
अमित शाह ने 2019 में जिस वक्त केंद्रीय गृह मंत्री का पदभार संभाला, वामपंथी उग्रवाद को जम्मू-कश्मीर से भी बड़ी चुनौती माना जा रहा था. जिस रविवार भारत-पाकिस्तान दुबई में भिड़ रहे थे, दोपहर में मैच शुरू होने के दौरान ही शाह ग्रुप एडिटोरियल डायरेक्टर राज चेंगप्पा और सीनियर एसोसिएट एडिटर राहुल नरोन्हा के साथ दिल्ली के कृष्ण मेनन मार्ग स्थित अपने आवास के ड्राइंग रूम में बैठे, और नक्सली खतरे से निबटने की मोदी सरकार की रणनीति के बारे में पहली बार इतने विस्तार से बात की.
अगले घंटे भर तक एक बार भी उन्होंने स्कोर देखने को टीवी की ओर गर्दन नहीं घुमाई. मार्च 2026 तक नक्सली खतरे का पूरी तरह से सफाया कर देने की अपनी सरकार की बहुआयामी रणनीति का उन्होंने ब्यौरेवार ढंग से खुलासा किया. जो समस्या पिछले पांच दशक से नासूर बनी हुई है, उसे समाप्त करने के लिए इतनी सख्त समयसीमा रखने का आत्मविश्वास उनमें कैसे आया? इस सवाल पर शाह कहते हैं, "महज आत्मविश्वास से नक्सलवाद का खात्मा होने से रहा. मैंने पहले से ही कर लिए काम के बूते पर यह बयान दिया है." पढ़िए बातचीत के अंश:
● आपने 2019 में केंद्रीय गृह मंत्री का पद संभाला था तो नक्सलियों या वामपंथी उग्रवाद के खतरे को लेकर आपकी राय क्या थी? और उसे खत्म करने को आपने क्या रणनीति बनाई थी?
केंद्रीय गृह मंत्री की कुर्सी 2019 में संभालने के बाद मुझे बताया गया कि नक्सल या वामपंथी उग्रवाद का मुद्दा कश्मीर से भी बड़ा है. एक मायने में विकास की कमी से उपजा असंतोष नक्सलवाद की वजह माना जा सकता है. आजादी के बाद से 1990 के दशक तक हमारे देश में संसाधनों की कमी थी. व्यवस्थित विकास संभव न था, लिहाजा ये इलाके प्रगति में पिछड़े रहे. वामपंथी विचारधारा ने लोगों के मन में यह बात बैठाने के लिहाज से इस इलाके को खासी उपजाऊ जमीन पाया कि हिंसा से विकास का रास्ता खुलता है.
उन लोगों ने इन इलाकों में लोगों को हिंसा का सहारा लेने के लिए उकसाया. हथियारों और हिंसा की जगह विकास और विश्वास का माहौल पैदा करने की खातिर हमने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में तथाकथित लाल गलियारे के लिए मोटे तौर पर चार स्तरीय रणनीति तैयार की, जो नेपाल में पशुपतिनाथ से आंध्र प्रदेश के तिरुपति तक फैला था.

● आपने जिन चार रणनीतियों का जिक्र किया, उनमें पहली रणनीति क्या थी?
नक्सलियों के खिलाफ मोदी सरकार की कार्ययोजना का पहला पहलू बंदूक उठाने वालों और हिंसा के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ सख्त और निर्मम कार्रवाई करना था. हमने इलाके में तैनात राज्य पुलिस बलों और केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (सीएपीएफ) के प्रशिक्षण, एकीकरण और क्षमता निर्माण के जरिए अधिकतम बल का इस्तेमाल किया. हमने दबदबे के लिए अधिक रेंज वाली आधुनिक असाल्ट राइफलों और इसी तरह के दूसरे हथियारों का इस्तेमाल किया.
● प्रमुख नक्सलग्रस्त इलाकों में सुरक्षा बलों की पहुंच में भारी कमी दूर करने को क्या योजना थी?
