थीं कितनी दुश्वारियां
तकरीबन दस साल पहले देश के राजमार्गों पर गाड़ी चलाना धैर्य की परीक्षा जैसा हुआ करता था. एकदम शांत ड्राइवरों का भी सब्र जवाब दे जाता था. आप सड़क पर सही समय पर आगे बढ़ रहे होते, तभी कोई टोल प्लाजा सामने होता और गाड़ियों की लंबी कतार लगी होती. ड्राइवरों के साथ खुदरा पैसों के लिए नोकझोंक होती और काफी वक्त बर्बाद होता था. कई बार मार-पीट की नौबत आ जाती.
व्यस्त और भीड़भाड़ वाले घंटों और छुट्टियों के दौरान यह दु:स्वप्न बन जाता था और घंटों लंबा इंतजार करना पड़ता. ट्रकों और माल ढोने वाली गाड़ियों का हाल और भी बुरा होता, क्योंकि टोल प्लाजा पर इंतजार से न सिर्फ ईंधन की बर्बादी होती थी, बल्कि माल की डिलिवरी भी वक्त पर नहीं हो पाती थी. काउंटर पर बैठे आदमी के जरिए लेनदेन में पारदर्शिता भी कम होती थी और कमाई में भी कमी आती थी. टोल कर्मचारियों को नकदी प्रबंधन, नकली बिलों से जूझना पड़ता था. चोरी का खतरा लगातार बना रहता था. इससे देश में बढ़ते ट्रैफिक और राजमार्ग नेटवर्क को संभालने में परेशानी होती थी और लाखों यात्रियों को रोजाना मुश्किलों से गुजरना पड़ता था. लिहाजा, अर्थव्यवस्था को नुक्सान होता था.
यूं आसान हुआ जीवन
आपकी गाड़ी की विंडशील्ड पर लगे छोटे-से स्टिकर फास्टैग से देश के राजमार्गों पर यात्रा करना पहले से कहीं ज्यादा आसान हो गया है. यह रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन (आरएफआइडी) आधारित एक सरल समाधान है. इससे टोल भुगतान आसान बन गया है, जिससे नकद लेनदेन और कतारें खत्म हो गईं. 2014 में इसे एक राष्ट्र, एक टैग के रूप में लॉन्च किया गया.
फरवरी 2021 में सभी गाड़ियों के लिए फास्टैग अनिवार्य कर दिया गया और नई कारों में फास्टैग लगने लगे. वित्त वर्ष 22 में जारी किए गए 48.5 करोड़ फास्टैग से, इस साल जनवरी 2025 तक यह संख्या 87.6 करोड़ तक पहुंच चुकी है. इस दौरान लेन-देन की संख्या 2.4 अरब से बढ़कर 3.1 अरब हो गई है. यह बदलाव नाटकीय रहा है. भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के एक अध्ययन के मुताबिक, फास्टैग से टोल बूथों पर औसत इंतजार समय 734 सेकंड से घटकर सिर्फ 47 सेकंड पर आ गया है. अब इसे घटाकर 10 सेकंड करने का इरादा है.
रणनीतिक पहल से फास्टैग का व्यापक उपयोग संभव हुआ है. भारतीय राजमार्ग प्रबंधन कंपनी लिमिटेड (आइएचएमसीएल) के सीएमडी विशाल चौहान कहते हैं, "बैंकों से लेकर ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म तक हर जगह टैग बेचकर हमने उसे अपनाना आसान और तेज बना दिया है." फिलहाल 98 फीसद से ज्यादा टोल फास्टैग के जरिए इकट्ठा किए जाते हैं.
यह प्रणाली एसएमएस और ईमेल से फौरन लेनदेन अलर्ट भी देती है, जिससे कोई जरूरत पड़ने पर ट्रैक रख सकता है और ऑनलाइन रिचार्ज कर सकते हैं. माल ढोने वाली गाड़ियों के बेड़े के संचालकों के लिए फास्टैग से टोल खर्चों का प्रबंधन और गाड़ियों की आवाजाही को ट्रैक करने के तरीके मिल गए हैं. डिजिटल ट्रेल चोरी के जोखिम को कम करने और बेहतर हिसाब-किताब रखने में मददगार है. फास्टैग के इस्तेमाल से आपातकालीन वाहनों के टोल प्लाजा से तेजी से गुजरने से आपातस्थितियों में वक्त काफी बचता है.
