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कलकत्ता में 40 साल पहले शुरू हुई मेट्रो ने कैसे बदली शहरी ट्रांसपोर्ट की सूरत?

कलकत्ता में शुरुआत से लेकर दिल्ली में तकनीकी छलांग तक, भारत की मेट्रो प्रणाली ने शहर में आवाजाही, टिकाऊपन और प्रगति के एक नए युग की शुरुआत की

मेट्रो परियोजना के अगुआ के रूप में जाने गए ई. श्रीधरन सितंबर 2002 में एक साइट पर
मेट्रो परियोजना के अगुआ के रूप में जाने गए ई. श्रीधरन सितंबर 2002 में एक साइट पर
अपडेटेड 7 जनवरी , 2025

जब पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1972 में कोलकाता मेट्रो की आधारशिला रखी थी, तो शायद ही किसी ने कल्पना की होगी कि देश में शहरी परिवहन पर इसका कितना गहरा असर पड़ेगा. शुरुआत में फंडिंग की चुनौतियों और लॉजिस्टिक की बाधाओं की वजह से इसकी प्रगति बहुत धीमी थी. 1984 में कोलकाता में भवानीपुर और एस्प्लेनेड के बीच पहली मेट्रो ट्रेन चली. फिर भी उस मामूली शुरुआत ने एक मेट्रो क्रांति के बीज बोए जो अगले चार दशक में भारत को बदल देने वाली थी.

लगभग उसी समय 1984 में दिल्ली में अर्बन आर्ट कमीशन ने राष्ट्रीय राजधानी के मौजूदा उपनगरीय रेल और सड़क नेटवर्क के सहायक के रूप में तीन भूमिगत मास रैपिड ट्रांजिट कॉरिडोर सहित एक मल्टी-मॉडल परिवहन प्रणाली का प्रस्ताव रखा था. इस विजन को साकार होने में लगभग दो दशक लग गए. दिल्ली मेट्रो ने 2002 में परिचालन शुरू कर देश के शहरों में आवाजाही के एक नए युग की शुरुआत की. 'मेट्रो मैन' ई. श्रीधरन ने इस बदलाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. कोंकण रेलवे के साथ उनकी पिछली सफलता ने दिल्ली मेट्रो के विकास में उनके नेतृत्व का मार्ग प्रशस्त किया. इस परियोजना ने उनके मार्गदर्शन में टनल बोरिंग मशीन (टीबीएम) और विश्व स्तरीय मेट्रो कोच जैसी अत्याधुनिक तकनीकों को पेश किया. गौरतलब है कि पहला एलिवेटेड सेक्शन—शाहदरा से तीस हजारी—केवल चार साल में ही पूरा हो गया.

दिल्ली मेट्रो की कामयाबी अहम मोड़ साबित हुई. इसने दूसरे शहरों को भी इसका अनुसरण करने के लिए प्रेरित किया. बेंगलूरू से लेकर मुंबई तक पूरे भारत में मेट्रो सिस्टम बनने लगे. जयपुर और आगरा जैसे टियर-2 शहर भी इस आंदोलन में शामिल हो गए, जिससे यह साबित हुआ कि शहरी आवाजाही अब प्रमुख महानगरीय केंद्रों तक सीमित नहीं रह गई है. आज भारत में 21 शहरों में 945 किलोमीटर का व्यापक मेट्रो नेटवर्क है. यही नहीं, 26 शहरों में अतिरिक्त 919 किलोमीटर का नेटवर्क बनने वाला है.

मेट्रो का दूरगामी असर रहा है. इसने लाखों यात्रियों को भीड़भाड़ वाली सड़कों के लिए एक सुरक्षित, विश्वसनीय और तेज विकल्प दिया है. इसने आर्थिक विकास को बढ़ावा दिया है, मेट्रो मार्गों पर रियल एस्टेट की कीमतें आसमान छू रही हैं और डेवलपर्स बेहतर कनेक्टिविटी का फायदा उठा रहे हैं. कोच्चि और पुणे जैसे शहरों ने मेट्रो नेटवर्क को अर्बन प्लानिंग का हिस्सा बनाया, जिससे शहर के विभिन्न इलाकों का स्वरूप बदल रहा है. परिवहन से परे, मेट्रो निरंतर विकास के लिए उत्प्रेरक बन गई है. ऊर्जा-कुशल ट्रेनें और सौर ऊर्जा से चलने वाला बुनियादी ढांचा भारत के जलवायु लक्ष्यों के अनुरूप है. बीईएमएल लिमिटेड और टीटागढ़ रेल सिस्टम जैसी कंपनियों ने ट्रेनों और उनके कलपुर्जों को देश में ही बनाकर आयात पर निर्भरता कम कर दी है. एक ओर जहां कोलकाता मेट्रो ने यह साबित करते हुए कि भारत प्रभावी रूप से मेट्रो प्रणाली का संचालन कर सकता है, दूसरी ओर, दिल्ली ने बड़े पैमाने, गति और तकनीकी उन्नति के लिए मानदंडों को फिर से परिभाषित किया.

क्या आप जानते हैं?
दिल्ली मेट्रो ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन कम करने में अपनी भूमिका के लिए 2007 में संयुक्त राष्ट्र से कार्बन क्रेडिट अर्जित करने वाली दुनिया की पहली रेलवे परियोजना बनी.

इंडिया टुडे के पन्नों से

अंक (अंग्रेजी): 15 दिसंबर 1984
पश्चिम बंगाल: मेट्रो प्रेम

सही रास्ते पर

> मेट्रो रेल ने टियर-1 और -2 शहरों में शहरी संपर्क में सुधार किया है, जिससे लाखों यात्रियों को फायदा पहुंचा है

> मेट्रो लाइनों के साथ रियल एस्टेट की कीमतों में तेजी आई है, जिससे व्यवसाय और आवासीय केंद्रों को बढ़ावा मिला है

> निर्माण, संचालन, खुदरा, रियल एस्टेट और अन्य संबद्ध क्षेत्रों में रोजगार को बढ़ावा मिला

> शहरी प्रदूषण और यातायात की भीड़ को कम किया, जिससे पर्यावरण के अनुकूल अर्बन प्लानिंग को बढ़ावा मिला

> एल्सटॉम और सीमेंस जैसी वैश्विक कंपनियों की ओर से निवेश को बढ़ावा देते हुए ट्रेन के ‌विभिन्न हिस्सों के स्वदेशी उत्पादन को प्रोत्साहित किया

> रीजनल रैपिड ट्रांजिट सिस्टम जैसे एडवांस्ड डिजाइन और सिस्टम को प्रेरित किया

- अभिषेक जी. दस्तीदार

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