यही दूसरी रणनीति थी. ज्यादातर नक्सलग्रस्त जिलों में सुरक्षा बलों की पहुंच बढ़ाने के लिए केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (सीएपीएफ) ने राज्य पुलिस के साथ मिलकर ज्यादा शिविर स्थापित किए, जिन्हें फॉरवर्ड ऑपरेटिंग बेस (एफओबी) कहा गया, जो नक्सलियों से इलाके को खाली कराने के लिए सुनियोजित तरीके से काम करते थे. पिछले पांच वर्षों में 302 नए शिविर बनाए गए हैं.
रणनीतिक रूप से, जैसे ही हमने उन इलाकों से नक्सलियों को साफ कर दिया, तो उन्हें पुलिस को सौंप दिया गया, ताकि एफओबी बाकी इलाकों को खाली करने के लिए आगे बढ़ सके. इसके लिए हमने 2014 से फोर्टिफाइड पुलिस स्टेशन कार्यक्रम का विस्तार किया और पहले के 66 के मुकाबले 612 ऐसे स्टेशन या थाने बनाए गए. उन थानों में हमने नक्सलियों से मुक्त इलाकों में स्थानीय लोगों की सुरक्षा के लिए संचार सुविधाओं के साथ पर्याप्त सशस्त्रकर्मियों को तैनात किया.
● निगरानी वगैरह और दूसरे मामलों में आधुनिक टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किस हद तक है?
हमने नक्सलियों से लड़ने वाले अपने जवानों को आधुनिक टेक्नोलॉजी का प्रशिक्षण दिया है. हमने ड्रोन, सैटेलाइट इमेजिंग और एआई समेत इन्फ्यूजन तकनीक के साथ खुफिया जानकारी जुटाने का आधुनिकीकरण किया गया है. इससे हमारे जवानों को नक्सली आंदोलन के रुझान का पता लगाने में मदद मिली. पहले नक्सलियों के घात लगाकर हमलों में हमारे जवान ज्यादा हताहत होते थे. मुठभेड़ के दौरान जवान उनका पीछा करते थे और खुद को हर तरफ से घिरा पाते थे.
अब ड्रोन की मदद से वे देख सकते हैं कि नक्सली कहां छिपे हैं और बचाव की योजना बना सकते हैं. साथ ही, लोकेशन-ट्रैकिंग, मोबाइल फोन की गतिविधियों, वैज्ञानिक कॉल लॉग और सोशल मीडिया विश्लेषण जैसी तकनीकों के जरिए हम नक्सली आंदोलन पर कड़ी नजर रखने में सक्षम हैं. अपने जवानों का मनोबल बढ़ाने के लिए हमने फौरन उन्हें अस्पताल पहुंचाने और ऑपरेशन की सहूलियत के लिए हेलीकॉप्टर तैनात किए हैं. इसके अलावा, हमने पुलिस थानों में सेवा देने के लिए नक्सलग्रस्त जिलों से 1,143 लोग भर्ती किए हैं.
● कितने नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है और यह कितना कारगर रहा है?
पिछले 10 वर्षों में लगभग 7,500 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है, जिसका मुख्य कारण हमारे ऑपरेशन में इजाफा है. बदले में वे भविष्य में होने वाले आत्मसमर्पण में भूमिका निभाते हैं. इनमें आत्मसमर्पण करने वाले कई नक्सली जिला रिजर्व गार्ड समेत राज्य पुलिस में आ गए हैं. वे इलाके और नक्सली रणनीति को अच्छी तरह जानते हैं और हमारे लिए ताकत बन गए हैं. आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों का उपयोग बड़ी योजना में जनशक्ति के अनोखे इस्तेमाल की मिसाल है और इसका एक मॉडल के रूप में विश्लेषण और अध्ययन किया जाना चाहिए.
● शीर्ष नक्सल नेताओं को खत्म करने में कितनी कामयाबी मिली है?
नक्सलियों के पोलित ब्यूरो और केंद्रीय समिति के सदस्यों के प्रति हमारा नजरिया उनका पता लगाना, उन्हें निशाने पर लेना और समाप्त करना है. हमने पिछले पांच वर्षों में 15 ऐसे नक्सली नेताओं को खत्म किया है. उनके अलावा, पिछले एक साल में ही हमने एक जोनल कमेटी सदस्य, पांच सब जोनल कमेटी सदस्य, दो राज्य कमेटी सदस्य, 31 संभागीय कमेटी सदस्य और 59 एरिया कमेटी सदस्यों को मार गिराया है.
