
इस साल प्रधानमंत्री जन धन योजना (पीएमजेडीवाई) की 10वीं वर्षगांठ है. इस अपूर्व पहल ने लाखों वंचित भारतीयों को औपचारिक बैंकिंग प्रणाली से जोड़ दिया. अगस्त 2014 में शुरू की गई इस योजना में बिना किसी न्यूनतम शेष राशि की जरूरत के शून्य-शेष बचत खाते, नि:शुल्क डेबिट कार्ड और दो लाख रुपए का दुर्घटना बीमा और 10,000 रुपए की ओवरड्राफ्ट सुविधा जैसी जरूरी वित्तीय सुरक्षा सुविधाएं मुहैया की गईं.
अपनी शुरुआत से ही पीएमजेडीवाई में तेजी से इजाफा हुआ है. मार्च 2015 में बैंक खातों की संख्या 14.72 करोड़ से बढ़कर आज 53.13 करोड़ हो गई है, जिनमें कुल जमा 2.31 लाख करोड़ रुपए है.
आंकड़ों से परे इस पहल ने पूरे आर्थिक परिदृश्य में हलचल पैदा की है. बैंक खाते तक पहुंच एक वित्तीय मील के पत्थर से कहीं ज्यादा अहम है; यह आर्थिक आजादी दिलाने वाला है. दरअसल, यूपीआई और डिजिटल भुगतान के प्रसार के साथ ही इनमें से कई खाते सक्रिय हो गए क्योंकि अब भुगतान लेना और बचत को जमा करना सुरक्षित था.
पीएमजेडीवाई खातों में औसत शेष राशि 2015 में 1,065 रुपए से बढ़कर 2024 में 4,352 रुपए हो गई, जो बढ़ते विश्वास और उपयोगिता को दर्शाती है. खाताधारक अब कर्ज लेने के लिए अपने वित्तीय इतिहास का फायदा उठा सकते हैं. इससे नाजायज फायदा उठाने वाले साहूकारों पर निर्भरता कम होती है. इसने बदले में उनके हाथों में डिस्पोजेबल आय में वृद्धि की है, जिसे बेहतर भोजन, शिक्षा और स्वास्थ्य पर खर्च किया जा सकता है. इससे बेहतर सामाजिक नतीजे सामने आते हैं.
ये खाते प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) के लिए एक महत्वपूर्ण प्लेटफॉर्म के रूप में भी काम आते हैं. इनके जरिए सब्सिडी और सरकारी लाभ वंचितों तक कुशलतापूर्वक पहुंचते हैं. मिसाल के तौर पर, असंगठित क्षेत्र के लाखों मजदूरों को सरकार की जन सुरक्षा योजनाओं के माध्यम से जीवन और दुर्घटना बीमा तक पहुंच मिली. इसके अलावा, पीएमजेडीवाई ने लैंगिक समानता को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिसमें 55.6 फीसद खाते महिलाओं के हैं.

यह वित्तीय समावेशन की दिशा में एक उत्साहजनक कदम है. केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस महत्वाकांक्षी योजना की 10वीं वर्षगांठ मनाते हुए कहा कि औपचारिक बैंकिंग सेवाओं तक 'यूीनिवर्सल और अफोर्डेबल एक्सेस’ 'वित्तीय समावेशन और सशक्तिकरण के लिए जरूरी’ है.
लेकिन पीएमजेडीवाई की सफलता के बावजूद उसे बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है. बैंक ऑफ बड़ौदा और महिला विश्व बैंकिंग की ओर से किए गए 2021 के एक अध्ययन से पता चला है कि अधिकांश महिलाएं अपने खातों का इस्तेमाल केवल सब्सिडी और डीबीटी हासिल करने के लिए करती हैं. इसकी वजह से वे क्रेडिट इतिहास बनाने या माइक्रो-बीमा और पेंशन जैसे वित्तीय साधनों का पता लगाने के अवसर चूक जाती हैं. इसके अलावा, 20 फीसद खाते निष्क्रिय रहते हैं, और 8.2 फीसद से ज्यादा में अब भी एक कौड़ी नहीं है.
एक ओर जहां पीएमजेडीवाई भारत में वित्तीय सुलभता को नया रूप देने में सहायक रहा है, वहीं वित्तीय साक्षरता और उपभोक्ता संरक्षण में निरंतर प्रयास की जरूरत है. खाताधारकों को अपनी बचत का प्रबंधन और उसे बढ़ाने के बारे में शिक्षित करने के साथ ही सुरक्षा सुनिश्चित करना इस योजना की पूरी क्षमता के दोहन करने की कुंजी होगी.
"पीएमजेडीवाई महज एक कल्याणकारी योजना नहीं बल्कि एक परिवर्तनकारी आंदोलन है जिसने बैंकिंग सेवाओं से वंचित आबादी को वित्तीय स्वतंत्रता प्रदान कर उनमें वित्तीय सुरक्षा की भावना पैदा की है."
—पंकज चौधरी, वित्त राज्यमंत्री, पीएमजेडीवाई के 10 साल पूरे होने पर
आर्थिक आजादी
● लाखों लोगों, खास तौर पर हाशिए पर पड़े समूहों, बैंकिंग सेवाओं से वंचित लोगों को औपचारिक वित्तीय प्रणाली से जोड़कर बैंकिंग तक फौरन पहुंच
● पीएम-किसान, एलपीजी लाभ और नरेगा भुगतान जैसे सब्सिडी के सीधे हस्तांतरण को सक्षम बनाया, जिससे लीकेज कम हुआ और पारदर्शिता पक्की हुई
● रुपै डेबिट कार्ड और यूपीआइ के माध्यम से लाखों लोगों को डिजिटल लेन-देन से परिचित कराया, जिससे कैशलेस अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिला
● ग्रामीण और शहरी गरीबों को ऋण के लिए आवेदन करने और छोटे व्यवसायों में निवेश करने के लिए सशक्त बनाया
● शोषक साहूकारों पर निर्भरता कम की, कर्ज के जाल को रोका और वित्तीय स्वतंत्रता को बढ़ावा दिया
क्या आप जानते हैं?
पीएमजेडीवाई दुनिया की सबसे बड़ी वित्तीय समावेशन पहल है
53.14 करोड़ लाभार्थियों को बैंकिंग सुविधा मिली अब तक
2.31 लाख करोड़ रुपए पीएमजेडीवाई खातों में कुल जमा राशि
55.6 फीसद खाते महिलाओं के हैं
66.6 फीसद खाते ग्रामीण और अर्ध शहरी इलाकों में हैं.