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जब आईएनएस अरिहंत ने भारत की एटमी तिकड़ी को किया पूरा

पेचीदा सैन्य टेक्नोलॉजी में स्वदेशी महारत की विजयपताका फहराते हुए आईएनएस अरिहंत चीन के आक्रामक सैन्य विस्तार के दौर में भारत की समुद्री सुरक्षा को मजबूत बनाती है

आईएनएस-अरिहंत विशाखापत्तनम के शिप बिल्डिंग सेंटर में
आईएनएस-अरिहंत विशाखापत्तनम के शिप बिल्डिंग सेंटर में
अपडेटेड 10 जनवरी , 2025

अगर बैलिस्टिक मिसाइलों में साबित की गई काबिलियत को छोड़ दें तो भारत अत्याधुनिक सैन्य साजो-सामान के मामले में खालिस आयातक रहा है या टेक्नोलॉजी के हस्तांतरण के समझौतों के जरिए लाइसेंस के तहत उनका निर्माण करता है. इसलिए भारत की पहली स्वदेशी एटमी पनडुब्बी आईएनएस अरिहंत के उभार को अत्यंत पेचीदा सैन्य ज्ञान हासिल करने के मामले में देश की बेहतरीन उपलब्धियों में से एक गिनना होगा.

रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) के हाथों डिजाइन की गई अरिहंत 26 जुलाई, 2009 को लॉन्च और 23 अगस्त, 2016 को कमिशन की गई. इसका विकास रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के प्रति देश की प्रतिबद्धता को दिखाता है और स्वदेशी जहाज निर्माण, एटमी प्रोपल्शन तथा मिसाइल प्रणालियों में तरक्की का संकेत है, जिससे विदेशी आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भरता कम हुई.

सबसे अहम यह कि अरिहंत त्रयी या त्रिभुज सिद्धांत के तहत भारत की उस सामरिक एटमी प्रतिरोधक क्षमता को संतोषप्रद ढंग से पूरा करती है जिसमें जमीन, हवा और समुद्र से छोड़ी जाने वाली एटमी प्रक्षेपण प्रणालियां शामिल हैं.

इस तरह अरिहंत एक और सेकंड-स्ट्राइक प्लेटफॉर्म स्थापित करते हुए पहले अपने पर हुए एटमी हमले की स्थिति में जवाबी हमले की भारत की क्षमता सुनिश्चित करती है. परमाणु-संचालित बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बी (एसएसबीएन) की रडार से बचने की क्षमता उन्हें पहचाने जाने से तकरीबन अभेद्य बनाती है, जिससे भारत की भयप्रतिरोधक स्थिति अत्यंत मजबूत हो जाती है.

अरिहंत-क्लास प्रोग्राम 1980 के दशक में शुरू उन्नत प्रौद्योगिकी पोत (एटीवी) परियोजना का हिस्सा है. रूस की तकनीकी मदद से भारत ने पनडुब्बियों को आगे धकेलने में सक्षम एटमी रिएक्टर विकसित किया, जिससे पानी के भीतर लंबे समय तक निरंतर संचालन सुनिश्चित किया जा सका.

आईएनएस अरिहंत में चार खड़े लॉन्च ट्यूब हैं, जो एटमी युद्धास्त्र ले जाने में सक्षम 12 के-15 'सागरिका’ मिसाइलें या चार के-4 पनडुब्बी से लॉन्च की जाने वाली बैलिस्टिक मिसाइलें (एसएलबीएम) ले जा सकते हैं, जिनकी मारक दूरी क्षमता क्रमश: 750 किमी और 3,500 किमी है. यह पनडुब्बी संवर्धित यूरेनियम ईंधन के साथ 83 मेगावॉट प्रेशराइज्ड लाइट-वॉटर रिएक्टर की शक्ति से संचालित होती है.

इस पनडुब्बी की परिचालन पहुंच मलक्का जलडमरूमध्य और दक्षिण चीन सागर सरीखी बेहद अहम नाकेबंदियों तक जाती है, जिससे भारत अपनी ताकत दिखा सकता है और चीन की नौसैन्य मौजूदगी का मुकाबला कर सकता है. चीन के एसएसबीएन के बढ़ते बेड़े और हिंद महासागर क्षेत्र (आइओआर) में उसके बढ़ते धावे को देखते हुए अरिहंत बेहद अहम प्रतिरोधी संतुलन प्रदान करती है.

सच तो यह है कि भारत के एसएसबीएन बेड़े की वजह से उसके पड़ोसी देशों में सामरिक नाप-तौल नए सिरे से शुरू हो सकती है. पाकिस्तान ने पहले ही अपना समुद्र-आधारित भयप्रतिरोधक विकसित करने का इशारा किया है और चीन भी हिंद महासागर क्षेत्र में अपनी नौसैन्य उपस्थिति बढ़ा सकता है.

आईएनएस अरिहंत अहम उपलब्धि है, फिर भी भारत अपने एटमी पनडुब्बी कार्यक्रम को पूरी तरह संचालित करने की चुनौती से दो-चार है. पनडुब्बी उत्पादन क्षमता की सीमाएं, प्रोपल्शन और सेंसर के लिए आयातित टेक्नोलॉजी पर निर्भरता, और मिसाइल विकास में देरी उसकी प्रभावशीलता में रुकावट पैदा कर रही हैं. इतना ही नहीं, चालक दल के प्रशिक्षण और व्यापक सैन्य परिचालनों में एकीकरण को लेकर भी सवाल बने हुए हैं.

आईएनएस अरिहंत भारत की सामरिक आकांक्षाओं और बढ़ते समुद्री प्रभाव की प्रतीक है. मगर भारत के एटमी पनडुब्बी कार्यक्रम की क्षमता को अधिकतम बढ़ाने के लिए बुनियादी ढांचे, प्रौद्योगिकी और रणनीतिक योजना में निरंतर निवेश बेहद जरूरी है. क्षेत्रीय शक्ति का परिदृश्य ज्यों-ज्यों बदल रहा है, अरिहंत और उसकी उत्तराधिकारी पनडुब्बियां बढ़ती प्रतिस्पर्धा से घिरते जा रहे हिंद-प्रशांत रणक्षेत्र में भारत के हितों की रक्षा करने के लिए बेहद अहम होंगी.

क्या आप जानते हैं?

एटीवी कार्यक्रम दरअसल 1971 की भारत-पाक जंग में अमेरिकी विमानवाहक यूएसएस एंटरप्राइज से निबटने को यूएसएसआर से प्रभावित था. उसने इससे निबटने के लिए एटमी पनडुब्बी भेजी थी

पानी के भीतर जवाबी हमला

● सेना में कार्यरत अरिहंत क्लास की दूसरी एसएसबीएन आईएनएस अरिघात और निर्माणाधीन अरिदमन जवाबी हमले की क्षमता में इजाफा करेंगी

● एसएसबीएन की बदौलत भारत अपनी एटमी ताकत अपने तटों से दूर तैनात कर सकता है

● पारंपरिक नौसैन्य दबदबे और पनडुब्बी-विरोधी संग्राम को तीव्र करने के लिए भारत परमाणु संचालित हमलावर पनडुब्बियां (एसएसएन) विकसित कर रहा है

● यह क्वाड के तहत अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ भारत की रणनीतिक भागीदारियों की पूरक है

● जब पाकिस्तान समुद्र-आधारित एटमी भयप्रतिरोधकों की खोज कर रहा है, अरिहंत पनडुब्बी भारत को परिचालनगत बढ़त देती है

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