उनके नेतृत्व को निशाना बनाने से नक्सल आंदोलन पर गंभीर असर पड़ा है. हालांकि, हमारी पहली कोशिश नक्सलियों को हिंसा छोड़कर मुख्यधारा में शामिल होने के लिए राजी करना है. उनका खात्मा ऐसा विकल्प है जिसका इस्तेमाल हम सिर्फ बेकसूर आदिवासी लोगों के जीवन को बंदूकधारी अपराधियों से बचाने के लिए करते हैं जो आत्मसमर्पण करने के बजाय लोगों के लिए गंभीर खतरा बने हुए हैं.
● नक्सलियों के पैसे और हथियारों की सप्लाई रोकने के लिए क्या किया गया है?
मोदी सरकार की तीसरी रणनीति नक्सलियों को पैसे और हथियारों की आपूर्ति पर अंकुश लगाना था. तेंदू पत्ता तोड़ने वालों से अवैध वसूली और सड़क ठेकेदारों से जबरन उगाही उनके पैसे का मुख्य स्रोत था. हमने जो कुछ किया, उनमें एक ऑनलाइन भुगतान प्रणाली शुरू करना था, जिससे नक्सलियों के पास जाने वाले धन पर लगाम लगी.
ठेकेदारों से नक्सलियों की जबरन वसूली को रोकने के लिए हमने उनमें सुरक्षा की भावना पैदा की. फिर हमने राष्ट्रीय जांच एजेंसी में एक अलग इकाई बनाई, जिसने 40 करोड़ रुपए से ज्यादा की नक्सली संपत्ति जब्त की. प्रवर्तन निदेशालय भी उनकी मनी-लॉन्ड्रिंग गतिविधियों पर कड़ी निगरानी रख रहा है और उसने उनकी 12 करोड़ रुपए की संपत्ति जब्त की है. हमने वामपंथी उग्रवाद वाले इलाकों में विदेशी मदद को कम करने और संदिग्ध गैर-सरकारी संगठनों और दूसरे संगठनों के खातों को फ्रीज करने के कदम उठाए हैं.
● क्या अर्बन नक्सल या नक्सल समर्थक या शहरों में विभिन्न तरीकों से उनकी मदद करने वाले लोग भी जांच के दायरे में हैं?
ऐसे लोगों की पहचान करना बहुत मुश्किल है. पहचान तभी होती है जब एजेंसियों के हाथ में डिवाइस लग जाती है, जैसा कि महाराष्ट्र में हुआ. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कोई भी व्यक्ति दूर से नक्सलियों की भर्ती नहीं कर सकता और इसके लिए उसे गांवों में जाना होगा. हमने आश्वस्त किया है कि वे रंगरूटों की भर्ती के लिए गांवों में न जा सकें.
● आपने राहुल गांधी को भी अर्बन नक्सल कहा था.
मैंने कहा कि राहुल गांधी जिस भाषा का इस्तेमाल करते हैं, वह अर्बन नक्सल की भाषा है.
● नक्सलवाद का प्रसार इन राज्यों के सबसे पिछड़े इलाकों में विकास की कमी के कारण हुआ. मोदी सरकार ने इसे बदलने के लिए क्या किया है?
यह हमारी कार्ययोजना की चौथी रणनीति है. जैसे ही कोई इलाका नक्सलवादियों से मुक्त हुआ, हमने विकास योजनाओं को आगे बढ़ाया. हमारा मकसद यह तय करना था कि लोगों के पास नक्सलवाद की ओर लौटने का कोई कारण न हो. जब लोगों को इन योजनाओं का लाभ मिलना शुरू हो जाता है, तो वे अपने गांवों में भी नक्सलियों से मुंह मोड़ लेते हैं. हमने जो काम किए, उनमें इन दूरदराज के इलाकों में लंबे समय से जरूरी बुनियादी ढांचे का विकास करना भी शामिल है.
