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10 हजार करोड़ की शाही संपत्ति क्यों घोषित हुई शत्रु संपत्ति; इसका सैफ अली खान से क्या है कनेक्शन?

भोपाल रियासत की एक संपत्ति को लेकर सैफ अली खान और उनके रिश्तेदारों की अर्जी पर आए एक अदालती आदेश से शत्रु संपत्ति अधिनियम के औचित्य पर फिर से बहस छिड़ गई है

the nation :  Enemy Property
विरासत का सवाल : भोपाल में फ्लैग स्टाफ हाउस और उसके आसपास का नजारा
अपडेटेड 12 मार्च , 2025

बालीवुड के मशहूर अदाकार सैफ अली खान इन दिनों उथलपुल भरे दौर से गुजर रहे हैं. अभी वे 16 जनवरी को मुंबई के घर में घुसपैठिए के हाथों चाकू से हुए हमले के बाद अस्पताल में भर्ती और ठीक होकर लौटे ही थे कि इस बीच मध्य प्रदेश हाइकोर्ट के एक आदेश ने भोपाल के उस तत्कालीन शाही परिवार से जुड़ी संपत्ति का विवाद को फिर सुलगा दिया जिसके सैफ प्रमुख सदस्य हैं.

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने अभिनेता सैफ अली खान और उनके परिवार की भोपाल स्थित संपत्ति को शत्रु संपत्ति घोषित किया गया है. इसका मतलब है कि सरकार अब शत्रु संपत्ति अधिनियम के तहत इस संपत्ति को जब्त कर सकती है. कोई आधिकारिक अनुमान तो नहीं है कि सैफ और उनके रिश्तेदारों ने विरासत में कितने मूल्य की संपत्ति मिलने का दावा किया है, लेकिन यह 10,000 करोड़ रुपए से ज्यादा की आंकी जाती है.

कई जगहों पर जमीन के अलावा भोपाल स्थित फ्लैग स्टाफ हाउस, लग्जरी होटल नूर-उस-सबा पैलेस, आवासीय संपत्ति दार-अस-सलाम, हबीबी का बंगला और अहमदाबाद पैलेस सहित कई इमारतें जांच के दायरे में हैं. भोपाल की शाही संपत्तियों का मामला अदालत की चौखट पर कैसे पहुंचा? भोपाल के शाही परिवार में संपत्ति को लेकर विवाद तो चल ही रहे थे, तभी दिसंबर 2014 में केंद्र सरकार के मुंबई स्थित महकमे कस्टोडियन ऑफ एनेमी प्रॉपर्टी या शत्रु संपत्ति अभिरक्षक ने शत्रु संपत्ति अधिनियम 1968 की धारा 11 का हवाला देते हुए सैफ अली खान को एक चिट्ठी भेजी.

यह कानून केंद्र सरकार को उन लोगों की संपत्ति या कारोबार पर दावा करने का अधिकार देता है जो बंटवारे के बाद पाकिस्तान चले गए या जिन्होंने चीन की नागरिकता ले ली. केंद्र सरकार का कानूनी जोर इस बात पर है कि भोपाल के आखिरी नवाब हमीदुल्लाह खान की सबसे बड़ी बेटी आबिदा सुल्तान 1950 में पाकिस्तान चली गईं. आबिदा नवाब की दूसरी बेटी और सैफ की दादी साजिदा की बहन हैं, जिन्हें नवाब की मौत के बाद ये संपत्तियां विरासत में मिलीं. साजिदा ने पटौदी के नवाब और क्रिकेटर इफ्तिखार अली खान से शादी की और भारतीय क्रिकेट टीम के मशहूर कप्तान और सैफ के पिता मंसूर अली खान 'टाइगर’ पटौदी उनके बेटे थे.

चिट्ठी में सैफ को बताया गया कि चूंकि नवाब हमीदुल्लाह की सबसे बड़ी बेटी आबिदा पाकिस्तान चली गई थीं और वही उनकी प्रत्यक्ष वारिस थीं, इसलिए भोपाल की सारी संपत्ति शत्रु संपत्ति घोषित किए जाने के योग्य हैं. अभिरक्षकों ने सैफ अली खान से संपत्तियों के ब्योरे पेश करने को कहा. मगर सैफ ऐसा कर पाते, उससे पहले ही अभिरक्षक ने फरवरी 2015 में कानून की धारा 5 के तहत प्रमाणपत्र जारी करके हमीदुल्लाह की सारी संपत्ति को 'शत्रु संपत्ति’ करार दे दिया.

