बिहार में गोपालगंज जिले के फतेहपुर गांव में एक साधारण से घर में 52 वर्षीय रौशन अली परेशान बैठे हैं. उनका 23 वर्षीय बेटा वाहिद और 28 वर्षीय भानजा सऊद म्यांमार के अराजक म्यावड्डी क्षेत्र में फंसे हुए हैं. उनसे थाइलैंड में डेटा एंट्री की नौकरी का वादा किया गया और लालच दिया गया कि हर महीने 1 लाख रुपए मिलेंगे. लेकिन इसके बजाए उन्हें चोरी-छिपे सीमा पार ले जाया गया और एक फर्जी कॉल सेंटर में साइबर अपराध के लिए मजबूर किया गया.
वाहिद ने एक डरावना वीडियो घर भेजा जिसमें उसने कैमरे के जरिए अपने आसपास की भयावह असलियतों से रू ब रू कराया है—सूखने के लिए कपड़े टंगे हैं, कमरे के बाहर अस्थायी पर्दा लटका है और परिसर की दीवारों के पार घना जंगल है. उसकी आवाज थरथराती है, "हमें घोटाले वाले कॉल सेंटर में काम करने के लिए मजबूर किया जाता है. हथियारबंद गार्ड नजर रखते हैं. अगर हम मना करते हैं, तो वे गोली मारने की धमकी देते हैं. सत्रह घंटे की शिफ्ट, कोई आराम नहीं, कोई छुट्टी नहीं. और रिहाई के लिए वे 7,000 डॉलर (6 लाख रुपए) की फिरौती मांगते हैं. नामुमकिन!"
यह उनका मामा ही था जिसने वाहिद और सऊद को दुबई के एक एजेंट से मिलवाया था. 2.5 लाख रुपए जमा करने के बाद बेहतर भविष्य की उम्मीद में वे आखिरकार अक्तूबर 2024 में थाइलैंड रवाना हुए. लेकिन वहां पहुंचने पर उन्हें मोई नदी के पार तस्करी के जरिए म्यांमार के युद्धग्रस्त इलाके में लाया गया जो घोटाले के परिसरों के लिए बदनाम है और जहां ताकतवर गिरोह बेलगाम होकर काम करते हैं.
ड्राइवर रौशन अली के लिए यह कभी खत्म नहीं होने वाला दु:स्वप्न है. "मैंने भारतीय दूतावास को ईमेल भेजा है, दुबई के एजेंट को 1.2 लाख रुपए और दिए और पुलिस में शिकायत दर्ज कराई है... मेरा बेटा मदद की गुहार लगा रहा है और हम लाचार हैं." दुख की बात यह कि उनकी दुर्दशा कोई अनोखी नहीं है.
अक्टूबर 2024 की संयुक्त राष्ट्र (यूएन) की रिपोर्ट से खुलासा होता है कि संगठित अपराध सिंडिकेट हजारों युवकों और युवतियों की तस्करी कर रहे हैं, वे उन्हें अक्सर सोशल मीडिया के जरिए नौकरी के फर्जी ऑफरों का लालच देकर गैरकानूनी तरीके से घोटाले के अड्डों पर काम करने के लिए मजबूर कर रहे हैं. साइबर दासता के ये अड्डे पहले कंबोडिया में होते थे लेकिन अब लाओस और म्यांमार में फैल गए हैं. इन जगहों पर आपराधिक नेटवर्क अपनी गतिविधियों को चलाने के लिए कैसिनो के बुनियादी ढांचे, विशेष आर्थिक क्षेत्रों और कानून के कमजोर प्रवर्तन का फायदा उठाते हैं.
नशे और अपराध पर संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (यूएनओडीसी) के अनुसार, दक्षिण-पूर्व एशिया में घोटालों के कारण वित्तीय नुक्सान 2023 में 18 अरब डॉलर (1.6 लाख करोड़ रुपए) और 37 अरब डॉलर (3.2 लाख करोड़ रुपए) के बीच पहुंच गया. इसका काफी कुछ हिस्सा इन तीन देशों में संगठित अपराध से जुड़ा हुआ है.
इनके ऑपरेशन का तरीका एक जैसा है: तस्करी कर लाए गए लोगों को एआइ-संचालित फेस-स्वैपिंग (चेहरा बदलने) और वॉयस रेप्लिकेशन (आवाज की नकल) जैसे टूल्स का इस्तेमाल करते हुए लोगों को धोखा देने के लिए मजबूर किया जाता है. यह समस्या दुनिया भर में है—एशिया, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका से पीड़ित लोगों को भर्ती किया जाता है जबकि डिजिटल घोटाले में एशिया, यूरोप, उत्तरी अमेरिका और ओशिएनिया के लोगों को निशाना बनाया जाता है.