मोदी सरकार के पिछले 10 साल में हमने 11,503 किलोमीटर से ज्यादा सड़कें बनाई हैं. अब हमने आने वाले वर्षों में 17,589 किलोमीटर अतिरिक्त सड़कें बनाने के लिए 20,815 करोड़ रुपए मंजूर किए हैं. हमने सेलुलर संचार सुविधाओं के लिए मोबाइल टावर लगाने का काम भी शुरू कर दिया है और अब तक 4,080 करोड़ रुपए की लागत से करीब 2,343 टावर लगाए जा चुके हैं.
अब हम दूसरी योजनाओं के जरिए 8,527 और टावर बनाने की योजना बना रहे हैं जो 4जी के अनुकूल भी होंगे. इनके अलावा हमने सबसे ज्यादा नक्सलग्रस्त 90 जिलों में 1,007 से ज्यादा बैंक और 5,731 डाकघर खोले हैं. सरकारी योजनाओं में एकदम संतोषजनक नतीजा कोई आसान काम नहीं है. गैस कनेक्शन, शौचालय, घर और खाद्यान्न समेत 300 में से 112 योजनाओं में कई को स्थानीय मांगों के अनुरूप बदला गया है ताकि उनका लाभ उन तक पहुंच सके.
● नक्सल प्रभावित इलाकों में युवाओं के लिए योजनाओं के बारे में क्या कहेंगे?
मोदी सरकार मानती है कि गरीबी के दुष्चक्र को तोड़ने के लिए हुनरमंद बनाना सबसे अच्छा तरीका है. इसलिए हमने पिछले सात दशकों के नुक्सान की भरपाई के लिए नक्सल प्रभावित इलाकों में युवाओं को हुनरमंद बनाने पर खास जोर दिया है. ऐसे 48 जिलों में 48 औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों (आइटीआइ) को 495 करोड़ रुपए आवंटित किए गए; 61 कौशल विकास केंद्रों की मंजूरी दी गई है.
● ये सारी रणनीतियां कितनी असरदार साबित हुईं?
हमने अगस्त 2019 से दिसंबर, 2022 तक तैयारियां पूरी कर लीं और उसके तुरंत बाद समग्र अभियान शुरू हो गया. एक के बाद एक राज्यों की सफाई शुरू की. जब मैंने गृह मंत्री के रूप में काम संभाला, आंध्र और तेलंगाना में तो कम ही बचा था, लेकिन हमने इन राज्यों की पूरी तरह सफाई की. 2023 आते-आते हमने ओडिशा, बिहार, झारखंड और मध्य प्रदेश को नक्सल खतरे से मुक्त कर दिया था. हम 10 राज्यों के नक्सल प्रभावित जिलों को 2014 में 126 से अब 12 पर ले आए हैं. नक्सल प्रभावित जिलों में सुरक्षाकर्मियों और नागरिकों की मौतों में 2014 के बाद 70 फीसद से ज्यादा कमी आई. इन इलाकों में हिंसा की घटनाएं आधी रह गई हैं. पक्के तौर पर मेरा मानना है कि 31 मार्च 2026 तक भारत नक्सल खतरे से पूरी तरह मुक्त हो जाएगा.
● इतने सारे राज्य जुड़े होने पर आपने केंद्र और इन राज्यों के बीच तालमेल कैसे पक्का किया? क्या मुश्किलें पेश आईं?
मोदी सरकार ने समन्वय की तीन स्तरीय प्रणाली अपनाई. केंद्र और राज्यों के मंत्री स्तर पर तालमेल था, फिर राज्य और जिला स्तरों पर तालमेल था, और तीसरा पहलू केंद्रीय एजेंसियों और राज्य स्तर की लॉ ऐंड ऑर्डर एजेंसियों के बीच तालमेल था. 2019 में जब मैंने काम संभाला, मैंने वामपंथी उग्रवाद प्रभावित राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ 11 समीक्षा बैठकें कीं, जिनमें केंद्रीय मंत्री भी शामिल थे, और एजेंसियों के साथ 83 रणनीतिक बैठकें कीं.