इनमें से कई संपत्तियां या तो बेच दी गई हैं या तत्कालीन गद्दीनशीन परिवार के सदस्यों के कब्जे में नहीं हैं. अभिरक्षक ने मध्य प्रदेश सरकार से भी कहा कि वह इन संपत्तियों को अपने कब्जे में ले ले. उसी साल सैफ, उनकी मां और अदाकारा शर्मिला टैगोर, और उनकी फूफी सबीहा सुल्तान ने अभिरक्षक के आदेश को चुनौती देते हुए मध्य प्रदेश हाइकोर्ट में याचिका दायर की और इस मामले में स्थगन हासिल कर लिया.

मध्य प्रदेश हाइकोर्ट ने 13 दिसंबर, 2024 को तत्कालीन शाही परिवार के सदस्यों की तरफ से दायर याचिकाओं का निबटारा करते हुए 2015 का वह स्थगन हटा लिया और इस तरह शत्रु संपत्ति अधिनियम के तहत उनके अधिग्रहण का रास्ता संभावित रूप से खोल दिया. न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल ने अपने आदेश में बताया कि संशोधित शत्रु संपत्ति अधिनियम 2017 में विवादों के निबटारे के लिए विधिक तंत्र की व्यवस्था की गई है और याचिकाकर्ताओं से कहा कि वे 30 दिनों के भीतर केंद्रीय गृह मंत्रालय के संयुक्त सचिव के पास जाएं.

जिन्हें शत्रु संपत्ति अधिनियम के मामलों में अपीलीय प्राधिकार के रूप में नामजद किया गया है (यानी जिन्हें केंद्र सरकार ने अपीलों के निबटारे का अधिकार दिया है). जानकार सूत्रों ने बताया कि सैफ अली खान ने 8 जनवरी को अर्जी दाखिल कर दी. सैफ के एडवोकेट ऐश्वर्य विक्रम से जब इंडिया टुडे ने इस संबंध में प्रश्न किया तो उन्होंने मामले में टिप्पणी करने से मना कर दिया. 

शाही परिवार की जवाबी दलीलें

भोपाल की जानी-मानी रियासत को मुस्लिम रियासतों में हैदराबाद के बाद दूसरे पायदान की प्रतिष्ठा हासिल थी और ब्रिटिश उन्हें 19 तोपों की सलामी देते थे. भोपाल के आखिरी नवाब हमीदुल्लाह खान की तीन बेटियां थीं. जैसा कि पहले बताया गया है, उनकी सबसे बड़ी बेटी आबिदा सुल्तान 1950 में तभी पाकिस्तान चली गईं जब उनके वालिद भोपाल के नामजद हुक्मरान थे. वे वहीं रहीं और जब फरवरी 1960 में हमीदुल्लाह की मौत हुई तो उनकी छोटी बेटी साजिदा को केंद्र सरकार ने भोपाल के हुक्मरान की मान्यता दे दी.

ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि 1947 में आजादी के बाद भी रियासतों के तत्कालीन हुक्मरानों को प्रिवी पर्स, बिना रजिस्ट्रेशन प्लेट के वाहन और चाहे जितने हथियार रखने सरीखे आम विशेषाधिकार हासिल थे. तब के कुछ हुक्मरानों को कुछ खास विशेषाधिकार भी हासिल थे, जिन्हें उन्होंने भारत संघ के साथ बातचीत कर विलय के समझौते में जुड़वाया था. विलय का समझौता अनूठा दस्तावेज था जिसके जरिए हर हुक्मरान ने आजादी के बाद अपनी संप्रभुता केंद्र को समर्पित की थी. ये विशेषाधिकार 1971 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सरकार के हाथों खत्म किए जाने तक जारी रहे.

सैफ, उनकी मां और फूफी ने जो याचिका दायर की, उसमें कहा गया कि अभिरक्षक को मामले के तथ्य पता नहीं थे. याचिकाकर्ताओं ने अपने बचाव में कहा कि चूंकि केंद्र सरकार ने आखिरी नवाब की दूसरी बेटी साजिदा सुल्तान को रियासत की हुक्मरान के तौर पर मान्यता दी थी, इसलिए आबिदा सुल्तान का भोपाल की संपत्ति पर कोई दावा नहीं था.

