बराबरी का टैरिफ लगाने की तलवार सिर पर लटकी होने से भारत ने अमेरिका के साथ व्यापार समझौते को पक्का करने में कोई वक्त नहीं गंवाया, जिसका लक्ष्य द्विपक्षीय व्यापार को मौजूदा 200 अरब डॉलर (17.4 लाख करोड़ रुपए) से बढ़ाकर दशक के अंत तक 500 अरब डॉलर (43.6 लाख करोड़ रुपए) तक ले जाने का है. लेकिन, हार्ले डेविडसन बाइक या बॉर्बन व्हिस्की जैसे कुछ अमेरिकी आयात पर टैरिफ घटाने के भारत के फैसले के बावजूद अमेरिका की बराबरी का टैरिफ लगाने की योजना रुकने वाली नहीं है. तो फिर भारत के पास विकल्प क्या हैं?
इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में 'द एशिया ग्रुप' के पार्टनर अशोक मलिक ने कहा, ''पिछली बार डोनाल्ड ट्रंप आए थे तो बतौर राष्ट्रपति उनकी तैयारी न्यूनतम थी क्योंकि किसी को भी उनके जीतने की उम्मीद नहीं थी. इस बार वे शायद सबसे ज्यादा तैयार राष्ट्रपति हैं.’’ उन्होंने यह भी कहा कि ट्रंप ने अपना एजेंडा तैयार करने में चार साल लगाए हैं और टैरिफ उसका महत्वपूर्ण हिस्सा हैं.
अमेरिका में भारत के पूर्व राजदूत अरुण के. सिंह ने कहा कि चाहे जो हो, अमेरिका नंबर 1 बनना चाहता है. वे कहते हैं, ''जब तक चीन के साथ टेक्नोलॉजी होड़ जारी है, भारत, अमेरिका की जरूरत बना रहेगा. इतना ही नहीं यूएस, भारत को बहुत ही अहम साझीदार भी मानता रहेगा. अमेरिकी कंपनियों ने महसूस किया है कि अपनी बढ़त बनाए रखने के लिए उन्हें भारत के साथ साझीदारी की जरूरत है.’’
पूर्व केंद्रीय वाणिज्य सचिव अनूप वधावन के मुताबिक, आत्मनिर्भर भारत के लिए सबसे अच्छी न्यूनतम बाधाओं वाली खुली अर्थव्यवस्था है. उन्होंने कहा, ''आत्मनिर्भर भारत यानी आपने प्रतिस्पर्धात्मक ताकत जान ली है. आप व्यापारियों के लिए निवेश और कामकाज आसान बनाते हैं और दुनिया भर से इनपुट और टेक्नोलॉजी तक पहुंच भी सहज बनाते हैं.’’ उन्होंने कहा कि आत्मनिर्भर भारत और सीमा की बाधाएं घटाना चोली-दामन जैसा है.
अमेरिका में भारत के पूर्व राजदूत रहे अरुण के. सिंह के मुताबिक भारत के पास मौका आएगा, बशर्ते हम सप्लाइ चेन में नए सिरे से प्रवेश करना चाहते हों. उसके खातिर हमें द्विपक्षीय और बहु-क्षेत्रीय व्यापार करार करने होंगे. वहीं, पूर्व वाणिज्य सचिव अनूप वधावन का कहना है कि न्यूनतम व्यवधानों वाली खुली अर्थव्यवस्था हमारे लिए आत्मनिर्भर भारत के मुकाम पर पहुंचने का सबसे अच्छा रास्ता है. इसका मतलब यह है कि आपको अपनी प्रतिस्पर्धात्मक ताकत का अंदाजा है.