अमेरिका के पूर्व विदेश मंत्री माइक पोम्पियो का मानना है कि डोनाल्ड ट्रंप का दूसरा कार्यकाल उनके पहले कार्यकाल का ही विस्तार है. अहम फर्क अलबत्ता यह है कि ट्रंप अब ज्यादा तैयार हैं. ट्रंप 2.0 के पहले 50 दिन शोर-शराबे भरे रहे, पोम्पियो को उनमें ट्रंपवादी नीतियों की ही निरंतरता दिखती है.
इंडिया टुडे कॉन्क्लेव 2025 में पोम्पियो ने वैश्विक संस्थाओं, अमेरिका की विदेश नीति और भू-राजनीति के बदलते परिदृश्य के बारे में पैनी नजर से भरी बातें कहीं. उनके शारीरिक बदलाव ने भी ध्यान खींचा-सीआईए के पूर्व डायरेक्टर छह महीनों में 90 पाउंड वजन घटाने के बाद ज्यादा छरहरे दिखाई दिए.
रूस-यूक्रेन युद्ध पर पोम्पियो ने माना कि ह्वाइट हाउस में ट्रंप और यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की के बीच घटनाक्रम 'दुर्भाग्यपूर्ण' था, मगर भरोसा दिलाया कि इसका यूक्रेन को लेकर अमेरिकी नीति पर कोई असर नहीं पड़ेगा. उन्होंने ट्रंप के लंबे समय से चले आ रहे इस रुख को ही दोहराया कि यूरोप को अपनी सुरक्षा की ज्यादा जिम्मेदारी उठानी चाहिए.
पोम्पियो ने कहा, ''राष्ट्रपति का रुख साफ है-हम चाहते हैं कि यूरोपीय देश निवेश करें, रूसी प्राकृतिक गैस खरीदना बंद करें-इन चीजों के बारे में उन्होंने अपने पूरे चुनाव अभियान के दौरान बात की.''
पोम्पियो ने विश्व स्वास्थ्य संगठन और संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद सरीखे निकायों में धन लगाने से हाथ पीछे खींचने के ट्रंप के फैसलों को यह कहकर सही ठहराया कि वे अपने मूल उद्देश्यों से भटक गए हैं. उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र सरीखे संगठन बेअसर और 'छिन्न-भिन्न' हो चुके हैं और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी से प्रभावित हैं.
उन्होंने कहा कि ट्रंप बहुराष्ट्रवाद से पल्ला नहीं झाड़ रहे हैं, बल्कि अब्राहम एकॉर्ड्स और क्वाड सरीखे गठबंधनों के जरिए नई इबारत गढ़ रहे हैं, ताकि चीन की बढ़ती आक्रामकता का मुकाबला कर सकें.
अवैध भारतीय आप्रवासियों को क्यों हथकड़ी, जंजीरों में भेजा गया और वीडियो बनाए गए? पोम्पियो ने कहा, ''वे अमेरिकी जेलों में सजा पाए मुजरिम थे.'' और वापस भेजना अमेरिकी संप्रभुता की रक्षा के लिए जरूरी था और ट्रंप ने ''20 दिनों में'' जो किया, वह बाइडन के दौर में नहीं हुआ.
चीन हमला करता है तो अमेरिका ताइवान की सैन्य मदद के वादे को निभाएगा? पूर्व विदेश मंत्री ने कहा, जरूर, लेकिन पर्याप्त प्रतिरोध के चलते मामला वहां पहुंचेगा ही नहीं. उन्होंने यह भी कहा कि अमेरिका और भारत के साझा सैन्य अभ्यास का मकसद हिंद-प्रशांत क्षेत्र और हिमालय में चीन के बढ़ते दखल के खिलाफ प्रतिरोधक कार्रवाई थी. उन्होंने कहा, ''अमेरिकी नजरिए से आप भारत की सोचे बगैर चीन की कैसे सोच सकते हैं?''
पोम्पियो ने माना कि ट्रंप के ट्वीट सुर्खियों में हैं, मगर वे नीतियों की तरफ इशारा नहीं करते. टैरिफ पर ट्रंप के रुख पर पोम्पियो ने कहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति मानते हैं कि दोतरफा व्यापार घाटे बुरे हैं, और वे चाहेंगे कि भारत सरीखे देश भारी शुल्क और गैर-शुल्क व्यापार अवरोध दूर करके अच्छे व्यावसायिक साझेदार बनें.
क्या वे ट्रंप प्रशासन का फिर हिस्सा बनने की सोच रहे हैं? पोम्पियो ने कहा कि अगर अमेरिकी लोगों की सेवा के लिए बुलाया गया तो उन्हें ''हां'' कहना होगा.
पोम्पियो की टिप्पणियों ने ट्रंप की नीतियों का बचाव किया और अमेरिका तथा सहयोगी देशों के लिए लाभकारी सौदों को जारी रखने की बात को प्रमुखता से सामने रखा.
खास बातें
> अब्राहम समझौते और क्वाड समूह 'छिन्न-भिन्न' हुए वैश्विक निकायों की जगह ले रहे हैं.
> एआई सरीखी नई टेक्नोलॉजी के मामले में यूरोप, अमेरिका, जापान और भारत को एकजुट होकर चीन का मुकाबला करना चाहिए.
> अमेरिका की राजकोषीय व्यवस्था को चुस्त-दुरुस्त करने के लिए ईलॉन मस्क के डोज (डीओजीई) की जरूरत है.
> अवैध आप्रवासियों को वापस भेजकर ट्रंप सभी को साफ संदेश दे रहे हैं.