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जब देश के आम लोगों को पहली बार लगा कि वे भी हवाईजहाज में बैठ सकते हैं!

वर्ष 2003 में एयर डेक्कन ने यह मिथ तोड़ दिया कि सिर्फ आभिजात्य लोग ही हवाई जहाज में बैठ सकते हैं. बिना सुख-सुविधा वाली सेवाओं और बेहद कम दाम वाली इस हवाई सेवा ने भारतीय विमानन उद्योग को बदलकर रख दिया जिससे बजट एयरलाइंस सेवा क्षेत्र को तेजी से प्रोत्साहन मिला

कैप्टन जी.आर. गोपीनाथ, जून 2005
कैप्टन जी.आर. गोपीनाथ, जून 2005
अपडेटेड 7 जनवरी , 2025

वर्ष 2003 में भारतीय सेना से सेवानिवृत्त कैप्टन गोरुर रामस्वामी आयंगर गोपीनाथ ने भारतीयों को पहली बार एक ऐसे नए शब्द से परिचित कराया जो विरोधाभासी अर्थ वाला लगता था: सस्ती एयरलाइन. 90 के दशक और यहां तक कि 2000 के दशक के प्रारंभ में भारत में हवाई जहाज का सफर अमीरों की ही गतिविधि माना जाता था. बाकी लोग रेलगाड़ी पकड़ते थे.

गोपीनाथ ने एक ऐसे भारत की कल्पना की जहां एयरलाइंस का सिर्फ एक काम था: लोगों को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाना. इस तरह 25 अगस्त, 2003 को बेंगलूरू से कर्नाटक के हुबली तक की उड़ान के साथ एयर डेक्कन शुरू हुई. यह घरेलू विमानन कंपनी थी जिसमें उस दौर की इंडियन एयरलाइंस और जेट एयरवेज जैसी पूर्ण सेवा विमानन कंपनियों की तरह भोजन नहीं था, शानदार सीटें और दूसरे ताम-झाम भी नहीं थे.

पहली बार आम भारतीयों ने उड़ान का सपना देखा. बेंगलूरू में एक बस ड्राइवर, जयपुर का कोई दुकानदार या गुवाहाटी में कोई छात्र महज 500 रु. में हवाई जहाज में बैठ सकता था. रात भर की ट्रेन यात्रा या कष्टों से भरे बसों के सफर की तुलना में हवाई सफर ज्यादा व्यावहारिक और समय बचाने वाला विकल्प बन गया. और छोटे शहरों के वीरान पड़े हवाईअड्डों में अचानक गहमागहमी बढ़ गई. हां, इसमें देरी होती थी और उड़ानें भी रद्द होती थीं. और सेवा भी बुनियादी थी लेकिन नई पहल यहां टिकने वाली थी.

आज यह क्षेत्र घरेलू उड़ानों का 80 फीसद से अधिक कवर करता है. असल में, विमान यात्रा के लोकतंत्रीकरण ने भारत के उड्डयन क्षेत्र में उछाल की नींव रखी और बाद में उड़ान (उड़े देश का आम नागरिक) जैसी सरकारी पहलों के लिए आधार तैयार किया.

हालांकि थोड़े ही सालों के भीतर एयर डेक्कन का सफर हिचकोले खाने लगा. उसकी तेज बढ़ोतरी ने वित्तीय चोट पहुंचाई और सेवा की गुणवत्ता भी गिर गई, भले ही वह 2007 तक देश की दूसरी सबसे बड़ी एयरलाइन बन गई. 2008 तक किंगफिशर एयरलाइन ने एयर डेक्कन का अधिग्रहण कर लिया था. लेकिन 'सस्ती विमान सेवा’, 'बिना ताम झाम की एयरलाइन’ और 'कैप्टन जीआर गोपीनाथ’ ने भारत के नागरिक विमानन क्षेत्र में अपनी स्थायी जगह हासिल कर ली. 2006 में इंडिगो आती है.

उसके बाद से बजट उड़ानों के लिए भारत के घरेलू बाजार में कई विमान सेवाएं उतरी हैं और लगातार उतर रही हैं. लेकिन यह इंडिगो ही थी जिसे वहां सफलता मिली जहां एयर डेक्कन फेल हो गई थी. 2006 में भारतीय-अमेरिकी अरबपति और यूएस एयरवेज ग्रुप के मुख्य कार्यकारी राकेश गंगवाल ने कारोबारी राहुल भाटिया, जो अब भी एयरलाइन का नेतृत्व कर रहे हैं, के संग इंडिगो शुरू की. इंडिगो ने अपनी पूर्ववर्तियों जैसी किसी अव्यवस्था या अतिरंजना के बगैर उड़ान भरी.

उसका नजरिया सिंपल था: वक्त की पाबंदी, लागत कम रखिए और जो काम करे, उस पर टिके रहिए. आज उसके पास भारत में विमानों का सबसे बड़ा 350 से ज्यादा का बेड़ा है और कुछ साल में यह दोगुना हो जाएगा. उसके पास सबसे अधिक संख्या में पायलट हैं. वह 118 शहरों तक उड़ान भरती है, जिनमें 32 से ज्यादा विदेशी शहर हैं.

इंडिगो अब भारत का देश में विकसित उड्डयन ब्रांड है जिसमें बड़ा होने और वैश्विक बनने की क्षमता है. उसने सस्ती उड़ानों की खोज तो नहीं की लेकिन उसने कैप्टन गोपीनाथ के विजन को साकार किया है.

—अभिषेक जी. दस्तीदार

क्या आप जानते हैं?

डिजाइनर राजेश प्रताप सिंह और अंबिका पिल्लै ने 2010 में इंडिगो की यूनिफॉर्म तैयार की थी. इसके साथ एयरलाइन ने अपना सबसे पहला टीवी कमर्शियल 'समय पर होना सबसे अच्छी बात है’ शुरू किया

किफायती पंख

● एयर डेक्कन ने मध्य और निम्न आय समूहों को उड़ान की सुविधा दी, इसने स्पाइसजेट, इंडिगो और गोएयर जैसी कई बजट एयरलाइंस को शुरू होने की प्रेरणा दी
● छोटे शहरों ने बड़े शहरों के लिए उड़ानें शुरू कीं. बजट एयरलाइंस की जरूरत ने आधुनिक और विस्तारित हवाई अड्डों को तैयार किया
● सस्ती विमानन सेवाओं की सफलताओं ने 'उड़ान’ जैसी योजनाओं की नींव रखी जिससे आम लोगों को ज्यादा आसानी से हवाई सफर में मदद मिली 
● एयरलाइन्स में प्रतिस्पर्धा के कारण हवाई किराया काफी तेजी से घटा 
● एयर डेक्कन की धन की समस्या ने वित्तीय दक्षता के महत्व की जरूरत बताई. इंडिगो ने इस सबक का अच्छी तरह से इस्तेमाल किया

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