पचासेक से ऊपर की उम्र वाले भारतीय 1984 के अप्रैल की वह शाम नहीं भूलेंगे जो उन्होंने ब्लैक ऐंड व्हाइट टेलीविजन के सामने सोवियत अंतरिक्षयान सोयुज टी-11 पर सवार राकेश शर्मा—अंतरिक्ष की कक्षा में जाने वाले पहले भारतीय—के धुंधले फुटेज देखते बिताई थी.
शर्मा की अंतरिक्ष केंद्र सैल्यूट 7 तक जाने और आने की वह मशहूर यात्रा हालांकि जनस्मृति में धुंधली पड़ गई, लेकिन भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ग्रहों की खोज के लिए देश के शुरुआती अभियानों के मंसूबे बना रहा था.
एक बार जब भारत ने उपग्रहों को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित करने के लिए अपने प्रक्षेपण वाहनों—ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण वाहन (पीएसएलवी), जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (जीएसएलवी) और जीएसएलवी एमके3 (एलवीएम3)—में महारत हासिल कर ली, उसने अपने ज्यादा महत्वाकांक्षी अंतरिक्ष अभियानों पर काम करना शुरू किया. 22 अक्तूबर, 2008 को चांद पर अपना पहला मिशन—चंद्रयान 1—लॉन्च करके भारत अंतरिक्ष की खोज करने वाले देशों के क्लब में शामिल हो गया.
पीएसएलवी से लॉन्च इस अंतरिक्ष यान ने चंद्रमा की सतह का नक्शा बनाने के लिए चांद के चारों तरफ कक्षा में चक्कर लगाए. चंद्रयान 1 ने 3,400 परिक्रमाएं कीं; इसरो के टेरेन मैपिंग कैमरे, हाईपरस्पेक्ट्रल इमेजर और लूनर लेजर रेंजिंग उपकरण ने अपने-अपने कामों को संतोषजनक ढंग से अंजाम दिया. इसने खासकर चंद्र ध्रुवों के नजदीक स्थायी रूप से छायादार क्रेटर या गड्ढों में पानी के अणुओं का पता लगाया. इसने चांद के सूखे होने की मान्यता को चुनौती देकर चांद के विज्ञान में क्रांति ला दी.
चंद्रयान 1 के बाद भारत के पहले अंतरग्रहीय अंतरिक्ष यान मंगलयान के जरिए मार्स ऑर्बिटर मिशन भेजा गया. 5 नवंबर, 2013 को लॉन्च यह अंतरिक्ष यान मंगल ग्रह की सतह के गुणों का अध्ययन करने के लिए पांच अंतरिक्ष उपकरण ले गया. मंगल ग्रह पर जाने वाले अंतरिक्ष यान पर महज 450 करोड़ रुपए की लागत आई—इस तथ्य ने सबको मंत्रमुग्ध और इसरो के कद में इजाफा किया. भारत पहले प्रयास में मंगल की कक्षा में पहुंचने वाला पहला देश था.
2019 में लॉन्च चंद्रयान 2 रोवर और लैंडर को उतारने के काम में नाकाम रहा, लेकिन भारत की तकनीकी क्षमताओं में बढ़ोतरी हुई. उसके बाद दुनिया भर में सुर्खियां बटोरने वाली चंद्रयान 3 की कामयाबी आई, जिसे 14 जुलाई, 2023 को लॉन्च किया गया.
इसके विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर ने संहिताओं का पालन किया, जब विक्रम ने चंद्रमा के दक्षिण ध्रुवीय इलाके में सॉफ्ट लैंडिंग की—यह चांद का सबसे सुदूर दक्षिण छोर था जहां कोई चंद्र अभियान पहुंचा था. आज अंतरिक्ष की सैर करने वाले शीर्ष देश के तौर पर भारत की प्रतिष्ठा चंद्रयान 1 की कामयाबी की बुनियाद पर टिकी है. इसने वैज्ञानिकों, इंजीनियरों और स्वप्नदर्शियों की एक नई पीढ़ी को प्रेरित किया.