
पिछले एक दशक के दौरान भारतीय मनोरंजन उद्योग ने खुद को बदले समय और परिवेश के अनुकूल ढालने की असाधारण क्षमता प्रदर्शित की है. जियो स्टूडियोज में उच्च पद पर रहते हुए मैंने खुद यह महसूस किया है कि तेजी से बदलती तकनीक कैसे दर्शकों के व्यवहार में बदलाव ला रही है, और कहानियां परोसने के बोल्ड अंदाज ने हमारे कंटेंट निर्माण, वितरण और उपभोग के तरीके को नया आयाम दिया है. ऐसे में नया साल और अधिक अहम अवसरों और चुनौतियों से भरा होने की उम्मीद है क्योंकि हम सभी एक गतिशील और निरंतर विकसित होते परिदृश्य में आगे बढ़ रहे हैं जो बड़े पैमाने पर गहराते जुड़ाव का गवाह बन रहा है.
बड़े बजट और सितारों वाली फिल्मों की सिनेमाघरों में रिलीज भारतीय फिल्मोद्योग के अपनी पकड़ और मजबूत करने की उम्मीद जगाती है तो साथ ही लापता लेडीज और ऑल वी इमेजिन ऐज लाइट जैसी छोटी, अधिक स्वतंत्र फिल्में फिल्म महोत्सव, विदेशी बाजारों, स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म और खास तौर पर थिएटरों में रिलीज के जरिए दर्शक बटोर रही हैं. ऐसे सभी पहलुओं का संतुलित इस्तेमाल करके ही फिल्म उद्योग अपनी पूरी क्षमता को भुना सकता है.
भले ही स्ट्रीमिंग या ओटीटी का चलन बढ़ रहा है लेकिन बड़े पर्दे का जादू अब भी बरकरार है. सिनेमाहॉल के साथ भारतीयों का अटूट नाता साफ दिखता है. दर्शक ब्लॉकबस्टर फिल्में देखने के लिए सिनेमाघरों का रुख करते हैं तो घर पर बैठकर मनोरंजक वेब सीरीज का आनंद लेने में भी पीछे नहीं रहते. हमारी स्त्री-2, शैतान, आर्टिकल-370 और सिंघम अगेन जैसी फिल्में बड़ी संख्या में दर्शकों को सिनेमाघरों तक खींचने में सफल रहीं. वहीं, ओटीटी पर लापता लेडीज ने सफलता के ऐसे झंडे गाड़े कि सिनेमाघरों में इसका प्रदर्शन छह सप्ताह तक बढ़ा दिया गया. यह दोहरी सफलता हमारे मनोरंजन परिदृश्य की ताकत और भारतीय दर्शकों की बहुआयामी रुचि को रेखांकित करती है.
ऐसे ही एक तरफ जियो स्टार जैसे बड़े पैमाने पर विलय और अधिग्रहण दर्शकों और संसाधनों को एकीकृत कर रहे हैं और हमें वैश्विक दिग्गजों के साथ प्रतिस्पर्धा में सक्षम बना रहे हैं. दूसरी ओर, हाइपर लोकल कंटेंट भी मजबूती से अपनी जगह बना रहा है जो क्षेत्रीय दर्शकों की विशिष्ट पहचान और आकांक्षाओं को रेखांकित करता है.
इस बदलाव ने कहानी कहने की भारतीय कला को स्वर्णिम युग में पहुंचा दिया, जिसमें क्षेत्रीय आवाजें बदलाव की शक्तिशाली वाहक बनकर उभर रही हैं. मराठी, तमिल, तेलुगु, मलयालम और कन्नड़ जैसी भाषाओं के साथ क्षेत्रीय सिनेमा का उदय न केवल घरेलू बल्कि वैश्विक स्तर पर भी खूब लुभा रहा है. यह हमारे सांस्कृतिक ताने-बाने की विविधता और समृद्धि के बारे में बहुत कुछ कहता है.
मनोरंजन का मूल उद्देश्य यही है कि लोग खुद को इससे जुड़ा महसूस करें. इसमें कहानियां इस तरह परोसनी होती हैं जो लोगों को सोचने पर बाध्य करें, उन्हें लगे कि यह तो उनकी अपनी कहानी है, या उनकी आकांक्षाओं को पर्दे पर उतार दिया गया है. आज भारतीय दर्शक पहले से कहीं ज्यादा समझदार हो चुके हैं. मैं जैसा अक्सर कहती हूं, "दर्शकों को धोखा नहीं दिया जा सकता." वे प्रामाणिकता, मौलिकता के साथ ऐसी कहानियों की अपेक्षा रखते हैं जो उनके जीवन से मेल खाती हों. और, प्रामाणिकता के साथ कही गई कहानी दुनियाभर में अपने दर्शक खुद ही तलाश लेती हैं.
मनोरंजन के भविष्य को आकार देने वाले सबसे रोमांचक रुझानों में से एक पारंपरिक प्रसारण और डिजिटल मंचों के बीच समायोजन है. माना जा रहा था कि टेलीविजन कमजोर होता माध्यम है, लेकिन इस धारणा के विपरीत यह भारत में मजबूत होकर उभरा और बढ़ ही रहा है. मध्य वर्ग के विस्तार, व्यापक इंटरनेट कवरेज और विविध विषय-वस्तु ने इसमें नई जान फूंक दी. हाल ही डिज्नी-रिलायंस विलय से जियो स्टार का निर्माण हुआ. ये साथ मिलकर नए अवसर रचने की एक उम्दा मिसाल है. प्रसारण और स्ट्रीमिंग की दुनिया को जोड़कर हम पारंपरिक मीडिया की पहुंच को डिजिटल मंच की गहराई और व्यक्तिगत पसंद-नापसंद चुनने की सुविधा के साथ और व्यापक दर्शकों तक पहुंचा सकते हैं.