व्यक्तिगत सुविधा के अलावा, फास्टैग राजस्व का बड़ा स्रोत बनकर उभरा है, जो बुनियादी ढांचे के विकास और सरकारी खजाने के लिए भी महत्वपूर्ण है. वित्त वर्ष 2025 के अंत तक टोल संग्रह 70,000 करोड़ रुपए को पार कर सकता है, जबकि वित्त वर्ष 2022 में 38,000 करोड़ रुपए अर्जित किए गए थे. देश अब फास्टैग से आगे बढ़कर वैश्विक नेविगेशन सैटेलाइट-आधारित टोलिंग की योजना बना रहा है, जिससे टोल बूथों की आवश्यकता पूरी तरह से समाप्त हो सकती है. और इसके साथ ही सड़क यात्रा में होने वाली बाकी परेशानियां भी दूर हो जाएंगी.
फरवरी 2021 में फास्टैग अनिवार्य किए जाने के बाद अब इस वित्त वर्ष में टोल संग्रह के 70,000 करोड़ रुपए को पार करने की आशा है, जो वित्त वर्ष 22 में 38,000 करोड़ रुपए था.
डॉ. एस. ग़ुलाम अब्बास, 45 वर्ष
कंसल्टेंट (जनरल मेडिसिन)
इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल, दिल्ली
इसने कैसे बदली मेरी जिंदगी
समय बचा, सुधरा जीवन
राजधानी दिल्ली से उत्तर प्रदेश को पार करके बिहार के अपने गृहनगर सीवान तक 1,000 किलोमीटर की सड़क यात्रा 45 वर्षीय डॉ. गुलाम अब्बास के लिए वर्षों से एक अहम हिस्सा रही है. वे कहते हैं, "टोल प्लाजा पर इंतजार खासी चिड़चिड़ाहट पैदा करने वाला हुआ करता था. लंबी-लंबी कतारें, खुदरा को लेकर बकझक और वक्त की बर्बादी थका देती थी."
पर फास्टैग से अब सब कुछ बदल गया है. डॉ. अब्बास कहते हैं, "यह बदलाव मुकम्मल है. अब मैं टोल प्लाजा पर बिना रुके धड़ल्ले से गुजर सकता हूं."
डॉ. अब्बास बिना झंझट-झमेले के सफर के लिए अपने फास्टैग वॉलेट में कम से कम 2,000 रुपए रखते हैं. वे कहते हैं, "यह सबसे आसान है." वे फटाफट ऑनलाइन रिचार्ज और फौरन लेनदेन अलर्ट से गदगद हैं. एक राज्य से दूसरे राज्य में घुसना या अलग-अलग टोल दरों से निबटना फास्टैग के जरिए शायद ही कभी परेशानी का मामला बनता है. उन्होंने बताया, "इतने वर्षों में मुझे टोल प्लाजा पर सिर्फ एक बार तकनीकी खामी का सामना करना पड़ा और वह भी जल्दी ठीक हो गई."
उनके शब्दों में, "मैं अपने सफर पर ज्यादा ध्यान दे पाता हूं, मंजिल तक तेजी से पहुंचता हूं और सफर का मजा लेता हूं." उनकी मानें तो फास्टैग सिर्फ टोल पर लेनदेन का साधन नहीं, "इससे वक्त बचता है और एक डॉक्टर के लिए वक्त की बचत जिंदगी की बचत है."
फास्टैग
शुरुआत 2014 में
उपलब्धि फास्टैग ने टोल प्लाजा पर प्रतीक्षा समय को 734 सेकंड से घटाकर 47 सेकंड तक ला दिया. अब लक्ष्य इसे 10 सेकंड तक लाने का साल गणतंत्र के हाइवे टोल
अभिषेक जी. दस्तीदार