इनमें हमने रणनीतियां तैयार कीं और तुरत-फुरत समाधान दिए, जिनमें केंद्रीय सुरक्षा बलों की तैनाती करना और हथियार सरीखे जरूरी संसाधन देना शामिल था. हमें विपक्ष शासित राज्यों से पूरा सहयोग मिला, सिवा छत्तीसगढ़ के जब वहां कांग्रेस का शासन था, जहां हमें ढेरों परेशानियां थीं.
● छत्तीसगढ़ में क्या मसले थे जब वहां 2018 से 2023 तक कांग्रेस सत्ता में थी?
मैं यह तो नहीं कहूंगा कि वे सुरक्षा बलों के खिलाफ थे लेकिन वे बहुत उत्साही भी नहीं थे. राज्य की पुलिस, वन और आदिवासी विभागों समेत राज्य प्रशासन के जैसे पूरे समर्थन की हमें जरूरत थी, वह नहीं मिल रहा था. छत्तीसगढ़ में भाजपा के सत्ता में आने के बाद पिछले 15 महीनों में हमने अभियान में नई जान फूंकी. जनवरी 2024 से मैंने नए मुख्यमंत्री, उनके संबंधित कैबिनेट मंत्रियों और (अभियान में) शामिल केंद्र सरकार के शीर्ष विभागों के साथ विस्तृत समीक्षा बैठकें कीं और एक्शन प्लान तैयार किया.
उसके बाद अगस्त और दिसंबर 2024 में विस्तृत समीक्षाएं कीं और मैं खुद कई नक्सली इलाकों में गया. नतीजे खुद बोलते हैं. 2014 में छत्तीसगढ़ में 18,000 वर्ग किमी इलाका नक्सल प्रभावित था. आज यह घटकर 8,500 वर्ग किमी रह गया है और हर महीने तेजी से घट रहा है. पिछले साल हमने बस्तर ओलंपिक का आयोजन किया, जिसमें नक्सली हिंसा से प्रभावित लोगों ने हिस्सा लिया. मैं नक्सल प्रभावित सुकमा और गुंडम क्षेत्रों में भी गया ताकि वहां रह रहे लोगों को यह सकारात्मक संदेश दे सकूं कि विकास के लिए लड़ाई में मोदी सरकार उनकी भरोसमंद साथी है.
● माओवाद के पदचिन्ह फिलहाल भले सिमट रहे हों लेकिन इन इलाकों में आंदोलन के फिर जिंदा होने की कितनी संभावनाएं हैं?
आंदोलन का जिंदा होना तभी संभव है जब सरकार इन गांवों में स्कूल, पीने का पानी, सड़कें और बिजली देने में नाकाम हो जाती है. ये ज्यादातर आदिवासी गांव हैं, जहां रहने वाले लोगों को आरक्षण के लाभ मिलते हैं. सरकारी भर्ती में उन्हें प्राथमिकता मिलती है और पुलिस में उनकी भर्ती के लिए हमने शारीरिक फिटनेस और शिक्षा के मानदंडों में छूट भी दी है. फिर जीवित होने का अंदेशा अब कम है.
मसलन सीआरपीएफ की विशेष बस्तरिया बटालियन बनाई गई और छत्तीसगढ़ के चार बेहद नक्सल प्रभावित जिलों से हमने 1,143 से ज्यादा कर्मियों की भर्ती की. राज्य के पुलिस विभाग में करीब 6,500 पद भरने के लिए भर्ती प्रक्रिया चल रही है. नक्सल इकोसिस्टम पर गहरी चोट पड़ी है और यह तेजी से खत्म हो रहा है.
● 31 मार्च, 2026 को किसी इलाके को नक्सल मुक्त घोषित करने का पैमाना क्या होगा और इस समयसीमा को पूरा करने का कितना विश्वास आपको है?
अगर किसी इलाके के 98 फीसद पुलिस थानों में पूरे साल नक्सलवाद की एक भी घटना नहीं होती, तो उस इलाके को नक्सल मुक्त घोषित किया जाएगा. जहां तक आपके सवाल के दूसरे हिस्से की बात है, विश्वास होने भर से नक्सली खत्म नहीं होते. काफी काम कर लिया. उस किए हुए काम के आधार पर यह बयान दिया.