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जीएसटी: जब आधी रात को बदल गया भारतीयों के टैक्स देने का तरीका

जीएसटी ने अनुपालन को सुव्यवस्थित कर राजस्व को बढ़ाया और आर्थिक एकीकरण को बढ़ावा देकर अहम बदलाव किया

तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी 30 जून, 2017 को जीएसटी लॉन्च के लिए संयुक्त संसदीय सत्र को संबोधित करते हुए
तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी 30 जून, 2017 को जीएसटी लॉन्च के लिए संयुक्त संसदीय सत्र को संबोधित करते हुए
अपडेटेड 13 जनवरी , 2025

यह वर्ष 2000 की शुरुआत की बात है. तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने आर्थिक सलाहकार पैनल की बैठक बुलाई. भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर बिमल जालान और उनके पूर्ववर्ती आई.जी. पटेल और सी. रंगराजन की सदस्यता वाले इस पैनल ने देश के टैक्स ढांचे में व्यापक सुधारों की वकालत की थी. वैश्विक निवेश के लिए देश के नए सिरे से खुलने और उभरते उपभोक्ता बाजार के रूप में देखे जाने के साथ ही एक सरल, एकीकृत टैक्स प्रणाली की जरूरत साफ हो गई थी.

वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने जुलाई 2000 में अपने सलाहकार, अर्थशास्त्री विजय केलकर के नेतृत्व में दो टास्क फोर्स के गठन की घोषणा कर बदलाव के बीज बो दिए. उनकी सिफारिशों में एक एकीकृत माल एवं सेवा कर (जीएसटी) का प्रस्ताव एक गेम-चेंजर के रूप में उभरा, जिसका मकसद खंडित और बोझिल टैक्स प्रणाली को बदलना था. इसका मुख्य उद्देश्य टैक्सेज में कमी लाना, अनुपालन को सरल बनाना और आर्थिक एकीकरण को बढ़ावा देना था.

आखिरकार, भारत ने 17 केंद्रीय और राज्य टैक्सेज को एकीकृत करके जुलाई 2017 में जीएसटी को लागू कर दिया. इसने तीन बड़े बदलाव किए—फैक्ट्री गेट पर लेवी की पुरानी व्यवस्था को बदल कर कराधान को उपभोग के बिंदु पर ले जाया गया; इनपुट टैक्स क्रेडिट के जरिए उत्पादन-वितरण के हर स्तर पर टैक्स को कम किया गया; एक ही जीएसटी रिटर्न ने कई टैक्स दाखिल करने की जरूरत को खत्म कर दिया.

परिवर्तनकारी होने के बावजूद यह 17 साल लंबी यात्रा चुनौतियों से भरी हुई थी. राज्य के वित्त मंत्रियों ने राजस्व के नुक्सान और गुजरात, तमिलनाडु और महाराष्ट्र जैसे मैन्युफैक्चरिंग केंद्रों पर प्रभाव के बारे में चिंताओं से जूझते हुए वर्षों तक इसकी पेचीदगियों पर बहस की. जीएसटी से पहले, राज्य अक्सर अक्षमताओं को पैदा करने की कीमत पर टैक्स छूट की पेशकश करके निवेश के लिए प्रतिस्पर्धा करते थे. नई प्रणाली ने ऐसी असमानताओं को दूर कर दिया, हालांकि इसने उपभोग-संचालित राज्यों की तुलना में मैन्युफैक्चरिंग वाले राज्यों को नुक्सान की हालत में पहुंचा दिया.

इन चिंताओं को दूर करने की कोशिश 2007 में उस वक्त शुरू हुई जब पश्चिम बंगाल के असीम दासगुप्ता के नेतृत्व में राज्यों के वित्त मंत्रियों की अधिकार प्राप्त समिति ने जीएसटी के निहितार्थों का अध्ययन किया. चार साल बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने संसद में जीएसटी विधेयक पेश किया, लेकिन मैन्युफैक्चरिंग में अग्रणी राज्य अड़ गए.

इसका विरोध करने वालों में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल थे. मोदी ने केंद्र में सत्ता में आने के बाद तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली के साथ मिलकर जीएसटी की वजह से होने वाले किसी भी राजस्व नुक्सान के लिए राज्यों को समयबद्ध मुआवजे का प्रस्ताव रखा. और अगस्त 2016 में आखिरकार यह विधेयक संसद में पारित हो गया.

