
सोलह दिसंबर, 2012 की उस सर्द रात जैसे ही यह खबर आई, पूरा देश सिहर उठा और उसने यह दर्द अपने अंदर भी महसूस किया. 23 साल की एक युवा फिजियोथैरेपी इंटर्न राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में उस शाम एक प्राइवेट बस में बैठी, इस बात से अनजान कि एक अकल्पनीय खौफ उसका इंतजार कर रहा है.
उसे निर्भया नाम दिया गया लेकिन हम यह कभी नहीं जान सकते कि वह कितने गहरे खौफ में रही होगी जब छह लोगों ने निर्ममता से सामूहिक बलात्कार किया और उस पर हमला किया, उसे इतनी गंभीर हालत में छोड़ दिया कि वह कुछ दिन बाद ही चल बसी. वहशीपन की इस करतूत लोहे की एक रॉड उसके अंदर घुसा दी और उसकी अंतड़ियां बाहर निकाल दीं.
इस घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया, देशभर में विरोध शुरू हो गया, लाखों लोग निर्भया के लिए इंसाफ और सिस्टम में बदलाव की मांग को लेकर ठंड का सामना करते हुए, पुलिस के डंडों और पानी की बौछारों की परवाह किए बगैर सड़कों पर निकल आए.
लोगों की नाराजगी पर सरकार यौन हमले से जुड़े मौजूदा कानून बदलने पर मजबूर हुई जो भारतीय दंड संहिता, दंड प्रक्रिया संहिता और सबूत अधिनियम के तहत आते थे. नतीजे में आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2013 आया, जिसमें यौन हिंसा का दायरा बढ़ाकर उसमें तेजाब से हमला, घूरना और यौन व्यापार के लिए तस्करी को शामिल किया गया.
बलात्कार की परिभाषा का दायरा बढ़ाया गया, बार-बार अपराध करने वालों के लिए मृत्युदंड सहित अधिक सख्त सजा का प्रावधान किया गया और न्यायिक प्रक्रिया को ज्यादा पीड़ित केंद्रित बनाया गया. उसने आदिम जमाने के 'टू फिंगर टेस्ट' को खत्म कर दिया, जिसमें पीड़िता के यौन अतीत पर सवाल उठाया जाता था.
आखिरकार, निर्भया के चार बलात्कारियों को 2020 में फांसी दे दी गई. एक जेल में ही मर गया, दूसरे पर नाबालिग के रूप में मुकदमा चला. लेकिन क्या संशोधित कानूनों से देश की महिलाओं की जिंदगी में कोई बदलाव आया है? इस सवाल का जवाब देश को बीते अगस्त में उस वक्त मिला जब दूसरी निर्भया, अलग जगह, अलग समय पर, ऐसी ही दरिंदगी का शिकार हुई.
कोलकाता में आर.जी. कर मेडिकल कॉलेज में स्याह रात में उससे बलात्कार किया गया और मार दिया गया. यह हमें याद दिलाता है कि काम अभी खत्म नहीं हुआ है, कानून बस इतना ही कर सकता है.
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं, पुलिस 2012 में एक साल में बलात्कार के 25,000 मामले दर्ज कर रही थी तो 12 साल बाद यह आंकड़ा बढ़कर 31,000 से ज्यादा यानी 86 मामले रोजाना हो गया है. हालांकि, सजा की दर निराशाजनक 27 फीसद है. जब तक हम सामाजिक मानसिकता में बदलाव नहीं लाते, अपने बच्चों को लैंगिक समानता और सम्मान के मूल्यों के बारे में नहीं पढ़ाते, इस देश में यौन हिंसा खौफनाक सचाई बनी रहेगी.
31,982 महिलाओं से बलात्कार
हुआ देश में 2022 में. उनमें से 1,071 नाबालिग थीं. 250 का बलात्कार, फिर हत्या की गई
इंडिया टुडे के पन्नों से

अंक: 9 जनवरी, 2013
खास रपट: हौसले और हिम्मत से भरे मासूम चेहरे
● वे 'निर्भया, दामिनी और अमानत' कह रहे हैं. ऐसा कोई सरल शब्द नहीं है जो उसके अदम्य साहस को बता सके. सफदरजंग अस्पताल के गेट नंबर 7 के बाहर जमा लोगों ने उसके स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना की, वे यह देखने के लिए नहीं जुटे कि छह बलात्कारियों का क्या होगा, बल्कि बदलाव के इरादे से आए हैं: सख्त नए कानून, संवेदनशील पुलिस प्रशासन और ऐसा समाज जो महिलाओं का सम्मान करता और महत्व देता है.
—असित जॉली और अन्य
निर्भया का असर
> आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम 2013, जिसने बलात्कार की परिभाषा को व्यापक किया, ज्यादा सख्त सजा का प्रावधान किया. उसमें बार-बार अपराध करने वाले के लिए मृत्युदंड शामिल है और पीडि़ता पर टू फिंगर वाले टेस्ट पर प्रतिबंध लगाया गया
> यौन आक्रमण के मामलों को तुरंत निबटाने और जल्द न्याय मुहैया कराने के लिए फास्टट्रैक अदालतें गठित की गईं
> किशोर न्याय अधिनियम संशोधन 2015 में 16 से 18 साल तक के किशोरों पर बलात्कार जैसे जघन्य अपराधों के लिए वयस्क के रूप में मुकदमा चलाने की इजाजत दी गई
> आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम, 2018 में बच्चियों से बलात्कार पर मृत्यु दंड का प्रावधान किया गया