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इंडिया टुडे कॉन्क्लेव 2025: आमिर खान ने क्यों कहा-'बदकिस्मती से बुद्धिमानी को हम पढ़ाई-लिखाई के पैमाने पर जांचते हैं

आमिर खान कभी सफलता के पीछे नहीं भागे, बल्कि इतनी कामयाबी मिलने पर उन्हें कभी-कभी खुद हैरानी होती है. सफलता जहां दूसरे लोगों के सिर चढ़कर बोलने लगती है, वहीं आमिर खुद को जमीन से जुड़ा रखने में भरोसा रखते हैं.

Cinema  60 years of Aamir Khan
आमिर खान
अपडेटेड 11 अप्रैल , 2025

उम्र के छठे दशक के पड़ाव यानी 60वें जन्मदिन की पूर्व संध्या पर बॉलीवुड में चार दशक के शानदार सफर को मुड़कर देखने से अच्छा क्या हो सकता था? सुपरस्टार आमिर खान ने इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में ठीक यही किया.

100, 200 और 300 करोड़ रुपए और फिर दंगल 2,000 करोड़ रुपए की कमाई वाली फिल्मों के साथ आमिर का सफर लंबा और घटनापूर्ण रहा है. वे 1988 में 23 साल की उम्र में कयामत से कयामत तक में बड़े परदे पर उतरे थे, जिसमें उनके निभाए किरदार राज ने सिल्वर स्क्रीन पर धमाका कर दिया.

उनकी चॉकलेटी बॉय वाली छवि ने दिल, जो जीता वही सिकंदर, अंदाज अपना-अपना, रंगीला, राजा हिंदुस्तानी, दिल चाहता है...में भी लोगों को खूब आकर्षित किया. यही नहीं, अपने सफर के दौरान उन्होंने कई संजीदा और सार्थक भूमिकाएं निभाईं बल्कि सामाजिक मुद्दों पर केंद्रित फिल्में भी बनाईं जिनमें लगान, लाल सिंह चड्ढा, दंगल, तारे जमीं पर, सीक्रेट सुपरस्टार, लापता लेडीज आदि शामिल हैं.

आमिर खान कभी सफलता के पीछे नहीं भागे, बल्कि इतनी कामयाबी मिलने पर उन्हें कभी-कभी खुद हैरानी होती है. सफलता जहां दूसरे लोगों के सिर चढ़कर बोलने लगती है, वहीं आमिर खुद को जमीन से जुड़ा रखने में भरोसा रखते हैं. उन्होंने माना कि अभी भी फिल्म की रिलीज से पहले वे काफी नर्वस हो जाते हैं. कुछ हल्की-फुल्की यादें भी उन्होंने साझा कीं. अंदाज अपना-अपना की शूटिंग के दौरान सेट पर समय से पहुंचने वाले वे एकमात्र कलाकार थे और कैसे जावेद अख्तर ने उन्हें लगान में अमिताभ बच्चन को सूत्रधार बनाने के खिलाफ आगाह किया था क्योंकि उन्होंने ऐसी कई फिल्मों को आवाज दी थी जो फ्लॉप रही थीं.

इस सबके बीच, साठ साल का यह युवा जिंदगी में आई दो महिलाओं रीना और किरण राव, जिनसे उनकी शादी हुई. आमिर खान उनका आभार जताना नहीं भूले. उन्होंने कहा, ''हम तलाकशुदा हैं, इसका मतलब यह नहीं कि एक-दूसरे का सम्मान या प्यार नहीं करते.’’ बच्चों के बारे में वे हमेशा से चाहते थे कि वे ''खुश रहें और ज्यादा से ज्यादा चीजों के बारे में जानें-समझें’’ न कि कक्षा में अव्वल आकर दिखाएं. पापा सही थे. उन्होंने कई-कई साल पहले कह दिया था, ''बड़ा नाम करेगा.’’ आमिर ने शर्तिया किया भी और भला कैसे! 

आमिर की जिंदगी से जुड़ी खास बातें
आमिर को जोखिम लेने की अक्सर अच्छी-खासी कीमत चुकानी पड़ी है. फिल्म रिलीज से पहले वे सो नहीं पाते. 3 घंटे 42 मिनट की पीरियड ड्रामा लगान के निर्माण और अभिनय से लेकर डिस्लेक्सिया से जूझते बच्चे पर केंद्रित तारे जमीं पर के निर्देशन तक, आमिर ने हमेशा स्क्रिप्ट को खास अहमियत दी. वे कहते हैं, ''डर ही मुझे आगे का रास्ता दिखाता है. इसकी वजह से मैं ज्यादा सतर्क रहता हूं ताकि कोई गलती न करूं.’’

थ्री-इडियट्स के रैंचो जैसे काल्पनिक किरदार निभाते वक्त भी आमिर असल जिंदगी के लोगों से प्रेरणा लेना पसंद करते हैं. उनके लिए प्रामाणिकता बेहद मायने रखती है. यही वजह है कि लापता लेडीज के निर्देशन के लिए उन्होंने पूर्व पत्नी किरण राव को चुना. वे बोले, ''मैं ऐसा निर्देशक नहीं चाहता था जो इसमें बहुत कुछ करे, बल्कि वह ऐसा हो जो इसकी कहानी के साथ न्याय करे. मैं उनकी संवेदनशीलता और रचनात्मक प्रवृत्ति को अच्छी तरह जानता हूं.’’

कयामत से कयामत तक से शानदार करियर शुरू करने वाले आमिर को सफलता की बजाए उत्कृष्टता ज्यादा प्रेरित करती रही है. यही वजह थी कि राजकुमार हीरानी थ्री इडियट्स में 18 वर्षीय युवा की भूमिका 40 वर्ष का होने के बावजूद आमिर से ही कराना चाहते थे. आमिर की फिल्में बताती हैं कि गंभीर विचार और दृढ़ विश्वास के साथ काम किया जाए तो पारंपरिक रास्ते से हटकर काम करना भी फायदेमंद हो सकता है.

आमिर ने खुद को लेकर कहा, "भीतर से मैं अब भी खुद को 18 या 20 वर्ष का ही मानता हूं. वह तो शीशे में देखने पर पता चलता है कि नहीं यार, मामला कुछ और है. शुरुआत के दिनों में अच्छा करने को लेकर मैं बहुत नर्वस हो जाता था. आज भी मेरे साथ वैसा ही होता है. आज भी उतना ही घबराता हूं.

मैं खासा रोमांटिक इनसान हूं...प्यार और रूमानियत वाली फिल्में मुझे बहुत भाती हैं. प्यार में मुझे गहरा यकीन है. मुझे लगता है, यह भीतर कहीं गहरे पैवस्त है. एक बार यह फैसला कर लेने के बाद कि फलां काम मुझे करना है, उसके बाद तो मैं उसमें अपनी पूरी ताकत लगा देता हूं. कभी-कभी वह दांव ठीक पड़ता है लेकिन कभी-कभी उलटा भी पड़ जाता है.

मुझे सच में महसूस होता है कि हम सबमें अच्छी-खासी बुद्धिमानी मौजूद है. बदकिस्मती की बात बस यही है कि उस बुद्धिमानी को हम पूरी तरह से पढ़ाई और लिखाई के पैमाने पर ही जांचते हैं."

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