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रणवीर अलाहाबादिया के बेतुके बोल से उठी हद तय करने की बहस कहां जाकर रुकेगी?

एक यूट्यूब शो में बेतुके मजाक के साथ शुरू हुए इस मामले ने अश्लीलता, डिजिटल रेगुलेशन और अभिव्यक्ति की आजादी पर राष्ट्रीय बहस छेड़ दी है

रणवीर अलाहाबादिया
रणवीर अलाहाबादिया
अपडेटेड 5 मार्च , 2025

यूट्यूबर रणवीर अलाहाबादिया ने अपने 2020 के एक वीडियो 'डियर एंग्री इंडियंस' में चेताया था, "सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर के तौर पर हम जो कुछ कहते हैं, उसका इस्तेमाल हमारे खिलाफ किया जा सकता है." अब, ताजा विवाद के मद्देनजर यही कहा जा सकता है कि यह भविष्यवाणी उन पर ही सटीक साबित हुई है. बीयरबाइसेप्स के नाम से लोकप्रियता हासिल करने वाले 31 वर्षीय पॉडकास्टर रणवीर कॉमेडियन समय रैना के शो इंडियाज गॉट लेटेंट में एक विवादास्पद टिप्पणी करके विवादों में घिर गए हैं और इस मामले में अश्लीलता पर राष्ट्रीय बहस भी छेड़ दी है. एक बेतुके मजाक के साथ तूल पकड़ने वाली ये टिप्पणी अब डिजिटल रेगुलेशन और अभिव्यक्ति की आजादी की सीमाओं को परखने का मुद्दा बन चुकी है.

देशभर में इस टिप्पणी पर खासी तीखी प्रतिक्रिया हुई. अलाहाबादिया के साथ शो में मौजूद अन्य लोगों के खिलाफ भी महाराष्ट्र, असम और राजस्थान में कई एफआईआर दर्ज की गईं. इस पर राहत पाने के इरादे से रणवीर सुप्रीम कोर्ट पहुंचे और कोर्ट ने 18 फरवरी को सुनवाई के दौरान उन्हें कड़ी फटकार लगाई. जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने रणवीर की टिप्पणियों को 'घटिया', 'फूहड़' और 'विकृत मानसिकता' दर्शाने वाली बताया. हालांकि, कोर्ट ने अलाहाबादिया की गिरफ्तारी और कोई नई प्राथमिकी दर्ज किए जाने के खिलाफ राहत दे दी, साथ ही उन पर कड़ी शर्तें भी लगा दीं:

• अलाहाबादिया को अपना पासपोर्ट ठाणे पुलिस थाना में जमा कराना होगा और कोर्ट की मंजूरी के बगैर देश नहीं छोड़ेंगे.

• पुलिस जांच में पूरा सहयोग करना होगा.

• अगले आदेश तक उनका यूट्यूब या किसी अन्य सोशल मीडिया मंच पर कोई नया कंटेंट प्रसारित नहीं होगा.

यह प्रकरण सबसे लोकप्रिय डिजिटल कंटेंट तैयार करने वालों में शुमार रणवीर के लिए बड़ा झटका है. मुंबई निवासी एक डॉक्टर दंपती के बेटे रणवीर ने 2015 में 'बीयरबाइसेप्स' नाम से यूट्यूब चैनल शुरू करने के लिए इंजीनियरिंग करियर से दूरी बना ली थी. यह यूट्यूब चैनल शुरू में फिटनेस और सेहत पर केंद्रित था. 2019 में भारत के पॉडकास्टिंग के बढ़ते बाजार की संभावनाओं को पहचानते हुए उन्होंने द रणवीर शो (टीआरएस) की शुरुआत की, जिसमें बड़ी संख्या में केंद्रीय मंत्रियों और अन्य शीर्ष नेताओं के अलावा जानी-मानी हस्तियों और विचारकों ने शिरकत की. साथ ही रणवीर ने खुद को एक व्यापक फॉलोअर वाले साक्षात्कारकर्ता के तौर पर स्थापित कर लिया.

मेहमानों को खुलकर अपनी बात रखने का मौका देने के खास अंदाज ने उनके पॉडकास्ट को हिट बना दिया, यह 'स्पॉटीफाइ' चार्टबस्टर में शीर्ष पर रहा. यह अलग बात है कि इस पर 'प्रायोजित' होने के आरोप भी लगे. डिजिटल कंटेंट क्रिएशन के अलावा रणवीर ने 2017 में एक टैलेंट मैनेजमेंट फर्म मंक एंटरटेनमेंट की स्थापना की, एक मेंटल फिटनेस ऐप और कुछ अन्य उद्यम लॉन्च किए और इस तरह खुद को एक उद्यमी के तौर पर स्थापित किया. टीआरएस में उनके साथ काम करने वाले एक पूर्व कर्मचारी ने उन्हें शानदार 'उद्यमी', 'आध्यात्मिक' और लोगों से 'सहानुभूति रखने वाला' बताया और 'सामाजिक स्तर पर थोड़ा अजीब' करार दिया. फरवरी 2024 में अलाहाबादिया ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मंच साझा किया. पीएम ने उन्हें पहले राष्ट्रीय क्रिएटर्स अवार्ड्स में 'डिसरप्टर ऑफ द ईयर' पुरस्कार से सम्मानित किया था. आज उस पुरस्कार को वापस लेने की मांग बढ़ती जा रही है.

