scorecardresearch

प्रधान संपादक की कलम से

एआई यानी वह क्षेत्र जिसमें एक किस्म का विश्व युद्ध चल रहा है और वह भी तब जब टेक्नोलॉजी खुद मानव गतिविधि के विभिन्न क्षेत्रों का कायापलट कर रही है

इंडिया टुडे कवर : तेज रफ्तार से आगे बढ़ने का युग
इंडिया टुडे कवर : तेज रफ्तार से आगे बढ़ने का युग
अपडेटेड 27 मार्च , 2025

—अरुण पुरी

पिछले हफ्ते 22वां इंडिया टुडे कॉन्क्लेव ऐसे वक्त संपन्न हुआ जब दुनिया दिमाग चकरा देने वाली रफ्तार से बदल रही है. हमारा जाना-पहचाना हरेक क्षेत्र इतनी तेज रफ्तार उथलपुथल से गुजर रहा है जो पहले कभी न देखा गया. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) वास्तविक समय के आधार पर हमारी जिंदगियों को बदले दे रहा है, वह भी तब जब यह खुद ही हर पल बदलाव से दो-चार है.

फिर सबसे बढ़कर व्हाइट हाउस में डोनाल्ड ट्रंप की वापसी कुछ इस तरह रही मानो कोई उल्कापिंड पुरानी विश्व व्यवस्था से आ टकराया हो. इसीलिए हमने कॉन्क्लेव की थीम के रूप में 'एज ऑफ एक्सेलेरेशन' या 'तेजी से बदलाव का युग' को चुना. जब कई सारे धुरंधर, क्षेत्र विशेषज्ञ और वैचारिक अगुआ अपने-अपने विशिष्ट नजरिए से हमें भूराजनीति, टेक्नोलॉजी, युद्ध, राजनीति, शिक्षा, कारोबार, जीवनशैली और मनोरंजन के नाना प्रकार के रंग और रूप दिखा रहे थे, इसने हमारे सामने बेहद तेज रफ्तार से घूमती दुनिया का दिलचस्प और सीधा नजारा पेश किया.

ट्रंप की दुनिया के दो तेज-तर्रार सिपहसालारों के साथ हमारा यह सिलसिला शुरू हुआ. वॉशिंगटन डीसी से एक्सक्लूसिव लाइव वीडियो में वाणिज्य मंत्री हॉवर्ड लुटनिक ने आज के वक्त के सबसे सरगर्म विषय टैरिफ या शुल्क के बारे में दोटूक बातें कहीं.

उत्पाद-दर-उत्पाद शुल्क लगाने को खारिज कर उसकी जगह व्यापक और वृहद बदलाव की हिमायत करते हुए उन्होंने कहा, "यह कुछ ऐसा बड़ा करने का समय है जो विराट पैमाने पर अमेरिका और भारत को जोड़े. प्रधानमंत्री मोदी ऐसा कर सकते हैं क्योंकि राष्ट्रपति ट्रंप के साथ उनके शानदार रिश्ते हैं.''

अगर लुटनिक दोटूक थे, तो ट्रंप के पहले कार्यकाल में विदेश मंत्री और सीआईए के डायरेक्टर रह चुके माइक पोम्पियो ने राष्ट्रपति के हाल के कार्यकलापों और काम करने के तौर-तरीकों की अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण तस्वीर उकेरी. मंच पर सबसे प्रमुख मौजूदगी होने के नाते उन्होंने ट्रंप 1.0 के अपने अनुभव के आधार पर साफ संदेश दिया ''हो-हल्ले'' पर बहुत ध्यान न दें और ''जोड़ने वाली कड़ियों'' पर गौर करें. ट्रंप की नीतियों का दृढ़ता से बचाव करते हुए उन्होंने बहुराष्ट्रीय संस्थाओं से अमेरिका के हटने को यह कहकर सही ठहराया कि वे ''छिन्न-भिन्न'' हो चुकी हैं और उन पर चीनियों का दबदबा है.

एआई यानी वह क्षेत्र जिसमें एक किस्म का विश्व युद्ध चल रहा है और वह भी तब जब टेक्नोलॉजी खुद मानव गतिविधि के विभिन्न क्षेत्रों का कायापलट कर रही है, सर्वव्यापी और बार-बार लौटती थीम की तरह उभरा. चोटी के विशेषज्ञों की एक दीर्घा ने हमें एआई से संचालित भविष्य के लिए तैयार होने की रोशन राहें दिखाईं.

प्रख्यात ब्रिटिश कंप्यूटर साइंटिस्ट टोबी वाल्श ने ''जॉम्बी (या प्रेत) इंटेलिजेंस'' के दुनिया पर कब्जा कर लेने की डरावनी धारणाओं को खारिज कर दिया और एआई को ''अपना-अपना एजेंडा रखने वाले सिलिकॉन वैली के श्वेत पुरुषों'' का एकाधिकार बनने देने के बजाय सार्वभौम भलाई की लोकतांत्रिक ताकत बनाने की वकालत की. उनकी राय में भारत सिलिकॉन पर खुद अपनी नियति लिखने की अच्छी स्थिति में है.

