.

पार्टी सूत्रों की मानें तो इसकी सबसे बड़ी वजह यह थी कि नेतृत्व का पूरा ध्यान 2024 की दूसरी छमाही में होने वाले विधानसभा चुनावों पर था. एक सचाई यह भी है कि कुछ प्रमुख राज्य इकाइयों में गुटबाजी भी कम नहीं. अंतत: दिसंबर में 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से 29 में राज्य स्तर पर पदों को भरने की प्रक्रिया शुरू की गई. मगर यह अब तक केवल 13 में ही पूरी हो पाई है और केवल बिहार और राजस्थान ही इस सूची में शामिल दो बड़े राज्य हैं.

एक बड़ी समस्या यह है कि जून 2024 से नड्डा केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री पद की जिम्मेदारी भी संभाल रहे हैं जबकि अलिखित ही सही, बीजेपी में 'एक व्यक्ति, एक पद' का नियम है. और नए अध्यक्ष का चयन ऐसे समय पर और भी ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है जब पार्टी पीढ़ीगत बदलाव की संभावनाएं तलाश रही है. भले ही लोग इस बात से सहमत न हों लेकिन बीजेपी इस समय अपने चरम पर है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार तीसरी बार सत्ता में हैं और पार्टी अपने सहयोगियों के साथ मिलकर 22 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में सत्ता में है.

बीजेपी नेतृत्व इस मामले में वैचारिक अभिभावक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के शीर्ष नेतृत्व के संग एक और दौर का विचार-विमर्श कर सकता है. हालांकि, दोनों पक्षों का कहना है कि "मोदी का फैसला ही अंतिम होगा." लोकसभा चुनाव में अपेक्षित नतीजे न आने और फिर चुनाव प्रबंधन में संघ की स्पष्ट भागीदारी से मिली सफलता के बाद से ही जिला, मंडल और कई मामलों में राज्य इकाई प्रमुखों की नियुक्तियों में उसकी सिफारिशों पर "गंभीरता से विचार" किया जा रहा है. संघ के एक वरिष्ठ प्रचारक ने इंडिया टुडे से कहा कि संगठन की चिंता यह नहीं कि बीजेपी अध्यक्ष कौन बनेगा. वे कहते हैं, "वह चाहे कोई भी हो, संघ के पास उनके साथ काम करने का कौशल है."

इस बीच, राज्य इकाइयों में हो रहे बदलाव लगातार हैरान कर रहे हैं. 27 फरवरी को बिहार कैबिनेट में फेरबदल के दौरान राज्य इकाई के प्रमुख दिलीप जायसवाल ने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. एक हफ्ते बाद उन्हें फिर से बिहार बीजेपी प्रमुख चुना गया. मार्च मध्य में पार्टी ने हरियाणा और उत्तर प्रदेश में जिलाध्यक्ष नियुक्त किए पर गुटबाजी चिंता का विषय बनी हुई है. यूपी में आदित्यनाथ और उनके उपमुख्यमंत्रियों केशव प्रसाद मौर्य और बृजेश पाठक और यहां तक कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के खेमे भी सक्रिय हैं.

हरियाणा में होली (14 मार्च) के दिन केंद्रीय मंत्री और पूर्व सीएम मनोहरलाल खट्टर ने राज्य के वरिष्ठ मंत्री अनिल विज से अंबाला में उनके निवास पर मुलाकात की. दरअसल, विज प्रदेश अध्यक्ष मोहन लाल बड़ौली और मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी (दोनों खट्टर के वफादार) पर हमलावर रहे हैं. हालात उस वक्त और खराब हुए जब बड़ौली ने सार्वजनिक बयान देने पर विज को कारण बताओ नोटिस थमाया. होली मिलन को इनके बीच सुलह की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है. तेलंगाना में भी केंद्रीय मंत्रियों जी. किशन रेड्डी और बंडी संजय कुमार और सांसद एटाला राजेंद्र के गुटों में खींचतान चल रही है.