यही नहीं, याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि अभिरक्षक का आदेश केंद्र सरकार और नवाब के बीच हुए विलय के उस समझौते के उल्लंघन के बराबर था जिसमें कहा गया था कि हुक्मरान की निजी संपत्ति पर कभी सवाल नहीं उठाए जाएंगे और वे राजस्व और वन कानूनों के तहत भी नहीं आएंगी. समझौते में खास तौर पर जिक्र है कि 829.28 एकड़ और 139.75 एकड़ माप के क्रमश: फिरदौस और रिजवान फार्म पर जागीरों के उन्मूलन का कोई असर नहीं पड़ेगा. विलय के समझौते के तहत तब के हुक्मरान को दिए गए विशेषाधिकार उनके वारिसों को भी दिए जाने थे.

याचिकाकर्ताओं ने अपने दावों के समर्थन में 1999 में साजिदा सुल्तान के चचेरे भाई-बहनों और बहन की तरफ से दाखिल मामले का हवाला दिया, जिसके जरिए उन्होंने हमीदुल्लाह खान की संपत्तियों का बंटवारा मुस्लिम पर्सनल लॉ के मुताबिक करने की मांग की थी. भोपाल जिला न्यायालय ने साजिदा सुल्तान के वारिसों के पक्ष में फैसला देते हुए कहा था कि आखिरी नवाब की निजी संपत्ति की एकमात्र वारिस साजिदा सुल्तान होंगी, जिन्हें भारत सरकार ने उनकी वारिस के रूप में मान्यता दी है. आखिर में सैफ व अन्य याचिकाकर्ताओं ने कहा कि अभिरक्षक का आदेश भोपाल रियासत के सिंहासन का उत्तराधिकार अधिनियम 1947 का उल्लंघन है जिसके तहत साजिदा सुल्तान को हुक्मरान घोषित किया गया था. 

अलग-अलग नजरिए

तत्कालीन भोपाल रियासत के एक तबके ने अलबत्ता इस मामले में अलग ही रुख अख्तियार किया. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के 2019 के एक आदेश का हवाला दिया जिसके मुताबिक तत्कालीन हुक्मरानों की संपत्तियों को निजी संपत्तियां माना जाना था और उनका बंटवारा प्रासंगिक निजी कानूनों के आधार पर किया जाना था. उन्हें 'गद्दी’ या हुकूमत से जुड़ी संपत्तियां नहीं मानना था—यानी पूर्व हुक्मरान की मिल्कियत वाली 'हुक्मरान की संपत्तियां’ पूरी तरह उनके/उनकी नामजद वारिसों को हस्तांतरित की जानी थीं. सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश एक और मुस्लिम रियासत रामपुर से जुड़ा है और इससे भोपाल की संपत्तियों के मामले में नया आयाम जुड़ सकता है.

भोपाल की तरह रामुपर के आखिरी नवाब रजा अली खान को भी केंद्र सरकार के साथ हुए विलय के समझौते में कुछ विशेषाधिकार दिए गए थे, जिसके तहत उनकी निजी संपत्तियां आम दस्तूर के मुताबिक पूरी तरह उनके वारिस को सौंपी जानी थीं. 1966 में जब रजा की मौत हुई, उनके सबसे बड़े बेटे मुर्तजा अली खान को केंद्र सरकार ने उनके वारिस के तौर पर मान्यता दे दी. मगर मुर्तजा के भाई ने इसे अदालत में चुनौती दी.

आखिरकार मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा जिसने 2019 में फैसला दिया कि हुक्मरान की निजी संपत्ति मुस्लिम पर्सनल लॉ के मुताबिक उनके सभी कानूनी वारिसों में बांटी जानी थीं. इस फैसले के आधार पर रामपुर की जिला अदालत ने 2021 में बंटवारे के एक मुकदमे का फैसला किया. नवाब की एक वारिस सैयदा महरुनिसा पाकिस्तान चली गई थीं और इसलिए उनका हिस्सा शत्रु संपत्ति अभिरक्षक के पास रख दिया गया.