माइक्रोसॉफ्ट इंडिया के प्रेसिडेंट पुनीत चंडोक ने एआई के अपनाए जाने को ''हुनरमंद बनाने के अभिन्न अंग'' के रूप में पेश किया, खासकर जब यह ''वाणिज्य से समुदायों तक और वित्त से खेतों तक अपने विस्तार'' की शुरुआत कर रहा है. डेलॉइट्स के नितिन मित्तल ने बताया कि क्यों भारत को ज्ञान की अपनी ''मैन्युफैक्चरिंग क्षमता'' बढ़ाने के लिए एआई के बुनियादी ढांचे का निर्माण करना चाहिए.

पहले की तरह अब जब यह विशिष्ट विषय नहीं रह गई है, टेक्नोलॉजी ऐसी थीम थी जो कॉन्क्लेव में बाकी तमाम विषयों के ऊपर महसूस की गई. इसकी तत्काल जरूरत उतनी कहीं और दिखाई नहीं दी जितनी भारत के तीन सेना प्रमुखों की बातों में दिखाई दी. सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने ''वर्चुअल मोर्चे'' पर चीन और पाकिस्तान के बीच ''तकरीबन 100 फीसद'' मिलीभगत को सामने रखा, जबकि उनकी सामरिक साझेदारी भारत के ''ढाई मोर्चों'' पर खतरे का भूदृश्य रच रही है.

नौसेना प्रमुख एडमिरल दिनेश के. त्रिपाठी ने यूक्रेन-रूस युद्ध से भारत के लिए दो सबक निकाले: टेक्नोलॉजी के अपनाए जाने से कैसे ''युद्ध का चरित्र'' बदल गया है, और क्यों भारत को ढुलमुल बड़ी शक्तियों पर निर्भरता घटाकर आत्मनिर्भरता बढ़ानी चाहिए.

इसका सबसे जोरदार उदाहरण एयर मार्शल ए.पी. सिंह की तरफ से आया, जिन्होंने उस खतरनाक कमी पर उंगली रखी जिसका सामना वायु सेना को तब करना पड़ता है जब चीन ने छठी पीढ़ी के लड़ाकू विमान तैयार कर लिए हैं, और स्वदेशीकरण की हमारी कोशिशें पिछड़ रही हैं.

भू-राजनीति के मुकाबले घरेलू रंगमंच भले ही तकरीबन ठहरा हुआ मालूम देता हो, यह अपने ही दबदबे और टकराव के सुरों से गुंजार है. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भारतीय राजनीतिज्ञों में सितारा मौजूदगी थे, जबकि इस फेहरिस्त में तेलंगाना के मुख्यमंत्री ए. रेवंत रेड्डी, सिक्किम के प्रेम सिंह तमांग और दिल्ली में भाजपा का नया चेहरा रेखा गुप्ता शामिल थे.

महाकुंभ की कामयाबी से तरोताजा योगी ने विस्तारित धार्मिक पर्यटन और आधुनिक आर्थिक केंद्रों की बुनियाद पर उत्तर प्रदेश के पुनर्जागरण के पक्ष में पुरजोर दलील दी. रेड्डी ने भाजपा पर तंज कसते हुए गुजरात मॉडल को "टेस्ट मैच मॉडल'' करार दिया और इसके विपरीत अपने मॉडल को ''टी20 मॉडल'' बताया. आंध्र प्रदेश के आईटी मंत्री नारा लोकेश ने नानाविध तरीकों से एनडीए के साथ अपनी पार्टी के भाईचारे की तस्दीक की.

आमिर खान मनोरंजन जगत से गरिमापूर्ण उपस्थिति थे. इस फेहरिस्त में शबाना आजमी और जहान कपूर, और नमिता थापर व अवर्णा जैन सरीखी कॉर्पोरेट सम्राज्ञियां शामिल थीं. मगर कॉन्क्लेव में रोबोट बनाने वाले एक नवोन्मेषी, माओवादी खतरे का दिलेरी से सामने करने वाली एक महिला आंत्रेप्रेन्योर, और बिहार के एक संग्रहालय पुरुष को भी प्रस्तुत किया गया.

इतिहासकार विलियम डेलरिंपल हमें उस प्राचीन दुनिया के सफर पर ले गए, जहां भारत विचारों की दुनिया पर हुकूमत करता था, और 18 साल की उम्र में शांत, शालीन और आत्मलीन विश्व शतरंज चैंपियन डी. गुकेश ने बताया कि तख्तों के पुराने खानेदार खेल में आधुनिक भारत बादशाह क्यों था. तो ये पन्ने पलटिए और अनूठी बातचीत के हमारे उत्सव का आनंद लीजिए.

— अरुण पुरी, प्रधान संपादक और चेयरमैन (इंडिया टुडे समूह).

Advertisement
Advertisement