इस सबमें प्रौद्योगिकी क्रांति बेहद अहम रही. जेनरेटिव आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (जेन-एआइ) जैसी तकनीक अनुभव को अलग मुकाम पर पहुंचाने, कंटेंट निर्माण सुलभ बनाने और कहानी कहने-गढ़ने की कला को अपार विस्तार देने की क्षमता रखती है. इसकी मदद से छोटे प्रोडक्शन हाउस और स्वतंत्र क्रिएटर्स सीमित संसाधनों के बावजूद उच्च-गुणवत्ता वाला कंटेंट तैयार कर रहे हैं. इससे उनके लिए नए अवसर उत्पन्न हुए तो इस क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा भी बढ़ी. एक स्टूडियो के तौर पर हमने फिल्म निर्माण से लेकर प्रदर्शन तक विभिन्न चरणों में एआइ का लाभ उठाना शुरू कर दिया है इसके अच्छे नतीजे भी सामने आ रहे हैं. यह एक मिथक है कि तकनीक नौकरियां छीन लेगी और सब बदल देगी. असल में यह प्रोडक्शन वैल्यू चेन मंस बहु-प्रतीक्षित बदलाव लाकर मुट्ठी भर तथाकथित रचनात्मक लोगों के गिरोह को तोड़ने और नई आवाजों और रचनात्मक लोगों के इस इंडस्ट्री में प्रवेश का रास्ता ही खोल रही है.
हालांकि, जब हम कुछ नया अपनाते हैं तो उद्देश्यों के प्रति सचेत रहना भी जरूरी होता है. तकनीक से कहानियों के भावनात्मक प्रभाव को बढ़ाना ठीक है लेकिन इससे उसकी मूल आत्मा नहीं खत्म होनी चाहिए. कहानी कहना तभी सार्थक होता है, जब यह वास्तविक भावनाओं को जगाए और दर्शकों को हंसाने-रुलाने या सोचने पर बाध्य करने की ताकत रखती हो.
अब अगर हम वैश्विक मंच पर नजर डालें तो साफ है कि भारतीय सिनेमा पहले की अपेक्षा मजबूत उपस्थिति दर्ज करा रहा है. ऑस्कर में भारत की आधिकारिक प्रविष्टि बनी लापता लेडीज जैसी फिल्में हमारी कहानियों की सार्वभौमिक अपील को रेखांकित करती हैं. भारतीय सिनेमा के लिए अब भाषा या भौगोलिक स्थिति बाधा नहीं रही; दुनिया के दर्शकों से जुड़ने की इसकी क्षमता को हर कोई सराह रहा है.
वैश्विक स्टूडियो के साथ साझेदारी, अंतरराष्ट्रीय समारोहों में हिस्सा लेना और नए बाजारों तक विस्तार करना इंडस्ट्री की वैश्विक उपस्थिति बढ़ाने की बेहद महत्वपूर्ण रणनीति का हिस्सा है. कहानी कहने की भारतीय कला में दुनियाभर के दर्शकों को लुभाने और उन्हें एक मंच पर लाने की अपार शक्ति है.
बड़ी थिएटर रिलीज का फिर उभरना उत्साहजनक है लेकिन यह रुझान बनाए रखने के लिए दर्शकों को सिनेमाघरों तक खींचने वाले आकर्षक कंटेंट तैयार करने पर ध्यान देने की जरूरत होगी. यही नहीं, हमें खुद नए मानक स्थापित करने और अपने शैली को निखारने पर ध्यान देना होगा. ऐसी कहानियां सामने लानी होंगी जो दर्शकों के दिल को गहराई से छू सकें. दर्शकों में कहानियों की भूख अंतहीन है—और हमें इसको और भी बेहतर ढंग से कहने पर ध्यान देना होगा. साथ मिलकर हम एक ऐसा भविष्य रच सकते हैं जिसमें भारतीय मनोरंजन दुनियाभर में न केवल अपनी धाक जमाए बल्कि वैश्विक स्तर पर नेतृत्व और प्रेरणा देने में भी आगे रहे. नया साल ऐसी चुनौतियां भी सामने लाएगा जिन पर हमें न केवल रणनीतिक स्तर पर सोचना होगा बल्कि कुछ निर्णायक कदम उठाने की भी जरूरत पड़ेगी.
भारतीय मनोरंजन क्षेत्र की अविश्वसनीय यात्रा पर नजर डालते समय भविष्य की उम्मीदें मुझे नए उत्साह से भर देती हैं. हम ऐसे सुनहरे वक्त के गवाह बन रहे हैं जिसमें रचनात्मकता, तकनीक और उद्यमशीलता के समन्वय से संभावनाओं के नए दरवाजे खुल रहे हैं जबकि पहले इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है. दुनिया वास्तव में हमारी मुट्ठी में आती जा रही है.

ज्योति देशपांडे
ज्योति देशपांडे रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड में मीडिया ऐंड कंटेंट बिजनेस की प्रेसिडेंट हैं