
अगस्त 1995 में भारत के मेट्रो शहरों में नवीनतम नवाचारों को प्रदर्शित करने वाले होर्डिंग्स लगे हुए थे—डिब्बानुमा मोबाइल हैंडसेट, जो ग्रे मार्केट में बिकने वाले महंगे कॉर्डलेस फोन की तरह दिखते थे. देश ने अभी-अभी अपना 48वां स्वतंत्रता दिवस मनाया था और नई दिल्ली में गैर-वाणिज्यिक मोबाइल टेलीफोन सेवाएं शुरू की गई थीं. लेकिन कुछ दिन पहले एक ऐतिहासिक लम्हा उस वक्त आया जब पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री ज्योति बसु ने नोकिया के हैंडसेट से मोदी टेल्स्ट्रा की मोबाइलनेट सेवा के जरिए भारत का पहला मोबाइल कॉल किया.
कोलकाता में बसु और नई दिल्ली के संचार भवन में केंद्रीय दूरसंचार मंत्री सुखराम के बीच इस कॉल की खबर प्रमुख अखबारों के पहले पन्ने पर थी. इस नई सेवा की कीमत बहुत ज्यादा थी—प्रीपेड सिम 4,900 रुपए और इनकमिंग या आउटगोइंग कॉल 17 रुपए प्रति मिनट. फिर भी इसने जो सनसनी पैदा की, वह ड्रॉइंग-रूम की बातचीत में मौजूं बनने को काफी थी.
इससे महज तीन साल पहले 1992 में भारत ने चार महानगरों—दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और चेन्नै—में मोबाइल नेटवर्क के लिए लाइसेंस की नीलामी की थी. दिल्ली में मोदी टेल्स्ट्रा (बाद में स्पाइस कम्युनिकेशंस), मुंबई में एस्सार-हचिसन (अब वीआइ), कोलकाता में उषा मार्टिन टेलीकॉम (आखिरकार एयरसेल का हिस्सा) और चेन्नै में स्टर्लिंग सेलुलर (बाद में भारती एयरटेल में एकीकृत) सर्विस प्रोवाइडर थे. इस तरह प्रमुख भारतीय व्यापारिक घरानों ने देश में मोबाइल संचार युग की शुरुआत करने के लिए यूरोपीय सर्विस प्रोवाइडर्स के साथ भागीदारी की. फिर विलय, अधिग्रहण और नए आए समूहों ने दूरसंचार परिदृश्य को नया रूप दिया.
नोकिया, मोटोरोला, सीमेंस और एरिक्सन जैसी कंपनियां अपने शुरुआती हैंडसेट भारत लाईं, और देश ने जीएसएम तकनीक को अपनाना शुरू कर दिया. नेटवर्क को मजबूत करने के लिए शहरी इलाकों में टावर लगाए गए. बाद में टाटा और रिलायंस कम्युनिकेशंस जैसी कंपनियों की अगुआई में डब्ल्यूएलएल-सीडीएमए तकनीक आई. लेकिन जीएसएम की वैश्विक अनुकूलता ने उसके प्रभुत्व को मजबूत किया.
भारती एयरटेल के चेयरमैन सुनील भारती मित्तल ने अक्तूबर 2024 में वर्ल्ड टेलीकम्युनिकेशन स्टैंडर्डाइजेशन असेंबली को संबोधित करते हुए कहा, "भारत की दूरसंचार क्रांति में एयरटेल सबसे आगे रही है. यह वक्त की कसौटी पर खरी उतरी है, इसने 2जी से लेकर आज भारत में हम जिस मुकाम पर हैं, वहां तक का सफर तय किया है. इसने एक डिजिटल क्रांति पैदा की है जिसे दुनिया देख रही है." एक ओर जहां एयरटेल अब भी एक प्रमुख खिलाड़ी बनी हुई है, वहीं 2016 में स्थापित रिलायंस जियो न केवल भारत बल्कि दुनिया का सबसे बड़ा मोबाइल डेटा करियर है.

लेकिन इस क्रांति से पहले कई भारतीयों के लिए ऐसा समय था जब फिक्स्ड-लाइन कनेक्शन हासिल करने का मतलब हफ्तों तक कतार में खड़ा होना था. हालांकि मोबाइल फोन दुर्लभ ही सही पर क्रांतिकारी थे. उनकी सुलभता ने जल्द ही पेजर को पीछे छोड़ दिया, जिसने देश के पेशेवरों के बीच कुछ समय के लिए लोकप्रियता हासिल की थी. आज मोबाइल फोन एक लग्जरी आइटम से विकसित होकर सितंबर 2024 तक लगभग 1.2 अरब ग्राहकों के लिए जीवन रेखा बन गया है. अब दुनिया के दूसरे सबसे बड़े मोबाइल नेटवर्क वाला देश भारत दुनिया भर में सबसे सस्ता डेटा दे रहा है, जो कि महज 0.16 डॉलर (13.5 रुपए) प्रति जीबी है. इस क्षेत्र का ध्यान किफायत और टेलीडेंसिटी—जो अब 90 फीसद से ज्यादा है— पर है. मोबाइल फोन बढ़ने की वजह से ग्रामीण आबादी सशक्त हुई है. ये सामाजिक-आर्थिक अंतर को पाटने के अहम उपकरण बन गए हैं.
यूपीआइ भुगतान से लेकर सोशल मीडिया और ओटीटी प्लेटफॉर्म को कनेक्ट करने तक, सभी काम मोबाइल फोन से किए जा सकते हैं. सरकार जरूरतमंदों को कल्याणकारी लाभ पहुंचाने के लिए 'जैम (जेएएम)' तिकड़ी, यानी जन धन बैंक खाते, आधार आइडी और मोबाइल फोन का इस्तेमाल कर रही है. भारत में मोबाइल फोन मैन्युफैक्चरिंग भी बढ़ गई है, स्थानीय कारखाने देश के कुल हैंडसेट मांग का 97 फीसद उत्पादन कर रहे हैं. 1995 में एक कॉल से शुरू हुआ यह सफर अब एक कनेक्टेड इंडिया को परिभाषित करता है, जो विभाजन को पाटता है और आकांक्षाओं को नया आकार देता है.
क्या आप जानते हैं?
सितंबर 2004 में पहली बार मोबाइल फोन उपभोक्ताओं की संख्या फिक्स्ड लाइन कनेक्शन की संख्या से अधिक हो गई थी. आज यह अंतर पांच गुना बढ़ गया है.
फुल सिग्नल
> रिलायंस जियो दुनिया के सबसे बड़े मोबाइल डेटा कैरियर के रूप में अग्रणी है
> मोबाइल फोन ने यूपीआइ और डिजिटल भुगतान के उभार को बढ़ावा दिया
> गरीब लोगों के लिए सामाजिक योजनाएं और लाभ सुलभ हो हुए
> सी-डॉट वैश्विक मानकों के 4जी/5जी/6जी उपकरण बनाने के लिए भारतीय इनोवेटर्स के साथ काम कर रहा है
> घरेलू कारखाने भारत की कुल हैंडसेट मांग का 97 फीसद उत्पादन करते हैं और 30 फीसद उत्पादों का
निर्यात करते हैं