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जब भारत के सॉफ्टवेयर सुपर पावर बनने की शुरुआत हुई

भारतीय सॉफ्टवेयर ने 1986 में वैश्विक मंच पर उस वक्त खूब ध्यान खींचा जब टेक्सस इंस्ट्रूमेंट्स देश में आरऐंडडी के लिए सहायक कंपनी स्थापित करने वाली पहली एमएनसी बन गई

इन्फोसिस के सह-संस्थापक एन.आर. नारायण मूर्ति (सबसे बाएं) 1983 में खरीदे गए अपने पहले कंप्यूटर डाटा जनरल एमवी 8000 और टीम के साथ
इन्फोसिस के सह-संस्थापक एन.आर. नारायण मूर्ति (सबसे बाएं) 1983 में खरीदे गए अपने पहले कंप्यूटर डाटा जनरल एमवी 8000 और टीम के साथ
अपडेटेड 7 जनवरी , 2025

भारतीय सॉफ्टवेयर उद्योग की कामयाबी को समझाने के लिए ठोस आंकड़े काफी नहीं. अलबत्ता आईटी उद्योग के दिग्गज एक किस्सा बयान करते हैं जिससे पता चलता है कि यह सब कितने हैरतअंगेज तरीके से घटित हुआ. 1991 में किसी वक्त, जब आईटी करीब 10 करोड़ डॉलर का नौसिखुआ निर्यात उद्योग हुआ करता था, तब इलेक्ट्रॉनिक्स विभाग के सचिव एन. विट्ठल ने बेंगलूरू में कंप्यूटर सोसाइटी ऑफ इंडिया के सम्मेलन में आए शीर्ष कर्ताधर्ताओं को उकसाया कि वे अगले साल 40 करोड़ रुपए के निर्यात के लिए जोर लगाएं और बदले में कुछ नीतिगत हेर-फेर किए जा सकते हैं.

उनके चेहरों पर संदेह की लकीरें थीं. लिहाजा विट्ठल ने अकबर-बीरबल का एक किस्सा सुनाया—मिजाज थोड़ा चिड़चिड़ा था, सो बादशाह ने बीरबल को मौत का फरमान सुना दिया, लेकिन तेज दिमाग कवि ने अकबर के घोड़े को उड़ना सिखाने के एवज में एक साल की मोहलत हासिल कर ली. उसका तर्क जाहिरा तौर पर यह था: इस एक साल में तीन में से एक चीज हो सकती थी. बादशाह मर सकता था, या खुद बीरबल मर सकता था, या कौन जाने घोड़ा ही उड़ने लगे! पता यह चला कि वि_ल की तुलना भविष्यदर्शी थी और आईटी निर्यात ऊंची उड़ान भरने लगा.

भारतीय आईटी ने 1986 में वैश्विक मंच पर उस वक्त खूब ध्यान खींचा जब टेक्सस इंस्ट्रूमेंट्स देश में आरऐंडडी के लिए सहायक कंपनी स्थापित करने वाली पहली एमएनसी बन गई—वह भी अत्याधुनिक उपग्रह संचार प्रणाली के साथ. 1988-89 में भारतीय कंपनियों के करीब 90 फीसद सॉफ्टवेयर निर्यात क्लाइंट देशों को होते थे. जिस एक बुनियादी घटना ने इस अनुपात को उलट दिया और भारतीय ऑफशोरिंग यानी आईटी कंपनियों का कामकाज भारत में ही स्थापित करने के दरवाजे खोल दिए, वह 1991 में निर्यात अनुकूल सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी पार्क योजना थी.

इसने उपग्रहों के जरिए तेज रफ्तार डेटा संचार के लिए अर्थ स्टेशन सरीखा बुनियादी ढांचा सुलभ करवाया. 1999 खत्म होते-होते आईटी निर्यात 4 अरब डॉलर पर पहुंच गया. आज 25 साल बाद भारतीय आईटी उद्योग का कुल राजस्व 250 अरब डॉलर के पार है और यह विश्वस्तरीय कंपनियों का पावरहाउस बन गया है.

इन्फोसिस एन.आर. नारायणमूर्ति वगैरह की मध्यमवर्गीय पृष्ठभूमि के साथ इस क्रांति की पहचान बन गई. 1980 में स्थापित यह कंपनी 1999 में नैस्डैक में सूचीबद्ध होने वाली पहली भारतीय कंपनी बनी. इसके शानदार समकक्षों में विप्रो और एचसीएल के साथ टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज—1968 में स्थापित उद्योग की पथप्रदर्शक कंपनी—थी.

जब ईयर 2000 या वाइ2के बग के रूप में अवसर ने दस्तक दी तो भारतीय कंपनियां तैयार थीं. समस्या आसान थी लेकिन इसे तत्काल हल करना जरूरी था—दुनिया भर की कंप्यूटर प्रणालियों को इस तरह फॉर्मेट करने की जरूरत थी कि वे सहस्राब्दी के 1999 से 2000 में बदलने को पहचान पाएं. वाइ2के की तकनीकी गड़बड़ी को दुरुस्त करके भारत ने निर्यात राजस्व में करीब 2.3 अरब डॉलर कमाए, लेकिन इससे ज्यादा अहम यह कि भारतीय सॉफ्टवेयर फर्मों को फॉर्चून 500 कंपनियों के साथ काम करने का मौका मिला.

बस फिर देखते ही देखते भारत दुनिया का बैकऑफिस बन गया और 2000 के दशक के मध्य तक 'बैंगलोर्ड’ प्रचलित और लोकप्रिय शब्द था—पश्चिम में गढ़े गए इस शब्द का मतलब था अपनी नौकरी गंवाना क्योंकि वह भारत के सॉफ्टवेयर हब बंगलोर (पुराना नाम) को आउटसोर्स की जा रही थी. आईटी और आईटी-समर्थ सेवा (आईटीईएस) उद्योग में आज 50 लाख लोग काम कर रहे हैं और भारत दुनिया की शीर्ष आउटसोर्स मंजिल बना हुआ है, जिसकी वैश्विक आउटसोर्सिंग कारोबार में 55 फीसद हिस्सेदारी है.

—अजय सुकुमारन, सुमित मित्रा, साथ में अमरनाथ के. मेनन और के.एम. थॉमस

डिजिटल लहर

● टीसीएस, इन्फोसिस आदि सरीखे सॉफ्टवेयर दिग्गजों का उदय
● बेंगलूरू, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, हैदराबाद और पुणे का नए ग्रोथ इंजनों में बदलना
● नॉलेज इकोनॉमी या ज्ञान अर्थव्यवस्था की नींव
● डिजिटल कायाकल्प, जिससे एआइ टेक्नोलॉजी का मार्ग प्रशस्त हुआ
● कर्मचारी स्टॉक विकल्पों के जरिए करोड़पतियों की नई पौध का निर्माण
● सॉफ्टवेयर अगुआओं के इन्वेस्टर/मेंटर में बदलने के साथ खासकर कंज्यूमर इंटरनेट में स्टार्ट-अप संस्कृति की जड़ें गहरी होना

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