भारत की बड़ी चिंता
भारत भी इस परेशान करने वाले रुझान का शिकार हो रहा है. पिछले साल केंद्रीय गृह मंत्रालय (एमएचए) के तहत आव्रजन ब्यूरो की ओर से संकलित आंकड़ों के अनुसार जनवरी 2022 और मई 2024 के बीच थाइलैंड, वियतनाम, म्यांमार और कंबोडिया में विजिटर वीजा पर यात्रा करने वाले 29,466 भारतीय वापस नहीं आए. यह वह अवधि भी थी, जब गृह मंत्रालय के एक विभाग, भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (आइ4सी) ने दक्षिण पूर्व एशिया से होने वाले साइबर अपराधों में अच्छी-खासी वृद्धि देखी.
अकेले बिहार की आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) ने ऐसे 374 लोगों की पहचान की है जो पर्यटक वीजा पर दक्षिण पूर्व एशियाई देशों की यात्रा पर गए और लापता हो गए. ईओडब्ल्यू के एक अधिकारी ने इंडिया टुडे को बताया, "उनमें से कई को साइबर अपराधों का काम करने के लिए मजबूर किया गया." एजेंसी ने सावधानी के साथ इस सूची का सत्यापन किया है और ऐसे 69 लोगों का साक्षात्कार लिया है जो वहां से भागने में सफल रहे, हालांकि अक्सर उनके परिवारों को रिहाई के लिए फिरौती देने को मजबूर होना पड़ा.
13 फरवरी को विदेश राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह ने राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में इस मुद्दे को स्वीकार किया. उन्होंने जोर देते हुए कहा कि सरकार "विदेश में रोजगार के लिए जाने वाले भारतीय नागरिकों की सुरक्षा, संरक्षा और कल्याण को सर्वोच्च प्राथमिकता देती है." उन्होंने यह भी कहा कि दिसंबर 2024 तक मंत्रालय के ई-माइग्रेट पोर्टल पर 3,111 बिना पंजीकरण वाले घरेलू एजेंटों के बारे में अधिसूचित किया गया है. यह पोर्टल विदेशी नौकरियों के लिए है.
जहां भारतीय पीडि़तों की संख्या के बारे में ठीक से पता नहीं है, वहीं दक्षिण पूर्व एशिया में भारत के राजनयिक मिशनों ने पिछले तीन साल में कंबोडिया से कम से कम 1,091 नागरिकों, लाओस से 770 और म्यांमार से 497 नागरिकों को सफलता के साथ निकाला है. फरवरी के मध्य में की गई ताजा अंतरराष्ट्रीय कोशिशों के तहत 20 देशों के 250 ऐसे लोगों को थाइलैंड लाया गया जिन्हें म्यांमार के एक नस्लीय हथियारबंद गुट ने रिहा किया था और इनमें भारतीय उपमहाद्वीप के 23 लोग भी थे.
म्यांमार में भारत के पूर्व राजदूत गौतम मुखोपाध्याय बताते हैं कि म्यांमार में उग्रवाद के हालात ने कैसे भारत के फंसे नागरिकों को बचाने के प्रयासों को जटिल बना दिया है. "म्यावड्डी क्षेत्र पर बॉर्डर गार्डिग फोर्सेज (सीमा रक्षक बलों) का नियंत्रण है, जिसमें पूर्व उग्रवादी समूह शामिल हैं. एक दौर में इन समूहों को सरकार में शामिल कर लिया गया था और वे राज्य के तंत्र से जुड़ गए. आज, घोटाले के अड्डे उनकी ही सरपरस्ती में काम करते हैं. यही वजह है कि सीमा क्षेत्र में इस तरह की गतिविधियां बढ़ गई हैं."
संबंधों की कीमत पर
जो लोग वापस आ गए हैं, वे खुद को भाग्यशाली मानते हैं. फिर भी उनके भयावह अनुभव बुरे साये की तरह उनके जेहन में बने हुए हैं. गोपालगंज के हथुआ बाजार के 28 वर्षीय शुभम कुमार का मामला लीजिए, जिसे भरोसेमंद परिचित उसके दोस्त के पिता ने धोखा दिया. शुभम से कंबोडिया में 1 लाख रुपए प्रति माह के वेतन का वादा किया गया, उसने 1.5 लाख रुपए का कमिशन पेशगी में ही दे दिया. नवंबर 2023 में वह पर्यटक वीजा पर कोलकाता से वियतनाम के हो ची मिन्ह शहर के लिए रवाना हुआ. वहां पहुंचने पर उसकी नकदी और पासपोर्ट को जब्त कर लिया गया और उसे कंबोडिया के सिहनोकविले में डीजी ग्रुप नाम के चीनी गिरोह को सौंप दिया गया. सिहनोकविले शहर अब साइबर गुलामी का दूसरा नाम बन गया है.
