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विशाखा गाइडलाइन्स : जब एक महिला की इंसाफ की लड़ाई पूरे देश की लड़ाई बन गई

इसी के चलते सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार कार्यस्थलों पर यौन उत्पीड़न को महिलाओं के साथ भेदभाव माना और उससे निबटने के लिए विशाखा गाइडलाइन्स जारी किए

भंवरी देवी को सांत्वना देतीं अन्य साथिनें
भंवरी देवी को सांत्वना देतीं अन्य साथिनें
अपडेटेड 9 जनवरी , 2025

एक अकेली महिला क्रांति ले आई. भंवरी देवी की कमजोर काया से आप इसका अंदाजा नहीं लगा पाते. न ही जयपुर से 52 किमी पूर्व में स्थित उस राजस्थानी बस्ती भटेरी से. मगर पितृसत्ता के इसी हृदयप्रदेश में—जहां महिलाएं घूंघट काढ़ती थीं और समुदाय के बुजुर्ग ठेठ बचपन में ही बच्चों की शादियां कर देते थे—यह हुआ कि राज्य सरकार के जागरूकता कार्यक्रम की साथिन भंवरी नौ महीने की बच्ची की शादी को रोकने के लिए आगे आईं. निचली कुम्हार जाति की महिला ऊंचे और दबंग गुर्जरों से मुचैटा कैसे ले सकती थी.

इस दुस्साहस की उन्हें सजा दी गई और उस एकमात्र तरीके से दी गई जिससे जातिगत और पितृसत्तात्मक गुस्सा किसी महिला पर उतरता है—उसके पति की मौजूदगी में सामूहिक बलात्कार. जहां कमतर महिलाएं पीछे हट जातीं, भंवरी ने अपनी लड़ाई खुद लड़ी, एफआईआर दर्ज करवाई, मेडिकल जांच के लिए प्रस्तुत हुईं, और अपना कलुषित और मैला लहंगा सबूत के तौर पर सौंप दिया, वह भी तब जब उनके पास अपने को ढकने के लिए पति की खून से सनी धोती के सिवा कुछ न था.

बाद में एक मीडिया बातचीत में उन्होंने कहा, "मैं वह भंवरी देवी बनना नहीं चाहती थी जो मैं बन गई हूं." मगर उनके पास चारा भी क्या था! भंवरी की लड़ाई जल्द ही देश भर की महिलाओं की लड़ाई बन गई, जो इस बात से भड़क उठी कि व्यवस्था किस तरह हर कदम पर उसे हराने में जुट गई है. आपराधिक मुकदमा चल ही रहा था, तभी चार महिला संगठनों—राजस्थान के विशाखा और वूमेंस रिहैबिलिटेशन ग्रुप और दिल्ली के जागोरी और काली फॉर विमेन—ने विशाखा के सामूहिक मंच के तहत सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की, जिसमें मुख्य वकील 'साक्षी' की नैना कपूर थीं. इस ऐतिहासिक मुकदमे को विशाखा तथा अन्य बनाम राजस्थान सरकार तथा अन्य कहा गया. नतीजतन, कार्यस्थलों पर यौन उत्पीड़न से निबटने के लिए देश में पहला दिशा-निर्देश आया, जिन्हें उनके लिए लड़ने वाले मंच के नाम पर विशाखा दिशा-निर्देश नाम दिया गया.

तब देश के प्रधान न्यायाधीश जे.एस. वर्मा की अध्यक्षता में तीन जजों की पीठ ने जो फैसला दिया, वह इस मायने में नई इबारत लिखने वाला था कि उसने ऐसे मामलों के निबटारे के लिए विधायी और दंडात्मक शून्यता को प्रमुखता से सामने रखते हुए यौन उत्पीड़न को अपने आप में अपराध माना. महिलाओं और लड़कियों के लिए समान अधिकारों की वकालत करने वाली महिलाओं के खिलाफ सभी प्रकार के भेदभावों के उन्मूलन पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (सीईडीएडब्ल्यू) 1979 की दिखाई राह पर चलते हुए इस फैसले ने कार्यस्थलों पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न को महिलाओं के जीवन, स्वतंत्रता और समानता के साथ-साथ उनके काम करने के मूलभूत अधिकार का उल्लंघन ठहराया.

शिकायत निवारण के वैकल्पिक तंत्र की जरूरत पर जोर देते हुए कार्यस्थल पर महिलाओं की सुरक्षा की जिम्मेदारी लाजिमी तौर पर नियोक्ताओं पर डाली गई, ऐसी घटनाओं से निबटने के लिए रोकथाम के और दंडात्मक कदम तय किए, कंपनियों, संस्थाओं और संगठनों में शिकायत निवारण तंत्र की स्थापना को अनिवार्य बनाया गया. अदालत ने इन दिशा-निर्देशों को कानूनी तौर पर बाध्यकारी और प्रवर्तनीय बनाया, जब तक कि उसकी जगह कोई वाजिब कानून नहीं बन जाता.

वह वाजिब कानून 16 साल बाद और एक जघन्य बलात्कार के बाद ही बनाया और लागू किया जा सका. 2013 का कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम 1997 के विशाखा दिशा-निर्देश पर ही आधारित है. और उस महिला का क्या हुआ जिसके भीषण अनुभव और अग्निपरीक्षा ने उसे प्रेरित किया था? दिन के उजाले में घटित उस दु:स्वप्न को 30 से ज्यादा साल हो चुके हैं. मान्यताएं और पुरस्कार तो उन्हें बहुत मिले, पर इंसाफ न मिला.

क्या आप जानते हैं?
अब 70 से ऊपर की हो चुकीं भंवरी देवी के मुकदमे से विशाखा दिशा-निर्देश की राह खुली मगर उन्हें अब तक इंसाफ नहीं मिला

इंडिया टुडे के पन्नों से

अंक: 31 अक्तूबर 1992 
खास रपट: बंधी मुट्ठियों से बदली किस्मत

बात तो शुरु हुई

कार्यस्थल पर महिला यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम 2013 का रास्ता तैयार किया

कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के मुद्दे को चर्चा में लाकर महिलाओं को प्रतिशोध से डरे बिना अनुचित व्यवहार को खुलकर बताने के लिए प्रोत्साहित किया

नियोक्ताओं को शिकायत निवारण तंत्र स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित किया ताकि महिलाएं समाधान के लिए उसका इस्तेमाल कर सकें

उस 'मीटू' आंदोलन की पूर्वपीठिका बनी, जिसमें महिलाएं कार्यस्थल पर उत्पीड़न के अनुभव साझा करने के लिए आगे आईं

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