उच्चतम न्यायालय में अधिवक्ता अभिनव चंद्रचूड़ के नेतृत्व में उनकी कानूनी टीम ने दलील दी कि भले ही उनके मुवक्विल की कुछ टिप्पणियां नापसंद की गई हों लेकिन यह जरूरी नहीं कि वे अश्लीलता की श्रेणी में आती हों. उनकी दलील थी, अश्लीलता की कानूनी व्याख्याएं समय के साथ विकसित हुई हैं—1868 के हिकलिन टेस्ट ने किसी भी ऐसी सामग्री को अश्लील माना जो 'कलुषित और भ्रष्ट' हो जबकि अमेरिका के 1957 के रोथ टेस्ट ने यह निर्धारित करने के लिए समग्र सामग्री का मूल्यांकन किया कि क्या यह 'वासना' को बढ़ावा देने वाली है.

2014 में भारतीय न्यायपालिका ने अवीक सरकार बनाम पश्चिम बंगाल राज्य मामले में अपने रुख को और स्पष्ट किया. इसमें एक 'सामुदायिक मानक' अपनाया गया जिसमें अश्लीलता का निर्धारण करते समय समकालीन सामाजिक मूल्यों पर विचार करने पर जोर दिया गया. भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस), 2023 की धारा 294 के तहत अश्लील सामग्री की बिक्री, वितरण या प्रदर्शन अपराध है, और इसमें इसे ऐसी सामग्री के तौर पर परिभाषित किया गया है जो 'कामुक' या 'यौनिक प्रवृत्ति' को प्रोत्साहित करने वाली हो. इस अपराध में दो साल तक जेल की सजा का प्रावधान है. वहीं, सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) अधिनियम, 2000 की धारा 67 के तहत अश्लील सामग्री ऑनलाइन प्रसारित करने के लिए दोषी पाए जाने पर तीन साल तक जेल हो सकती है.

रणवीर अलाहाबादिया एक पॉडकास्ट के दौरान

सुप्रीम कोर्ट ने रणवीर के मुद्दे पर टिप्पणी की, "इस तरह के व्यवहार की कड़ी निंदा की जानी चाहिए...सिर्फ इसलिए कि आप लोकप्रिय हैं, आप समाज को हल्के में नहीं ले सकते. लगता है कि उनके दिमाग में गंदगी भरी है, जिसे उन्होंने उगल दिया." ऑनलाइन मंच पर अभिव्यक्ति की अनियंत्रित प्रकृति पर चिंता जताते हुए कोर्ट ने मामले में तत्काल दखल की जरूरत बताई. पीठ ने कहा, "हम इस मुद्दे के महत्व और संवेदनशीलता को नजरअंदाज नहीं कर सकते. भारत सरकार कार्रवाई करने को तैयार है तो हमें बहुत खुशी होगी. ऐसा नहीं होता तो भी हम मामले को बिना कार्रवाई के नहीं छोड़ सकते."

अदालत ने अटॉर्नी जनरल और सॉलिसिटर जनरल को यह निर्देश भी दिया कि अगली सुनवाई में डिजिटल मीडिया में अश्लीलता के मुद्दे पर चर्चा के लिए मौजूद रहें. इसने देश की क्रिएटर बिरादरी में हलचल मचा दी है, जिन्हें डर है कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के खिलाफ नियामक कार्रवाई हो सकती है. पॉडकास्टर के साथ-साथ कंटेंट क्रिएशन और इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग कंपनी फिननेट मीडिया के संस्थापक आयुष शुक्ला कहते हैं, "तमाम क्रिएटर में कंटेंट साझा करने को लेकर डर बैठना लाजिमी है. रणवीर को अपनी लोकप्रियता की बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही है. उसे बलि का बकरा बनाया जा रहा है."

रणवीर का भविष्य अनिश्चितता में घिरा है. वे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के आधार पर सार्वजनिक तौर पर कोई टिप्पणी नहीं करने के अदालती आदेश को चुनौती दे सकते हैं या फिर कई राज्यों में लंबी केसों से बचने के लिए एफआईआर साथ जोड़ने की अपील कर सकते हैं. अगर उनकी कानूनी टीम यह दलील देने में सफल रही कि उनकी टिप्पणी अश्लीलता के दायरे में नहीं आती है तो एफआईआर खारिज हो सकती हैं. लेकिन फिलहाल नया कंटेंट बनाने पर रोक है और उनके परिवार को भी धमकियों का सामना करना पड़ रहा है, कथित तौर पर मरीजों के रूप में आए कुछ लोगों ने उनकी मां के साथ गाली-गलौज की.

एक पूर्व सहयोगी का कहना है, "रणवीर ने पूर्व में सुने चुटकले को ही दोहराया था और इसके पीछे कोई दुर्भावना नहीं थी, इस घटना को इतना तवज्जो देने की जरूरत नहीं है." उनके समर्थकों का तर्क है कि उनकी टिप्पणी भले ही लोगों को नागवार गुजरी हो लेकिन यह ऐसी नहीं है जिस पर आपराधिक केस चलाया जाए. लेकिन उनके आलोचकों, और अब सुप्रीम कोर्ट की भी, यही राय है कि ऐसी भाषा का इस्तेमाल सामाजिक नैतिकता नष्ट करने वाला है और इसके लिए उन्हें दंडित किया जाना चाहिए. वैसे भी कहा जाता है, "ताकत बढ़ने के साथ जिम्मेदारी भी बड़ी हो जाती है." वे अब निजी और पेशेवर दोनों ही मोर्चों पर जवाबदेही का सामना कर रहे हैं. उन्हें यह बात शायद अच्छी तरह समझ आ चुकी होगी कि ताकत मिलने के साथ बहुत कुछ दांव पर होता है. उनकी टिप्पणी से उपजा विवाद भारत में डिजिटल कंटेंट विनियमन के लिए निर्णायक क्षण भी बन सकता है, जिससे प्रभावशाली लोगों को कुछ कहने या करने से पहले सोचने को बाध्य होना पड़ सकता है.

 

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