यहां शुभम का सामना कई देशों के लोगों से हुआ, जिन्हें पहले 'धोखाधड़ी के गुर’ सिखाए गए और फिर उन्हें होशियारी से ऑनलाइन घोटालों को अंजाम देने के लिए मजबूर किया गया, जो अक्सर 12 से 16 घंटे की कष्टसाध्य शिफ्टों में काम करते थे. शुभम बताता है, "मिशन साफ था: भारतीय नागरिकों को निशाना बनाना और उनको व्यवस्थित तरीके से ठगते हुए पैसे वसूलना." आपराधिक गिरोहों ने पीड़ितों को लूटने के लिए कई तरह की योजनाओं को अंजाम दिया.
इनमें रोमांस धोखाधड़ी और निवेश के फर्जी अवसरों से लेकर धोखेबाजी के ई-कॉमर्स वेंचर शामिल थे. इनमें भी निवेश घोटाले सबसे ज्यादा वसूली वाले साबित हुए. शुरुआती निवेशों में वाजिब रिटर्न दिखाया गया, जिससे भरोसा और आत्मविश्वास बढ़ा. एक बार जब पीड़ितों को लगा कि वे सुरक्षित हैं तो उन्होंने बड़ी रकम का निवेश किया. यह योजनाबद्ध तरीके से ठगने की ऐसी प्रक्रिया है जिसे 'बकरे को हलाल’ करना कहा जा सकता है, जहां शिकार को मारने से पहले खिलाकर 'मोटा’ किया जाता है.
शुभम का काम लोगों को इस तरह के धोखाधड़ी वाले निवेश उपक्रमों में फंसाना था. जब उसने इनकार किया तो उसे बंधक बना लिया गया, पीटा गया और करंट लगाया. ''मेरी सैकड़ों भारतीयों से मुलाकात हुई, जिनमें मेरे अपने राज्य के लोगों के साथ पाकिस्तानी, बांग्लादेशी और श्रीलंकाई लोग भी शामिल थे. ज्यादातर ने दबाव में आकर ऐसा किया. हालांकि मुट्ठी भर लोग ही ऐसे थे जो इस आपराधिक करतूत को स्वेच्छा से करने को तैयार हुए. हमें किले जैसे बंद अहातों में रखा गया, जिनकी ऊंची-ऊंची दीवारें थीं और जिन पर नुकीले कांटों की बाड़ लगी थी.
कोई भागने की सोच भी नहीं सकता था.’’ कई दिनों की यातना के बाद शुभम के परिवार ने उसकी रिहाई के लिए 2 लाख रुपए का भुगतान किया. 25 दिसंबर, 2023 को वह भारत लौट आया और अपने दोस्त के पिता और अन्य अपराधियों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई. शुभम की कहानी उनमें से एक है जिनका अंत सुखद रहा है. कई लोग अभी फंसे हुए हैं और सहारे की उम्मीद में उनके परिवार अधिकारियों और बिचौलियों के पास लगातार भटक रहे हैं, लेकिन शायद उन्हें न मिले.
एनआईए की सख्ती
इस अंतरराष्ट्रीय मानव तस्करी नेटवर्क को खत्म करने की भारत की कोशिशों की अगुआई राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) कर रही है. उसने मई 2024 से कार्रवाई तेज कर दी है. उस महीने, एजेंसी ने स्थानीय पुलिस बलों के सहयोग से छह राज्यों में तालमेल के साथ छापेमारी करके पांच लोगों को गिरफ्तार किया जिनमें गोपालगंज का एक निवासी भी शामिल था. अंग्रेजी और कंप्यूटर में पारंगत भारतीय नौजवानों को निशाना बनाने के आरोप में एजेंसी ने दो विदेशी नागरिकों सहित पांच लोगों के खिलाफ जून तक आरोपपत्र दायर कर दिया.