इन शुरुआती बाधाओं के बावजूद जीएसटी देश के सबसे महत्वपूर्ण टैक्स सुधारों में से एक है. जीएसटी परिषद—केंद्रीय वित्त मंत्री की अध्यक्षता वाली एक संघीय संस्था जिसमें सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के वित्त मंत्री शामिल हैं—के गठन से सहयोगात्मक निर्णय लेना तय हो गया. फिर भी पेचीदगियां कायम हैं. मौजूदा जीएसटी संरचना में सात टैक्स स्लैब शामिल हैं, शून्य-रेटेड वस्तुओं से लेकर अधिकतम 28 फीसद ब्रैकेट तक, अतिरिक्त उपकरों (सेस) के साथ प्रभावी टैक्स दरें और भी बढ़ जाती हैं. आलोचकों का कहना है कि इस मल्टी-स्लैब से टैक्स प्रणाली के सरलीकरण का वादा कमजोर हो गया है.

इसके बावजूद जीएसटी के प्रभाव से लॉजिस्टिक्स दक्षता में सुधार हुआ है क्योंकि माल की आवाजाही के लिए राज्य सीमा पर जांच खत्म कर दी गई है, जिससे वेयरहाउसिंग क्षेत्र में उछाल आई है. क्रेडिट रेटिंग एजेंसी क्रिसिल की एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, टर्नअराउंड समय में 20-25 फीसद की कमी आई है, जबकि लॉजिस्टिक्स लागत जीएसटी से पहले के दौर की तुलना में 1.5-2 फीसद कम हुई है.

जीएसटी करदाताओं की संख्या 2017 में 64 लाख से बढ़कर 2023 में 1 करोड़ 40 लाख होने के साथ ही अनुपालन में इजाफा हुआ है. नवंबर 2024 में जीएसटी संग्रह एक लाख बयासी हजार करोड़ रुपए—लागू होने के बाद से किसी भी महीने के लिए चौथा सबसे ज्यादा संग्रह—तक पहुंच गया. यह घरेलू खपत में 9.4 फीसद के इजाफे की बदौलत हुआ है. अप्रैल-नवंबर 2024 में सकल जीएसटी संग्रह बढ़कर 14.56 लाख करोड़ रुपए हो गया—जो पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले 9.3 फीसद ज्यादा है.

जीएसटी ने अर्थव्यवस्था को औपचारिक बनाकर और पारदर्शिता को बढ़ावा देकर न केवल इनडायरेक्ट टैक्स अनुपालन को बढ़ाया, बल्कि डायरेक्ट टैक्स संग्रह को भी बढ़ावा दिया. हालांकि इसमें अभी कई खामियां हैं, लेकिन यह सुधार आर्थिक प्रगति की खातिर जटिल चुनौतियों से निबटने की भारत की क्षमता को रेखांकित करता है.

जबरदस्त गेमचेंजर

● जीएसटी ने टैक्स संरचना को सरल बनाया है, जिससे व्यवसायों पर अनुपालन का बोझ कम हुआ है
●  व्यवसायों के पंजीकरण को प्रोत्साहन देकर भारतीय अर्थव्यवस्था को औपचारिक रूप दिया गया
● राज्य की सीमाओं पर चेक पोस्ट हटाकर लॉजिस्टिक्स और सप्लाइ चेन दक्षता को बढ़ावा दिया
●  कर राजस्व में वृद्धि करके सरकार के वित्त को बढ़ावा दिया
● अंतरराज्यीय व्यापार बाधाओं को हटाकर भारत को एकल बाजार के रूप में स्थापित किया
● ई-इनवॉइसिंग, ऑनलाइन टैक्स फाइलिंग आदि के माध्यम से व्यवसायों के डिजिटलीकरण को बढ़ावा दिया

1.4 करोड़ जीएसटी करदाता थे 2023 में, जबकि 2017 में 64 लाख थे
1.82 लाख करोड़ रुपए मासिक जीएसटी संग्रह नवंबर 2024 में
9.3 फीसद वर्षवार वृद्धि जीएसटी संग्रह में (अप्रैल-नवंबर 2024)

"ऐतिहासिक जीएसटी भारत की नियति के साथ नई मुलाकात है जो देश के सभी राज्यों को एक बार फिर से एकजुट करेगी...एक बार सारी अनिश्चितताएं दूर हो जाएं तो इसमें विकास को बढ़ाने की क्षमता है"

—शोभना कामिनेनी, एग्जीक्यूटिव वाइस-चेयरपर्सन, अपोलो हॉस्पिटल्स, और सीआइआइ की तत्कालीन अध्यक्ष, 
जुलाई 2017 में जीएसटी लागू होने पर

क्या आप जानते हैं?

यूरोपीय संघ-वैट और चीन की वैट प्रणाली के साथ जीएसटी को अब दुनिया भर में कराधान के लिए संदर्भ बिंदुओं में से एक के रूप में देखा जाता है. खासकर जिस तरह से इसने कई राज्यों के विविध हितों के साथ सामंजस्य बैठाया है.

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