बीजेपी ने गुजरात, मध्य प्रदेश, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु और कुछ अन्य राज्यों में जिलाध्यक्षों के चुनाव की प्रक्रिया पूरी कर ली है. पश्चिम बंगाल, उत्तराखंड, महाराष्ट्र समेत सात राज्यों में सदस्यता अभियान देरी से चल रहा है. यहां नामांकन के आधार पर नई इकाई बनेगी. ओडिशा और कर्नाटक केंद्रीय नेतृत्व के लिए बड़ा सिरदर्द हैं. बीजेपी महासचिव तरुण चुघ हाल में ओडिशा से खाली हाथ लौटे हैं क्योंकि वहां अगले प्रदेश अध्यक्ष पर सर्वसम्मति नहीं बन सकी.

कर्नाटक में पूर्व मंत्री बसनगौड़ा पी. यतनाल, सांसद के. सुधाकर, विधायक रमेश जारकीहोली समेत अन्य नेताओं ने प्रदेश प्रमुख बी.वाइ. विजयेंद्र (पूर्व सीएम बी.एस. येदियुरप्पा के छोटे बेटे) के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है. राष्ट्रीय नेतृत्व विजयेंद्र का समर्थन कर रहा है और यतनाल को दो कारण बताओ नोटिस जारी कर चुका है. हालांकि, सुधाकर पर केंद्रीय नेतृत्व थोड़ा नरम है और उनके गृह क्षेत्र चिक्कबल्लापुर के जिला अध्यक्ष के तौर पर उनके धुर विरोधी बी. संदीप की नियुक्ति को भी 'स्थगित' किया गया है.

सूत्रों के मुताबिक, लोकसभा चुनाव में लगे झटके और उसके बाद आरोप-प्रत्यारोप के दौर के मद्देनजर बीजेपी नेतृत्व सावधानी से आगे बढ़ रहा है और पार्टी अध्यक्ष चुनने के मामले में "सभी संबंधित पक्षों" के साथ मंथन कर रहा है. लोकसभा चुनाव के दौरान नड्डा का यह बयान बीजेपी के लिए खासा नुक्सानदेह साबित हुआ कि पार्टी आरएसएस से आगे निकल गई है. बहरहाल, जैसे-जैसे अनौपचारिक चर्चाओं में अध्यक्ष पद के उम्मीदवारों की सूची छोटी होती जा रही है, पार्टी और संघ में कई तरह के विचार भी उभर रहे हैं.

इसमें एक यह भी है कि बीजेपी को पहली बार महिला अध्यक्ष चुनने के बारे में सोचना चाहिए. एक विचार यह भी है कि दक्षिण भारत के किसी नेता को पार्टी अध्यक्ष बनाया जाए, जिससे वहां पार्टी की पैठ मजबूत करने में काफी मदद मिल सकती है. यही नहीं, यह द्रमुक के नेतृत्व में जोर पकड़ रहे परिसीमन के मुद्दे का मुकाबला करने के लिहाज से भी कारगर रहेगा, जिसमें यह बताने की कोशिश की जा रही है कि बीजेपी के नेतृत्व में उत्तर के लोग देश के दक्षिण में दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं. बीजेपी में पहले भी दक्षिण से अध्यक्ष रहे हैं (एम. वेंकैया नायडू, जना कृष्णमूर्ति और अटल बिहारी वाजपेयी के समय बंगारू लक्ष्मण). मगर इससे पार्टी के विस्तार में कोई खास फायदा नहीं हुआ. सक्रिय राजनेता पार्टी के लिए फायदेमंद हो सकते हैं.

एक तीसरा पहलू भी है कि मोदी शासन में समय बिताने वाले बीजेपी संगठन के किसी मजबूत दावेदार को मौका मिलना चाहिए. तर्क यह है कि अनुभवी नेता "संगठन (यानी कि आरएसएस) और सरकार के बीच खाई पाटने" में मदद करेगा. बहरहाल, यह वक्त ही बताएगा कि कौन-सा विचार भारी पड़ेगा.

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