इसके आधार पर भोपाल के शाही परिवार ने भी मध्य प्रदेश हाइकोर्ट में मामला दाखिल करके मांग की है कि भोपाल की संपत्तियों का बंटवारा भी शरीयत कानून के मुताबिक किया जाए. अगर उनकी दलील मानी जाती है, तो एक हिस्सा आबिदा सुल्तान के लिए तय किया जाएगा, जिसे फिर उनके प्रवासन की वजह से अभिरक्षक के पास रख दिया जाएगा. इस बीच राशिद उज जफर खान के भतीजे हमीदुल्ला का कोर्ट में प्रतिनिधित्व करने वाले वकील आदिल सिंह बोपाराय कहते हैं, '' रामपुर केस में सुप्रीम कोर्ट की व्यवस्था से यह स्पष्ट हो गया है कि संपत्ति का बंटवारा दीवानी कानून के मुताबिक कानूनी वारिसों में नियमानुसार किया जाएगा. भोपाल रियासत की संपत्ति वाले हमारे केस में एमपी हाइकोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा है.’’

इस बीच भोपाल के जिला प्रशासन ने अभी तक अभिरक्षक की तरफ से शत्रु संपत्ति घोषित संपत्तियों पर कब्जा हासिल करने की पहल नहीं की है. भोपाल के जिला मजिस्ट्रेट कौशलेंद्र विक्रम सिंह कहते हैं, ''हम अदालत के आदेश की जांच-पड़ताल कर रहे हैं और उसके मुताबिक कार्रवाई करेंगे.’’ सूत्रों का कहना है कि भोपाल में अब भी कई संपत्तियां हैं जिनका मालिक दिवंगत साजिदा सुल्तान को बताया गया है. तमाम निगाहें अपीलीय प्राधिकार केंद्रीय गृह मंत्रालय के संयुक्त सचिव पर हैं जिन्हें यह तय करना है कि अभिरक्षक का आदेश तर्कसम्मत है या नहीं. राज्य सरकार भी ज्यादा कुछ बताने को तैयार नहीं है. पूर्व रियासतदारों के लिए घड़ी का कांटा तेजी से घूम रहा है.

अभिरक्षक ने फरवरी 2015 में हमीदुल्लाह की सारी संपत्तियों को 'शत्रु संपत्ति’ करार दे दिया और मध्य प्रदेश सरकार से कहा कि इन संपत्तियों को अपने कब्जे में ले ले. रामपुर रियासत के केस में सुप्रीम कोर्ट के 2019 के एक आदेश का हवाला देकर भोपाल के शाही वारिसों का एक वर्ग यह मांग कर रहा है कि संपत्ति का बंटवारा पर्सनल लॉ के आधार पर होना चाहिए. पूर्व राजघराने के लिए यह अहम फैसला है.

सरकार का पक्ष 

चूंकि भोपाल के आखिरी नवाब हमीदुल्लाह खान की सबसे बड़ी बेटी और उनकी प्रत्यक्ष वारिस 1950 में पाकिस्तान चली गईं इसलिए भोपाल की सारी संपत्तियों को 'शत्रु संपत्ति’ घोषित किया जा सकता है

बेशकीमती जायदाद भोपाल का नूर-उस-सबा पैलेस

● शत्रु संपत्ति अभिरक्षक शत्रु संपत्ति (संशोधन) कानून 2017 के तहत ऐसी संपत्तियों का अधिग्रहण कर सकता है और ये संपत्तियां वारिसों को विरासत में नहीं मिल सकतीं

● आबिदा की बहन और इन संपत्तियों की मालिक साजिदा सुल्तान सैफ अली खान की दादी थीं

● इन संपत्तियों को 'शत्रु संपत्ति’ करार देने वाले अभिरक्षक के 2015 के प्रमाणपत्र को सैफ और उनके रिश्तेदारों ने अदालत में चुनौती दी और स्थगन हासिल कर लिया

● वह स्थगन दिसंबर 2024 में हटा लिया गया, जिस पर रियासतदारों ने अपील दायर की है.
 सैफ और अन्य की दलीलें 

● सैफ और उनके रिश्तेदारों का कहना है कि चूंकि केंद्र सरकार ने 1960 में साजिदा को हुक्मरान के तौर पर मान्यता दे दी थी, इसलिए आबिदा सुल्तान का इन संपत्तियों पर कोई दावा नहीं है

● उनका कहना है कि अभिरक्षक का आदेश नवाब हमीदुल्लाह खान और भारत संघ के बीच हुए विलय के समझौते के उल्लंघन के बराबर था

● यह समझौता और सुप्रीम कोर्ट का 1999 का आदेश कहता है कि नवाब की निजी संपत्ति केवल उनके वारिस को विरासत में मिलेगी, जो इस मामले में सैफ अली खान की दादी साजिदा सुल्तान हैं.

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