डेलीक्लाउट की सीईओ नाओमी वुल्फ के फाइजर पेपर्स ने कोविड-19 महामारी के दौरान अमेरिका में टीकों पर छिड़ी बहस में मानो आखिरी कील ठोंक दी और टीकों की मंजूरी के कदाचार को उघाड़ कर रख दिया.
महिलाओं के स्वास्थ्य की पैरोकार वुल्फ ने वैक्सीन की मंजूरी प्रक्रिया की तब जांच-पड़ताल शुरू की, जब बकौल उनके, टीके लगाने के बाद स्त्रियों को मासिक धर्म की अनियमितता और उससे जुड़ी समस्याओं की रिपोर्टें मिलने लगीं. वुल्फ के मुताबिक, उसके बाद तो जैसे गड़बड़ियों का पिटारा ही खुल गया.
वुल्फ के अनुसार, ''4,50,000 दस्तावेज हैं, इनमें आंतरिक दस्तावेज, फाइजर के अपने दस्तावेज शामिल हैं. ये दस्तावेज उस समय के हैं जब कंपनी इंजेक्शन का परीक्षण और उसका विकास कर रही थी. ये दस्तावेज फूड ऐंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन के पास थे जिसके खिलाफ कामयाबी के साथ मुकदमा लड़ा गया तब जाकर उसने उन्हें जारी किया.'' यह मानते हुए कि अधिकांश पत्रकार इन दस्तावेजों को लेकर रिपोर्ट नहीं लिखेंगे, वुल्फ ने दुनिया भर के आला दर्जे के प्रतिष्ठित 3,250 डॉक्टरों और वैज्ञानिकों को साथ जोड़ा और इन दस्तावेजों पर 109 रिपोर्ट तैयार की. इनमें से 50 को किताब की शक्ल में प्रकाशित किया गया.
वुल्फ के अनुसार, फाइजर वैक्सीन के बारे में वैध वैज्ञानिक सवालों से निबटने और किसी भी तरह की वैक्सीन हिचकिचाहट से लड़ने के लिए अरबों डॉलर खर्च किए गए. उनका कहना है कि जल्दबाजी में वैक्सीन को जारी और मंजूर किया गया और इसके लिए 10-15 साल की सुरक्षा मूल्यांकन प्रक्रिया को दरकिनार किया गया, जिससे गंभीर प्रजनन क्षति हुई है. इससे जन्म के समय बच्चों के जीवित रहने की दर में 13-20 फीसद की गिरावट आई है.
वुल्फ का दावा है कि वैक्सीन की सुरक्षा की बात करने वाले शोधपत्र उन अकादमिक पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए जिन्हें अमीरों ने पत्रकारों के साथ मिलकर खरीद लिया था. वुल्फ ने अपने सत्र में कहा कि अगर इसी तरह के नतीजे यहां नहीं दर्ज किए गए हैं तो भारतीय टीकों का असर कुछ अलग तरह का हो सकता है. उनके अनुसार, महामारी ने अलगाव और असुरक्षित टीके लगाए जाने के कारण अरबों लोगों की जिंदगी और शरीर को हमेशा के लिए बदल दिया है.
इन्फेक्शन की पहचान के लिए होने वाला पीसीआर टेस्ट ही असल टेस्ट है, लेकिन इसके आविष्कारक ने चेताया था कि अगर इसे बहुत ज्यादा बार और लगातार किया जाए तो गलत पॉजिटिव नतीजे आ सकते हैं. बिल गेट्स एमआरएनए इंजेक्शन में बड़े निवेशक थे. वे करोड़ों डॉलर उन प्रतिष्ठित समाचार संस्थानों में लगा रहे थे ताकि, यूं कहें तो, वैक्सीन को लेकर लोगों की झिझक को दूर किया जा सके.
करोड़ों डॉलर उन पेशेवर संगठनों को दिए गए जो डॉक्टरों, प्रसूति विशेषज्ञों, स्त्रीरोग विशेषज्ञों और शिशु रोग विशेषज्ञों का प्रतिनिधित्व करते हैं, ताकि यह पक्का किया जा सके कि उनके डॉक्टर वही बताएं जो उन्हें बताने के लिए कहा गया है. आप लोगों को छोटे घरों या कई पीढ़ी वाले परिवारों में ठूंसकर बंद नहीं कर सकते, उनके इम्यून सिस्टम को कमजोर नहीं कर सकते, जैसा कि अमेरिका और पश्चिमी यूरोप में समुद्र तटों और खेल के मैदानों को बंद करके किया गया था.
खास बातें
> वुल्फ ने कहा कि कोविड के कई टीकों को सुरक्षा के पारंपरिक तरीकों की अनदेखी करके जल्दबाजी में मंजूरी दी गई, ''जिससे अमेरिका में बड़े पैमाने पर प्रजनन संबंधी क्षति पहुंची.''
> उन्होंने जोड़ा कि भारतीय टीके एमआरएनए वाले न होने से उनका असर अलग हुआ होगा.
> उनका कहना है कि शिक्षा जगत में भ्रष्टाचार से निबटने की जरूरत है क्योंकि उनके मुताबिक, पैसे देकर क्षेत्र के लोगों से समीक्षाएं कराई गईं जिसने असुरक्षित दवाओं और/या टीकों की राह खोल दी.