जुलाई में लाओस और दक्षिण-पूर्व एशिया के दूसरे देशों से जुड़े मानव तस्करी और साइबर धोखाधड़ी के एक मामले में दिल्ली में चार प्रमुख संदिग्धों को हिरासत में लिया गया था. नवंबर में यह कार्रवाई और तेज हो गई जिसमें बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, दिल्ली, महाराष्ट्र और पंजाब में ट्रैवल एजेंटों को निशाना बनाकर व्यापक तलाशियां ली गईं.
दिसंबर में एजेंसी ने बड़ी सफलता हासिल की और साइबर गुलामी गिरोह के कथित सरगना कामरान हैदर को दबोच लिया. उस पर 2 लाख रुपए का नकद इनाम था. हैदर सलाहकार फर्म की आड़ में काम करता था और फ्लाइट टिकटों की व्यवस्था करने और युवाओं को तस्करी करके अवैध रूप से सीमा पार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था. इससे पहले सितंबर में एनआईए ने लाओस की एक फर्म के सीईओ सुदर्शन दराडे के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की थी. यह फर्म रोजगार एजेंसी की आड़ में भोले-भाले भारतीयों की बैंकॉक के रास्ते लाओस के गोल्डन ट्राइंगल स्पेशल इकोनॉमिक जोन (एसईजेड) तक कथित तौर पर तस्करी कर रही थी. वहां पहुंचने पर उनको क्रिप्टोकरेंसी धोखाधड़ी में शामिल होने के लिए मजबूर किया गया.
एनआईए की जांच से आधुनिक दौर की गुलामी के व्यापक पैमाने और क्रूरता का पता चलता है. इसके लिए वैश्विक सहयोग, सख्ती से कानून लागू करने और अधिक जन जागरूकता की जरूरत है. भारत सरकार ने जागरूकता अभियान तेज कर दिए हैं. राज्य सरकारों के सहयोग से एसएमएस अलर्ट, रेडियो अभियान और डिजिटल सुरक्षा सप्ताह जैसी पहलकदमियों का उद्देश्य जनता को नौकरियों के फर्जी प्रस्तावों सहित घोटालों के बारे में शिक्षित करना है. अखबारों और सार्वजनिक स्थानों पर नोटिसों के जरिए लोगों को आगाह किया जाता है.
आगे की राह
हालांकि, बिहार के छोटे शहरों जैसी चुनौतियां बरकरार हैं. विदेशी नौकरियों की ऊंची मांग और सख्त नियमों की कमी के कारण ऐसे कस्बों में बिना पंजीकरण वाले एजेंट मानव तस्करों के मददगार होते हैं. एनआईए को इस तरह के घरेलू नेटवर्क को तोड़ने में कुछ सफलता भले ही मिली हो लेकिन पहले से फंसे लोगों को मुक्त कराने के लिए उसके पास कोई अधिकार नहीं है. उनकी रिहाई कराना लंबी और कठिन प्रक्रिया है. इसके लिए पर्दे के पीछे बातचीत और लगातार कोशिशों की जरूरत होती है. देर और सहयोग की कमी के कारण इन घोटालों को और फलने-फूलने का मौका मिला है.
मुखोपाध्याय इस संकट से निबटने के लिए व्यापक रणनीति की जरूरत बताते हैं. वे कहते हैं, "इन अवैध गतिविधियों पर लगाम लगाने के लिए भारत को म्यांमार के अधिकारियों पर कूटनीतिक दबाव डालना होगा. थाइ सरकार पर दबाव डालना भी जरूरी है क्योंकि ये गतिविधियां उसकी सीमाओं के पार फैली हुई हैं. भारत में आव्रजन अधिकारियों को सख्त जांच करने की जरूरत है—इन क्षेत्रों यात्रा करने वालों से व्यापक पूछताछ करने और उन्हें जॉब ऑफर की पुष्टि के लिए प्रोत्साहित करने की जरूरत है."
इस बीच, वाहिद और सऊद जैसे फंसे लोगों के लिए हर दिन उनकी निराशा बढ़ा देता है, उनकी तकदीर अपहर्ताओं की सनक पर टिकी है. शुभम की तरह वापस आने वालों को भी आजादी की कीमत चुकानी पड़ती है. वित्तीय तबाही उनके कष्ट और बढ़ा देती है— बचत खत्म हो जाती है, कर्ज बढ़ जाता है और उनकी रिहाई सुरक्षित करने के लिए स्थिरता का बलिदान करना पड़ता है. इस दु:स्वप्न के निशान म्यावड्डी के परिसरों से कहीं आगे तक हैं. अपराधी बेहतर जीवन की तलाश करने वालों के भविष्य और सपनों को रौंद रहे हैं.